श्री देवेश आदमी

मैं हारा हूँ टूटा नही..

तुम्हारे गमों से अछूता नही..

लौट कर आया हूँ फ़िर...

मैं तुम से नाराज़ हूँ रूठा नही...

देवेश आदमी


वो चाय रखी टेबल पर

इतवार पुराने ले आओ...!!


हम कह देंगे कल छुट्टी है

तुम यार पुराने ले आओ..!!


कुछ करने को बचा नही

संसार पुराने ले आओ...!!


खेलूंगा छुप्पन छुपाई

तुम वो घरबार पुराने लेआओ...!!


देवेश आदमी



सदा.....

शदारत फ़रमा रहा हूँ तेरी महफ़िल का

चलो इलाज ही होजाये मरीज-ए-दिल का

मुख़्तसर हूँ तेरी यादों के अंजुमन में

भटका हूँ पता बतादे मेरी मंजिल का

बज़्म-ए-महफ़िल में कोई गैर कहाँ होगा

पर्दा खींच कर रखा है उस ने साहिल का

यूं नही की फ़क़त तेरा दीदार मैं ही करूँ

कैसे भूल जाऊं शम्मा है तू महफ़िल का

होगे बड़े चाहने वाले चाँद के दुनियां में

मुवामला है "आदमी" के दिल का

देवेश आदमी


कहना आसान है, मुझे हारने का ग़म नही..

मैं "आदमी" हूँ मेरा ग़म आप से कम नही..


उठ खड़ा हूँ लड़ने को खुद से..

हौंसले के सिवाय दुनियां में कोई मरहम नही..


मेरी हिम्मत जवाब है उन लोगों को..

जिन्होंने कहा था इस "आदमी" में दम नही..


मैं बैठा हूँ अपनों के दिलों दोस्त बन..

यह मेरा विश्वास है कोई भृम नही..


लड़ता रहूँगा अपनों के खातिर हर लड़ाई..

मैने सुना है "आदमी" का कोई पुनर्जन्म नही..


देवेश आदमी



एक शाम तुझे दिल से निकाल के देखना है

एक रोज़ तुझे यादों से भुला के देखना है


हर वक़्त तेरी यादों में कैसे जियों मैं

एक पल तुझे भुला के देखना है


"आदमी" हूँ अपनी आदत से मजबूर हूँ

तेरी यादों में खुद को सुला के देखना है


देवेश आदमी


मैंने एक उम्र इसी गलतफहमी में काट दिया..

जो काट दिया तो वो काट दिया..

लौट कर आगई हर परछाई मेरे पीछे..

मैं बैठा रहा और ख्यालों ने सफ़र काट दिया..

मेरे अपने याद ख़बर करने आये मेरा..

मैं धोखे में रहा मैंने अपना गम सब में बांट दिया..

पराया महसूस करता हूँ अपने ही घर में..

पिता ने जब से मेरा चूल्हा बांट दिया..

देवेश आदमी