गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

ग्वील (ढांगू ) में सदा नंद कुकरेती (मुखत्यार जी ) की तिबारी में काष्ठ कला

सूचना व फोटो आभार : राकेश कुकरेती , ग्वील

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 43

ग्वील (ढांगू ) में सदा नंद कुकरेती (मुखत्यार जी ) की तिबारी में काष्ठ कला

ग्वील (ढांगू ) में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकान या डंड्यळ में काष्ठ कला - 1

ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला - 24

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 43

(लेख अन्य पुरुष में होने से जी आदि उपयोग नहीं किये गए हैं )

संकलन - भीष्म कुकरेती

ग्वील से अब तक तीन तिबारियों , एक जंगलादार मकान व क्वाठा भितर तिबारी की सूचना प्राप्त हुयी है।

ग्वील मल्ला ढांगू में ही नहीं उदयपुर , डबरालस्यूं व अन्य पट्टियों में प्रसिद्ध गाँव है। पणचर जमीन होने से उर्बरक गाँव तो है ही साथ ही एक समय सन 1960 से पहले ग्वील इस क्षेत्र में सबसे अधिक पढ़ा लिखा गाँव था (अब भी ) । ग्वील पधानु हेतु भी प्रसिद्ध गाँव है। ग्वील पधान के एक मुख्तियार भी थे जिनका नाम सदा नंद कुकरेती था किन्तु मुखत्यार नाम से अधिक प्रसिद्ध थे . कहते हैं पधान से अधिक रौब दाब मुखत्यार का था। मुख्तयार याने चीफ एक्जीक्यूटिव ओफिसर (CEO ) . मुखत्यार अपनी पधानचरी गाँवों में घोड़े पर जाते थे। रेबदार सलवार , कोट उनकी पहचान थी।

सदा नंद कुकरेती ने तिबारी भी निर्मित की थी और वह तिबारी भव्य किस्म में ही गिनी जायेगी . हाँ सदा नंद कुकरेती उर्फ़ ' मुखत्यार जी 'की तिबारी से अधिक भव्य तिबारी क्वाठा भितर (किला ) ही था।

सदा नंद कुकरेती की तिबारी मकान के पहले मंजिल में है व छज्जे के ऊपर देहरी पर टिकी है। तिबारी में चार काष्ठ सिंगाड़ /स्तम्भ /column है व किनारे के स्तम्भ दीवार से एक काष्ठ कड़ी से जुड़े हैं , दीवार व स्रम्भ जोड़ू कड़ी में भी नक्कासी है। जोड़ू कड़ी के आधार में कुम्भी /पथ्वाड़ है व फिर कड़ी में ऊपर की ओर वानस्पतिक व जाली दार या ज्यामितीय अलंकरण है। कड़ी ऊपर छत के नीचे की पट्टी याने मुरिन्ड से मिल जाती है।

प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ के आधार पर कुम्भी है व एक अधोगामी पदम् पुष्प दल से बना है। अधोगामी पद्म पुष्प दल आधार के ऊपर डीला या धगुल याने round wood plate है। डीले या धगुल से उर्घ्वगामी पद्म पुष्प शुरू होता है और कमल दल से जड़ से फिर सिंगाड़ का नक्कासी दार शाफ़्ट शुरू होता है जो छोटे कमल दल पर समाप्त होता है। कमल दल के बाद डीला या धगुल आकृति (wood plate ) है फिर उर्घ्वगामी कमल दल है। कमल दल की पंखुड़ियों के ऊपर डीला /धगुल है जहां से चाप /मेहराब /arch का अर्ध मंडल शुरू होता है व दूसरे स्तम्भ के अर्ध चाप के साथ मिलकर मेहराब /arch बनाता है। मेहराब की चाप तिपत्ती नुमा है केवल केंद्र में यह चाप नुकीली है। किनारे के मेहराब के बाह्य प्लेट /पट्टी पर किनारे पर फूल उत्कीर्णित हैं याने तिबारी में कुल चार फूल उत्कीर्णित हैं। मध्य मेहराब चाप के बाहर किनारों पर एक एक फूल है किन्तु अंदर मानवाकृति है जो शायद नजर हटाने वाला कोई आध्यांत्मिक प्रतीक चिन्ह होगा। मेहराब के ऊपर चौखाना वाला मुण्डीर है याने शीर्ष है और कोई कला दर्शन इस पट्टिका पर नहीं होते हैं सपाट मुण्डीर याने सपाट शीर्ष।

ग्वील में सदा नंद कुकरेती की इस तिबारी का निर्माण काल 1925 से ऊपर या लगभग ही होना चाहिए जब मुखत्यार जवान रहे होंगे। काष्ठ कलाकार स्थानीय थे या नहीं इस पर कोई सोचना नहीं मिल पायी है।यह तय है कि सदा नंद कुकरेती 'मुखत्यार जी ' की तिबारी क्वाठा भितर के खिन बाद में निर्मित हुआ होगा।

ग्वील में सदा नंद कुकरेती 'मुखत्यार जी ' की तिबारी की विशेषता है कि इस तिबारी में प्राकृतिक , मानवीय (आधात्मिक रूप लिए ) व ज्यामितीय तीनों अलंकरण मिलते हैं।

सूचना व फोटो आभार : राकेश कुकरेती , ग्वील

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