बाँध लो इतना

बालकृष्ण डी ध्यानीदेवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

बाँध लो इतना


बाँध लो इतना

कोई खोल ना सके

तोल लो इतना

कोई मुंह खोल ना सके


संध्या समय

अस्त वाली सूर्य की

सुनहरी किरणें

कुछ मांगती नहीं


अपने को समेटती है

खुद को ढंकती नहीं

आ जाता है अन्धेरा

आने देती है वो उसे


गुस्सा हो उसे डांटती नहीं

भरोसा उसे अपने पर

पल दो पल अन्धेरा है वो

आया वो गुजर जाएगा


सूरज की राहों में

बैठी सजी रहती है वो

अपनी निगहबानों से

यही कहती रहती है वो


बाँध लो इतना



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