गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखई ) काष्ठ अंकन लोक कला
यह खोली स्वर्गीय हंसराम सिंह रौतेला की है। उनके पुत्रगण बेलम सिंह बलबीर सिं आनंद सिंह बुलंद सिंह हैं।
( तिबारी अंकन ) - 90
अजमेर पट्टी के गडसिर -कठूड़ से एक दुखंड /तिभित्या मकान की सूचना बिक्रम त्तिवारी से मिली है। गडसिर -कठूड़ अजमेर में नाळी खाळ याने थलनदी के निकट का कृषि समृद्ध गाँव था। अजमेर में गडसिर -कठूड़ की पहली मंजिल में प्रवेश हेतु इस शानदार खोली में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय तीनों प्रकार के काष्ठ अलंकरण के दर्शन होते हैं और कला वा अलंकरण दृष्टि से लगता है कि अपने समय की भव्य खोळी रही होगी। खोळी तल मंजिल पर है। काष्ठ कला व अलंकरण विवेचना हेतु खोळी को 6 भागों में अलग अलग विवेचना आवश्यक है - स्तम्भों , स्तम्भ ऊपर चापयुक्त /तोरण नुमा मुरिन्ड , मुरिन्ड के ऊपर तीन स्थलों में अलंकरण /उत्कीर्ण /नक्कासी ; मुरिन्ड के बगल से ऊपर छपरिका आधार से निकले 4 दीवारगीरों (Brackets ) में नक्कासी ; दीवारगीरों के मध्य पट्टिका पर अलंकरण ; छपरिका का आधार पट्टिका में काष्ठ अलंकरण व अंकन
द्वार के दोनों ओर अलंकृत स्तम्भ है जो काष्ठ कड़ी से पाषाण दीवार से जुड़े हैं। स्तम्भों की कला रगड़ होने से दिखाई नहीं दे रही है किन्तु देखर अनुमान लगाना सरल है कि आधार पर कमल दल की कुम्भी /पथ्वड़ अवश्य रहा होगा। स्तम्भ के ऊपरी शाफ्ट /कड़ी में प्राकृतिक कला के चिन्ह अभी भी बाकी हैं।
स्तम्भ जब समाप्त होते हैं तो दोनों स्तम्भों के impost /the lowest part of arch से अर्ध चाप निकलते हैं जो आपस में मिलकर एक गोल नुमा अर्ध चाप या arch /मेहराब /तोरण ( ट्यूडोर Tudor नुमा चाप )निर्माण करते हैं। मेहराब के आंतरिक तह (intradoos ) व बाह्य तह (Extrados ) के मध्य तीन विशेष तहें हैं व प्रत्येक तह में प्राकृतिक /फर्न पत्ती जैसी अंकन कला दृष्टिगोचर होती है। मेहराब के बाह्य तह शीर्ष (Keystone , Crown ) व सबसे अंदर की तह के शीर्ष मध्य एक प्रतीकात्मक (संभवतया आध्यात्मिक या नजर न लगे संबंधित ) आकृति उभर कर आयी है जो आकर्षित करने में सफल है। मेहराब के दोनों और की पट्टिकाओं में प्राकृतिक अलंकरण अंकन हुआ है।
मेहराब या तोरण के ऊपर धरती के समांतर चार पट्टिकाएं दिखती हैं। चाप /तोरण से एकड़म ऊपर की पट्टिका के कई बहुदलीय पुष्प के अंकन उभर कर आएं हैं इसके ऊपर की चौड़ी पट्टिका में आमने सामने चिड़ियाएं व मध्य में प्रतीकात्मक आध्यात्मिक देव या अपशकुन मिटाने का कोई प्रतीक प्रतिमा (मानवीय अलंकरण ) अंकन हुआ है।
स्तम्भों में जहां से मेहराब चाप शुरू होते हैं उसके कुछ नीचे से प्रत्येक स्तम्भ के बगल में दो दो दीवारगीर लगे हैं जो ऊपर खोळी के छपरिका आधार के आधार काष्ठ दास (टोड़ी ) से मिलते हैं। प्रत्येक दीवारगीरों के मध्य एक पट्टिका है। इस खड़ी मध्य पट्टिका में पत्तियों के छवि नुमा अलंकरण अंकित हुआ है।
दीवारगीरों में दर्शनीय कला उत्कीर्ण हुयी है। प्रत्येक ब्रैकेट के निम्न भाग में पुष्प नलिका /नाल है व फूलों के घड़े नुमा अंडाशय /ओवरी का आभास तो देते ही हैं ऊपर से आते पुष्प नाल से लगता है जैसे चिड़िया का चोंच है व चिड़िया चोंच जैसे फूल अंडाशय /ओवरी में घुसी जा रही का भी आभास देता है। इन आकृतियों के ऊपर कुछ पट्टिकाएं है व फिर एक एक हाथी हैं जो छपरिका आधार के ठीक नीचे हैं। हाथियों का अंकन पूरे हाथी में हुआ है। इस तरह खोली में चार हाथियों के चित्र अंकन हुए है।
छपरिका के आधार में प्राकृतिक अलंकरण के अतिरिक्त शंकुनुमा आकृतियां भी लटकती नजर आती हैं।
गडसिर -कठूड़ (अजमेर ) की इस खोली /खोळी /तल मंजिल पर प्रवेशद्वार की काष्ठ कला व अलंकरण की विवेचन से साफ़ है कि खोली लाजबाब है , खोळी बेजोड़ है व प्रवेशद्वार की काष्ठ कला अनुपम है। कला दृष्टि से गंगा सलाण मकी खोलियों में एक शानदार , जानदार खोलियों में से एक। इस खोली में प्राकृतिक , ज्यामितीय , मानवीय (पशु , पक्षी, मनुष्य आदि ) व आध्यात्मिक प्रतीकात्मक अलंकरण के पूरे दर्शन एक साथ होते हैं व काष्ठ कटान से बने अलंकरण दर्शनीय है।
सूचना व फोटो आभार : बिक्रम तिवारी , Vickey
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