गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

गटकोट (ढांगू ) की तिबारियों की काष्ठ कला भाग --2

गटकोट संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों /निंदारियों पर अंकन कला -11

सूचना व फोटो आभार - कमल जखमोला व विवेकानंद जखमोला , गटकोट

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी /निमदारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 14

गटकोट के पधानुं की आलीशान तिबारी में काष्ठ कलाकृति

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

गटकोट ढांगू क्षेत्र का एक ऐतिहासिक गाँव है। गोरखा काल में गोरखाओं की चौकी भी गटकोट निकट ही थी व गोर्ला रावत ढांगू , डबराल स्यूं व कुछ भाग उदयपुर पट्टियों के थोकदार भी थे। डा शिव प्रसाद डबराल ने थोकदार विष्णु सिंह गोर्ला रावत के रिकॉर्ड्स से गोरखा अकालीन इतिहास हेतु कई नई सूचनाएँ जुटायीं थीं।

जैसे कि गटकोट तिबारी काष्ठ कला भाग 1 में सूचना दे दी गयी है कि गटकोट में पांच -छह तिबारियां थीं किन्तु अब कई तिबारियां या तो ढह गयीं हैं या ढहने के कगार पर हैं। पधानुं की तिबारी भी लगभग ढहने के कगार पर ही है।

पधानुं की तिबारी भी पहली मंजिल पर ही है याने दुभित्या मकान है व पहली मंजिल पर दो कमरों के मध्य दीवार न हो पूरा बरामदा है और इस बरामदे के खोलियाँ /द्वार /मोरियाँ हैं याने बाहर काष्ठ कला सज्जित तिबारी है।

पधानुं की तिबारी में ढांगू डबराल स्यूं - उदयपुर , लंगूर , अजमेर क्षेत्र की अन्य तिबारियों की भाँती ही चार स्तम्भ /columns हैं। चार स्तम्भ तीन मोरी /द्वार /खोलियाँ बनाते हैं। किनारे के दो स्तम्भ दिवार से एक एक खड़ी कड़ी की सहायता से से जुड़े हैं। दिवार व स्तम्भ जोड़ कड़ी पर सुंदर प्राकृतिक कलालकृति उत्कीर्णित है। वास्तव में जोड़ कड़ी भी स्तम्भ जैसे जोड़ती तो है ही व तीन वर्टिकल अधोलंब भाग साफ़ साफ़ दिखाई देते हैं , दीवार की तरफ वाली कड़ी में प्राकृतिक व ज्यामितीय कला खुदाई का सुंदर नमूना मिलता है।

तल मंजिल के ऊपर पत्थर का छज्जा है जो पाषाण दासों (टोड़ीओं ) पर टिका है कुछ टोड़ी काष्ठ दास दिख रहे हैं। मुख्य छज्जे के ऊपर पाषाण उप छज्जा है जिस पर पत्थर के ही चार हाथीपांव जैसे पाषाण आधार है जिस पर तिबारी के काष्ठ स्तम्भों के आधार हैं (base ) स्तम्भ आधार वास्तव में अधोगामी पदम् पुष्प दल ( descending Lotus petals ) कलाकृति है जो हाथपांव /कुम्भ /पथ्वड़ का अंदेशा भी देता है और हाथी पाँव कलाकृति छवि प्रतीक भी है कि हम ताकतवर हैं। कमल पुष्प दल जहां से शुरू होता है स्तम्भ पर गोलाई में चारों ओर गुटका नुमा आकृति है (wood plates ) . इस गुटके नुमा आकृति के ऊपर ऊर्घ्वाकार कमल पुष्प दल ऊपर की ओर खिलता है व नयनाभिराम आनंद देता है। कमल पुष्प दल के बाद स्तम्भ की छड़ी (shaft ) ऊपर की ओर जाती है और shaft की मोटाई कम होती जाती है जहां पर स्तम्भ shaft की मोटाई सबसे कम होती है वहीँ से फिर गुटका नुमा आकृति उभरती है व फिर गुटका नुमा आकृति के बाद ऊर्घ्वाकार पदम् पुष्प दल ऊपर की ओर खिलते नजर आते हैं। इन दलों के ऊपर आयतकार लकड़ी का गुटका impost है (ज्यामितीय कला )

इस आयाताकार आकृति याने impost के ऊपर दो भाग हैं एक भाग दांय -बांय भुजा की ओर मेहराब (arch ) का अर्ध मंडल शुरू होता है दूसरा भाग सीधा ऊपर जाता है जिसे थांत कह सकते है। एक स्तम्भ का अर्ध मंडल दूसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से मिलकर मेहराब का पूरा चाप बनाते हैं। मंडल arch के अंतश्चाप intrados पहले तिपत्ती trefoil नुमा है किंतु मध्य में ऊपर नुकीली चाप ogee arch नुमा हो जाता है। मेहराब के voussoir या डाट या मध्यश्चाप व बाह्यश्चाप में कलाकृति उभर कर आयी हैं। मेहराब की प्लेट्स के दोनों किनारों पर चक्राकार पुष्प व मध्य गणेश पटरटेक पुष्प दल है। स्तम्भ की ओर से चाप की कीस्टोन के ओर एक आकृति उभरती है जो हाथी की सूंड की छवि जैसे लगती है यानि छवि प्रदान करती है । मेहराब पट्टी पर अन्य प्राकृतिक काष्ठ कलाकृति भी उभर कर आयी है।

मेहराब के keystone के ऊपर की चौड़ी पट्टी छत के नीचे की पट्टी से मिलती है। इस चौड़ी पट्टिका पर कुछ कुछ देव प्रतीकात्मक कृति दिखाई पड़ रही हैं

स्तम्भ के थांत पर ब्रैकेट है जिस पर दो पक्षियों का गला व चोंच आकृति उभरी है। पक्षी नुमा आकृति प् रकयी तरह की कलाकृति भी उत्कीर्ण हुयी है।

सभी स्तम्भ में आकृति व आयात एक समान ही है याने आठ पक्षी चोंच व गला , आठ चकराकर पुष्प है।

थांत व चाप के ऊपर की पट्टी छत की आधार पट्टी से मिलती है , छत की आधार पट्टी से शंकुनुमा काष्ठ आकृतियां लटकी मिलती हैं। तिबारी की बाकी छत पट्टी पाषाण दासों )टोड़ीयों ) पर टिकी हैं।

तिबारी काष्ठ कला में

ज्यामितीय ,

प्राकृतिक

व मानवीय (figurative ) याने गटकोट के पधानुं तिबारी में कलाकृति तीनों प्रकार की कला उभर कर आयी हैं।

पक्षी गला , चोंच व पक्षी गला के नीचे कुछ कल्पनातीत आकृति भी मानवीय कलाकृति का उम्दा उदाहरण है। स्तम्भ थांत में उभरे bracket में पक्षी गला , चोंच व कल्पनातीत आकृतियां इस तिबारी की अपनी विशेषता है। जो अभी तक विश्लेषित ढांगू की तिबारियों में नहीं मिली हैं।

गटकोट के पधानुं तिबारी काष्ठ कला विश्लेषण से साफ़ पता चलता है कि काष्ट कलाकारों ने निम्न तकनीक अपनायी है -

उभरी या उभारी गयी नक्कासी (Relief Carving Technique )

अधः काट नक्कासी तकनीक (Under Cutting Carving Technique )

तेज धार /छेनी से कटाई तकनीक /खड्डा करती विधि (Incised Carving Technique )

मूर्ति सदृष्य सदृश्य /मूर्तिवत नक्कासी ( Sculpturesque Carving Technique)

वेधित करती नक्कासी तकनीक (Pierced Carving Technique)

उपरोक्त विश्लेषण से कहा जा सकता है कि गटकोट के पधानुं तिबारी काष्ठ कला में अपने समय में शानदार तिबारी कहलायी गयी होगी।

तिबारी निर्माण संभवतया सन 1900 के पश्चात का ही समय होगा। तिबारी काष्ट कलाकारों की कोई जानकारी अभी तक नहीं मिल पायी है।

सूचना व फोटो आभार - कमल जखमोला व विवेकानंद जखमोला , गटकोट

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