© नरेश उनियाल,

ग्राम -जल्ठा, (डबरालस्यूं ), पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड !!

सादर शुभ संध्या प्रिय मित्रों..

आज मातृदिवस पर मेरे मन के उदगार...

"हे मां तेरे ऋण से कभी,

क्या मैं उऋण हो पाऊंगा"

" जन्म से लेकर मरण तक,

सब कर्म मैं कर जाऊंगा,

हे मां तेरे ऋण से कभी,

क्या मैं उऋण हो पाऊंगा?


रख कोख में नौ माह,

सारे पीर तूने सह लिए,

दुख दर्द तेरे आंसुओं में,

. मेरे सारे बह लिए,

जननी तेरे होते हुए,

कुछ कष्ट ना मैं पाऊंगा,

हे माँ तेरे ऋण से कभी,

क्या मैं उऋण हो पाऊंगा !!


हो गया जब मैं युवा,

अपने सपन में खो गया,

तेरी चाहत हसरतों से,

माँ विमुख मैं हो गया,

तेरे चेहरे पर हंसी क्या,

मैं कभी लौटाऊंगा??

हे माँ तेरे ऋण से कभी,

क्या मैं उऋण हो पाऊंगा!!


जब थी जरूरत तुझको मेरी,

तुझे आश्रमों में रख दिया,

बेटे की इस करतूत का,

वह गरल भी तूने पिया,

इस. पाप का संताप का,

कैसे क्षरण कर पाऊंगा,

हे मां तेरे ऋण से कभी,

क्या मैं उऋण हो पाऊंगा?


तू क्षमा की मूर्ति है मां,

आज मुझको दान दे,

नाम तेरा कर सकूं,

संसार में, वरदान दे

आशीष से तेरे ही मैं,

जग में अमर हो पाऊंगा

हे माँ तेरे ऋण से कभी,

क्या मैं उऋण हो पाऊंगा?