उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
अपने लिए जियूँ तो मेरा, जीवन नहीं मरण कह देना।
जीवन नहीं मरण कह देना।।
मेरी प्यास यहाँ तक जागे, अमृत-सिन्धु खोज लाऊँ मैं।
जग के प्यासे अधर देखकर, अपनी प्यास भूल जाऊँ मैं।।
प्यास बुझाते हुए जगत की, मेरी प्यास अगर डिग जाये।
संयम की संज्ञा मत देना, हर आचरण पतन कह देना।।
अपने लिए जियूँ तो मेरा . . . . . . .
इस तट का ही दृश्य डुबा दे, उस तट की बाँहें बढ़ जाएँ।
प्रीति सुधा की धार लाँघकर, हम पागल उस पार न जाएँ।।
चलने वाले मंजिल भूलें, चलते हुए समाधि न टूटे।
चलते हुए थकें यदि मेरे, भटके हुए चरण कह देना।।
अपने लिए जियूँ तो मेरा . . . . . . .
वह साधना नहीं थी पगले, साधना पूरी हुई युगों तक।
जीवन भर समाधि में बैठा, सिद्धि न झाँकी कभी दृगों तक।।
प्राणायाम छोड़कर अब तो, बढ़ती घुटन रोकती साँसें।
इस तह में हो जाएँ न दर्शन, छलनामयी लगन कह देना।।
अपने लिए जियूँ तो मेरा . . . . . . .