गौं गौं की लोककला

सलूड़ (चमोली ) में एक तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

फोटो आभार : जग प्रसिद्ध पक्षी निहारक व फोटोग्राफर दिनेश कंडवाल

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 154

सलूड़ (चमोली ) में एक तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 154

(अलंकरण व कला पर केंद्रित )

यह लेख स्व दिनेश कंडवाल को समर्पित है Iजिन्होंने मुझे इस श्रृंखला को आगे बढ़ाने में उत्साहित किया व कई सहायताएं भी दीं

संकलन - भीष्म कुकरेती

चमोली गढ़वाल के सलूड़ गाँव रम्माण लोक नाटक हेतु विश्व प्रसिद्ध गाँव है I सलूड़ गाँव से कुछ तिबारियों व निमदारियों की सूचना मिली है I प्रस्तुत भवन की सूचना प्रसिद्ध पक्षी निहारक व पक्षी फोटोग्रैफ्रर दिनेश कंडवाल ने साझा की है I

सलूड़ का यह भवन कुमाऊँ की बाखलियों की बरबस याद दिला देता है क्योंकि इस भवन के तल मंजिल में स्थित खोली (प्रवेशद्वार ) का पहली मंजिल तक पंहुचना व पहली मंजिल में झाँकने वाली खिड़की ( खोह नुमा खिड़की ) शैली गढवाल में कम कुमाऊँ में अधिक मिलती है I एक ही भवन में दो दो तिबारियों का प्रचलन भी गढवाल में कम मिलता है (अपवाद भी सर्वेक्षण में मिले है ) तथापि कुमाऊँ में एक भी भवन में कई तिबारियों का रिवाज निर्माण का प्रचलन आज भी है I इस भवन में भी कुमाऊँ की बाखलियों जैसे ही छज्जा चौड़ा नही है I या छज्जे को महत्व नही दिया गया है I

सलूड़ गाँव (चमोली ) में इस भवन की काष्ठ कला समझने हेतु हमारे पास मुख्य संरचनाये –तल मंजिल में खोली , पहली मंजिल में दो तिबारियां , दो या तीन झाँकने की खिडकियों का जायजा लेना आवश्यक है या तीन मुख्य बिन्दुं है जिनसे भवन की काष्ठ कला की विशेषता जानी जायेगी I

तल मंजिल में तीन कमरों के दरवाजों व खिड़की के दरवाजों पर केवल ज्यामितीय कला , अलंकरण अंकन हुआ है I खोली में कई प्रकार के कला नक्कासी हुयी है I खोली के सिंगाड़ दोनों ओर हैं व प्रत्येक सिंगाड़ त्रिगट (तीन मिलकर ) उप स्तम्भों या चरगट (चार मिलकर ) उप स्तम्भों से मिलकर बना है जो कुमाऊँ में अधिक प्रचलन है I

खोली के प्रत्येक उप सिंगाड़ /स्तम्भ के आधार कमल दल से निर्मित कुम्भी , ड्यूल व सीधा कमल फूल की आकृतियाँ हैं जो कुछ ऊँचाई बाद स्तम्भ सीढ़ी जाकर मुरिंड /शीर्ष की समान्तर कड़ीयों में तब्दील हो जाती हैं व मुरिंड /शीर्ष की कई सतह निर्मित हो जाति हैं I मुरिंड के केंद्र में धार्मिक /प्रतीकात्मक कला अंकित है . खोली के उपर छ्प्परिका भी काठ की है I

पहली मंजिल में दो दो कमरों से दो बरामदे बने हैं जिन्हें चार चार स्तम्भों से तिबारी निर्मित हुयी हैंI अर्थात पहली मंजिल में चार चार स्तम्भों व तीन तीन ख्वाळइयों .खोलियों से दो तिबरियां निर्मित हुयी हैं I

दोनों तिबारियों के प्रत्येक स्तम्भ गढवाल की आम तिबारियों के स्तम्भ जैसे ही हैं जिसके आधार पर उलटे कमल फूल से कुम्भी बनी है , इसके उपर ड्यूल है , ड्यूल के उपर सीधा कमल फूल है व तब स्तम्भ की मोटाई ऊँचाई के साथ कम होती जाती है I जहाँ पर सिंगाड़ /स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वहां उल्टा कमल फूल बनता है जिसके उपर ड्यूल है व उसके उपर सीधा कमल दल है जिसके ऊपर से स्तम्भ थांत (cricket bat bladetype ) रूप धारण कर लेता है व थांत ऊपर जाकर मुरिंड से मिल जाता है Iजहाँ से स्तम्भ थांत शक्ल अख्तियार करता है वहीं से मेहराब की एलक चाप बनती है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध चाप से मिलकर सम्पूर्ण मेहराब बनाते हैं I लगता है मेहराब के त्रिभुजों में फूल व बेल बूटों की नक्कासी हुयी है व मुरिंड/शीर्ष कड़ी में भी नक्कासी हुयी लगती है I

झाँकने की खिड़कियाँ में स्तम्भ है जो दो तीन उप सिंगाड़ों से बने हैं . खिड़की के प्रत्येक उप सिंगाड़ कला व शैली दृष्टि से तिबारी के स्तम्भ जैसे ही निर्मित हुए हैं उप सिंगाड़ का केवल आकार छोटा है बस I

खिड़की के आधार से कुछ ऊँचाई तक पटिला /तख्ता लगा है व उपर बाहर झाँकने के लिए छेद है I झाँकने का छेद अंडाकार नही अपितु चौखट है Iदो नों बाहर झाँकने की खिडकियों की शैली व कला एक जैसी ही हैं I

निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि विश्व प्रसिद्ध रम्माण गां सलूड़ के प्रस्तुत विवेचित मकान की शैली गढवाली व कुमाऊँ शैलियों का मिश्रित रूप ही व ज्यामितीय , प्रतीकात्मक व प्राकृतिक नक्कासी का शानदार नमूना है I

सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध पक्षी निहारक व फोटोग्राफर दिनेश कंडवाल

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: वस्तुस्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं I

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