गढ़वाल में प्राचीन जातियाँ

भाग -9

गढ़पति अजयपाल और नाथपंथ

नाथ योगी शिवजी (आदिनाथ) को अपने संप्रदाय का प्रवर्तक मानते हैं। 8वीं-9वीं सदी में सिद्धों का प्रसार भारत के अनेक भागों में हो गया था। सिद्धों में नाथपंथ उत्पन्न हुआ तथा नाथों में गोरखनाथ ने पुरानी प्रथाएँ हटाकर त्याग-तपस्या व योग का प्रचार किया तो नाथपंथ को भारत में दूर-दूर तक श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाने लगा।

गोरखनाथ का समय प्राय: ईसा की दसवीं या ग्यारहवीं सदी का प्रारम्भिक भाग माना जाता है। जिस प्रकार शैवों का शिव पुराण, वैष्णवों का विष्णु पुराण, शाक्तों का देवी भागवत है, उसी प्रकार नाथपंथियों का प्रमुख संप्रदाय ग्रंथ 'गोरक्ष सिद्धांत संग्रह' है। (उत्तराखंड श्री क्षेत्र श्रीनगर- शिव प्रसाद नैथानी, पृ०115) गोरक्ष सिद्धांत संग्रह के अनुसार नवनाथ हुए हैं। गोरखनाथ नौवें नाथ हुए जो मच्छिन्दरनाथ के शिष्य थे। सिद्धों ने अपना प्रचार क्षेत्र ग्रामीण जनता तक सीमित रखा किंतु नाथों ने गढ़वाल व कुमाऊँ की राजनीति में भी सक्रिय भाग लिया।

प्राचीन काल से ही गढ़वाल देवभूमि होने से साधु-संतों की तपोभूमि रही है। माना जाता है कि 15वीं सदी के आसपास सत्यनाथ और उनके शिष्य नागनाथ नामक दो महत्वाकांक्षी नाथ योगी गढ़वाल और चंपावत पहुँचे थे। नागनाथ के परामर्श से चंपावत नरेश ने चाँदपुर गढ़ी के राजा अजयपाल पर आक्रमण करके उसका राज्य छीन लिया था। अजयपाल सत्यनाथ के पास देवलगढ़ पहुँचा। नाथ योगी के प्रयत्न से अजयपाल और चंपावत नरेश में संधि हो गई और अजयपाल को उसका राज्य वापस मिल गया। नाथ-महात्माओं के संसर्ग से अजयपाल की भी सिद्ध-महात्माओं में गणना होने लगी थी। (योग प्रवाह- पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, पृ० 203) नाथ-सिद्धों की कुछ सूचियों में अजयपाल का नाम भी मिलता है। (उत्तराखंड का इतिहास-4- डबराल, पृ० 211)

नेपाल, कुमाऊँ व गढ़वाल में नाथों का सर्वाधिक प्रभाव दिखता है। लोकतंत्र बहाली से पूर्व नेपाल में गोरखनाथ की गद्दी ही श्रेष्ठ मानी जाती थी। महाराजा मात्र दीवान होता था। गोरखपंथी होने से उन्हें गोरखा कहा जाता है। गढ़वाल में अभी भी नाथ संप्रदाय किसी न किसी रूप में विद्यमान है। गढ़वाल के लगभग सभी गाँवों में आज भी कोई बीमारी या अशुभ घटित होने पर तंत्र-मंत्रों का सहारा लिया जाता है। तंत्र-मंत्रों में सत्यनाथ, गोरखनाथ, चौरंगीनाथ, हनुमंतनाथ, मच्छिन्दरनाथ के साथ राजा अजयपाल की 'आणें' पड़ती हैं। यहां तक कि इन मंत्रों में राजा अजयपाल को पंवार वंशीय की जगह नाथ संप्रदाय का माना गया है।

"ॐ कार्तिक मास, ब्रह्म पक्ष, आदीत वार, भरणी नक्षत्र जरहर लीऊँ, उपाईं माता लक्ष्मी की कूखी लीयो औतार। प्रथम नील। नील को अनील। अनील को अवीक्त। अवीक्त को वीक्त। वीक्त को पुत्र धौं-धौंकार। धौं-धौंकार को भयो अजेपाल राजा। अजेपाल की भई अजला देवी। अजला देवी गर्ववंती भई.........।"

संपूर्ण गढ़वाल क्षेत्र में तीन सौ से अधिक शिव मंदिरों में नाथपीठ या मठ थे। जोशीमठ के बाद केदारनाथ में ही इनका सबसे बड़ा जमावड़ा लगता था। गढ़वाल में 11वीं सदी के बाद नाथ-सिद्ध मत सर्वाधिक प्रचार कर गया था।

कुमाऊँ के चन्द वंश के समान गढ़वाल में श्रीनगर राजवंश के अजयपाल को भी नाथ पंथ में दीक्षा देने पर ही नाथ गुरु सत्यनाथ की कृपा से गढ़वाल राज्य स्थापना में सफलता मिली थी। (उत्तराखंड के तीर्थ एवं मंदिर- शिव प्रसाद नैथानी, पृ० 168) गढ़वाल में अधिकांश बड़े मंदिरों - श्रीनगर में कमलेश्वर, गोपेश्वर, टिहरी में बूढ़ा केदार और उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर आदि पर नाथों का अधिकार आज तक चला आ रहा है। किसी समय नाथों का अधिकार प्राय: सभी मंदिरों पर था। (उत्तराखंड यात्रा दर्शन - डबराल, पृ० 182) गढ़वाल में अधिकांश तीर्थ, मंदिरों व स्थानों के साथ नाथपंथियों के लोकप्रिय शब्द 'नाथ' को जोड़ना नाथपंथ की ही देन है। नाथों के अनुकरण से ही अजयपाल को चमत्कारी राजा के रुप में जाना जाता था।

सन् 1500 से 1804 ई० तक गढ़वाल में अजयपाल की पीढ़ी राज करती रही।इस बीच कुमाऊँ में, तिब्बत व मुगल सेना से संघर्ष होता रहा। 'मानोदय काव्य' के अनुसार सहजपाल (1555-77) अजयपाल का पुत्र तथा मानशाह (1591-1610 ई०) पौत्र था। सहजपाल के दो अभिलेख देवप्रयाग से प्राप्त हुए हैं। ये 1548 ई० व 1561 ई० के उत्कीर्ण हैं। मानशाह के राज्यकाल के भी चार अभिलेख प्राप्त हुए हैं। इनकी तिथि 1547 ई०, 1592, 1608 और 1610 ई० पढ़ी गई है। 1547 ई० वाली तिथि को पढ़ने में अशुद्धि हो सकती है। (हिमालय परिचय -1 राहुल, पृ० 131) मानशाह ने कुमाऊँ के राजा लक्ष्मीचंद को सात बार पराजित किया था तथा तिब्बती लुटेरों को भी यहां से खदेड़ कर यहां से भाग जाने के लिए बाध्य किया था। पृथ्वीपति शाह (1640-1664 ई०) के समय दून क्षेत्र को मुगल सेना ने अपने अधिकार में ले लिया लेकिन मेदनी शाह (1664-1684 ई०) ने अपनी राजनीतिक कुशलता से दून को फिर से अपने अधीन कर लिया था।

(पंवार राजवंश की सूची लम्बी है। यदि किसी सुधी पाठक को अवलोकित करनी हो तो तीनों सूचियाँ कमेंट में पोस्ट की गई हैं।)

(साभार- गढ़वाल हिमालय- रमाकान्त बेंजवाल)