गढ़वाल नाम और गढ़वाल के गढ़

गढ़वाल नाम से पूर्व इस भूभाग का नाम केदारखण्ड था। माना जाता है कि 16वीं सदी के प्रारम्भ में राजा अजयपाल ने छोटे-छोटे गढ़ों का एकीकरण किया था। गढ़ों के कारण इस प्रदेश का नाम 'गढ़वाल' पड़ा। (गढ़वाल का इतिहास- पं० हरिकृष्ण रतूड़ी, पृ० 2) रायबहादुर पातीराम के अनुसार 'गढ़पाल' से इस क्षेत्र का नाम 'गढ़वाल' पड़ा।

"We observe that in the Preforming 'sankalpa' this country is called by some of the priests Garh Pal desha instead of Garhwal, which makes us sunrise that the modern name has been given to this land by one of the Rajas of the dynasty of Kanakpal, and most Probably by Raja Ajaypal on his establishing a firm domain in Garhwal. Judging form the nature of the country, the Raja gave it the name of Garh, adding the word Pal as his family suffix." (Garhwal Ancient and Modern-day Patiram, page 13)

हरिदत्त भट्ट शैलेश यहां बह रही छोटी-बड़ी नदी को 'गाड' प्रयुक्त होने से गाड वाला क्षेत्र 'गाडवाला' की उत्पत्ति बताते हैं। (गढ़सुधा- 84-85, चण्डीगढ़, पृ० 1) मानशाह (1591-1611 ई०) के सभा कवि भरत के 'मानोदय काव्य' में 'गढ़देश' नाम का प्रयोग किया है तथा अभिलेखीय साक्ष्यों में हाट गाँव से प्राप्त 1640 ई० के फतेशाह के ताम्रपत्र में 'गढ़वाल संतान' शब्द मिलता है। (उत्तराखंड के वीर भड़- डाॅ० रणवीर सिंह चौहान, पृ० 3) 15वीं सदी से पूर्व किसी राजा (गढ़ाधिपति) की राजधानी को 'गढ़' ही कहा जाता था। गाडवाला से 'ग' में 'आ' की मात्रा विलुप्त नहीं हो सकती है। 'गढ़पाल' शब्द कहीं तंत्र-मंत्रों के अलावा कहीं प्रयुक्त नहीं हुआ है। प्राचीन समय में यहां बस रही जातियाँ अपने गाँव या गढ़ के नाम पर 'वाल' लगाकर अपनी उपजातियाँ रखती थीं। निश्चय ही इसी तरह गढ़ों के क्षेत्र 'गढ़' के साथ 'वाल' लगाकर 'गढ़वाल' शब्द की उत्पत्ति हुई।

माना जाता है कि अजयपाल ने 52 प्रमुख गढ़ों पर विजय प्राप्त कर अपने राज्य का विस्तार किया था। पं० हरिकृष्ण रतूड़ी 52 गढ़ों का उल्लेख करते हुए इनकी संख्या अधिक भी बताते हैं। 52 का अंक शुभ माने जाने तथा 52 गढ़ों की सूची सर्वप्रथम प्रकाशित होने से 52 गढ़ ही सर्व प्रचलित हैं। डाॅ० यशवन्त सिंह कठोच ने कांसुवा (चाँदपुर) तथा जाख (ग्यारह गाँव) से प्राप्त संवत् 1932 की हस्तलिखित गढ़ सूची मूल रूप में प्रकाशित की है। इसमें 52 गढ़ों का जिक्र करते हुए 54 गढ़ों की सूची दी गई है। (मध्य हिमालय-1, कठोच, पृ० 126)

डाॅ० रणवीर सिंह चौहान के अनुसार 52 नरसिंह गढ़ थे। इनके अलावा 85 भैरव गढ़, कई मांडलिक गढ़, नाग गढ़ी, राजपूत गढ़ियाँ थीं। अजयपाल ने 52 गढ़ों का एकीकरण किया था, वे गढ़ नरसिंह देव (कत्यूरी राजा) के स्थापित 52 गढ़ ही थे। इन 52 गढ़ों की संख्या नरसिंह देव के जागरों से ज्ञात होती है। (सफरनामा पौड़ी- रणवीर सिंह चौहान, पृ० 30)

बावन गढ़ और गढ़पति की जाति:-

अजमेर- पयाल, इडिया- इडिया, उपु- चौहान, एरासू, कंडारा- कंडारी, काण्डा- रावत, कुइली- सजवाण, कुजेगी- सजवाण, कोल्ली- बिष्ट, गड़तांग- भोट, गढ़कोट- बगडवाल बिष्ट, गजड़ू-, चम्पा-, चाँदपुर- सूर्यवंशी, चौण्डा- चौंडाल, चौंदकोट-, जौट-, जौलपुर-, ढांगू-, तोप- तोपाल, दशोली-, देवल-, धौना- धौन्याल, नापुर- नागवंशी, नयाल- नयाल, नाला-, फल्याण- फल्याण, बदलपुर-, बधाण- बधाणी, बनगढ़-, बागगढ़- बागूड़ी नेगी, बागर- नागवंशी राणा, बिराल्टा- रावत, भरदार-, भरपूर- सजवाण, भुवनागढ़-, मुंगरा गढ़-रावत, मौल्या- रमोला, रतनगढ़- धमदा, रवाड़- खाड़ी, राणी गढ़- खाती, रामी गढ़- राणा, रैका गढ़- रमोला, लंगूर गढ़, लोद गढ़, लोदना गढ़, लोहबा गढ़- लोहबा नेगी, श्रीगुरु गढ़- पडियार, संगेला गढ़- संगेला बिष्ट, सांकरी गढ़- राणा, सावली गढ़-, सिलगढ़- सजवाण। (जिन गढ़ों के आगे जाति नहीं है उनके गढ़ाधिपति की जाति अज्ञात है)

गढ़ किसी ऊँचे टीले पर बना होता था। प्रायः गढ़ पर चढ़ने के लिए एक ही मार्ग रखा जाता था जिससे दुश्मनों के आक्रमण का मुकाबला किया जा सके। गढ़ के चारों ओर ऊँची दीवार बनी होती थी। गढ़ में स्थानीय वास्तु शिल्प से गढ़ाधिपति का भवन बना होता था। शक्तिशाली गढ़ से जमीन के अंदर सुरंग बनी होती थी। यह सुरंग किसी पानी के स्रोत या नदी तक जाती थी। यह सुरंग शत्रु के अचानक गढ़ पर हमला किए जाने पर गुप्त मार्ग के रूप में प्रयोग की जाती थी। गढ़ की स्थापना की बुनियाद में मानव बलि दी जाती थी। अजयपाल ने भी अपने प्रासाद की नींव पर एक दासी की बलि दी थी। (उत्तराखंड के वीर भड़- डाॅ० रणवीर सिंह चौहान, पृ० 12) गढ़वाल के प्राचीन गढ़ों के ध्वंसावशेष मिट्टी-पत्थरों के ढेर में तब्दील हो गये हैं। इनका न ही संरक्षण किया जा रहा है और न ही उत्खनन की ओर पुरातत्व विभाग का ध्यान गया है। ज्ञात ऐतिहसिक गढ़ों का उत्खनन किया जाए तो चाँदपुर गढ़ी की भांति ऐतिहासिक सामग्री मिल सकती है।

(गढ़वाल हिमालय- रमाकान्त बेंजवाल से साभार)