गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

मित्रग्राम (ढांगू ) में परुशराम जखमोला की भव्य तिबारी

सूचना व फोटो आभार : गौरी अनूप (पुत्र सुरेंद्र जखमोला ) मित्रग्राम

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 49

मित्रग्राम (ढांगू ) में परुशराम जखमोला की भव्य तिबारी

मित्रग्राम (ढांगू ) की लोक कलाएं - 5

ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला -28

दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 49

संकलन - भीष्म कुकरेती -

कई बार डा डबराल ने भी झूठ लिखा ही है जैसे मुकंदी लाल जी ने गढ़वाल पेंटिंग में ...

मित्रग्राम जो कि गटकोट , बन्नी , खैंडुड़ी गाँवों का निकटवर्ती गाँव है और मल्ला ढांगू में एक महत्वपूर्ण गाँव है। यद्यपि मैं इत्तेफाक नहीं रखता किन्तु डा डबराल लिखते हैं कि गोरखा काल समाप्ति के बाद पंडित बासवा नंद बहुगुणा ने पलायन करते वक्त मित्रग्राम में वास किया था। इसका कारण है कि तब तक मित्रग्राम बसा ही नहीं था और यदि जगह थी भी तो मतण या मतंग (यहाँ पर साधू के ध्यान से अर्थ है ) थी तो बासबानंद की डायरी में कहाँ से मित्रग्राम नाम आया। फिर सौड़ का जिक्र भी डा विनय डबराल ने किया (डा शिव प्रसाद डबराल ने उद्घृत किया ) तो सौड़ जगह थी किन्तु गाँव तब नहीं था। लगता है डायरी का संदर्भ निराधार ही डा विनय ने दिया है।

आज मित्रग्राम में स्थित परुशराम जखमोला (वर्तमान में जयराम -स्वयंबर जखमोला ) की तिबारी का वर्णन किया जाएगा , तिबारी स्व परुशराम जखमोला के पिता या दादा ने निर्मित की थी और शायद 1925 के लगभग या पश्चात ही तिबारी का निर्माण हुआ था। अब यह तिबारी ध्वस्त हो चुकी है तिबारी के स्थान पर अत्त्याधुनिक मैदानी शैली का मकान निर्मित हो गया है बस अब तो फोटो ही बाकि है वह भी

तिबारी अपने समय की भव्य तिबारियों में शामिल थीं व मित्रग्राम की विशेष शान या पहचान में यह तिबारी भी शामिल थी। ढांगू , लंगूर , उदयपुर , शीला , लंगूर की तिबारियों जैसे ही परुशराम जखमोला की तिबारी पहले मंजिल पर है व मकान तिभित्या (एक कमरा बाहर व एक कमरा नादर व पहली मंजिल में दो कमरों का बरामदा व उस पर तिबारी फिट किया जाना ) है।

तिबारी में आम भव्य तिबारियों जैसे ही नक्काशीदार चार काष्ठ स्तम्भ / सिंगाड़ /columns हैं। दीवार और किनारे के सिंगाड़ जोड़ने वाली कड़ी पर वानस्पतिक अलंकरण हुआ है। आम भव्य तिबारियों जैसे ही स्तम्भ तीन मोरी /द्वार या खोळी बनाते हैं

स्तम्भ पाषाण छज्जे के ऊपर देहरी /देळी में स्थापित किया चौकोर डौळ के ऊपर टिके हैं। पाषाण डौळ के ऊपर से स्तम्भ का कुम्भी /पथ्वड़ /तुमड़ी नुमा आधार शुरू होता है जो वास्तव में उल्टे कमल दल /पंखुड़ियां से बना है। स्तम्भ में अधोगामी कमल दल के अआधार पर एक डीला /धगुल (round wood plate ) है जहां से उर्घ्वगामी कमल दल शुरू होता है और कमल दल अंत से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है फिर डीले /धगुल हैं व फिर उर्घ्वगामी कमल दल व वहां से प्रत्येक स्तम्भ से तोरण का अर्ध चाप शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध भाग से मिलकर चाप /तोरण /मेहराब बनाता है। तोरण तिप्पत्ति नुमा है। टॉर्न के किनारे वाली काष्ठ पट्टिका पर फूल व वानस्पतिक अलंकरण हुआ है। यदि ब्रैकेट रहे हैं तो अवश्य ही मानवीय (पशु या पक्षी अंकन ) हुआ होगा। तोरण शीर्ष की पट्टिकाएं छत की पट्टिका से मिलते हैं। तोरण शीर्ष (मुरिन्ड /मुण्डीर ) में भी प्राकृतिक चित्रण /अंकन हुआ है व कहा जाता है कि तिबारी के यौवन में नयनाभिरामी अंकन बरबस ध्यान खींचती थी.

आज तिबारी ध्वस्त है किन्तु जब भी मित्रग्राम की पहचान /identity की चर्चा होगी तो परुशराम जखमोला की तिबारी कीचर्चा अवश्य होगी।

सूचना व फोटो आभार : गौरी अनूप (पुत्र सुरेंद्र जखमोला ) मित्रग्राम

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