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ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
-ve Energy and Carbon footprint based energy source/generator
Climate Change and Global Warming - Current Status (हिन्दी में भी)
How to use Li-ion battery optimally in mobile & Electric Vehicle
Thanks Google, for Hindi/Indic languages OCR (Optical Character Recognition) help
अपने अंग अवयवों से
आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
आसान, प्रभावी-लाभदायक जैविक कृषि के लिए राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र का उत्पाद—वेस्ट डिकम्पोजर
इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १
इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २
ऋषि युग्म की झलक-झाँकी
क्या है? और क्या, क्यों, कैसे, कहाँ, कब करें?
गायत्री मंत्र कैसे जपें?
घर-घर हो यज्ञ भगवान की प्रतिष्ठापना
जीवन देवता की साधना-आराधना
जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
दीक्षा और उसका स्वरूप
दीक्षा ली है तो --हमारे जीवन से कुछ सीखें
नवयुग का मत्स्यावतार
नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
पंचकोश जागरण की ध्यान धारणा
परम पूज्य गुरुदेव की अपने अंग अवयवों से अपेक्षा
परिवर्तन के महान् क्षण
पू० गुरुदेव के प्रवचन
प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
महाकाल के तेवर समझें, दण्ड के नहीं-पारितोषिक के पात्र बनें
महिला जागृति अभियान
मेरा चौथा स्थान उगता हुआ सूर्य होगा
युग की माँग प्रतिभा परिष्कार
युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १
युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २
युग निर्माण योजना - एक दृष्टि में
विचार क्रान्ति के बीजों से क्रांति की केसरिया फसल लहलहा उठे
शिक्षा ही नहीं विद्या भी
संजीवनी विद्या - एक विनम्र प्रयास
क्या है- क्या, क्यों चाहिए
समझदारी
संजीवनी विद्या का विस्तार
सतयुग की वापसी - (क्रान्तिधर्मी साहित्य पुस्तकमाला - 05)
विचार क्रान्ति के बीजों से क्रांति की केसरिया फसल लहलहा उठे
समयदान ही युग धर्म
समस्याएँ आज की समाधान कल के
स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
हमारा जीवन कैसा हो?
हमारी वसीयत और विरासत
प्रवचन पूज्य गुरुदेव
अध्यात्म एक नगद धर्म
अध्यात्म एक प्रकार का समर
अध्यात्म का पहला पाठ — कर्मयोग
अध्यात्म का मर्म समझने हेतु बालिग बनिए
अध्यात्म का मर्म समझने हेतु बालिग बनिए
अध्यात्म का मर्म समझें
अध्यात्म का वास्तविक स्वरूप
अध्यात्म की असली शिक्षा — उपासना, साधना और आराधना
अध्यात्म की तीन शिक्षाएँ
अध्यात्म की वास्तविक सम्पदाएँ
अध्यात्म के सही मर्म को समझें
अध्यात्म के सही स्वरूप का पुनर्जागरण
अध्यात्म को जीवंत बनाएँ
अध्यात्म साधना का मर्म
अध्यात्म—अंतरंगका परिष्कार
अनुग्रह के लिए अन्तराल का सुविकसित होना आवश्यक
अनुदान की तीन शर्तें-तीन कसौटियाँ
अन्तर की हूक को ही अवतार कहते हैं
अपने ब्राह्मण एवं संत को जिन्दा कीजिए
अपने व्यक्तित्व को बदलिये
अभिभावक हैं तो उत्तरदायित्व भी निभाइए
आ रहा है युगावतार, प्रज्ञावतार
आज के प्रज्ञावतार की, युग-देवता की अपील
आत्मदेव की साधना-आराधना
आत्मबल सम्पादन ही सर्वोपरि लक्ष्य हो
आत्मविकास के चार चरण
आत्मा की भूख : उपासना
आत्मावलोकन का सरल उपाय—एकान्तवास
आत्मिक उन्नति का राजमार्ग—विद्या
आत्मिक उन्नति के चार चरण—साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा
आत्मिक प्रगति का ककहरा
आत्मोन्नति के चार आधार
आध्यात्मिक उत्कर्ष के सोपान — योग और तप
आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि-विधान
आध्यात्मिक कायाकल्प के मूलभूत सिद्धान्त
आध्यात्मिक जीवन में पात्रता की अनिवार्यता
आध्यात्मिक शिक्षण क्या है?
आध्यात्मिक सिद्धान्तों को आत्मसात् करना ही जीवन का लक्ष्य हो
आध्यात्मिकता का आधार—पारिवारिकता
आध्यात्मिकता की सच्ची कसौटी
आध्यात्मिकता के मूल सिद्धांत
आन्तरिक अमीरी ही वास्तविक सम्पन्नता है
आप अपने आपको पहचान लीजिये कि आप सामान्य आदमी नहीं हैं, असामान्य हैं
आपका विवाह हम भगवान् से कराना चाहते हैं
आपत्तिकाल का अध्यात्म
आपत्तिकाल का अध्यात्म
आपत्तिकाल में मोहग्रस्त बने न रहें
आस्तिकता का प्राण है-श्रद्धा
इन्सान के अंदर का भगवान् जगाएँगी प्रतिभावान विभूतियाँ
उपासना का महत्त्व
उपासना की सफलता साधना पर निर्भर
उपासना की सफलता साधना पर निर्भर
उपासना फलदायी कैसे बने?
उपासना, साधना व आराधना
उपासना, साधना, आराधना का त्रिवेणी संगम
उपासना, साधना, आराधना का त्रिवेणी संगम
ऋतम्भरा-प्रज्ञा का अवतरण
एक विशेष समय
ऐसे होगी युग निर्माण के लक्ष्य की पूर्ति
ओजस्वी, तेजस्वी एवं मनस्वी व्यक्तित्वों का निर्माण
करिष्ये वचनम् तव
कर्तव्यपालन ही है सच्चा कर्मयोग
कर्मकाण्ड की प्रेरणाओं में छिपा अध्यात्म
कर्मकाण्ड नहीं, भावना प्रधान
कर्मकाण्ड में छिपा व्यक्तित्व निर्माण का शिक्षण
कल्प साधना का उद्देश्य और स्वरूप
आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि-विधान
आध्यात्मिक कायाकल्प की साधना का तत्त्वदर्शन
कल्प-साधना और उसकी तात्त्विक विवेचना
कल्प-साधना और उसकी तात्त्विक विवेचना
कायाकल्प का मर्म और दर्शन
कालनेमि की माया से बचें
कैसे करें कायाकल्प?
कैसे प्राणवान बने साधना?
कैसे विकसित हो आदर्श परिवार
कैसे हो आध्यात्मिक कायाकल्प?
कैसे होगा समन्वय, विज्ञान और अध्यात्म का?
क्षुद्रता छोड़ें, महानता के पथ पर चलें
खिलौनों ने अध्यात्म का सत्यानाश कर दिया
गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
गायत्री उपासना का स्वरूप
गायत्री उपासना की सफलता की तीन शर्तें
गायत्री उपासना की सफलता के आधारभूत तथ्य
गायत्री उपासना सफल एवं सार्थक कैसे बने?
गायत्री और यज्ञ का दर्शन मानव मात्र के लिए
गायत्री की पंचकोशी साधना
गायत्री की युगान्तरीय चेतना
गायत्री परिवार का उद्देश्य — पीड़ा और पतन का निवारण
गायत्री महामंत्र की महत्ता
गायत्री महामंत्र की सामर्थ्य
गायत्री महाविद्या की उच्चस्तरीय साधना
गायत्री महाशक्ति की महान फलश्रुतियाँ
गायत्री साधना की उपलब्धियाँ
गायत्री ही कामधेनु है
गुणों का परिष्कार ही सच्ची भक्ति
गुरु को वरण करके तो देखिए
गुरु दक्षिणा चुकाएँ-समयदान करें
गुरुतत्त्व की गरिमा और महिमा
गुरुसत्ता के महाप्रयाण के बाद मातृसत्ता का संदेश
चिंतन का महत्त्व और स्वरूप
चिंतन-चरित्र को ऊँचा बनाएँ
चेतना का परिष्कार—अध्यात्म
जनमानस का परिष्कार धर्मतंत्र के मंच से
जन्मदिन का महत्त्व
जप का ज्ञान और विज्ञान
जाग्रत आत्माओं को हमारे अजस्र अनुदान
जीवंत विभूतियों से भावभरी अपेक्षाएँ
जीवंत विभूतियों से भावभरी अपेक्षाएँ
जीवन के कायाकल्प हेतु स्वर्णिम सूत्र
जीवन के देवता को आओ तनिक सँवारें
जीवन कैसे जीयें?
जीवन कैसे सँवारें
जीवन को धन्य बनाने का महानतम अवसर
जीवन साधना करें, देवता बनें
जीवन साधना का मर्म है भक्ति, समझें उसका व्यापक रूप
जीवन साधना बनाम दिव्यता की खेती
जीवन-साधना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी
जीवन-साधना के स्वर्णिम सूत्र
ज्ञान सम्पदा
ज्ञानयोग का तत्त्वदर्शन
तप और योग के मार्मिक पक्ष
तप से मिलती हैं सिद्धियाँ
तपकर कुन्दन बनने की प्रक्रिया
तपस्वी जीवन और उसके मूलभूत सिद्धान्त
तीन शक्तियाँ—तीन सिद्धियाँ
तीर्थयात्रा बनाम प्रायश्चित प्रक्रिया
तीर्थसेवन का महत्त्व और प्रयोजन
त्याग और समर्पण
त्याग-बलिदान की संस्कृति - देवसंस्कृति
त्रिपदा गायत्री के तीन चरण
दीक्षा और उसका स्वरूप
दुर्गति और सद्गति का कारण हम स्वयं
दृष्टिकोण-परिवर्तन ही वास्तविक कायाकल्प
देव शक्तियों का पूजन कैसे करें?
देव संस्कृति — त्याग और बलिदान की
देव-संस्कृति का बीज मंत्र—गायत्री महामंत्र
देवता बनिये, स्वर्ग में रहिये
देवता हमें क्या दे सकते हैं?
देवताओं के वरदान—सत्प्रवृत्तियाँ
देवत्व का स्वरूप
देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें
देवपूजन का मर्म
देवात्मा हिमालय एवं ऋषि परंपरा
देवात्मा हिमालय एवं ऋषि-परम्परा
दैवीय सभ्यता का विस्तार करें
धर्म मंच से लोकशिक्षण
धर्मग्रंथ हमें क्या शिक्षण देते हैं, यह जानें
धर्मतंत्र का दुरुपयोग रुके
धर्मतंत्र का परिष्कार अत्यंत अनिवार्य
धर्मतंत्र का परिष्कार अत्यंत अनिवार्य
धर्मतंत्र का परिष्कार अत्यंत अनिवार्य
धर्मतंत्र की गरिमा एवं महत्ता
धर्मतंत्र की गरिमा एवं महत्ता - (हम राजनीति में क्यों नहीं जाते?)
धर्मतंत्र द्वारा लोकशिक्षण
ध्यान का दार्शनिक पक्ष
ध्यान का दार्शनिक पक्ष
ध्यान क्यों करें? कैसे करें?
ध्यान-धारणा की दिव्य-शक्ति
ध्यानयोग का व्यावहारिक क्रियापक्ष
नकद धर्म है अध्यात्म
नया इनसान बनायेंगे, नया जमाना लायेंगे
नया व्यक्ति बनेगा, नया युग आएगा
नया समय, नया काम और नई जिम्मेदारियाँ
नवरात्रि साधना का तत्त्वदर्शन
नारी अपनी गरिमा को जाने और आगे बढ़े
पंचकोशों का अनावरण
परमार्थ में ही छिपा है सच्चा स्वार्थ
परमार्थपरायण बनें—दैवी अनुग्रह पाएँ
परिष्कृत अध्यात्म हमारे जीवन में उतरे
परिष्कृत मनःस्थिति ही स्वर्ग है
पारस को छूकर सोना बनने का तरीका
पूजा-उपासना के मर्म
पूजा-उपासना के लाभ
पूज्यवर की अमृतवाणी - १
प्रज्ञायोग की साधना
प्रज्ञायोग की सुगम साधना
प्रज्ञावतार की सत्ता का आश्वासन
प्रतीक पूजा के पीछे छिपे संकेत और शिक्षाएँ
प्रतीक पूजा के पीछे छिपे संकेत और शिक्षाएँ
प्रायश्चित क्यों? कैसे?
फिजाँ बदल देती है-अवतार की आँधी
बच्चों के व्यक्तित्व का विकास
बलिहारी गुरु आपकी जिन गोविंद दियो मिलाय
बहुदेववाद को समझें, भ्रम-जंजाल में न उलझें
बिना शर्त अनुदान नहीं
बोना और काटना
बोया-काटा का अकाट्य सिद्धान्त
ब्रह्मतेजस् के अभिवर्द्धन हेतु गायत्री उपासना
ब्रह्मवर्चस कैसे जगाती है गायत्री?
ब्रह्मवर्चस् अर्जन की साधना व उसका मर्म
भक्ति का वास्तविक तात्पर्य समझें
भक्ति संबंधी भ्रांतियाँ एवं उसका सच्चा विज्ञान
भक्ति—एक दर्शन, एक विज्ञान
भगवान का काम करने का यही समय
भगवान का काम, घाटे का सौदा नहीं
भगवान की पूँजी में हिस्सेदार बनें
भगवान के अनुदान किन शर्तों पर
भगवान के साथ साझेदारी घाटे का सौदा नहीं
भगवान को मत बहकाइए
भगवान शंकर क्या हैं?
भगवान शिव और उनका तत्त्वदर्शन
भगवान् के अनुदान किन शर्तों पर मिलते हैं
भज सेवायाम् ही है भक्ति
भारतीय संस्कृति का मूल—गायत्री महामंत्र
भारतीय संस्कृति का मूल—गायत्री महामंत्र
भारतीय संस्कृति के निर्माता—यज्ञ पिता, गायत्री माता
भारतीय संस्कृति के प्रतीक—शिखा और सूत्र
भाव-संवेदना का विकास करना ही साधुता है
भावी महाभारत - तीनों मोर्चे खुले
मंत्र बनाम उच्चारण
मन को भगवान के साथ जोड़िए
मनन का महत्त्व और स्वरूप
मनुज देवता बने
मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान
मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान
मनुष्य एक भटका हुआ देवता
मनुष्य के मूल्यांकन का आधार—आध्यात्मिकता
मनुष्य में देवत्व का उदय
मनुष्य शरीर की वास्तविक संपदाएँ
महाकाल का शंख बज गया, समय बदलने वाला है
महाकाल की पुकार अनसुनी न करें, युग-परिवर्तन की पूर्व वेला एवं सन्धिकाल
महाकाल की पुकार सुनें और जीवन को धन्य बनाएँ
महाकाल के सहभागी बनें
महायज्ञों का स्वरूप व उद्देश्य
मानव जीवन की गौरव गरिमा
मानव जीवन की गौरव गरिमा
मानव में देवत्व ऐसे उभरेगा
मेरा जीवन अखण्ड दीपक
मो को कहाँ ढूँढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास रे
यज्ञ का ज्ञान और विज्ञान
यज्ञ का तत्त्वदर्शन
यज्ञ का तत्त्वदर्शन
यज्ञाग्नि हमारी पुरोहित
यज्ञों से सूक्ष्म वातावरण का संशोधन एवं जनमानस का परिष्कार
यदि हो जाए ईश्वर के साथ साझेदारी
यह चिनगारी दावानल बनेगी
युग के देवता की अपील अनसुनी न करें
युग परिवर्तन
युग परिवर्तन और ज्ञानयज्ञ
युग शक्ति का अवतरण
युग-परिवर्तन की पूर्व वेला एवं सन्धिकाल
युग-परिवर्तन के ऐतिहासिक समय में हमारे दायित्व
युग-परिवर्तनकारी महाक्रान्ति में सहभागी बनें
युग-मनीषा जागे, तो क्रान्ति हो
युग-साधना में भागीदारी की दावत
युगनिर्माण योजना और उसके भावी कार्यक्रम
युगशोधन हेतु मनीषा को आमंत्रण
युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
युगसन्धि की वेला व हमारे दायित्व
राम का नाम ही नहीं, काम भी
लोक-शिक्षकों के जीवन का लक्ष्य एवं उद्देश्य
लोकमानस का आध्यात्मिक प्रशिक्षण
लोकसेवा की प्रवृत्तियों के केंद्र हों मंदिर
वातावरण-परिशोधन हेतु युगशिल्पियों का दायित्व
वासन्ती हूक, उमंग और उल्लास यदि आ जाए जीवन में
विचार-क्रांति ही एकमात्र उपचार
विचार-क्रांति ही एकमेव उपचार
विज्ञानमयकोश की साधना—करुणा का जागरण
विधा को समझें, विधि में न उलझें
विधि नहीं, विधा समझें
विधेयात्मक चिंतन- प्रगति का द्वार
विशिष्ट समय को समझें, अपनी रीति-नीति बदलें
विशिष्ठ वेला में विशिष्ट साधना
विश्ववारा देव संस्कृति
विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी
व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण और समाज निर्माण
शक्ति के भंडार से स्वयं को जोड़ें
शक्ति भण्डार के साथ जुड़ें
शक्तिपात एवं कुण्डलिनी जागरण का तत्त्वदर्शन
शिक्षा व्यवस्था कैसी हो?
श्रद्धा, सिद्धान्तों के प्रति हो
श्रावणी पर्व 85 पर कार्यकर्ताओं की रीति-नीति
श्रावणी पर्व पर प्रज्ञा परिजनों के नाम संदेश
संकल्प जगायें-ऊँचे उठें
संकल्पवान्-व्रतशील बनें
संकल्पशक्ति की महिमा एवं गरिमा
संक्रांतिकाल में परिजनों से विशेष अपेक्षाएँ
संजीवनी विद्या बनाम जीवन जीने की कला
संभवामि युगे-युगे
संस्कृति का वैभव पुनः लौटेगा
संस्कृति की अवज्ञा महँगी पड़ेगी
संस्कृति की सीता को वापस लाएँ
सच्चा अध्यात्म आखिर है क्या?
सच्ची आध्यात्मिकता
समग्र जीवन के सुदृढ़ आधार—योग एवं तप
समझें देववाद का मर्म एवं लें उनसे शिक्षण
समयदान का महत्त्व
समस्त सिद्धियों का आधार तप
समाज निर्माण की प्रयोगशाला है परिवार
समाज निर्माण की प्रयोगशाला है परिवार
सही अध्यात्म जीवन में आ जाए तो गजब ढा दे
साकार और निराकार ध्यान
साधक कैसे बनें?
साधना में प्राण आ जाए तो कमाल हो जाए
साधना में वातावरण और श्रद्धा की महत्ता
साधना में श्रद्धा की महत्ता और वातावरण की उपयोगिता
साधना से सिद्धि
सामाजिक क्रान्ति
सुर दुर्लभ है यह मनुष्य का जीवन
सुसंस्कारी बनाए, कैसी हो वह शिक्षा?
सूक्ष्मजगत के परिशोधन हेतु गायत्री-साधना के विशेष प्रयोग
सूक्ष्मीकरण के बाद का ऐतिहासिक वसन्त
सृजनसैनिकों को दिशा-निर्देश
सेवा-साधना
सेवा-साधना
स्वयं को ऊँचा उठाएँ—व्यक्तित्ववान बनें
स्वयं को ऊँचा उठायें - व्यक्तित्ववान बनें
हंस बनिये
हम ईमान सिखाते हैं
हमारा कुटुम्ब, तब और अब
हमारी अंतश्चेतना ही वास्तविक गायत्री
हमारी यज्ञीय परम्परा
हमारी स्वयं की गायत्री उपासना कैसे फली?
हर घर बने देव मंदिर और ज्ञान मंदिर
हर दिन नया जन्म, हर दिन नई मौत
हिमालय का अज्ञातवास एवं हमारी तपश्चर्या
हेमाद्रि संकल्प और उससे जुड़े अनुशासन
An revolutionary product of NCOF, India for "100% Organic Farming" throughout the world
क्रान्तिधर्मी साहित्य पुस्तकमाला
The Great Moments of Change
The Revival of Satyug - Towards a bright future
गीत वं० माताजी
अक्षय कोष मिला जब मैंने, अपना सारा कोष लुटाया
अगर चाहते हो निज रक्षा
अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण-गान करो
अन्तर के निर्मल प्यार हो तुम
मन मैला ही रहा अगर तो
अन्तर के निर्मल प्यार हो तुम
अन्तर के निर्मल प्यार हो तुम, भगवान मेरा संसार हो तुम
अन्धकारमय पथ पर चमको, ओ मेरे ध्रुवतारा
अपने भक्तों में हमको बिठा लीजिये
अपने लिए जियूँ तो मेरा, जीवन नहीं मरण कह देना
आओ आगत आओ कब से, होती यहाँ पुकार
आज मेरा मन तुम्हारे गीत गाना चाहता है
आदमी आराध्य, सेवा साधना है आज मेरी
आप निज करुणा उड़ेलें, पात्र वह हमको बना लो
आप हिमनग हैं, हमें सुरसरि बना दो
इन्सान मेरा देवता
इस अखिल ब्रह्माण्ड में, बिखरे पड़े हैं प्राण मेरे
कण-कण में मुस्काता है, मेरा प्यारा भगवान
कण-कण में समाए तुम, तुम्हें हमने पहचाना है
किये मंत्र जप माला फेरी, पूजन आठों याम का
किसी के काम जो आये, उसे इन्सान कहते हैं
कैसे दें हम तुम्हें विदाई
कोठरी मन की सदा रख साफ बन्दे, कौन जाने कब स्वयं प्रभु आन बैठे
कौन है किसका यहाँ पर, हैं सभी आते अकेले
क्यों रुके हो? साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ो
गँवा दिया हमने जीवन में, धर्म और ईमान
गायत्री माँ की उपासना, ही जीवन का सार है
घट-घट में श्रीराम रमे हैं, जब चाहो दर्शन कर लेना
चर-अचर सभी जड़ चेतन में, हे नाथ तुम्हारा रूप दिखे
चल रहा अंतःकरण में, रात-दिन चिंतन तुम्हारा
चलो बदल दो राह समय की
चैन आता नहीं प्यार बाँटे बिना, क्या करूँ प्यार की धार रुकती नहीं
जब तक है विश्वास लगन, दृढ़-क्षमता की पतवार
जब स्वयं को विकल तुम अनुभव करोगे
जब-जब सौ-सौ बाँह पसारे, खड़ा तिमिर हो बीच डगर में
जल रहे दीपक हजारों
जीवन का अनुदान बिन्दु ने, महासिन्धु से पाया
जीवन के आधार तुम्हीं हो
जीवन बन तू फूल समान
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्
जो हिमालय सा उठे जीवन, धरा पर नर वही है
ज्योतियाँ जिससे जलें अनेक, जलाओ ऐसा दीपक एक
झनझना दे चेतना के, जड़ विनिर्मित तार को
झीनी-झीनी बीनी चदरिया
तजकर अपना रूप प्रभु जी, मैं पावन आकार हो गया
तुझे मिला कंचन सा जीवन, तूने उसे गँवाया
तुम न घबराओ न आँसू ही बहाओ तुम, और कोई हो न हो पर मैं तुम्हारा हूँ
तुम्हारा देगा सब जग साथ
तुम्हारे दिव्य-दर्शन की, मैं इच्छा ले के आयी हूँ
तुम्हारे हैं हम प्रभु तुम्हारे रहेंगे, तुम्हारे लिए हम सभी कुछ सहेंगे
तुम्हीं हो प्राण हम सबके, हमारी चेतना हो तुम
तुम्हें ईश्वर मिलेगा, यदि सरल मन हो तुम्हारा ही
तू केवल रखवाला, तेरे साथ नहीं कुछ जाना रे
तूने हमें जनम दिया, पालन कर रही हो तुम
तेरा नूर सबमें समाया हुआ है, ये संसार तेरा बनाया हुआ है
थोड़ी सी साँसें पायी हैं
थोड़ी सी साँसें पायी हैं, इनको नहीं गँवाना है
दर्द तुम्हारा प्यार तुम्हारा
दिव्य अनुदान देने खड़े देवता, है ललक किन्तु उपकार कैसे करें
दीप हूँ जलता रहूँगा
दीपक सा तिल-तिल जलना ही
दुःखी चरण लम्बी मंजिल से, लेकिन तनिक नहीं कतराया
दे प्रभो! वरदान ऐसा, दे विभो वरदान ऐसा
देख खुला है द्वार पुजारी
न मैं धाम-धरती न धन चाहती हूँ, कृपा का तेरी एक कण चाहती हूँ।
न मैं स्वर्ग-मुक्ति न यश चाहती हूँ, मिलूँ तुममें प्रभु यह वर माँगती हूँ।
न हो ओ साधक तू लाचार, मिलेगा नव बल का संचार
नयन-नयन में हृदय-हृदय में विकल वेदना छाई
नये देश को मैं नयी भक्ति दूँगा, कि युग को नयी एक अभिव्यक्ति दूँगा
ना चाहें वरदान कोई हम, न चाहें अनुदान
निंदिया बाई घर जइयो
निंदिया बाई घर जइयो, जा घर राम भजन नहीं होय
पर-पीड़ा से द्रवित हो उठा, जिसका तन-मन-जीवन सारा
पावन प्रीति लुटाते चलें, प्रेम की धारा बहाते चलें
पितु-मातु सहायक स्वामि सखा, तुम ही एक नाथ हमारे हो
प्रभु तुझमें मैं मिल जाऊँ, यह सुमन चढ़ाऊँ
प्रवासी रुक नहीं सकते, कभी मन के इशारे पर
प्रेमी भर तू प्रेम में, ईश्वर के गुण गाया कर
बंदे तू औरों के काम नहीं आया
बन्धनों से प्रीति कैसी?
बसायें एक नया संसार, कि जिसमें छलक रहा हो प्यार
बाट जोह प्रभु! नयन थके हैं, आ न सके तो पास बुला लो
बिना दर्शन किये तेरे, नहीं दिल को करारी है
ब्रह्मकमल सा खिलकर जीवन, प्रभु के चरणों पर चढ़ जाए
भगवान बसो इस मन में तुम, यह मन देवालय हो जाये
भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना
भटक रहा है जनम-जनम से
भटक रहा है जनम-जनम से हंसा भूखा प्यासा रे
भले ही कहीं राह दिखती नहीं है
मत अंगार बिखेरो, वसुधा आज माँगती पानी
मन मैला ही रहा अगर तो उजला तन बेकार है
महामिलन की आशा मुझको, शरण तुम्हारे लाई है
मुझे अपनी शरण में ले लो नाथ
मुझे चाहिए और कुछ भी न भगवन, तुम्हारी शरण की मुझे कामना है
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है
मेरा उपास्य तो प्रतिक्षण मेरे पास है
मेरा परिचय क्या पूछ रहे, रचयिता-रक्षक-पोषक हूँ
मेरी अनन्त आत्मा का यह विश्वास है
मैं ढूँढ़ता तुझे था, जब कुञ्ज और वन में
मैं साथ तुम्हारे रहता हूँ, पहचान सको तो पहचानो
मैंने तेरी गीता गाई
यह करुणा की धार, सूखने मत देना
यह जीवन पुष्प समर्पित है, शुभ चरणों के अर्चन में
युग ऋषिवर हे, जीवन का आधार तुम्हारा नाम है
युग-युग तक जग याद करे, तुम ऐसे कर्म करो
युग-युग पूजित गायत्री माँ, ऐसी कृपा करो
रात भर भोगा अँधेरा, घुटन अन्धापन झराने
राम का नाम लेकर न जो पा सके, राम का काम करके वही पाओगे
राम नाम का अर्थ यही है, काम करें हम राम का
राही जाना पथ मत भूल
वन्दें उनके पद की धूल
विचार लो कि मर्त्य हो, न मृत्यु से डरो कभी
सदा मन हमारा रहे घर तुम्हारा, यही कामना है यही याचना है
सम्पूर्ण सृष्टि मेरा विधान, मैं ही अदृश्य मैं दृश्यमान
सविता महान आपसे वरदान माँगते
साँई का पंछी बोले रे, साँई का पंछी बोले
सामने दिव्य आलोक साकार था, जिन्दगी ही हमारी नमन बन गई
सिहर-सिहर मन तुम्हें पुकारे, प्रभु दर्शन बिन बड़ा क्लेश है
सीख नहीं पाये चादर ओढ़ने का ढंग रे, मैली चादर पर कैसे चढ़ पाये रंग रे
सुख चाहे यदि नर जीवन का, जप ले प्रभु नाम प्रमाद न कर
सूक्ष्म में रम गये हो हमारे प्रभो, देख पायें तुझे वह नयन दीजिए
स्नेह से तुम दीप सी मैं, जल रहे दोनों निरन्तर
हम अपना सब कुछ सौंप चुके, हे नाथ तुम्हारे चरणों में
हमने आँगन नहीं बुहारा, कैसे आयेंगे भगवान्
हर विपदा में सृजन शिल्पियो
हर विपदा में सृजन शिल्पियो
हरि ॐ तत्सत् हरि ॐ तत्सत्
हृदय से लगा लो या आँचल हटा लो
हे देव तुम्हारी पीड़ा का, मैं अश्रु बनूँ ढलती जाऊँ
हे नाथ याद तेरी, मन को सता रही है
हे प्रभु! ध्यान में तुम समाए हुए, हो नयन में तुम्हीं और मन में तुम्हीं
हे प्रभु! मानव हृदय को, गगन सा विस्तार दे दो
हे हंसवाहिनी जगदम्बे, गायत्री माँ तुझ ध्यान धरूँ
है उदास कुछ अन्तरतम यह, रत्नों का उपहार किसे दूँ
है यह बात सखे, स्थिर हम-तुम सबके मन में
हो ईश्वर के अंश, आत्म-विश्वास जगाओ रे
हो गये बहुत सुराख नाव में, मत जा तू मझधार रे
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
प्रवचन वं० माताजी
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