कुमाऊं गढ़वाल में जातियों से गाँव - नामकरण नहीं हुए
अपितु गाँवनाम से जाति नामकरण हुआ !
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
बहुत बार चर्चा हटी है कि जो गैर खस गढ़वाल कुमाऊं में बसे उनकी जातियों से गाँव के नाम पड़े या गाँव के नाम से जातियों के नाम पड़े , मेरा विचार है कि स्थल नाम से नाम पड़े। अधिकतर स्थल नाम खस भासा के नाम थे।
इस विचार कि गाँवों के नाम से जातियों के नाम पड़े हमारे पास कुछ ऐतिहासिक प्रमाण हासिल हैं। तालेश्वर (कुमाऊं ) में ताम्र शासन कोप्पर प्लेट्स ग्रांट्स मिले जोहे 645 -725 िश्वि काल का माना गया है। इन ताम्र शाषणों से सिद्ध होता है कि तिमिर युग में उत्तराखंड में पौरव पर्वताकार शासकों ने राज किया (डबराल )
पर्वताकार पौरव काल में जनभाषा देश भाषा संस्कृत नहीं अपितु स्थानीय थी जिसे अपभ्रंस आदि नाम दिया जाता है। पूर्व ताम्र शासनों में उत्तराखंड के पहाड़ी गाँवों के नाम पर बड़ी रोचक जानकारी मिलती है। पूर्व ताम्र शासन में इन नामों को संस्कृत रूप देकर अंकित किया गया है (1, )-
पौरव ताम्र शासन में नाम -----संभावित गाँव या खेत , स्थल नाम , पौरव ताम्र शासन में नाम -----संभावित गाँव या खेत , स्थल नाम,
ये ग्राम नाम वास्तव में स्थानीय नामों को संस्कृत में अनुदित कर उल्लेख किये गए हैं। आज भी लगभग इनमे सभी नाम चले आ रहे हैं। स्थानीय नाम खस भषा या कत्यूरी भाषा से पहले के नाम हैं जैसे थापली /थापळी नाम। थापळी गाँव में बसने से ब्राह्मणों या राजपूतों में थपलियाल जाति नाम ने जन्म लिया। सेम गाँव में बसने से सेमवाल जाति की उतपति हुयी। डोभ /डोभा गाँव में बसने वाले डोभाल कहलाये गए। जब ये गाँव जिनमे बसने से जाति बनीं तो सिद्ध होता है कि 1200 सदी के पश्चात जो भी बसे उनके बसने से पहले स्थान या गाँव नाम विद्यमान थे और बसने वालों ने अपनी जाति उस स्थल के नाम से निर्मित कर ली या अन्य लोगों ने गाँव के आगे वाळ /याल (वाले ) लगाकर इन लोगों को पुकारना शुरू किया। व्यक्ति या परिवार वसने से जाति के नाम पड़ने का हमारे पास कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते हैं हाँ बाद में ऐसा हुआ है जैसे जुयालों के बसने डबराल स्यूं में जियाळ गाँव या डोबरियालों के बसने से स्थल का नाम ड्वाबर अवश्य पड़े हैं किन्तु पहले जाति नाम पd गया था।
सन्दर्भ :
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