म्यारा डांडा-कांठा की कविता
भटुळ्युं थैं आगिम् डळ्दा द्यखणा छन वो
भटुळ्युं थैं आगिम् डळ्दा द्यखणा छन वो
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भटुळ्युं थैं आगिम् डळ्दा द्यखणा छन वो ।
मुंजईं जिकुड़्यूं थैं जळ्दा द्यखणा छन वो ।।
ह्यूं बणिगै खुद अर एड़पट्ट ह्वैगिन पराज ।
घामम् कळ्यज़ि थैं गळ्दा द्यखणा छन वो ।।
सुपिन्या उकळि लग्यान अंग्वाळ ब्वटणा को ।
रस्ता-बाटों स्वीणों थैं चळ्दा द्यखणा छन वो ।।
हैंसदा फूलु का कुटमणा भि निमिड़ि गैं आज ।
बगैर हवा का डाळि थैं हळ्दा द्यखणा छन वो ।।
घर-गौं छोड़ि अपणो झणि कब घर बौड़ ह्वालु ।
द्वि बूढ-बुढ्यौं थैं पुटगि पळ्दा द्यखणा छन वो ।।
बस भोळ की आस मा अभितलक बच्युं चा ।
ये बिसवास थैं माटम् रळ्दा द्यखणा छन वो ।।
झूट ब्वलदंरों देखिक रौंस लगणि च "पयाश"।
सीदु-सच्चु आदिम थैं टळ्दा द्यखणा छन वो ।।
© पयाश पोखड़ा 21112019.
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