उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -18

उत्तराखंड परिपेक्ष में छीमी /सेम दाल का इतिहास

दालों /दलहन का उत्तराखंड परिपेक्ष में इतिहास -भाग -7

उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --18

उत्तराखंड परिपेक्ष में छीमी /सेम दाल का इतिहास

दालों /दलहन का उत्तराखंड परिपेक्ष में इतिहास -भाग 7

उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --18

आलेख : भीष्म कुकरेती

Botanical name : Dolichos purpureus , Lablab purpureus

सेम /छीमी /पापड़ी जन्मस्थल भारत है। आसाम और सेम /छीमी जंगली रूप में भी पाया जाता है। हड़प्पा (3200 -2000 BC ) खुदाई में छीमी /सेम के भोजन प्रयोग के अवशेस मिले हैं. महारष्ट्र के अहमदनगर खुदाइ में 1000 BC छीमी /सेम के अवसेश मिले हैं। आठवीं सदी में छीमी अफ्रिका गयी। उत्तर हड़प्पा अवशेषों में सेम मिली हैं , तरोडीह बिहार में ताम्रपा षाण युग के अवशेष मिले हैं। दायमाबाद में 1500 से 1200 BC के अवशेष मिले हैं इसी तरह दक्क्न में भी लौह युग व पहले के अवशेष मिले हैं

संस्कृत में चरक (700 BC ) से पहले फलियों के शिम्बी शब्द आ चुका था और फलियों के अनाज को शिम्बीधान्य कहा गया है। चरक ने उल्लेख किया कि सेम (निशपव ) के अधिक सेवन से पांडुरोग (पीलिये होने के आसार बढ़ जाते हैं।

संस्कृत में फलियों वाले अनाज को शिम्बी , राजशिम्बी , निशपव और वल्लक कहते हैं।

जैन साहित्य (200 BC 300 AD ) में निशपव व वल्ला का वर्णन है।

गढ़वाली का छीमी शब्द शिम्बी का या सेम का अपभ्रंश है।

कौटिल्य (321 -296 AD ) ने सेम /छीमी की बुआइ के लिए मध्य वरसात माना है।

भावप्रकाश निघण्टु (16 सदी ) में सेम को वीर्य घटाने वाला दाल कहा है.

वनस्पति शास्त्री रोक्सबर्ग ( 1759 -1815 ) ने भारितीय सेम की तेरह जातियों का वर्णन किया था।

वाट (1889 ) ने उल्लेख किया कि सेम भारत में सब्जी और चारे का काम आता है।

उत्तराखंड की पहाड़ियों में बारामासी और सामयिक सेम पैदा होती हैं। सेम के सब्जी ही अधिक प्रयोग होती है और सेम /छीमी के दानो को दाल का उपयोग बिरला ही होता है। वैसे पहाड़ी समाज में छीमी /सेम का महत्व कम ही है। बारामासा छीमी पालने की समस्या यह है कि ऐसी छीमी पेड़ (खासकर चारे वाले ही ग्राम निकट होते हैं ) पर लगती है और पेड़ की पत्तियों का विकास कम कर देती है या रोक देती है।

अनुमान है कि सेम /छीमी हड़प्पा संस्कृति जो प्राचीन उत्तराखंड (सहारनपुर /कुलिंद जनपद ) के पास भी फली फूली है के समय , अथवा वैदिक समय में उत्तराखंड में प्रवेश कर चुका होगा। मौर्य काल में तो अवश्य ही सेम उत्तराखंड में आ चुका होगा।

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