अपने से ही

बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित



कुछ भूलने चला हूँ

कुछ भूल चुका हूँ

याद था जो कुछ मुझको

उसको जब भुगत चुका हूँ


ना जाने कहाँ से चला था मै

कहाँ पहुँच चुका हूँ

कितना सीधा साधा था कभी मै

उस सादगी को अब मार चुका हूँ


जब कुछ भी ना था पास मेरे

तब बहुत खुश था मैं

अब सब कुछ है पास मेरे, ना जाने

किस ख़ुशी के लिए तड़प रहा हूँ


अपने में ही खो जाने का मन

अब मन क्यों खुद से करने में लगा

कभी स्वछंद होकर विचरता था कहीं

अब चुप बैठ एक कमरे में खोने लगा


अपने से ही सावल जब मैं पूछने लगा

अपना ही कोई पास आ मुझे रुलाने लगा

परछाईयों से भी अब मन मेरा ऊबने लगा

मुझको वो बिता पल खूब खलने लगा


अपने से ही


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