आधुनिक गढ़वाली कविता का इतिहास

सर्वाधिकार सुरक्षित :-धर्मेन्द्र नेगी

चुराणी, रिखणीखाळ ,पौड़ी गढ़वाळ

दिन ढलकण से क्य होण

दिन ढलकण से क्य होण

समौ बदलण से क्य होण


खैरि खैकि मिलण गफ्फा

सुदि डबखण से क्य होण


छोड़ खटुलि बिटौ खंतुड़ि

हौड़ फरकण से क्य होण


पुंगड़्यूं कूरि रौदेड़ु जम्यूं

द्यो बरखण से क्य होण


जिठणा दगड़ि नचै होणी

छौं बरजण से क्य होण


जिकुड़िम छन पित्त पक्यां

मुल मुलकण से क्य होण


च्वट्टा पोड़ण लगिगैनि जब

तब खळकण से क्य होण


पढ़ै - लिखै नौफर चुकपट

जुल्फि झटगण से क्य होण


गंगा जी का जौ ह्वेगेनि जु

वूं तैं जग्वळण से क्य होण


पैलि त निचन्त रै तु 'धरम'

अब भटगण से क्य होण