गढ़वाली कविता
कानों मा झुमकी ,नाक मा नथुली
गला गुलुबंदा सजै आ
माथा कि बिंदुली क्या बोल्नी छुचि
अप्डी जिकुड़िळ मेर जिकुड़ि मां
अपरी सरया माया भोरे जा
हमारी संस्कृति हमारी पहचान
जय हो देवभूमि उत्तराखंड
बालकृष्ण डी ध्यानी