म्यारा डांडा-कांठा की कविता

पूरन चन्द्र काण्डपाल

कुमाउनी कविता

अलग थकुली नि बजौ

देशा का मिलि गीत कौ

अलग थकुली नि बजौ...


एकै उल्लू भौत छी

पुर बगिच उजाड़ू हूँ

सब डवां में उल्लू भै गयीं

बगिचौ भल्याम कसी हूँ.

गिच खोलो भ्यार औ

भितेर नि मसमसौ, देशा क...


समाओ य देशें कें

हिमाल धात लगूंरौ

बचौ य बगीचे कें

जहर यमे बगैँ रौ

उंण नि द्यो य गाड़ कें

बाँध एक ठाड़ करौ, देशा क...


उठो आ्ब नि सेतो

यूं उल्लू तुमुकें चै रईं

इनू कें दूर खदेड़ो

जो म्या्र डवां में भै रईं

यकलै यूं नि भाजवा

दग डै जौ दौड़ी बे जौ, देशा क...


शहीदों कें याद करो

घूसखोरों देखि नि डरो

कामचोरों हूँ काम करौ

हक़ आपण मागि बे रौ

अंधविश्वास क गव घोटो

अघिल औ पिछाड़ी नि रौ.

देशा क मिलि गीत कौ...

अलग थकुली नि बजौ...