बेडू

पहाड़ की समृद्धि, संस्कृति का प्रतीक है – बेडु (Ficus palmata)

उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध लोकगीत बेडु पाको बारामासा सुनते ही मन में बेडु के मीठे रसीले फल का स्वाद याद आ जाता है, बारामासा का मतलब ही यह है कि यह बेडु बारह मास पाया जाता है जबकि अन्य मौसमी फल होते हैं।

उत्तराखण्ड में फाईकस जीनस के अर्न्तगत एक और बहुमूल्य जंगली फल जिसे बेडु के नाम से जाना जाता है, यह निम्न ऊँचाई से मध्यम ऊँचाई तक पाया जाता है। बेडु उत्तराखण्ड का एक स्वादिष्ट बहुमूल्य जंगली फल है जो Moraceae परिवार का पौधा है तथा अंग्रजी में wild fig के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखण्ड तथा अन्य कई राज्यों में बेडु को फल, सब्जी तथा औषधि के रुप में भी प्रयोग किया जाता है, साथ ही बेडु का स्वाद इसमें उपलब्ध 45 प्रतिशत जूस से भी जाना जाता है।

बेडु का प्रदेश में कोई व्यावसायिक उत्पादन नहीं किया जाता है, अपितु यह स्वतः ही उग जाता है तथा बच्चों एवं चारावाहों द्वारा बड़े चाव से खाया जाता है। यह उत्तराखण्ड में बेडु, फेरू, खेमरी, आन्ध्र प्रदेश में मनमेजदी, गुजरात मे पिपरी, हिमाचल प्रदेश में फंगरा, खासरा, फागो आदि नामो से जाना जाता है। बेडु उत्तरी-पश्चिमी हिमालय के निम्न ऊँचाई से मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों मे पाये जाने वाला एक बहुमूल्य पौधा है। यह उत्तराखण्ड के अलावा पंजाब, कश्मीर, हिमाचल, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, सोमानिया, इथीयोपिया तथा सुडान में भी पाया जाता है। विश्व में बेडु की लगभग 800 प्रजातियां पाई जाती है।

वैसे तो बेडु का सम्पूर्ण पौधा ही उपयोग में लाया जाता है जिसमें छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा चोप औषधियों के गुणो से भरपूर होता है, जिसकी वजह से कई बीमारियों के निवारण में यह सहायक होता है। मूत्राशय रोग विकार में भी बेडु कारगर पाया जाता है। बेडु के फल सर्वाधिक मात्रा में organic matter होने के साथ-साथ इसमें बेहतर antioxidant गुण भी पाये जाते हैं जिसकी वजह से बेडु को कई बिमारियों जैसे – तंत्रिका तंत्र विकार तथा hepatic बिमारियों के निवारण में भी प्रयुक्त किया जाता है।

जहां तक बेडु के वैज्ञानिक विश्लेषण की बात की जाय तो यह पोष्टिक एवं औषधीय दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण पौधा है। पारम्परिक रूप से बेडु को उदर रोग, हाइपोग्लेसीमिया, टयूमर, अल्सर, मधुमेह तथा फंगस सक्रंमण के निवारण के लिये प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में बेडु के फल का गुदा (Pulp) कब्ज, फेफड़ो के विकार तथा मूत्राशय रोग विकार के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है।

यूरोपियन जनरल ऑफ बायोमेडीकल एव फार्मास्यूटीकल साइन्सेज 2016 के अनुसार बेडु के फल में alkaloids, steroids, flavonoids, tannins, beta-sitosterol के मौजूद होने के कारण antioxidant, anti coagulant तथा फेफडो एवं मूत्राशय रोग विकार के निवारण मे प्रयुक्त होता है तथा बेडु की छाल तथा पत्तियों में beta-sitosterol, triterpenes glaunol, galic acid, rutin alpha, beta-amyrin के मौजूद होने की वजह से nephro-protective, anti-diabetic, anti-microbial तथा cardio protective गुण पाये जाते है।

International Journal of Pharma and Bio science 2012 के एक अध्ययन के अनुसार बेडु में आडू़ तथा तिमला से अधिक phenolic तथा flavonoid तत्व पाये जाते है जिसकी वजह से बेडु का Oxidative Stress को कम करने के लिये हर्बल फार्मास्यूटीकल में औद्योगिक रुप से प्रयोग किया जाता है।

बेडु के फल में diethyl phthalate सक्रिय घटक होने की वजह से फार्मास्यूटीकल उद्योगों में अधिक मांग रहती है जो कि antimicrobial agent के लिये प्रयुक्त होता है। फार्मास्यूटीकल उद्योगों के अलावा बेडु के फल का उपयोग जैम-जैली तथा squash बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।

बेडु के फल कई गुणों से भरपूर

जहां तक बेडु के फल की पोष्टिक गुणवत्ता के वैज्ञानिक विश्लेषण की बात की जाये तो इसमें प्रोटीन-4.06 प्रतिशत, फाईबर-17.65 प्रतिशत, वसा 4.71 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट-20.78 प्रतिशत, सोडियम-0.75 मिग्रा0/100 ग्रा0, कैल्शियम -105.4 मिग्रा0/100 ग्रा0, पोटेशियम -1.58 मिग्रा0/100 ग्रा0, फास्फोरस-1.88 मिग्रा0/100 ग्रा0 तथा सर्वाधिक organic matter 95.90 प्रतिशत तक पाये जाते है। बेडु के पके हुये के फल में 45.2 प्रतिशत जूस, 80.5 प्रतिशत नमी, 12.1 प्रतिशत घुलनशील तत्व तथा लगभग 6 प्रतिशत शुगर पाया जाता है।

चूंकी एक परिपक्व बेडु के पेड़ से एक मौसम में लगभग 25 किग्रा तक फल प्राप्त कर सकते है तथा बेडु की पत्तियां पशुचारे के साथ-साथ कृषि वानिकी अर्न्तगत बेहतर पेड़ माना जाता है। राज्य के परिप्रेक्ष्य में इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा सकता है जो विभिन्न खाद्य एवं फार्मास्यूटिकल उद्योग में उपयोग को देखते हुये स्वरोजगार के साथ-साथ बेहतर आर्थिकी का साधन बन सकता है।

बारामासी फल रसीला बेडु

प्रसिद्ध उत्तराखंडी लोकगीत 'बेडु पाको बारामासा' सुनते ही जीभ में बेडु (वाइल्ड फिग) के मीठे रसीले फलों का स्वाद घुल जाता है। बारामासा यानी बारह महीनों पाया जाने वाला। यह स्वादिष्ट जंगली फल उत्तरी-पश्चिमी हिमालय में निम्न से मध्यम ऊंचाई तक पाया जाता है। कई राज्यों में इसे सब्जी व औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। वैसे तो बेडु का संपूर्ण पौधा ही उपयोगी है, लेकिन इसकी छाल, जड़, पत्तियां, फल व चोप औषधीय गुणों से भरपूर हैं। पारंपरिक रूप से इसे उदर रोग, हाइपोग्लेसीमिया, टयूमर, अल्सर, मधुमेह व फंगस संक्रमण के निवारण के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। आयुर्वेद में बेडु के फल का गूदा कब्ज, फेफड़ों के विकार व मूत्राशय रोग विकार के निवारण में प्रयुक्त किया जाता है। जहां तक बेडु के फल की पौष्टिक गुणवत्ता का सवाल है तो इसमें प्रोटीन 4.06 प्रतिशत, फाइबर 17.65 प्रतिशत, वसा 4.71 प्रतिशत, कॉर्बोहाइड्रेट 20.78 प्रतिशत, सोडियम 0.75 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, कैल्शियम 105.4 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, पोटेशियम 1.58 मिग्रा प्रति सौ ग्राम, फॉस्फोरस 1.88 मिग्रा प्रति सौ ग्राम और सर्वाधिक ऑर्गेनिक मैटर 95.90 प्रतिशत तक पाए जाते हैं। बेडु के पके हुए फल में 45.2 प्रतिशत जूस, 80.5 प्रतिशत नमी, 12.1 प्रतिशत घुलनशील तत्व व लगभग छह प्रतिशत शुगर पाया जाता है।

तिमले का लाजवाब जायका

मध्य हिमालय में समुद्रतल से 800 से 2000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाने वाला तिमला, एक ऐसा फल है, जिसे स्थानीय लोग, पर्यटक व चरवाहा बड़े चाव से खाते हैं। तिमला, जो पौष्टिक एवं औषधीय गुणों का भंडार है। मोरेसी कुल के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम फिकस ऑरिकुलेटा है। तिमले का न तो उत्पादन किया जाता है और न खेती ही। यह एग्रो फॉरेस्ट्री के अंतर्गत स्वयं ही खेतों की मेंड पर उग जाता है। तिमला न केवल पौष्टिक एवं औषधीय महत्व का फल है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। पारंपरिक रूप में तिमले को कई शारीरिक विकारों, जैसे अतिसार, घाव भरने, हैजा व पीलिया जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम में प्रयोग किया जाता है। कई अध्ययनों के अनुसार तिमला का फल खाने से कई सारी बीमारियों के निवारण के साथ-साथ आवश्यक पोषक तत्वों की भी पूर्ति भी हो जाती है। इंटरनेशनल जर्नल फार्मास्युटिकल साइंस रिव्यू रिसर्च के अनुसार तिमला व्यावसायिक रूप से उत्पादित सेब और आम से भी बेहतर गुणवत्ता वाला फल है। पकाहुआ फल ग्लूकोज, फ्रुक्टोज व सुक्रोज का भी बेहतर स्रोत माना गया है, जिसमें वसा व कोलस्ट्रोल नहीं होता। इसमें अन्य फलों की अपेक्षा काफी मात्रा में फाइबर और फल के वजन के अनुपात में 50 प्रतिशत तक ग्लूकोज पाया जाता है। वर्तमान में तिमले का उपयोग सब्जी, जैम, जैली और फॉर्मास्युटिकल, न्यूट्रास्युटिकल व बेकरी उद्योग में बहुतायत हो रहा है।