जयपाल सिंह रावत

म्यारा डांडा-कांठा की कविता

छिपड़ु दादा तै मिंठुकु दिख्याई

बल! क्याच भै रातभर टर्र टर्र ?

भैजी! बल य हमरि संस्कृति चा

अर भावना व्यक्त कनै

मीम इतगै सामर्थ्य चा

पर तुम इन बथा

कि स्वर लय अर ताल मा क्वी कमि चा?

छिपड़ु दादल ब्वाल

बल! यार मिल

दिन भर घुगत्यूं का गीत सुणीं

सुन्दर लय अहा

क्य गजब की मिठास चा

टर्र टर्र शुद्दि ढ़ंग न सगोर

खाली बकवास चा

चुप रै उतगा

सुनसान अहा!

क्य काल़ी रात चा

मिंडकल ब्वाल

भैजी!

घुघुती! बारामास रैंदी बसणी

मीखुणै त खालि बशगाल चा

अर ए प्रजातंत्र म शांति भंग टनौ

आखिर हमतै बित क्वी अधिकार चा

हमतै बित क्वी अधिकार च।

पर्यावरण दिवस

मैं न जानूं क्या हुवा जब,बीज धर्ती में गिरा था।

कुछ समय पश्चात देखा,बीज अंकुर ले रहा था।

वह सहारे के लिए,मुझको निमंत्रण दे रहा था।

मैं अभागा रुक न पाया,काम पर मैं जा रहा था।। 1 ‌‌।।

लौट करके सांझ देखा,बिन सहारे के खड़ा था।

धूप का वह ले सहारा,और आगे बढ़ रहा था।

पत्तियों के ही सहारे,वायु को वह पी रहा था।

वायु को वह शुद्ध करके,प्राँण उसमें घोलता था।। 2 ।।

जन्मदिन त्वे तैं मुबारक हो भुली।

जून सी जनि रात-दिन बढ़णी रौ भुली।

एक दिन तू डाल़ का टुकु पौंछि कै,

घास का पूल़ा लिमा कै ल्हौ भुली।

ब्लाक प्रमुख हैंक दिन बड़जैलि तू,

बुतला तब द्वी सारि हम ग्यूं-जौ भुली।

पैलि गाँवा का विकासम ध्यान दे,

तब तु संसद का चूनौ मा औ भुली।

राष्ट्र तै नै बाट-घाटौं पर ल्हिजै,

द्यख्द रैजै दुन्य इन चमकै भुली।

अपणि कूड़ी गाड़ि अपड़ी हो सबुम,

ईं गरीबी तै मिटै ल्हे थौ भुली।