ढोल सागर का रहस्य

ढोल सागर का रहस्य

प्रस्तुतिकरण : भीष्म कुकरेती

मूल संकलन स्रोत्र : पंडित ब्रह्मा नंद थपलियाल, श्री बदरीकेद्दारेश्वर प्रेस , पौड़ी , १९१३ में शुरू और १९३२ में जाकर प्रकाशित, -

( आभार स्व. अबोध बंधु बहुगुणा जन्होने इसे गाड म्यटेकी गंगा में आदि गद्य के नाम शे छापा, , स्व. केशव अनुरागी जिन्होंने ढोल सागर का महान संत गोरख नाथ के दार्शनिक सिधान्तों के आधार पर व्याख्या ही नही की अपितु ढोल सागर के कवित्व का संगीत लिपि भी प्रसारित की , , स्व शिवा नन्द नौटियाल जिन्होंने ढोल सागर के कई छंद को गढ़वाल के नृत्य-गीत पुस्तक में सम्पूर्ण स्थान दिया, एवम बरसुड़ी के डा विष्णुदत्त कुकरेती एवम डा विजय दास ने ढोल सागर की व्याख्या की है )

श्रीगणेशाय नम: I श्री ईश्वरायनम : i श्रीपारत्युवाच i ऊँ झे माता पिता गुरुदेवता को आदेसं ऊँ धनेनी संगति वेदति वेदेतिगगन ग्रीतायुनि आरम्भे कथम ढोलीढोल की सीखा उच्चते i कथर बिरथा फलम फूलं सेमलं सावरीराखम खड़कं पृथ्वी की साखा कहाऊं पजी पृथ्वी कथभूता विष्णु जादीन कमल से उपजे ब्रमाजी तादिन कमल में चेतं विष्णु जब कमल से छूटे तबनहि चेतं i ओंकार शब्द भये चेतं II अथ ऊंकारशब्दलेखितम II यदयाताभ्यां मेते वरण गाद्यामह गिरिजामाप्रं आतेपरत्या हार करी तपस्या म्ये श्रिश्थी के रचते I सातद्वीप नौखंडा i कौन कौन खंड i हरितखंड I भरतखंड २ भीम ० ३ कमल ४ काश्मीरी ० ५ वेद ० ६ देवा ० ७ हिरना ८ झिरना ० ९ नौखंड बोली जेरे आवजी अष्टपरबत बोली जेरे आवजी मेरु परबत I सुमेरु २ नील ० ३ हिम ४ हिंद्रागिरी ०५ आकाश ० ६ कविलाश ०७ गोबर्धन ०८ अष्टपरबत बोली जे गुनिजनम प्रिथी में उत्पति कौन कौन मंडल पृथ्वी ऊपरी वायुमंडल वायु मंडल ऊपरी तेजमंडल तेजमंडल ऊपरी मेघमंडल मेघमंडल ऊपरी गगनमंडल गगनमंडल ऊपरी अग्निमंडल अग्निमंडल ऊपरी हीनमंडल हीनमंडल ऊपरी सूर्य्यमंडल सूर्य्यमंडल ऊपरी चन्द्रमंडल I तारामंडल I तारामंडल २ सिद्ध ० ३ बुद्ध ०४ कुबेर ०५ गगन ०६ भगति ० ७ ब्रम्हा ०८ विष्णु ०९ शिव ०१० निरंकारमंडल II वैकुंटमंडल इतिपृथ्वी की शाख बोलीजरे गुनी जनम बोल रे ढोली कथम ढोल की शाखा I उतब उतपति बोली जा रे आवजी I इशवरोवाच I I अरे आवजी कौन भूमि ते उत्पनलीन्यों कौन भूमिते आई कौन भूमि तुमने गुरुमुख चेतीलीन्या कौन भूमिते तुम समाया I I पारव्त्युंवाच I I

अरे गुनीजन जलश्रमिते उत्पनलीन्या अर नभमिते आया अनुभुमिते गुरुमुख चेतीलीन्या सूं भूमितेसमाया I I श्रीईश्वरीयउवाच I I अरे आवजी कौन द्वीपते ते उत्पन्न ढोल कौन उत्पन्नदमाम I अरे आवजी कौन द्वीपते कनकथरहरीबाजी I I कंहाँ की चारकिरणे बावजी कौन द्वीपते मेंऊँ थरहरीबाजी कौन द्वीपते सिन्धुथरहरी बाजी कहाँ की चार चामणेबाजी कहाँ की चार चरणेबाजी कहाँ की चारबेलवाल बाजी I श्री पारबत्युवाच I I अरे आवजी ढोलं द्वीपते उत्पन्न ढोलं ददीद्वीपते उत्पन्न दमामं कनक द्वीपते कनक थरहरी बाजी किरणो मंडचारचासणेलते चार किरणी बाजे सिन्धुद्वीपते सिन्धु थरहरीवाजी नंदुथरहरीते सिंदुथरहरीवाजी चौदिशा की चार चामणे बाजी चारचासणे की चारचासणेबाजी की चार बेलवाले बाजी I श्री इश्वरीवाच I I अरे आवजी ढोल किले ढोल्य़ा किले बटोल्य़ा किले ढोल गड़ायो किने ढोल मुडाया , कीने ढोल ऊपरी कंदोटी चढाया अरेगुनी जनं ढोलइश्वर ने ढोल्य़ा पारबती ने बटोल्या विष्णु नारायण जी गड़ाया चारेजुग ढोल मुडाया ब्रह्मा जी ढोलउपरी कंदोटी चढाया I श्री इश्वरोवाच I I अरे आवजी कहो ढोलीढोल का मूलं कहाँ ढोली ढोल कको शाखा कहाँ ढोली ढोली का पेट कहाँ ढोली ढोल का आंखा II श्री पारबत्युवाच II अरे आवजीउत्तर ढोलीढोल का मूलं पश्चिम ढोली ढोल का शाखा दक्षिण ढोल ढोली का पेट पूरब ढोल ढोली का आंखा I श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कस्य पुत्रं भवेढोलम कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रं भवेनादम कस्यपुत्रं गजाबलम

ii श्री पारबत्युवाच II अरे आवजी ईश्वरपुत्रभवेढोलं ब्रह्मा पुत्र चंडोरिका पौनपुत्र भवेनाद भीमपुत्रं गजाबल ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी क्स्य्पुत्रभवेढोल कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रभवेपूड़मकस्यपुत्रं कंदोंटिका कस्य पुत्र कुंडलिका कस्य पुत्र च कसणिका शब्द ध्वनीकस्यपुत्र चं कस्यपुत्र गजाबलम ii श्री पारबत्युवाच II अरे गुनीजनम आपपुत्र भवे ढोलम ब्रह्मा पुत्र च ड़ोरिका विष्णु पुत्रं भवे पूडम कुंडली नाग पुत्र च कुरूम पुत्र कन्दोटिका गुनी जन पुत्रं च कसणिका शब्दध्वनिआरम्भपुत्रं च भीम पुत्रं च गजाबल ii श्री इश्वरोवाच II अरे ढोलीढोल का वारा सरनामवेलीज्ये अरे गुनी जन श्रीवेद I सत २ पासमतों ३ गणेस ४ रणका ५ छणक ६ बेचीं ७ गोपी ८ गोपाल ९ दुर्गा १० सरस्वती ११ जगती १२ इतिवारा शर को ढोल बोली जारे आवजी ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कस्यपुत्रं भवेनादम कस्यपुत्रं भवेडंवा कस्यपुत्रं कंदोटी कस्य पुत्रं जगतरां ii पारबत्युवाच II अरे आवजी आपपुत्रं भवेनादं नाद्पुत्र च ऊंकारिका ऊंकारपुत्र भवे कंदोटिका कंदोटीपुत्रं जगतरा ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी आण का कौन गुरु है I कौन है बैठक की माया लांकुडि का कौन गुरु है i कौन गुरु मुख तैने ढोल बजाया i पारबत्युवाच ii अरे गुनीजन आण का गुरु आरम्भ i धरती बैठकर की माया I लांकूडी का गुरु हाथ है गुरुमुख मैंने शब्द बजाया ii श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कौन तेरा मूलम कौन तेरी कला कौन गुरु चेला कौन शब्द ल़े फिरता हैं ह्दुनिया मिलाया I पारबत्युवाच II अरे आवजी मन मूल मूलं पौन कला शब्द गुरु सूरत चेला सिंहनाद शब्दली फिरा में दुनिया में लाया I ईश्वरोवाच II अरे आवजी कौन देश कौन ठाऊ कौन गिरी कौन गाऊं I पारबत्त्युवाच II अरे गुनी जन सरत बसंत देश धरती है मेरी गाँव अलेक को नगर ज्म्राज्पुरी बसन्ते गाँव I ईशव्रोवाच II अरे आवजी तुम ढोल बजावो नौबत बाजि शब्द बजावो बहुत अनुपम कौन है शब्द का पेट कौन है शब्द का मुखम I पार्बत्यु वाच II अरे गुनी जन मै श्री ढोल बजाया नौबत वाली शब्द बजाया बहू अनूप I ज्ञान है शब्द का पेट बाहू है शब्द का मुखम II ईश्वरोवाच II अरे आवजी कौन शब्द का रूपम I कौन शब्द का है शाखा I शब्द का कौन विचार I शब्द का कौन आँखा I शब्द का कौन मुख डिठ

I टोई पूछ रे दास यो शब्द बजाई कहाँ जाई बैठाई I पार्बत्युवाच I I अरे गुनी जन शब्द ईशरी रूपं च शब्द की सूरत शाखा I शब्द को मुख विचारम शब्द का ज्ञान है आँखा शब्द का गुण है मुख डिठ टोई मैई कहूँ रे गुनी जन यो शब्द बजायी हिरदया जै बैठाई I ईश्वरोवाच I I अरे आवजी तू कौन राशि छयी I कौन राशि तेरा ढोलं I कसणि कौन राशि छ I कन्दोटि कौन राशि छ I कौन राशि तेरो दैणा हाथ की ढोल की गजबलम I पारबत्युवाच I I अरे आवजी शारदा उतपति अक्षर प्रकाश I I अ ई उ रि ल्रि ए औ ह य व त ल गं म ण न झ घ ढ ध ज ब ग ड द क प श ष स इति अक्षर प्रकाशम I इश्वरो वाच I I अरे आवजी आवाज कौन रूपम च I कौन रूप च तेरी धिग धिग धिगी ढोलि तू कौन ठोंऊँ छयी कौन ठाउ च तेरी ढोल I ईश्वरोवाच I I अरे गुनी जन अवाज मेघ रूपमच गगन रूपम च मेरी धिगधिगी ढोली मेई सिंघठाण छऊ गरुड़ ठाण च मेरी ढोल मारी तो नही मरे अण मरी तो मरी जाई I बिन चड़कादिनी फिरां बिन दंताऊ अनोदिखाई इह्तो i मुह मरिये कथं रे आवजी I पारबत्यु वाच I अरे आवजी ढोल का बारासर कौन कौन बेदंती I प्रथम वेदणि कौन वेद्न्ति दूत्तिया वेद्न्ति कौन वेद्न्ति तृतिया ३ कौन चतुर्थी ४ पंचमी ५ षष्ठी ६ सप्तमी ७ अष्टमी ८ नवमे ९ दसम १० अग्यार वै वेदणि ११ बार वै वेदणि १२ I ईश्वरोवाच I I अरे गुनीजन प्रथमे वेदणि ब्रह्मा वेद्न्ति ० द्वितीय ० विष्णु ० ५ त्रोतीय देवी ० चतुर्थ ० महिसुर ४ पंचमे ० पांच पंडव ५ ख्स्टमें ० चक्रपति ६ सप्तमे वेदणि सम्बत धूनी बोलिज्ये ० ७ अष्टम अष्टकुली नाग ८ नवे ० नव दुर्गा वेद्न्ति ९ दसमें वेदणि देवी शक्ति वेद्न्ति I एकादसी वेदणि देवी कालिकाम वेद्न्ति बारों वेदणि देवी पारबती देवी II इति पाराशर ढोल की वेदणि बोलिज्ये I ईश्वरोवाच II अरे आवजी ढोल की क्रमणि का विचार बोलिज्ये I प्रथमे कसणि चड़ायिते क्या बोलन्ती I द्वितीये २ त्रितये ३ चतुर्थ ४ पंचमे ५ ख्ष्ट्मे ६ सप्तमे ७ अष्टमे ८ नवमी ९ दस्मे १० एकाद्से ११ द्वार्वे १२ i पारबत्युवाच II अरे आवजे प्रथमे कसणि चड़ाइते त्रिणि त्रिणि ता ता ता ठन ठन करती कहती दावन्ति ढोल उच्च्न्ते I त्रितिये कसणि चड़ा चिड़ाइतो त्रि ति तो कनाथच त्रिणि ता ता धी धिग ल़ा धी जल धिग ल़ा ता ता अनंता बजाई तो ठनकारंति खंती दावम ति ढोल उचते I चौथी कसणि चड़ाइत चौ माटिका चैव कहन्ति दागंति ढोल उचते I पंचमे कसणि चड़ इतों पांच पांडव बोलन्ति कहन्ति दावन्ति ढोल उचते I खषटमे कसणी चड़ायितो छयी चक्रपति बोलंती कहन्ति दावन्ति ढोल उचते I सप्तमे कसणी चड़ाइतो सप्त धुनी बोलिज्यौ कहन्ति गावन्ति ढोल उचते I अष्टमे कसणी चड़ाइता अष्टकुली नाग बोलन्ती क० ढो ० ढाल उचते I नवमे कसणी चड़ाइतो निग्रह बोलन्ती क० ढा ० ढो ० उ ० I दसमी कसणी चड़ाइतो दुर्गा बोलन्ती क ० दा ० ० ढो ० उ ० i अग्यारे क ० च ० देवी कालिका बोलन्ती क ० दा ० ० ढो ० उ ० i बारों देवी पारबती बोलंती क ० दा ० ० ढो ० उ ० i इति बारो कसणे का विचार बोली जेरे गुनीजन II अरे आवजी क्योंकर उठाई तो ढोल क्योंकरी बजाई तो ढोल फिरावती ढोलम क्योंकरी सभा में रखी ढोलम I इश्वरो वाच Ii अरे गुनी जनम उंकार द्वापते उठाई तो ढोल सुख म बजाई तो ढोल I सरब गुण में फेरे तो ढोल लान्कुड़ी शब्द ते राखऊ सभा में ढोल I पारबत्यु वाच II प्रथमे अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I द्वितीये अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I तृतीय अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I चतुर्थ अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I पंचम अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I I इश्वरो वाच II अरे आवजी प्रथमे अंगुळी में ब्रण बाजती I दूसरी अंगुली मूल बाजन्ती I तीसरी अंगुली अबदी बाजंती I चतुर्थ अंगुली ठन ठन ठन करती I झपटि झपटि बाजि अंगुसटिका I धूम धाम बजे गजाबलम I पारबत्यु वाच I अरे आवजी दस दिसा को ढोल बजाई तो I पूरब तो खूंटम . दसतो त्रि भुवनं . नामाम गता नवधम तवतम ता ता तानम तो ता ता दिनी ता दिगी ता धिग ता दिशा शब्दम प्रक्रित्रित्ता . पूरब दिसा को सुन्दरिका I बार सुंदरी नाम ढोल बजायिते I उत्तर दिसा दिगनी ता ता ता नन्ता झे झे नन्ता उत्तर दिसा को सूत्रिका बीर उत्तर दिसा नमस्तुत्ये I इति उत्तर दिसा शब्द बजायिते I

अग्न्या वायव्या नैरीत्मच ईशानछ तै माशी प्रतक विवाद शब्द दक्षिण दिशा प्रकीर्तित्ता I दक्षिण दिसा को वाकुली बीर वकुली नाम ढोल बजायिते I दक्षिण दिसा नमोस्तुते I इति दक्षिण दिसा बजायिते I पश्चिम दिसा झे झे नन्ता ता ता नन्ता छ बजाइते पश्चिम दिसा प्रक्रीर्तता : II को झाड खंडी बीर झाड खंड नामा ढोल बजाइते पश्चिम दिस नमोस्तुते इति पश्चिम दिसा : II अथ बार बेला को ढोल बजाइता II सिन्धु प्रातक रिदसम अहम गता जननी कं चैव एवम प्रात काल ढोल बजाइते I प्रा प्रा प्रवादे चैत्र पुर कालं सवेर कं जननी क च व प्रराणी नाम ढोल बजाइते I मध्यानी मध्यम रूपम च सर्वरूपी परमेश्वर कं जननी कं चैत्र एवम मध्यानी ढोल बजाइते I लंका अधि सुमेरु वा चैत्र रक्तपंचई शंकरो I सूं होरे आवजी चाँद सूर्य्य का कहाँ निवासं कहाँ समागता सुण हो देवी पारबती I इश्वरो वाच II अरे आवजी चाँद सूर्य्य पूर्ब मसा सूर्य मंडल निगासा II सुमेरु पर्वत अस्त्नगता II इति बार्बेला को ढोल बजायते II अथ चार युग को ढोल बजायते I अरे आवजी

ढोल सागर का अगला भाग (2 )

अरे आवजी आवजी कथु उपजोगी चार खाने चार बान कथु उपजोगे बलं कथु उपजोगे पंच शब्द कथं उपजोगे ढोलँ।। ईश्वरोवाच ।। अरे गुनीजन सतयुग उपजोगी चार खाने चार बाने आरम्भयुग उपजोगी ढोलम गुरुमुख उपजिगो पंचशब्द बारा जग उपजिगो ढोलम ।। पार्वत्युवाच ।। ऊँ प्रथम कनिकत्र राजा इंद्र को उदीम दास ढोली अमृतं को ढोलँ अब क्या सुने शब्द तहाँ नामिक नमोनम: इति युग को ढोल बजयिते। द्वापर युग मधे मानदाता राजा मानदाता राजा की बामादास ढोली गगन को ढोलम। अविकाराम तम सुनी शब्दम तच्च नामिक नमो नमः।। त्रेता युगे मध्ये महेंद्र नाम राजा महेंद्र त नाम राजा को बिदिपाल दास ढोली काष्ट को ढोलम अविकार ।। कलयुग मध्ये बीर विक्रमजीत राजा बीर विक्रम अगवान दास ढोली अस तत्र को ढोल वस्त्र को शब्दम तच्च नामिक नमो नमः ।। इति चार युग को ढोल बजायते। अथ चार वेद बजायते। प्रथम ऋषि वेदम च ऋषि राजा च ब्राह्मण उतपते ऋषि वेद च वंश निर्माता रिषि। रिषि च पढ़ते वेदं पूर्व दिशा रिषि वेदं हन्स तथा प्रथमं च रिषि वेद बजायते ।। द्वितीये याजुर वेदा। दक्षिणे च थ भवेतु भूत प्रति हरता तेजस्य विष्णु वेद च युजुर वेद भवेत् ब्राह्मण यजुर्वेद सदैव यजुर्वेद बजायते दक्षिण दिशा नमोस्तुते ।। तृतीया सामवेद च श्याम रूपी नारायण पश्चिम दिशा जित बजन्ता ता ता नन्ता तच्च बजायते तृतीये वेद सर्व श्याम रूद्र नाम बजायते। चतुर्थ अथरवण वेद च उत्तर श्रये काम्पितो उत्तरै पंचदेवता पंचनाम परमेश्वर सुमंगल बमन च उल्ति पुलती तक तालिका घंटा घुंघुर च वेद बाजितै इंद्र।। इति चार वेद बजायते।


अथ शंकर वेद बोले रे गुनिजनम गगन शंकर मध्ये त्रियो ज्योति अपव्रट कहावा अठार वारे वणसापति लेनवासि कही ढोली की ढोल की उत्पति ।। फलम -फलम श्रकसे मलम परथमे को देवता कस्य पुत्र भयो ।। ईश्वरोवाच ।। अरे आवजी परथमे जलसूना का रम नही धरति नही आकास सर्वत्रे धं धं कारम तै दिन की उतपति बोलिजा रे आवजी। पार्वतीयवाच ।। अरे गुनिजनम परथमे निराकार निरंकार से भयो साकार जलथल जल में भया अंड अण्ड फटि उपाईले नौखंड निराकार आदि गुसाई जी ने ब्रह्माण्डमलीक ब्रह्मा उपायो अंगमलोक विष्णु उपायो भौम मलिक श्रीनाथ उपायो वाव मलिक मलिक पार्वती उपाई आदि गोसाई जी पृथ्वी रचिले। सात स्वर्ग सात पातळ। स्वर्ग थापिले राजा इन्द्रः पातळ थापिले राजा बासुकी तब उपायो कूरम करम ऊपरी पृथ्वी उठाई तब थापिले तेतीस करोड़ देवता। तब महादेव जी ने पार्वतीले सोल श्रृंगार बत्तीस आभूषण पहराइक नाच बनायो छई राग छतीस रागण अड़तालीस राग तुत्रले छतीस बाजेत्र बजाये। सोला सौ गोपिगने श्री कृष्णजी आये छतीस बाजेव पृथ्वी में उपाये।। अरे आवजी छत्तीस बाजेत्र बोलिजे

अरे आवजी छतीस बाजेंत्र बोलिजे Iओम प्रथमे I जिव्हा बाजत्र बाजे २ शंख, ३ जाम, ४ ताल, ५ डंवर ६ जंत्र ७ किंगरी ८ डंड़ी ९ न्क्फेरा १० सिणाई ११ बीन १२ बंसरी १३ मुरली १४ विणाई १५ बिमली १६ सितार १७ खिजरी १८ बेण १९ सारंगी २० मृदंग २१ तबला २२ हुडकी २३ डफड़ी २४ श्रेरी २५ बरंग (२६ से ३१ का वृत्तांत नही है ) ३२ रणडोंरु ३३ श्राणे ३४ नगारा ३५ रेटि (रौंटळ/रौंटी) ३६ ढोल II इति ढोल उत्पति बोलिजे रे आवजी II करिबना कठिन चन्द्र बिना दाताररघुपति जजर फुलम स्याम फुलं जैगंधी नाम अर बल छाया अरत परत संज्या गुनि हो गंधबर माल घोपिरस भीरुदूत चोबि फनू साख बोमंदे देवता बड़ा हश्ती गंगा पात्र पचंडे को देवता अरे आवजी अगवान बोलिजे। पैलि धरती की आकास। पैलि स्त्री की पुरुष। पैलि रात की दिन। पैलि गुरु की चेला। पैलि धूत की सिक। पैलि माई की पूत। कौन नाम असगर लिन्या कौन नाम फसगर लिन्या II ईश्वरोवाच II परथमे धरती पीछे आकास II परथमे स्त्री पीछे पुरुष। पैले रात पीची दिन। पैले गुरु पीछे चेला। पैले सिक पीछे धूत। पैले माई पीछे पूत। अरे गुनिजनम महादेव जी ने असगर लिन्या विष्णु जी ने नारायण परखंड चढ़ाई तकस्य पुत्रगजाबलम IIअरे कुण्डली वसना IIपार्वत्युवाचII अरे गुनीजनम गजाबलम गनारपति पुत्रंच आदि नामकंडीसणा सुरतनाम कुंडली वसना। सुनहो ब्रह्माजी सदाशिव जटामुकुटम शारदाकामस टकीटिइक जहिरा का खंड ब्रह्माण्ड। कहो गुनीजनम शारदा विचारम। सवता डीत पंत हो विष्णु। नव खंड ब्रह्माण्ड चार विचारम । बारा वाजी त शारदा नौखंडम चैव II ईश्वरोवाच II सुन रे वादी विवादी कहाँ बैठे तेरी अष्ट अंगुल आत्मा जीऊ। आदि नवाति अनादि नवाति पनावति आसण तेरो कौन ठौऊ। कहाँ स्वर्ग इंद्र। कहाँ पाताल वासुकी। कहाँ गुरु तुमारा II पार्वत्युवाच II अरे आवजी बुंदकार बसे बादी बिबादी सुनकार बैठी मेरी आत्मा जिऊ। आदि नवाति पृथ्वी अनादि नवाति आसण आसण मेरो गुणठाऊं। गुणठाई से प्रक्षत राजा इंद्र पातले जात बासुकी राज कहाँते। मनेच्छा काया निरंजन हमारी नाऊँ हम जल में प्रकट इष्ट घड़ी बिना जोड़ी बिना मढ़ी। फजरीमड़ी द श य रा ली गो स मां ई पू फु मे धे म मि ग ध कौन उपाई। ईश्वरोवाच। अरे गुनीजन बिन पौन हमारी मड़ी अ र द स हु र लि गो मेथरम समीजी स्यामी में धे गंगा जो पौन उपाई। पार्वत्युवाच। कौन घट माता कौन घट पिता कौन घट बोलिजो छाजा II जो दिन आफु शम्भु निरंजन उतपन तै दिन दुनिया मा क्या बाजन्ति बाजा II ईश्वरोवाच II अरे गुनीजनम घटमाता अनिलघट पिता अनिलघट बोलिजे छाजा। जै दिन शंभु निरंजन उत्पन्न भयो तै दिन दुनिया त्रिभुवन में परथमे जियो बाजेत्र बजे। अथ चा र चका चासणे लिख्यते। पार्वत्युवाच। चह चह चह चस चस चस चस चासण बाजी सत्तगुरुजी ने उपाया ओंकार तुम कौन गुरु पढ़ाया। तुमसे ज्ञान उपाऊँ रैदास किन मुख बोले चास। अरे गुनीजन ऊँकार च मुष चास घासणी बाजी त्रि ख टि त्रि खटि भेण सुरत्य किरणि भानु मुख वा माता सुख बाजी चासणी। चस मेरी गजामुखबाजन्ति बारामुखबाजन्ति बारबेलवाले। च स चंद सूर्य दीपक बाजी वेद पुराण बाजे। जुग चार रात दिन दुई कथम बाजी धुरम कुरम पाताल बाजे श्रिष्टि संसार। च ह चार खूंट बाजन्ति। चह चोद्ध् भुवन बाजन्ति च ह धुरम तीन बार बाजन्ति। च ह गढ़ चावरंगी बाजन्ति। चह बाजन्ति मेरु मंडिल बावन बीर। चह चंदन को सारंग जमौली मरु तो मंदिरम सागरा सप्त द्वीप वसुंधरा। चह कुरुक्षेत्र बाजन्ति। च ह चार जुग बाजन्ति। चह चौरासी लक्ष जीवन बाजन्ति चार वेद बाजन्ति कालदंडबाजन्ति। गजा शब्द बाजन्तिघटा घुंगरू नकतालु को धोका पीछे। चावर छत्रडंडक मण्डलु डांडी घोड़ा पीछे में अगवान दास आग

ढोल सागर में ढोल के ३९ तालों का वर्णन और संगीत लिपि


(केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का गढवाल के लोक गीतों के संरक्षण में योगदान, भाग -१ )

भीष्म कुकरेती

गढवाल के लोक साहित्य को अक्षुण रखने के लिए कई विद्वानों व गुनी जनों का अथक योगदान है

इनमे से स्व केशव अनुरागी व डा शिवा नन्द नौटियाल का योगदान कहीं अलग भी है . केशव अनुरागी ने ढोल बाडन की शैली को

देहरादून में प्रायोगिक धरातल में प्रचारित व प्रसारित किया . केशव जी राम लीला या अन्य कार्यकर्मों में ढोल बाडन ही नही करते थे अपितु

कईयों को ढोल वादन का प्रशिक्षण भी देते थे. मुझे अनुरागी जी द्वारा ढोल बादन सुनने का अवसर चुखुवाले की गढ़वाली रामलीला में प्राप्त हुआ है

केशव जी ने कई लोक गीतों की स्वार लिपि भी तैयार कीं हैं और श्री शिवा नन्द नौटियाल जी ने कई लिपियों को अपने ग्रन्थ में स्थान भी दिया है

यथा एक उधाह्र्ण है जिसमे केशव जी ने ढोल सागर के चैती प्रभाती में ढोल दमाऊ युगल बंदी की स्वर लिपि . ढोल में ३९ tal हैं व दमाऊ में तीन

१ २ ३ ४ ५ ६ ७ I ८ ९ १० ११ १२ १३ १४

झे नन तू झे नन ता - I झे गा तु झे ननु ता --

१५ १६ १७ १८ १९ २० २१ I २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८

त ग ता झे गु त - I झे गा झे न्ह न ता --

२९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३९ I १ २ ३

ता - क झे ना तु झे गा --- ता -- I झे ननु तु

यह लोक गीत चैत महीने में बजाया जाता है जिसे चैत प्रभाती कहते हैं चैत संगरांद के दिन औजी अपने ठाकुरों के यहाँ घर घर जाकर सुबह इस्ताल पर ढोल दमाऊ बजाते हैं

इस पारकर हम पाते हैं की केशव अनुरागी ने आने वाली पीढ़ी के लिए एक विरासत छोडि है . प्रवास में जब अब प्रवासी इन ढोल बजाना नही जानते हैं वे इन सन्गीएत लिपियों के बल पर शी तरह से ढोल-दमाऊ बजा सकते हैं

हमारा नमन स्व केशव अनुरागी को और डा शिवा नन्द नौटियाल को जिन्होंने हमारी धरोहर को बचाने में अतुल्य योगदान दिया

सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती

लिपि अधिकार @ श्रीमती केशव अनुरागी