गौं गौं की लोककला

जाजर (पाताल भुवनेश्वर) में गणेश सिंह रावल की बखाई में काष्ठ कला, अलंकरण

सूचना व फोटो आभार: राजेंद्र सिंह रावल , जाजर

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उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 99

जाजर (पाताल भुवनेश्वर) में गणेश सिंह रावल की बखाई में काष्ठ कला, अलंकरण

उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बखाई , मोरी , छाज ) की काष्ठ अंकन लोक कला श्रृंखला - 99

संकलन - भीष्म कुकरेती

जैसे कि ग्रामीण उत्तराखंड भवनों के सर्वेक्षणों व दस्तावेजी करण से साफ़ पता चलता है कि ब्रिटिश शासन में गढ़वाल में तिबारी भवन संस्कृति पली तो कुमाऊं में बखाई संस्कृति जो वास्तव में चंद राजाओं के समय से चली आ रही भवन संस्कृति का दूसरा या समृद्ध रूप है।

आज जाजर में गणेश सिंह रावल के भव्य तिपुर (तल +2 मंजिल) बखाई पर चर्चा की जाएगी। जाजर गाँव पिथौरागढ़ बेरीनाग नाग ब्लॉक में भुवनेश्वर पंचायत का हिस्सा है।

गणेश सिंह रावल की तिपुर शैली की बखाई में विवेचना हेतु हमें पहली मंजिल में तीन बड़ी खोलियों , दूसरी मंजिल में पांच बड़ी खोलियों , दूसरी या सबसे ऊपरी मंजिल में तीन तोरण या मेहराब नुमा खिड़कियों में काष्ठ कला का अध्ययन आवश्यक है। मकान में छज्जा बिलकुल छोताहै जो द्घवाल में छज्जा संस्कृति से बहुत ही छोटा है।

सभी मोरियों में तकरीबन दोनों किनारों के स्तम्भ/सिंगाड़ वास्तव में दो दो नक्कासीदार स्तम्भों के जोड़ से बने हैं। स्तम्भ के आधार में अधोगामी व उर्घ्वगामी कमल पुष्प व डीले हैं जो सुंदर छवि प्रदान करते हैं , आधार के सबसे ऊपर का उर्घ्वगामी कमल दल समाप्त होता है तो स्तम्भ सीधा होकर स्तम्भ शीर्ष या मुरिन्ड से मिल जाते हैं /जाता है। मुरिन्ड या शीर्ष चौकोर कड़ी से निर्मित है। शीर्ष /मुरिन्ड शुरू होने से पहले दोनों ओर के स्तम्भ से मेहराब /arch .तोरण शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के अर्ध तोरण से मिल पूरा तोरण बनता है। तोरण /arch ट्यूड आकृति का है. अधिकतर खोलियों में ऊपर तोरण के विरुद्ध नीचे बिलकुल विरोधी आकृति का तोरण भी उत्कीर्ण हुआ है।

खोली के दरवाजों पर ज्यामितीय अलंकरण ही अंकन हुआ है।

दूसरी मंजिल या सबसे ऊपरी मंजिल में दो प्रकार की खड़कियाँ है एक सबसे ऊपर व दूसरी किस्म की मध्य में। उप्पर की खड़कियाँ चौकोर सामन्य है. मध्य की काष्ठ खिड़कियों में है तो ज्यामिति अलंकरण किन्तु मेहराब बनने से खिड़कियों की सुंदरता ही नहीं बढ़ती अपितु खिड़की के मेहराब मोरियों की सुंदरता में वृद्धिकारक आकृतियां बन जाते हैं।

जाजर के गणेश सिंह रावल की भव्य तिपुर बखाई में खोलियों व मेहराबदार खिड़कियों में ज्यामितीय , प्राकृतिक कला अलंकरण हुआ है किन्तु कहीं भी मानवीय अलंकरण (मानव , पशु , पक्षी या आधात्मिक धमरिक प्रतीक) नहीं दिकता है।

सूचना व फोटो आभार: राजेंद्र सिंह रावल , जाजर

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