गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

डाबर गाँव में रघुनाथ डबराल की तिबारी में भवन काष्ठ कला (अलंकरण )

सूचना व फोटो आभार : नरेश उनियाल , जल्ठ

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 53

डाबर गाँव में रघुनाथ डबराल की तिबारी में भवन काष्ठ कला (अलंकरण )

डबराल स्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला /लोक कला -3

दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण 32 -

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 53

संकलन - भीष्म कुकरेती

डाबर शब्द तो खस शब्द है किन्तु डाबर गाँव डबरालों से जुड़ा है। कहते हैं चौदहवीं सदी में यहां एक ब्राह्मण परिवार बसा था तो वह परिवार डबराल कहलाया गया। डबराल मुख्यतया डबराल स्यूं पट्टी में बसे हैं (डबराल स्यूं पहले करुड़ पट्टी थी और उससे पहले ढांगू , इसीलिए डबरालस्यूं हेतु भी ढांगू उदयपुर आज भी पुकारा जाता है ) . किन्तु कुछ डबराल फलदा कल्जीखाल ब्लॉक , देवरयाग , व टिहरी गढ़वाल में भी बसे हैं। सभी डबराल डाबर से ही पलायन किये ।

आज इस श्रृंखला में डबराल स्यूं की दूसरी तिबारी की काष्ठ कला /अलंकरण पर चर्चा होगी। पंडित रघुनाथ डबराल की तिबारी अपने समय में डाबर व रघुनाथ डबराल परिवार हेतु विशेष पहचान थी व एक लैंडमार्क भी थे। एक आकलन अनुसार तिबारी 1925 के बाद या लगभग आस पास ही निर्मित हुयी होगी

तिबारी अपने समय की शानदार तिबारियों में गिनी जाती थी और ढांगू क्षेत्र में भी रघुनाथ डबराल की चर्चा होती थी।

चार स्तम्भों की तिबारी भी दुखंड मकान की पहली मंजिल पर स्थापित की गयी है। मकान के छज्जे पाषाण के हैं व दास या टोड़ी भी पत्थर के हैं। छज्जे के ऊपर पाषाण देहरी / देळी है जिसपर पत्थर के चौकोर डॉळ के ऊपर प्रत्येक स्तम्भ आधारित है। किनारे के स्तम्भ डीआर से काष्ठ कड़ी से जुड़े हैं , कड़ी पर वानस्पतिक अलंकरण हुआ है।

चारों स्तम्भ के शीर्ष /मुरिन्ड /मुण्डीर में कोई तोरण /मेहराब // arch नहीं है अपितु आयताकार पत्तियां शीर्ष बनाती है और ये पत्तियां छत के आधार पट्टिका से मिलते हैं , जैसा कि उस समय रिवाज था मुरिन्ड पट्टिका पर प्राकृतिक कला अलंकृत होती थी तो इस तिबारी के शीर्ष पट्टिका में भी अवश्य वानस्पतिक ालकरण हुआ होगा आज फोटो में धूमिल है। चारों स्तम्भ तीन मोरी/खोळी / द्वार बनाते हैं

प्रत्येक काष्ठ स्तम्भ का आधार कुम्भीनुमा या पथ्वड़ नुमा है व यह अकार अधोगामी पदम् पुष्प दल (Descending Lotus Petals ) आकार कलाकृति उत्कीरणन के कारण है। कमल दल के बाद काष्ठ डीला है फिर उर्घ्वगामी कमल दल की आकृति निर्मित हुयी है जहां से स्तम्भ की मोटाई गोलाई में कम होती जाती है व इस शाफ़्ट में बारीक ज्यामितीय कला दृष्टिगोचरहोती है। जहां पर स्तम्भ की गोलाई सबसे कम है वहां पर डीला /धगुल है व वहीं से उर्घ्वगामी पद्म दल शुरू होता है जो ऊपर शीर्ष /मुण्डीर . मुरिन्ड में मिल जाता है।

तिबारी में मानवीय या पशु आकृति या नजर उतरने वाला कोई प्रतीक दृष्टि में nahi आया।

तल मंजिल से ऊपर मंजिल आने हेतु आंतरिक पथ ही जो मोरी /खोळी /प्रवेश द्वार से खुलता है किन्तु प्रवेश द्वार या खोळी /मोरी पर काष्ठ कला अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। किन्तु खोळी पर ालकरण विशेषकर आध्यात्मिक प्रतीक उत्कीरण हुआ ही होगा।

इतना निश्चित है कि जब संसधन मुशील से जुटते थे, तकनीक व तकनीशियन दुर्लभ थे तब इस तिबारी का निर्माण परिवार हेतु ऐतिहासिक निर्णय ही रहा होगा

सूचना व फोटो आभार : नरेश उनियाल , जल्ठ

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020