गौं गौं की लोककला
डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 2
सूचना आभार - हरीश डबराल (डवोली )
डवोली (डबरालस्यूं ) की लोक कलायें व कलाकार
डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 2
डवोली (डबरालस्यूं ) की लोक कलायें व कलाकार
डबरालस्यूं संदर्भ में , हिमालयी लोक कलायें व लोक कलाकार
संकलन -भीष्म कुकरेती
-डबरालस्यूं में डवोली क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा गाँव है जिसकी सीमायें - पूर्व में ख्याड़ा , देवीखेत , पश्चिम में कूंतणी , उत्तर पश्चिम में खमण व उत्तर में मंडुळ गदन व दक्षिण में अमाल्डू हैं।
मनोरंजन हेतु कलाएं व कलाकार
वाद्य वादन - वादी व ढोल वादक बादी बादण शादी ब्याहों में गीत सुनाते थे व नृत्य करते थे।
लोक गीत रचना व गायन - बादी
नृत्य मनोरंजन हेतु - वादी
धार्मिक अनुष्ठान हेतु गायन , वादन - ढोल वादक, मंगळेर , पंडित जी द्वारा मंत्रोच्चारण , भूत भगाने आदि हेतु झारखंडी , गारुड़ी द्वारा गायन , मंत्रोचारण
विशेष ऋतू में गीत गायन, नृत्य, स्वांग भरना - होली वक्त गीत नृत्य , भैल खेलते वक्त , एवं बसंत पंचमी से बैसाखी तक - ग्राम पधान के चौक में मुख्यतया महिलाओं द्वारा सामूहिक नृत्य गायन व स्वांग भरना। महिलाएं व पुरुष खेतों व वनों में अकेले व सामूहिक गायन भी करते थे
धार्मिक अनुष्ठानों में - कई कलाओं का जैसे गणेश निर्माण , वेदी निर्माण , जन्मपत्री में कई कला चित्रकारी गढ़वाल भांति सामान्य
रामलीला से मनोरंजन - नाट्य , नृत्य गीत व शायरी प्रदर्शन - होते थे
शिल्प शास्त्र कला (ओडगिरी )- ललिता प्रसाद डबराल , ज्ञान सिंह
शिल्पशास्त्र / पगार चिणाइ आदि - लगभग सभी पुरुष निपुण होते थे काष्ठ कला व कलाकार - बढ़ई
अलंकार शास्त्र - शास्त्री (सुनार ) -दूसरे गाँव पर निर्भर
धातु निर्माण शास्त्री - टमटागिरी - दूसरे
लोहार - चैन सिंह मुंडित
वस्त्रालंकार शास्त्र व शास्त्री - प्राचीन काल में पराळ से गद्दा निर्माण व ऊनि वस्त्र आदि निर्माण
शय्या सज्जा कला व कलाकार - मंदर निर्माण , चटाई निर्माण - स्वतन्त्रता से पहले सांय कला थी
वैद्य गिरी - दूसरे गाँव निर्भर
रेशों से रस्सी आदि निर्माण - सभी परिवार संलग्न होते थे
द्यूत क्रीड़ा का अन्य क्रीड़ा जैसे पत्ती , चौपड़ - पत्ती चौपड़ सामन्य थे
पाक कला विशेषज्ञ , ढुंगळ विशेषज्ञ , अरसा विशेषज्ञ सभी कलाओं के थे
फौड़ के सर्यूळ - तोताराम डबराल
जागरी - अल्मोड़ी के चैतराम डबराल
हंत्या जागरी - डवोली के गयळु
बड़ी कष्ट कला में दूसरे गांव पर निर्भर
छोटे मोटे बढ़ई के कार्य डवोली वाले ही।
झरखंडी - भोला दत्त डबराल , तुमड़ रिटाने के विशेषज्ञ भी थे
औजी - जामळ वाले
गोठ संस्कृति थी तो टाट , पल्ल , कील ज्यूड़ अदि निर्माता हर परिवार से थे
ब्वान , भ्यूंळ से बनीं टोकरियों के सल्ली सभी परिवार से थे
तिबारियां - गुणा नंद डबराल व भोला दत्त डबराल
कर्मकांडी ब्राह्मण - अमाल्डू के पंडित
सूचना आभार - हरीश डबराल (डवोली )
Folk Arts of Davoli, , Folk Art of Garhwal, Folk Arts of Himalaya , Folk Artist