जाजर (पातालभुवनेश्वर ) में रावल बंधुओं की बखाई की मोरी में काष्ठ कला व अलंकरण
जाजर में बखाई काष्ठ कला व लंकरण - 1
पिथौरागढ़ में भवन (बखाई , मोरी छाज ) काष्ठ कला व अलंकरण -1
कुमाऊं संदर्भ में उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बखाई , मोरी , छाज ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) श्रृंखला
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उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाई , मोरी , छाज ) काष्ठ अंकन लोक कला ( बखाई अंकन ) श्रृंखला - 81
संकलन - भीष्म कुकरेती
जाजर पातालभुवनेश्वर (प्रसिद्ध मन्दिर क्षेत्र ) क्षेत्र का रावलों का मुख्य गाँव है। जाजर से अभी तक दो बखाईयों की सूचना मिली है। सम्प्रति बखाई रावल बंधुओं की बखाई है। यह बखाई ढैपुर शैली की है याने पहली मंजिल के ऊपर छोटी मंजिल भी है। बखाई में सात से अधिक कमरे तल मंजिल पर हैं , पहली मंजिल पर हैं व ढैपुर में कई खिड़किया हैं।
भवन काष्ठ कला संदर्भ में प्रस्तुत पहली मंजिल में दरवाजों /छाज /मोरी में कला विवेचना की जाएगी। छाज /मोरी /दरवाजे के दोनों ओर चिपके दो स्तम्भ हैं व स्तम्भों के आधार में में कुम्भी , तीन कमल दल , दो डीले आधार सीधे मोरी के शीर्ष या मुरिन्ड से मिल जाते हैं। इस बेच स्तम्भ कड़ी /shaft of main column में कोई कला उत्कीर्णित नहीं होती दिखाई देता है। शाफ़्ट के मुरिन्ड /शीर्ष से मिलने से पहले आंतरिक शाफ़्ट या स्तम्भों से तोरण पट्टिका निकलते हैं जो आकर्षक मेहराब बनाने में सफल हुए हैं। मेहराब /arch /चाप /तोरण पर कोई प्राकृतिक या मानवीय कला उत्कीर्ण नहीं हुयी है। केवल तिपत्ति आकार से ही सुंदरता आयी है। दरवाजों पर ज्यामितीय कला उत्कीर्ण हुयी है। मोरी के अधहार पर स्तम्भों को मिलाने वाली पट्टिका है जिस पर जंगल /रेलिंग हैं। जंगले पर भी ज्यामितीय कला उत्कीर्णित हुयी है। तीन इस प्रकार के छाजों , मोरियों में ही ऐसी नक्कासी हुयी दिखती हैं।
छत आधार व छपरिका आधार पट्टिका लकड़ी के दासों /टोड़ी पर टिके हैं। पहले मंजिल के दासों की अग्र घुण्डिका के कारण दास आकर्षक छवि देते हैं व मकान को अतिरिक्त आकर्षण देने में सफल हैं।
निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि बखाई के पहली मंजिल में मुख्य मोरी में सुंदर नक्कासी हुयी व ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण हुआ व कहीं भी मानवीय ( पशु , मनुष्य , पक्षी अथवा देव देवी आकर ) नहीं दीखते हैं।
सूचना व फोटो आभार - राजेंद्र रावल जाजर
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