तिमली (डबरालस्यूं ) में टेकराम डबराल के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला व अलंकरण
गढ़वाल, कुमाऊं , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बखाई , मोरियों , खोलियों, काठ बुलन, छाज ) काष्ठ अंकन - 113
(कला अलंकरण पर केंद्रित )
संकलन - भीष्म कुकरेती
वास्तव में कभी तिमली डाबर का ही हिस्सा था। तिमली सारे अडगईं (क्षेत्र ) में संस्कृत शिक्षा के लिए प्रसिद्ध रहा है। विख्यात संस्कृत लेख सदा नंद डबराल, मेधावी व्यास व लेखक विद्या दत्त डबराल, प्रखर व्यास वाणी विलास डबराल , पार्थ सारथि डबराल , अशोक डबराल आदि सबकी जन्म भूमि तिमली रही है। ज्पुर की ओर तिमली का अर्थ संस्कृत की पढ़ाई व बासणेश्वर महादेव। एक कहावत है कि "तिमलीक गौर बछर बि संस्कृत बुल्दन"। विशेष कारण है कि तिमली में 1882 में संस्कृत पाठशाला स्थापित होना. श्री तिमली संस्कृत पाठशाला को स्थापित करने में बद्री दत्त डबराल , दामोदर प्रसाद डबराल ,राय बहदुर कुला नंद बड़थ्वाल , भीम सिंह बिष्ट व् थोकदार माधो सिंह का हाथ है।
पकांड , प्रखर विद्वानों के इस गाँव में समृद्धि के चिन्ह कलयुक्त मकानों की सूचना मिली है , अधिकतर पलायन जनित कारणों से जीर्ण शीर्ण अवस्था में ही हैं।
उत्तराखंड में मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण शृंखला में आज तिमली में टेकराम डबराल के बड़े जंगलेदार मकान में काष्ठ कला का अध्ययन करेंगे।
बहुत से विद्वजनों ने प्रश्न उठाया कि भव्य तिबारियों के साथ जंगलेदार मकान को लेना तर्क संगत नहीं है। मेरा कहना है जनलेदार मकानों में भी तो काष्ठ कला उपयोग होती ही है। यदि यह कला इतनी सरल थी तो क्यों नहीं आज जंगलेदार कूड़ बनते हैं ?
टेकराम डबराल का जंगलेदार दुपुर मकान भव्य है व दुखंड /तिभित्या मकान है। टेकराम डबराल के जंगलेदार मकान में पहली मंजिल पर काष्ठ जंगला बंधा है। पत्थर के छज्जे के आगे लकड़ी का छज्जा बढ़कर उस अतिरिक्त छज्जे के ऊपर जंगले के स्तम्भ स्थापित किये गए हैं। लगता है जंगला मकान के चरों ओर है।
सामने व बगल में कुल बीस काष्ठ स्तम्भ है जो छज्जा कड़ी से ऊपर छत आधार कड़ी से मिलते हैं।
स्तम्भों के आधार पर दो ढाई फ़ीट तक स्तम्भ के तरफ काष्ठ पट्टिका लगाए गए हैं व इससे स्तम्वभ मोटा दीखते हैं
बाकी स्तम्भों , कड़ियों , दासों (टोड़ी ) में ज्यामितीय कला अलंकार छोड़ कोई प्राकृतिक या मानवीय अलंकरण नहीं अंकित हुआ है।
टेकराम डबराल के मकान में काष्ठ ला जटिल न हो केवल ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं और मकान भव्य है जिसकी प्रसिद्धि सारे निकटवर्ती क्षेत्र जैसे ढांगू , उदयपुर अजमेर में फैली थी।
सूचना व फोटो आभार : जग प्रसिद्ध सांस्कृतिक फोटोग्राफर बिक्रम तिवारी
* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर के लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .
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