बगोरी (नेलंग घाटी ) के भवन संख्या 2 में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 155संकलन - भीष्म कुकरेती
बगोरी नेलंग घाटी (भटवाडी, उत्तरकाशी ) का एक प्रमुख गाँव है I बगोरी की एक तिबारी की काष्ठ कला के बारे में चर्चा हो चुकी है I. आज एक अन्य प्रकार के भवन जिसे बगोरी मकान संख्या 2 नाम दिया गया के बारे में चर्चा की जाएगी I
बगोरी भवन संख्या 2 व अन्य भवनों के अध्यन स एसाफ पता चलता है कि बगोरी में भवन के तल मंजिलके अल्नक्र्ण पर इतना ध्यान नहिदिया जाता है व भवन तल मंजिल का उपयोग गौशाला या भंडार हेतु किया जाता था I अब कुछ मकानों में तल मंजिल का उपयोग गैरेज या बगोरी के भारत वासियों के प्रवेश खुल जाने के बाद दुकानों के लिए किया जाने लगा हैI स्नभ्व्त्य शीत ऋतू समय ग्राम वासी जब नीचे स्थान्तरित होते होंगे तो बर्फ पडती होगी व आंगन या तल मंजिल में कीचड़ हो जाति होगी और इस वजह से तल मंजिल उपयोग नही होता होगा . यही शैली अति शीत क्षेत्र मलारी , गमशाली (नीति घाटी , चमोली ) के मकानों में भी दिखी कि तल मंजिल में कोई विशेष अलंकरण नही होता है I
प्रस्तुत बगोरी भवन संख्या 2 ढाईपुर शैली का है व में तल मंजिल में कमरों के तीन बड़े दरवाजे हैं जो सपाट तख्तों या पटिलों से निर्मित हैं I उपरी मंजिल में जाने के लिए प्रवेश द्वार दूसरी ओर है I पहली मंजिल व ढाइवां मंजिलें तल मंजिल की पूरी लकड़ी के छत पर टिकी है पहली मंजिल पर एक बड़ा बरामदा है जिसे लकड़ी के रंदा लगे तख्तों /पटिलों से ढका गया है I लम्बे काष्ठ तख्तों से ढके बरामदे .में दो चौखट मोरी (खिड़कियाँ या झरोखे ) हैं I ढाइवां तल पहली मंजिल की लकड़ी की छत पर टिका है I ढाइवां तल के बरामदे को नही ढका ग्या है I
छत तीखी ढलवां है व लकड़ी की ही बनी है I अति शीत क्षेत्र में तीखी ढलवां छत निर्माण भी जलवायु के कर्ण बनाई जाती हैं जिससे बर्फ पिघलकर सीधे नीचे गिर जाय I यही तीखे ढलवां लकड़ी की छत शैली जौनसार, उत्तरकाशी के अन्य अति शीत क्षेत्र व चमोली के अति शीत क्षेत्रों के मकानों जैसे गमशाली व मलारी के गाँवों में देखने को मिला है I
प्रस्तुत बगोरी भवन संख्या 2 में लकड़ी के पटिलों या कड़ीयों , बौळइयों में सपाट ज्यामितीय कटान हुआ है कहीं भी कोई अन्य प्रकार का अल्नक्र्ण अंकन नहीं दीखता है प्रस्तुत बगोरी भवन संख्या 2 में ना ही कोई धार्मिक प्रतीक अंकन हुआ या थरपण /थोपना हुआ है I
----- फोटो में आस- पास के बगोरी के भवनों की काष्ठ शैली दशा ------------
प्राप्त फोटो में बगोरी री ( भटवाड़ी, उत्तरकाशी ) के दो अन्य मकानों का सूत भेद भी मिल जाता है I एक मकान जो प्रस्तुत बगोरी भवन संख्या 2 से बिलकुल सटा है वह दुपुर है , तल मंजिल खाली है व पहली मंजिल के बरामदे ढकने हेतु चार स्तम्भ स्थापित हैं जिनके बीच के दो ख्वाळओं में आधा आधे ऊँचाई तक तख्तों से ढका है व एक ख्वाळ खुला है शायद दरवाजे हेतु उपयोग होता होगा I ढाई पुर की छत से बेच मुंडळ से एक अनपहचानी लकड़ी की ज्यामितीय आकृति लटकी है पर साफ़ है कि यह कोई हिन्दू धर्म का प्रतीक तो नही है I संभवतया यह त्कींक का एक उपकरण है जो छत के दो भागों को बंधने या साधने का काम आता हो I
इस मकान में भी कोई विशेष अलंकरण देखने को नही मिलता है है ना ही कोई धार्मिक प्रतीक या चिन्ह मकान पर मिलते हैं I . इसी दूसरे मकान के बगल में एक और मकान जो छाया में ढका हुआ है में भी लगता है पहली मंजिल में स्थित बरामदे को बिन नक्कासी के लकड़ी के तख्तों /पटिलों से ढक दिया गया है I.
प्रस्तुत फोटो में बगोरी भवन संख्या 2 के बगल में रस्ते के बगल में एक और दुपुर भवन है जिसकी दीवारें सीमेंट की हैं किन्तु सामने का छोर व बगल का छोर प्रस्तुत बगोरी भवन संख्या 2 की ही नकल है याने तल मंजिल में बड़े बड़े तख्तों के दरवाजे हैं व तख्तों में कोई नक्कासी नही है I इस मकान के पहली मंजिल के बरामदे को दो ओर से तख्तों से ढका गया है I इन तख्तों पर भी कोई नक्कासी नही दिखती है बिलकुल सपाट ! इस भवन में भी कोई धार्मिक प्रतीक चिन्ह खुदा या लटका नही मिला /दिखा I
बगारी के इन चार भवनों में लकड़ी उपयोग से साफ़ पता चलता है कि इस प्रकार के भवनों में सपाट तख्तों का उपयोग खूब होता है /था व विशेष नक्कासी देखने को नही मिलती है यहाँ तक कि धार्मिक प्रतीक भी देखने को नही मिले हैं I
सूचना व फोटो आभार :वर्षा नरेश
यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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