(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )
संकलन - भीष्म कुकरेती
-एक अनुमान अनुसार कड़थी मल्ला ढांगू में सबसे बड़ा क्षेत्रफल का गाँव है। कड़थी दालों विशेषतः राजमा हेतु प्रसिद्ध था और सिलोगी स्कूल के लिए भी प्रसिद्ध है। कड़थी की सीमाओं में पूर्व में बागों , मळ - कलसी , नेल -रैंस , दक्षिण में कड़थी गदन डबरालस्यूं की सीमा निश्चित करता है , कड़थी गदन बाद में गटकोट क्षेत्र में मंडुळ गदन बन जाता है याने पश्चिम में जल्ली , घनशाळ व गटकोट हैं। उत्तरपश्चिम में बन्नी व उत्तर में बड़ेथ की सीमाएं हैं। संभवतया कुछ स्थान में उत्तर में ग्वील की सीमा भी लगती है।
कड़थी का सिलसू देवता एक जागृत देवता है जिसकी पुजायी हेतु मल्ला ढांगू के आठ गाव वाले प्रथम कटाई के धान /चावल व दूध देते थे। कड़थी के सिल्सवाल सपने में भी मांश भक्षण नहीं करते हैं.
कड़थी में भी अन्य क्षेत्रों की तरह आम गढ़वाल की लोक कलाये फलती फूलती रही हैं। यथा -
छत पत्थर खान - कलसी के निकट कड़थी गदन की ओर। हृदयराम सिल्सवाल , राम कृष्ण सिल्सवाल , श्रीनन्द सिल्सवाल , , कतिकू सिंह व गोविंदराम भट्ट पत्थर खदान , कटान विशेषज्ञ थे
लौह उपकरण निर्माण व मरोम्मत -स्वांरु लाल , कुंदन लाल व बंशी लाल व कख्वन के सल्ली
काष्ठ कला - गोविंदराम भट्ट व दूसरे गांव कख्वन के कुशला नंद व बग्गू लाल
हन्त्या जागरी - स्वांरू लाल , कुण्डल लाल वर्तमान -बंशी लाल
जागरी - भूतकाल में शिवदत्त सिल्सवाल , राजाराम भट्ट , रामनाथ भट्ट व वर्तमान में चंद्रमोहन भट्ट (पुत्र स्व रमजराम ) व उनका पुत्र
ओड , मिस्तरी - भाना , छुट्ट्या , (कड़थी के बखारी डांड से )
स्वर्ण कला , स्वर्णकार कला - भूतकाल में जसपुर बाद में जसपुर व पाली वालइ स्वर्णकारों ने सिलोगी में दूकान खोल दी तो सिलोगी पर निर्भर
ताम्बा , कांसा धातु कला व कलाकार - भूतकाल में जसपुर किन्तु लगभग 1935 से तैयार बर्तन खरीदी का फैशन चल गया था।
महिलाएं गीत गायन व समय काल अनुसार नृत्य भी करतीं थीं , पुरुष भी उतस्वों पर नृत्य करते थे
लोक कथाएं , कहवतें कहने सुनाने की प्रथा विद्यामन थी।
औजी /ढोल वादन - कैन्डुळ के सत्ता दास परिवार ,
मसुकबाज वाद्य वादक - कड़थी के कुंदन लाल व उनके पुत्र बंशी लाल थे
कृषि प्रधान गाँव होने से टाट पल्ल , कील ज्यूड़ , निसुड़ , हौळ -ज्यू मुंगुर निर्माण लगभग प्रत्येक किसान करता ही था , भ्यूंळ के कंटेनर व टोकरियां गाँव में ही निर्मित होते थे। इसी तरह न्यार /रस्से हेतु रेशे से लगुल बटना सभी को आता था। न्यार से खटला नागरिक अपने आप बनाते थे।
सैन्य कला - लगभग हर परिवार से सेना या सेना प्रशासन विभाग में रहे हैं। लगभग सभी विश्व युद्धों , व अन्य युद्धों में भागीदारी। स्व दाताराम भट्ट प्रसिद्ध थे।
रामलीला भी होती थीं अब फिर से इस कला को पुनर्जीवित किया जा रहा है
अध्यापकी - सिलोगी स्कूल स्थापना (1923 ) में सब तरह से सहयोग गाँव वालों का था। कई अध्यपक हुए हैं। डा प्रेम लाल भट्ट ने कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं।
साहित्यकार - डा प्रेम लाल भट्ट , विश्वेशर सिल्सवाल
सूचना आभार- विश्वेशर प्रसाद सिल्सवाल (कड़थी )
Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
Folk Arts of Dhangu Garhwal ,Folk Artisans of Dhangu Garhwal ; ढांगू गढ़वाल की लोक कलायें , ढांगू गढ़वाल के लोक कलाकार