म्यारा डांडा-कांठा की कविता

ठ्यकर्या

ठ्यकर्या

घौर भटिं अयाँ क हम , गढवाली भुल्यान क हैं

जरा जरा विदेश की अद्कची फुक्यां क हैं

जनम के उछ्यादी थे , विद्या की कदर ना की

कण्डाळी की झपाग खै , ब्व़े की अर बुबाकि भी

जा रहे थे बुळख्या ल्हें, एक दिन स्कूल को

मूड कुछ बिगड़ गया , अदबाटम भज्याँ क हैं

घर भटी अयाँ क हम गढवाळी भुल्याँ क हैं

जरा जरा विदेश की अद्कची फुक्यां क हैं

कै गुजरू इनै उनै , पोड़ी सड़कि का किनर

गाँव वालोँ य मित्रु का , घौर कै कभी डिन्नर

कुछ रकम ठी फीस की , कुछ चुराई ड्वारूंद

खर्च कै पुकै पंजै , मैना धंगल्ययाँ क हैं

घौर भटिं अयाँ क हम , गढवाली भुल्यान क हैं

जरा जरा विदेश की अद्कची फुक्यां क हैं

टैक्निकल जौब में, हाथ काले क्यों करें

करें किलै कूली गिरी , ब्यर्थ बोझ से मरें

डिगचि डिपार्टमेंट का , डिपुटी हम बण्या क हैं

तीस रूप्या रोटी ल्हें , जुल्फा झटग्याँ क हैं

घौर भटिं अयाँ क हम , गढवाली भुल्यान क हैं

जरा जरा विदेश की अद्कची फुक्यां क हैं

क्या कहें पहाड़ से , तंग हम थे आ गये

च्यूडा , भट बुकै बुकै , दांत खचपचा गए

कौणयाळी गल्वाड़ से क्वलणि तक पटा गयी

अब तो ठाठ से यहाँ , पान लबल्यां क हैं

घौर भटिं अयाँ क हम , गढवाली भुल्यान क हैं

जरा जरा विदेश की अद्कची फुक्यां क हैं

Copyright @ Bhishma Kukreti