गौं गौं की लोककला

तिमली में विद्वान बद्री दत्त डबराल परिवार की तिबारी व जंगलेदार निमदारी में काष्ठ कला , नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी

सहयोगी सूचना : आशीष डबराल

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 127

तिमली में विद्वान बद्री दत्त डबराल परिवार की तिबारी व जंगलेदार निमदारी में काष्ठ कला , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , , मोरियों , खोलियों, काठ बुलन, छाज ) काष्ठ कला, नक्कासी - 127

संकलन - भीष्म कुकरेती

पहले ही कहा जा चूका है कि पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल ब्लॉक के तिमली गाँव के बारे में प्रसिद्ध था कि वहां के गोर बछर भी संस्कृत में बचियाते हैं। इस लोक कथ्य का साफ़ अर्थ था कि १८८८ के लगभग संस्कृत स्कूल खलने से तिमली में संस्कृत विद्वानों की झड़ी लगती गयी। प्रस्तुत दो भवनों के मालिक भी संस्कृत के प्रकांड विद्वान् परिवार था यथा -बद्री दत्त डबराल , आचार्य ललिता प्रसाद डबराल , ईश्वरी दत्त डबराल व डा. गोवर्धन प्रसाद डबराल से संबंधित है। आज की पीढ़ी के हिसाब से आशीष डबराल के परिवार का यह पुरातन घर है जिसमे तिबारी व जंगलेदार निमदारी है। अब इस जगह पर बिलकुल न्य भवन खड़ा हो गया है किंतु कोशिस की गयी कि प्राचीन कला तंतु बरकरार रहें।

विद्वान बद्री दत्त डबराल परिवार के मकानों में काष्ठ कला याने लकड़ी पर नक्कासी समझने हेतु मकानों को तीन भागों में बाँटना होगा

१- तिबारी वाले मकान में खोली व तिबारी में काष्ठ कला /लकड़ी पर नक्कासी

२- इसी तिबारी के ऊपर तीसरे मंजिल में जंगले में लकड़ी पर खुदाई

३- बिन तिबारी वाले भवन में जंगले में काष्ठ कला अलंकरण /लकड़ी पर नक्कासी

-: तिबारी वाले मकान में काष्ठ कला , लकड़ी में नक्कासी :-

खोली /प्रवेशद्वार में काष्ठ कला:- विद्वान् बद्री दत्त डबराल परिवार के तिपुर (1 =2 ), दुखंड /तिभित्या मकान में तल मंजिल में खोली दर्शनीय थी जिसे अब नए रंगों से उसी अवस्था में लाने का प्रयत्न किया गया है। खोली के आंतरिक सिंगाड़ /स्तम्भ व आंतरिक रिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष में केवल ज्यामिति अंकन /नकासी हुआ है। जबकि बाह्य सिंगाड़ों व मुरिन्ड के बहरी वाली पट्टियों में पर्ण -लता व ज्यामिति कला का अंकन हुआ है। मुरिन्ड /मथिण्ड के मध्य बहुदलीय शगुन प्रतीक पुष्प विराजमान है।

मध्य मंजिल में तिबारी में कष्ट कला अंकन या नक्कासी:- विद्वान् बद्री दत्त डबराल के मकान के मध्य मंजिल में चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ /खोली /द्वार की तिबारी स्थापित हैं। छज्जे पर स्थित तिबारी के प्रत्येक स्तम्भ में कला अंकित है व ढांगू उदयपुर की अन्य तिबारियों के स्तम्भों जैसा ही है । आधार पर उलटा कमल फूल से कुम्भी आकर निर्मित होता है फिर ड्यूल है , इसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल की आकृति अंकित है व यहाँ से स्तम्भ की मोटाई गोलाई में धीरे धीरे कम होतो जाती है व एसबीएस एकम मोटाई स्थल पर ड्यूल है व उसके ऊपर खिला कमल फूल है ज जहां से स्तम्भ में थांत (bat blade type ) के ऊपर नयनाभिरामी नक्कासी दार दीवालगीर (ब्रैकेट ) हैं।

दीवालगीर में नक्कासी :- विद्वान बद्री दत्त डबराल परिवार की इस तिबारी के दीवालगीर में उम्दा नक्कासी हुयी है। दीवालगीर में फूल की नली व मोटी कली का अग्र भाग की आकृति में पक्षी की चोंच भी है एक एक पक्षी भी अंकित हुआ है

चिड़िया के शरीर पर भी नक्कासी हुयी है। दूसरी मंजिल के छज्जे के लकड़ी के आधार से शंकु नुमा आकृतियां लटक रही हैं।

विद्वान् बद्री दत्त डबराल परिवार के इस मकान में दूसरी मंजिल पर जंगला बंधा था जो कि दुसरे बिन तिबारी के मकान जैसा ही है तो उसी पर चर्चा निम्न तरह से होगी।

विद्वान बद्र दत्त डबराल परिवार के दुसरे मकान के दूसरी मंजिल में लकड़ी के जंगले पर नक्कासी:- विद्वान डबराल परिवार के दुखंड , दुभित्या , तिपुर वाले दूसरे मकान के दूसरी मंजिल पर उसी तरह का जंगला बंधा है जैसे तिबारी युक्त मकान के दूसरी मंजिल में है।

जंगला लकड़ी के छज्जे पर स्थापित है व इस जंगले में आठ स्तम्भ है जिनके शीर्ष /मुरिन्ड में मेहराब हैं याने कुल आठ स्तम्भ व सात मेहराब /तोरण हैं। प्रत्येक स्तम्भ का आधार मोटा है व उस पर सांतर कटान से नक्कासी हुयी है। दो ढाई फिट तक स्तम्भ के दोनों ओर पट्टिकाएं फिट की गयीं हैं। ध्यि फिट पर ही लकड़ी का रेलिंग है। स्तम्भ जब मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष के निकट पंहुचता है तो स्तम्भ में ड्यूल व कमल दल की न्यूना छवि की खुदाई है (कम महत्वपूर्ण ) . यहां से स्तम्भ का थांत भी शुरू होता हिअ व मेहराब का एक भाग /अर्ध चाप भी शुरू होता है। मेहराब में नकासी हुयी है व त्रिभुजों के किनारे पर एक एक बहुदलीय सत्य मुखी नुमा पुष्प खुदा है। मेहराब के लकड़ी वाले हिस्से में प्राकृतिक कला /अलंकरण के चिन्ह दिख रहे है किन्तु क्या थे मिट गए हैं। विद्वान् बद्री दत्त परिवार के मकान के दूसरी मंजिल का काष्ठ जंगला (निमदारी ) शानदार रहा होगा इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती व अवश्य ही तिमली ही नहीं डबरालस्यूं की शान रहे होंगे ये दोनों मकान।

निश्सकर्ष निकलन सरल है कि विद्वान बद्री दत्त दरबाल परिवार के दोनों मकानों में भव्य काष्ठ कला अंकन / नक्कासी हुयी है व तीनों किस्म का अलंकरण हुआ है ९प्रकृतिक, ज्यामितीय व मानवीय ) . दोनों मकान अपने नकासी के लिए प्रसिद्ध थे।

आशीष डबराल की सूचना अनुसार अब दोनों मकान ध्वस्त कर दिए गएँ है लगभग इसी तर्ज पर नए मकान बने हैं

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध संस्कृति फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी

सहयोगी सूचना : आशीष डबराल

* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर के लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

Copyright@ Bhishma Kukreti