गौं गौं की लोककला

ढांगू गढ़वाल की लोककलाएं व भूले बिसरे कलाकार - 2

खंड बिछला ढांगू की लोककलाएं कला व कलाकार

ढांगू गढ़वाल की लोककलाएं व भूले बिसरे कलाकार - 2

खंड बिछला ढांगू की लोककलाएं कला व कलाकार

ढांगू गढ़वाल की लोककलाएं व भूले बिसरे कलाकार - 2

(श्री व जी नहीं लगाए हैं समाहित समझिये )

संकलन - भीष्म कुकरेती

खंड गंगा तट पर दाबड़ , कांडी , अमोला गाँवों से घिरा गाँव है। आज मुख्यतया बड़थ्वालों का गाँव कहा जाता है।

खंड की मुख्य कलाएं इस प्रकार हैं -

संस्कृति - संस्कारो से संबंधित कला अभिव्यक्ति में - विवाह में जन्मने , नामकरण , मुंडन आदि के वक्त पंडितों द्वारा गणेश निर्माण , चौकी सजावट सामन्य संस्कारी कलाएं कन्हड में जीवित है , शादी में हल्दी हाथ ,

भी सामन्य सांस्कृतिक कला आम गढ़वाली गांव की भांति खंड गांव की संस्कृति का अंग है। स्त्रियां लोक गीत गातीं थीं व कई गीत स्थानीय घटनाओं पर आधारित रच कर बौण व पुंगड़ियों में गति ही थीं। लोक खेल भी गढ़वाल जैसे ही थे।

पहले चैत में नाट्य व गीत कला खंड के सांस्कृतिक कला अंग थे। जंतर -मंतर कला भी गढ़वाल को प्रतिनिधित्व करते थे। बादी बादण नाच गीत के लिए प्रसिद्ध थे ही।

बादी -बादण – बिज्नी, तल्ला ढांगू के हीरा बादी

औजी - ढोल बादक दाबड़ बिछले ढांगू के थे पीतांबर दास परिवार से थे व दूसरी तीसरी साखी में सिंकतु , सैना , चमन लाल , पंकज हुए

मंदर , चटाई निर्माण - सन 60 -65 तक गाँव में ही बनते थे।

ब्वान - खंड में ही निर्मित होते थे , कौंदा की मूळी माई भी आती थीं

दबल -ठुपरी = भ्यूंळ की खंड में ही निर्मित होते थे। किंतु बांस की ठुपरी , दबल हेतु हथनूड़ व बागी (बिछले ढांगू ) पर निर्मभर थे।

मिटटी के दिए ,हिसर , मृदा बर्तन - पहले (शायद स्वतन्त्रता से पहले व कुछ समय बाद भी ) - हथनूड़ के कलाकारों पर निर्भर थे।

दर्जीगिरी - पहले औजी ही थे बाद में सिमाळु खंड के उमानंद बड़थ्वाल प्रसिद्ध दर्जी हुए । देहरादून के प्रसिद्ध टेलर रोशन बड़थ्वाल इसी परिवार के हैं।

टाट -पल्ल -नकपलुणी - बिछला ढांगू में घने जंगल होने के कारण गोठ प्रथा न थी। बिछला ढांगू वाले garmiyon , वर्षा ऋतू में अपने जानवर मल्ला ढांगू भेज देते थे अतः टाट -पल्ल -नकपलुणी कला ना के बराबर थी। घर या गौशाला के आगे हेतु छपर हेतु पल्ल बागी वाले या हथनूड़ वाले कलाकार थे

उरख्यळ। छज्जे के दास - ठंठोली (मल्ला ढांगू पर निर्भर )

मकान के पत्थर गांव के पास या कलसी कुठार (मल्ला ढांगू ) पर निर्भर

भवन निर्माता /ओड - बागी के

सुनार - जसपुर व पाली (मल्ला ढांगू )

लोहरगिरि व टमटागिरी - बड़े कार्य हेतु जसपुर पर निर्भर छोटे कार्य टंकयाण , अदि हेतु गाँव के लोहार गबुल थे।

तिबारियां थी। पूरी जानकारी हासिल न हो सकी

घट्ट न थे न हैं

पहले लगभग हर परिवार से कर्मकांडी पंडित व जंतर मंतर के पंडित थे।

पंडित मुकंद राम बड़थ्वाल , दैवेज्ञ (1887 -1979 खंड के ही थे जिन्होंने कई ज्योतिष पुस्तकें रचीं

वर्तमान मेंलेखन में हरीश बड़थ्वाल का नाम सम्मानीय नाम है

गढ़वाल में उद्यान से पलायन रुक सकता है की मिशाल सत्य प्रसाद बड़थ्वाल हैं

( खंड के उद्यान कृषि पुरोधा सत्य प्रसाद बड़थ्वाल की दी सूचना पर आधारित )