उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -62
पायूम /जंगली पालक/अल्मोड़ का उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में सब्जियों का इतिहास -20
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --62
पायूम /जंगली पालक/अल्मोड़ का उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में पायूम /जंगली पालक/अल्मोड़ की सब्जी , औषधीय उपयोग,अन्य उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -20
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --62
आलेख : भीष्म कुकरेती
Botanical name -Rumex nepalensis
Common name Nepal Dock
उत्तराखंडी नाम -पायूम, अलम्वड़ , अल्मोड़ , खतुरा
हिंदी नाम - जंगली पालक
असामी -पहाड़ी पलंग
रहन सहन - भारत में कई भागों में व सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में 1800 -4300 मीटर ऊँचे क्षेत्र में उगता है. पौधा 50 -100cm ऊँचा पौधा होता है, डंठल पोलयुक्त , जिसकी शाखाएं ऊपर होती हैं।
शालनी मिश्रा, मैखुरी , काला , राव व सक्सेना ने लिखा है कि नीति -माणा के मध्य नंदा देवी बायोस्फेयर क्षेत्र में पायूम /जंगली पालक की कोमल व कम उम्र पत्तियों को तेल में छौंककर /भूनकर , मसाले मिलाकर सब्जी बनाई जाती है। या पत्तियों को उबालकर फिर उबली पत्तियों को छौंककर /भूनकर मसाले मिलाकर सब्जी बनाई जाती है। वास्तव में इसका खाद्य उपयोग अकाल में अधिक होता था।
राधा बल्लभ , तिवारी , रावत व गैरोला सूचना देते हैं कि केदारनाथ की लोहाब क्षेत्र में अल्मोड़/पायुंम चटनी व सलाद के रूप में प्रयोग होता है।
औषधीय उपयोग
पायूम, अल्मोड़ या जंगली पालक का त्वचा के जलन कम करने में औषधीय उपयोग होता है। पैर फटने, कटे या बिच्छू घास लगने पर अलम्वड़ की पत्तियां रगड़ी जाती हैं
Copyright @ Bhishma Kukreti 18 /11/2013