गौं गौं की लोककला

झैड़ तल्ला ढांगू , हिमालय की तिबारी काष्ठ कला

आभार छाया चित्र व सूचना - देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी , झैड़

हिमालय की भवन काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) -2

झैड़ संदर्भ में ढांगू गढ़वाल, हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -2


House Wood Carving Art of Dhangu region, Himalaya -

चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

Curtsy - Devendra Gokuldev Maithani , Jhair

जैसा कि पहले अध्याय में सूचना दी चुकी है कि गंगा तटीय झैड़ गाँव ढांगू क्षेत्र में कर्मकांड , वैदकी हेतु एक महत्वपूर्ण गाँव है। देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी ने झैड़ हिमालय संबंधी कई सूचनाएं इस लेखक को दीं। देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी ने सूचना दी कि झैड़ में 2000 से पहले चार या पांच तिबारियां थीं। तिबारी वास्तव में भवन के ऊपरी मंजिल का नक्कासी युक्त काष्ठ द्वार युक्त बरामदे को कहते हैं। बरामदे के अंदर भाग में कम से क दो कमरे होते हैं और नीचे मंजिल में भी चार (अंदर व बाहर X 2 ) कमरे होते हैं याने तिबारी (बरामदा ) तल (ground flour ) के बाहरी दो कमरों के ऊपर होती है व यदि ऐसी तिबारी पर काष्ठ या पाषाण नक्कासी /उत्कीर्णन न हो तो उसे डंड्यळ कहते हैं और ऐसे कमरों को या मकान को दुभित्या मकान यानेआगे पीछे दो कमरे भी कहते है ।

झैड़ में आज एक भी तिबारी साबुत नहीं बची है। गोकुल देव मैठाणी की भी तिबारी थी जो गोकुलदेव मैठाणी के पिता ने निर्माण करवाई थी। चित्रमणि मैठाणी की तिबारी थी जो अब अंग भंग /समाप्त हो गयी है। अब केवल तिबारी काष्ठ के दो स्तम्भ ही बच गए हैं आसा है कोई इन्हे बचाने हेतु आगे आएगा क्योंकि आने वाले समय में यह इतिहास हेतु आवश्यक वस्तु होगी। देवेंद्र मैठाणी ने चित्रमणि की तिबारी के दो स्तम्भों के चित्र इस लेखक को व्हट्सप माध्यम से भेजे।

देवेंद्र मैठाणी अनुसार गोकुलदेव (देवेंद्र के पिता ) की तिबारी व चित्रमणि मैठाणी की तिबारियां क्षेत्र में भव्य तिबारियों में गिनी जाती थीं। चित्रमणि मैठाणी की तिबारी में चार स्तम्भ थे याने तीन मोरी (द्वार , खिड़की , empty space for entry ) थीं व किनारे के दो काष्ठ स्तम्भ मिट्टी पत्थर की दीवार से लगीं थीं व सभी चारों काष्ठ स्तम्भों निम्न आधार पत्थर के छज्जे में स्थापित थीं. छज्जों के नीचे पत्थर के दास (टोड़ी ) लगे थे। एक तिबारी लगभग 24 फ़ीट X 10 फ़ीट की ही होंगी व तिबारी स्तम्भ लगभग 6 फ़ीट के ऊपर रही होंगी।

जिन तकरीबन बर्बाद होते काष्ठ स्तम्भों के छाया चित्र देवेंद्र मैठाणी ने भेजे हैं उनकी चमक सर्वथा समाप्त ही है अन्यथा जब बनी होंगी तो चमकदार काली भूरे रंग के नक्कासी युक्त संरचना रही ही होंगी।

दोनों स्तम्भ एक जैसे हैं और उनकी कलाकृति में एक सेंटी मित्र का भी अंतर् नहीं है। छज्जे पर टिकने वाला स्तम्भ आधार बाहर से सुंदर कलाकृत है। स्तम्भ आधार पर उल्टा कमल खुदा है जो अलंकृत है व कमल पत्तियां साफ़ झलकतीं है। ऐसा लगता है कि स्तम्भ के भाग एक लकड़ी के लट्ठे पर नहीं खड़े किन्तु अलग अलग अलंकृत स्तम्भ आपसे में जोड़े गए हैं। आधार से कुछ ऊपर स्तम्भ में जोड़ है , इस जोड़ में वृत्त का डायमीटर /व्यास स्तम्भ के व्यास के छोटा है और जोड़ स्थल में गुटके याने नक्कासी युक्त काष्ठ के गोल नुमा टुकड़ों से चारों तरफ सजे हैं। जोड़ की नकासी आनंद दायी है।

प्रत्येक जोड़ के ऊपर फिर से ऊपर की ओर खिलते कमल की पंखुड़ियां हैं व जैसे ऊपर न्य जोड़ आता है सके नीचे उल्टे लटके कलम पुष्प की पंखुडिया दिखाई देती है व कभी कभी चीड़ के फल की पंखुड़ी का आभास भी देते हैं। फिर जोड़ आता है व फिर जब छत के लकड़ी का नेहराब /धनुषाकार आर्च /arch आता है तो भी कमलाकर आकृतियां दिखाई देतीं है। प्रत्येक जोड़ व कलम पंखुड़ियों के मध्य धारी अंकलकरण /fluting है याने बेल बूटे वाला उत्कीर्णन साफ़ दिखयी देता है.

देवेंद्र मैठाणी ने सूचना दी कि जब उसकी तिबारी व चित्रमणि मैठाणी की तिबारी सही सलामत थीं तो arch , मेहराब में नयनाभिराम नक्कासी थी। देवेंद्र मैठाणी की बाचीत से इस लेखक को लगा कि झैड़ की तिबारियों में वानस्पतिक चित्रकारी हर जगह थी व छत व स्तम्भ को लगने वाली पट्टी पर कुछ रोचक चित्रकारी थी। हां कहीं भी पशु या पक्षी न थे। देवेंद्र मैठाणी ने बताया कि प्रत्येक तिबारी में ऊपरी भाग (arch ) कोलगते हुए स्तम्भ पर चक्राकार फूल थे व बीच केंद्र में गणेश की चित्रकारी थी। गणेश का अर्थ है जो पूजा समय गोबर से अंडाकर एक गोल मूर्ति सी बनाई जाती है और इसी आकृति गोल अंडाकार , चक्राकार च पुष्प के मध्य आकृति उत्कीर्ण थी।

जहां तक स्तम्भ अध्यन का प्रश्न है यह स्तम्भ कलाकारी लगभग ढांगू की काष्ठ तिबारियों में पायी गयी हैं कुछ अंतर् हो सकता है किन्तु बहुत बड़ा अंतर् नहीं दिखाई पड़ता ।

जहां तक तिबारी काष्ठ उत्कीरण कलाकारों का सवाल है इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल प् रहा है झैड़ में भी कहा जाता है तिबारी निर्माण कलाकार श्रीनगर या गंगापार या मथि मुलक (उत्तरी गढ़वाल ) से आये थे। भवन निर्माण निर्माता स्थानीय ओड ही थे और मंजोखी के ही होंगे

प्रश्न यह भी है कि झैड़ वाले इन स्तम्भों के अवशेष ही सही बचा पाएंगे ?

-आभार छाया चित्र व सूचना - देवेंद्र गोकुलदेव मैठाणी , झैड़

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