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लोहाघाट चम्पवात में पांडे परिवार के 116 साल पुराने भवन में काष्ठ कला व कुमाऊं में भवन कला परिवर्तन की विवेचना

सूचना व फोटो आभार : सुमन पांडे, लोहाघाट

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 151

लोहाघाट चम्पवात में पांडे परिवार के 116 साल पुराने भवन में काष्ठ कला व कुमाऊं में भवन कला परिवर्तन की विवेचना

कुमाऊँ ,गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 151

संकलन - भीष्म कुकरेती

लोहाघाट चम्पावत में पांडे परिवार के पास एक ऐसा भवन है जो हैमीना नामक ब्रिटिश नागरिक ने 116 साल पहले (सन 1904 इ में ) निर्माण करवाया था पण्डे परिवार की मिल्कियत है। यह या इस तरह के 116 साल पहले यूरोपीय नागरिकों द्वारा निर्मित मकानों की इनका डॉक्यूमेंटेसन आवश्यक है। इन मकानों से पता चल सकेगा कि उत्तराखंड में मकानों की बनावट किस भांति बदली व नईबनावट कैसे उत्पन्न हुयी। पाण्डे परिवार के आज की मिल्कियत वाला 116 साल पहले निर्मित भवन जिसे हैमीना ब्रिटिश नागरिक ने निर्माण किया था भी कुमाऊं या उत्तराखंड में मकानों की बनावट में तब्दीली का एक मील पत्थर है जिससे दिशा निर्देश मिलता है कि उत्तराखंड में भवन निर्माण शैली कैसी ढळकी। इस मकान को स्व केशव चंद्र पांडे ने खरीदी थी व अब उनकी चौथी पीढ़ी यहाँ रहती है।

पांडे परिवार के 116 साल पहले निर्मित भवन को ऊपरी तौर पर आधुनिक भवन ही कहा जाएगा ,. बड़ी बड़ी खिड़कियां , हाँ मकान की छत ढलवां है तो पारम्परिक भी लगती है। यदि ध्यान से देखें तो ढलवां छत ही नहीं तल मंजिल में दरवाजों के काष्ठ शैली व पहली मंजिल में बालकोनी की बनावट वास्तव में आधुनिकता है पर परम्परागत बाखलियों की बनावट का प्रभाव साफ़ साफ़ दर्शाता है। याने लोहाघाट , चम्पावत में पांडे परिवार का यह भवन एक संधि काल या दो बनावटों का मिश्रण है। मकान के तल मंजिल के तीन दरवाजे भी बाखली संस्कृति की याद दिलाते हैं व पहली मंजिल पर बरामदा भी बाखलियों में मोरी के प्रभाव को दर्शाता है।

लोहाघाट , चम्पावत में पांडे परिवार के इस भवन मे लकड़ी (दरवाजों व खिड़कियों के सिंगाड़ों व मुरिन्डों ) पर नक्कासी ज्यामितीय ढंग कीहै व कोई विशेष याद रखने लायक कला भी नहीं है।

इस भवन का चयन केवल इसलिए किया गया कि समझा जाय कि भवनों पर ब्रिटिश कला का प्रभाव किस तरह आया व संभवतया आगे चलकर यह भी निर्णीत हो जायेगा कि किस समय से कुमाऊं के बाखलियों की बनावट बदलने शुरू हुयी। 1904 में हैमीना नामक ब्रिटिश नागरिक द्वारा निर्मित मकान दर्शाता है कि आधुनक मकान सीधे नहीं अपितु पहले पहल कुछ हद्द तक बाखली संस्कृति का प्रभाव भी रहा यान ट्रांजिट पीरियड में (संधि कल ) में दोनों तरह के बनावटों का मिश्रण भी देखने को मिलता है।

सूचना व फोटो आभार : सुमन पांडे, लोहाघाट

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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