गौं गौं की लोककला

नैल , मल्ला ढांगू की लोक कलाएं व लोक कलाकार

नैल , मल्ला ढांगू की लोक कलाएं व लोक कलाकार - 14

नैल , मल्ला ढांगू की लोक कलाएं व लोक कलाकार

ढांगू गढ़वाल संदर्भ में हिमालय की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 14

(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

नैल पूर्वी मल्ला ढांगू का जाना माना नाम है। जब भी बात की जाती है तो नैल रैंस नाम साथ साथ एते हैं और आज भी दोनो गाँवों की ग्राम सभा एक ही है। नैल मुख्यतया बिंजौलाओं का गाँव है। कहा जाता है कि बिंजोली (लैंसडाउन तहसील ) से दो भाई बिंजोला 10 साखी पहले (याने 200 वर्ष पहले करीब ) नैल में बसे थे। आस पास के ठाकुर /राजपूतों ने पंडिताई व वैद्यगिरि हेतु बिंजालाओं को यहाँ बसाया था। बिंजोलाओं की विशेषता है कि बिंजोलाओं के पंडित बिंजोला ही होते हैं। प्राचीन काल याने 1960 तक बिंजोला जसपुर के बहुगुणाओं से कर्मकांड पंडिताई करवाते थे किंतु अमाल्डू के उनियालों से नहीं। नैल रैंस से बिंजोला जाति के लोग अन्य गाँवों जैसे पाली , हड्यथ , क्वाटा , शीला गाँवों में बसे।

नैल के निकटवर्ती गाँव हैं -कख्वन , परसुली , कलसी कुठार , मळ दबड़ा हैं व नैल की सीमा कड़ती से भी मिलती है। कहा जा सकता है कि नैल रैंस ढांगू डबरालस्यूं की सीमा पर है।

नैल (मल्ला ढांगू ) में भी लगभग सभी लोक कलाएं मिलती हैं जो ढांगू के अन्य गाँवों में मिलती हैं।

कुछ लोक कलाएं व लोक कलाकारों की सूचना निम्न प्रकार से मिली हैं -

टाट पल्ल , निवार, ब्वान /झाड़ू आदि निर्माण - चूंकि नैल एक कृषि प्रधान गाँव रहा है तो यहाँ के प्रत्येक परिवार टाट, पल्ल , निसुड़ , निवार (स्योळ से रस्सी आदि ) , म्वाळ , मुणुक (छाता का विकल्प ) , टोकरियां , पगार चिणायी , आदि स्वयं करते थे।

लोहार - परसुली के सतुर परिवार

ओड(मकान निर्माण ) -कख्वन गाँव के सगुर , आनंदी परिवार

सुनार - स्वर्णकारिता हेतु जसपुर व पाली गाँव पर निर्भर

बढ़ई - कख्वन के जगबीर सिंह

टमटागिरी (गैर लौह धातु कला ) - जब तक पीतल , कांसा , ताम्बे के बर्तन मुरादाबाद /नजीबाबाद से उपलब्ध न थे तब तक गैर लौह धातु बर्तन निर्माण हेतु जसपुर पर निर्भरता । घांडी , हुक्का हेतु 1970 तक जसपुर पर निर्भर व जसपुर मल्ला ढांगू के गैणू राम प्रसिद्ध घांडी , हुक्का निर्माता थे।

जागरी - राम प्रसाद बिंजोला

तांत्रिक - छोटे कार्य हेतु राम प्रसाद बिंजोला किन्तु बड़े कर्मकांड हेतु नैरुळ पर निर्भर

हंत्या जागरी - कख्वन के कुशला

औजी /ढोल बादक - परसुली के बच्ची दास , श्याम दास परिवार

बादी - बिजनी तल्ला ढांगू के तूंगी बादी

डळया गुरु - रणेथ के परमा नाथ परिवार

पंडित - रैंस के मायाराम बिंजोला व नैल के राम प्रसाद बिंजोला

मकान छत पत्थर (सिलेटी पत्थर ) खान व कलाकार - कुठार में व पत्थर निकासी , कटाई कलाकार - कुठार के ही कुतुर सिंह , प्रल्हाद सिंह।

नैल में कभी 7 तिबारियां थीं अब लगभग उजड़ ही गयीं हैं आनंद मणि , गिरिजा दत्त , गौरी दत्त , राम प्रसाद बिंजोला की तिबारी प्रसिद्ध तिबारी थीं

मंदिर - कहा जाता है कि नैल में बिंजोलाओं से बसने से पहले ही नागराजा मंदिर था जो आम मकानों जैसे चिणा गया था याने छोटा किंतु पहाड़ी मकान जैसे। अब परिवर्तन आ गया है।

सूचना आभार - बेळमा नंद बिंजोला ,

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Folk Arts of Dhangu Garhwal ,Folk Artisans of Dhangu Garhwal ; ढांगू गढ़वाल की लोक कलायें , ढांगू गढ़वाल के लोक कलाकार