गौं गौं की लोककला

डंगळा (डबरालस्यूं ) में आत्माराम ममगाईं के तिबारी -जंगलेदार मकान में काष्ठ कला अंकन

सूचना व फोटो आभार : हिमालयी संस्कृति प्रसिद्ध फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी Vickey

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उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 92

डंगळा (डबरालस्यूं ) में आत्माराम ममगाईं के तिबारी -जंगलेदार मकान में काष्ठ कला अंकन

गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई , मोरियों , खोलियों ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 92

संकलन - भीष्म कुकरेती

डंगळा डबरालस्यूं का एक महत्वपूर्ण गाँव है। इस गांव में डबराल , ममगाईं , कुकरेती व कुछ शिल्पकारों के परिवार बसा करते थे। सुघड़ मकानों के लिए डंगळा का सम्मान था। उत्तराखंड के भवन काष्ठ कला, अलंकरण कड़ी में आज डंगळा के आत्माराम मंगाई की तिबारी व इसी मकान पर बीतए जंगल में काष्ठ कला पर विस्तृत चर्चा होगी।

आत्माराम ममगाईं के इस भवन में काष्ठ कला समझने हेतु इसे तीन भागों में बाँट कर समझना। होगा तिबारी में काष्ठ अलंकरण , पहली मंजिल के जंगले में काष्ठ कला , तल मंजिल में स्थित खोली (प्रवेशद्वार ) में काष्ठ कला व भाग्य से आंगन दिवार में रखे पुराने लघु स्तम्भों में काष्ठ कला।

समान्यतया गंगासलाण में मकान में जंगला नहीं बंधा जाता था। अब तक के सर्वेक्षण में ग्वील व पुरण कोट में यह अपवाद मिला था।

आत्माराम ममगाईं के मकान के जंगले के स्तम्भों में काष्ठ कला

दुखंड /तिभित्या (एक कमरा नादर व एक कमरा बाहर ) मकान के पहली मंजिल में छज्जे से बाहर काष्ठ पट्टिका लगाकर उसके ऊपर जंगला बांधा गया व जनलगे में लगभग दस काष्ठ स्तम्भ है। प्रत्येक स्तम्भ के मध्य में एक डीला आकृत अंकित है व डीले के नीचे अधोगामी कलम दल उभरा है व डीले के ऊपर उर्घ्वगामी कमल दल की आकृत उत्कीर्ण हुयी है। फिर यही अंकन क्रम स्तम्भों के शीर्ष में पंहुचने से पहले भी है याने अधोगामी कमल दल फिर डीला व फिर उर्घ्वगामी पद्म दल का नकन . बाकी जगहों में स्तम्भ सपाट ही हैं।

तिबारी में काष्ठ अंकन

गंगासलाण की अन्य तिबारियों भांति भी आत्मा राम ममगाईं की तिबारी पहली मंजिल में देहरी पर टिकी है व चार काष्ठ स्तम्भों वाली तिबारी है। चार स्तम्भ तीन खोली /द्वार /मोरी बनाते हैं। किनारे के स्तम्भ को दीवार से जोड़ने वाली काष्ठ कड़ी में रेखाओं से ज्यामितीय कला उत्कीर्ण है जो कई प्रकार की छवि प्रदान करती हैं। प्रत्येक सम्भ के आधार पर कुम्भी अधोगामी कमल दल से बना है , फिर डीला है , डीले के ऊपर उर्घ्वगामी पद्म दल अंकित है फिर स्तम्भ की मोटाई यहां से कम होती जाती है। जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वाहन ढ़ोगामी कलम दल का पुष्प मिलता है। अधोगामी कलम पुष्प के बाद डीला है व डीले के ऊपर उर्घ्वगामी कमल पद्म पुष्प दल हैं। उर्घ्वगामी कमल दल के ऊपर सीधा स्तम्भ का थांत (wood bat blade ) शुरू होता है जो अंत में ऊपर शीर्ष /मुरिन्ड से मिलता है। जहां से उर्घ्वगामी कमल दल समाप्त होता है वहीं से स्तम्भ से मेहराब /तोरण का अर्ध चाप भी शुरू होता है। तीनों चाप /मेहराब /तोरण /arch कुछ कुछ ट्यूडर arch की शक्ल के हैं। चाप की पर्टयक तह में प्राक्रितिक व ज्यामितीय आकृतियां उत्कीर्ण हुयी है। चाप के ऊपर किनारे की काष्ठ पट्टिकाओं में प्रत्येक किनारे पर धर्म चक्र नुमा आकृति भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। इसी पट्टिका में प्राकृतिक व ज्यामितीय कलाकारी साफ़ दिखती है। शीर्ष पट्टिका (छत के आधार से नीचे की पट्टिका में भी ज्यामितीय कला अलंकृत उत्कीर्णित है।

स्तम्भ के थांत में छाप दिखाई दे रहे हैं जो इस बात का द्योत्तक है कि स्तम्भ के थांत पर दीवारगीर /bracket लगा था। आंगन में लघु स्तम्भों की भी फोटो ली गयी है शायद ये लघु स्तम्भ थांत के ऊपर दीवारगीर थे। इन लघु स्तम्भों में उत्कीर्णित कमल दलों से लगता है दीवारगीर स्तम्भों में कला उत्कीर्ण थी।

तल मंजिल में खोली पर काष्ठ कला अंकन

तल मंजिल में ऊपर आने हेतु खोली है। यद्यपि उत्कीर्ण पूरा साफ़ नहीं दिखाई देता है किन्तु किनारे के सिंगाड़ की आकृति बताती है कि आधार पर कमल दल की आकृति थी व ऊपर पत्तियोन का अलंकरण कला। शीर्ष या मेहराब /arch नुमा मुरिन्ड है जिसपर अवश्य ही कला उत्कीर्ण हुयी थी जो अब चुने की पुताई के कारण धूमिल पद गया है।

निष्कर्ष में कह सकते हैं कि डंगळा (डबराल स्यूं ) के स्व आत्माराम ममगाईं के तिबारी व जंगला मिश्रित मकान में प्राकृतिक , ज्यामितीय अलंकरण हुआ है किन्तु मानवीय (figurative ) अलंकरण के दर्शन इस तिबारी -जंगल में नहीं दीखते हैं।

सूचना व फोटो आभार : हिमालयी संस्कृति प्रसिद्ध फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी Vickey

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