म्यारा डांडा-कांठा की कविता

सर्वाधिकार सुरक्षित © धर्मेन्द्र नेगी

चुराणी, रिखणीखाळ, पौड़ी गढ़वाळ


यूं डांडि - कांठ्यूं तरफां पीठ फरकाण को चान्द

यूं डांडि - कांठ्यूं तरफां पीठ फरकाण को चान्द

ये रौंत्यळ्या मुलुक छोड़ी कखि जाण को चान्द


मजबूरी छुड़ाणी छ अपणूं घौर -गौं -गुठ्यार हमसे

निथर अपणौं से दूर रैकि जिकुड़ि झुराण को चान्द

यूँ हथ्यूं तैं कुछ काम यखि दे देन्दि यखै सरकार त

द्वी रोट्यूं खातिर अपणां पराण सुखाण को चान्द


यख सुखिलु अगास वख फैल्यूं चौछ्वड़ि धुंधकार

ये उदंकार छोड़ी वे धुवांरोळम फफड़ाण को चान्द


सब्बि कुछ त लुछेगे नि रैगे हमुमा अब अपणूं कुछ

रैगेनि बस अंसधरि वूंतै सुदि-मुदि बगाण को चान्द


बडुलि -पराज- खुद सब हमारा बांठा ऐगेनी'धरम'

निथर हौंस-उलार छोड़ी जिकुड़ी झुराण को चान्द