व्यासचट्टी (बणेलस्यूं ) में बाबा कमली वाले की धमर्शाला में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी
गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 152
संकलन - भीष्म कुकरेती -
व्यासचट्टी पूड़ी गढ़वाल में नयार व गंगा नदियों के संगम पर बसा है व बणेलस्यूं , मन्यार स्यूं व ढांगू पट्टियों का संगम स्थल भी व्यासचट्टी है। कहा जाता है कि यहां ऋषि व्यास ने तपस्या की थी (सम्भवतया माणा वाले व्यास ऋषि का सर्दियों का वस् स्थान रहा हो ) .
सदियों से संगम होने के कारण देश भर के यात्रिओं व निकटवर्ती भक्तों के लिए व्यास चट्टी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल रहा है। ब्रिटिश काल में ही स्वर्गाश्रम के बाबा कमली वाले संस्थान ने ऋषिकेश बद्रीनाथ मार्ग पर कई चट्टियों में धर्मशालाएं निर्मित की थी व बहुत सी चट्टियों में निशुक्ल आयुर्वेद चिकित्सालय खोले थे। व्यास चट्टी में भी बाबा कमली वाओं ने उस समय के हिसाब से बड़ी धर्मशाला निर्मित की थी। संभवत: प्रस्तुत धर्मशाला 1937 के आस पास इस धर्मशाला का निर्माण हुआ होगा। आज यह धर्मशाला भग्नावेश नहीं अपितु ध्वस्त हो चुकी है।
धर्मशाला दुपुर है व् दुखंड /तिभित्या है (एक कमरा अंदर व एक कमरा बाहर ) . इस धर्मशला में बाहर तल मंजिल व पहली मंजिल में दो दो बरामदे थे पहली मंजिल के बरामदे में जाने के लिए खोली थी। बरामदे के एंड वाले भाग में कमरे हैंथे . यहलेखक बचपन में दो बार इस धर्मशाला में बिखोत / बैशाखी मेले में रात गुजार चुका है।
धर्मशाला निमदारी नुमा है व भवन निर्माण में आधुनिक शैली भी अपनायी गयी है। निमदारी पहली मंजिल के दोनों बरामदे में लगी है। बरामदे या पहली मंजिल तल मंजिलमे कड़े बड़े बड़े पिल्लरों के ऊपर बौळी व कड़ियों रख कर निर्मित हुए हैं। निमदारी के स्तम्भ लकड़ी के मजबूत कड़ी के ऊपर सज्जित हैं। प्रत्येक बरामदे में चौदह चौदह स्तम्भ है जो आधार कड़ी पर खड़े हैं व ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड की कड़ी से मिल जाते हैं व मुरिन्ड कड़ी छत आधार पट्टिका के नीचे है।
स्तम्भों के आधार से ढाई फिट ऊंचाई पर लकड़ी की रेलिंग है जिस पर लकड़ी के जंगल हैं उन पर त्रिभुजकर पट्टिकाएं लगिहैं।
स्तम्भ व दरवाजों में जायमितीय अलंकरण कुरेदा गया है। प्राकृतिक व मानवीय अलकंरण कहीं भी नहीं दीखता है या आभास भी नहीं हो रहा है।
व्यास चट्टी के बाबा काली कमली वाली की धर्मशाला का निम दारी भवन शैली व कल दृष्टि से इसलिए महत्व है कि बाबा कमली वाले की धर्मशाला की निमदारी बता सकने में सफल होगी कि कब और कैसे निम दारी शैली दक्षिण गढ़वाल में फैली। 1937 के लगभग की निम दरी क्षेत्र में भवन निर्माण व काष्ठ कला का इतिहास समझने में भी पेश करेगी।
निष्कर्ष है कि बाबा कमली वाले की व्यासचट्टी में धर्मशाला में केवल ज्यामितीय अलंकरण हुआ है।
सूचना व फोटो आभार : कमल जखमोला
यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020