उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
यह अध्यात्म सही नहीं
मित्रो! अध्यात्म उस चीज का नाम है जो आदमी के व्यक्तित्व और स्तर को ऊँचा उठा देता है। जो अध्यात्म आदमी के व्यक्तित्व और उसके स्तर को नीचे गिराता हो, मैं उसे अध्यात्म नहीं मानता। उसके पीछे मैं बहुत नाराज हूँ। इसलिए हर क्षेत्र में हम बगावत पैदा करते हैं। हम जहाँ अनैतिकता के विरुद्ध बगावत पैदा करते हैं, जहाँ अवांछनीयता के विरुद्ध बगावत पैदा करते है, वहीं हम इस नकली अध्यात्म के विरुद्ध भी बगावत पैदा करते हैं। फिर तो आप कम्युनिस्ट हैं? कम्युनिस्ट तो नहीं हैं बेटे, पर हम कम्युनिस्टों की आवाज में आवाज लगाकर कह सकते हैं कि यह अवांछनीय अध्यात्म जो आज हर जगह फैल गया है, अगर यह नष्ट होता है, तो मुझे प्रसन्नता है। आपका ये अखण्ड कीर्तन बंद हो जाए तो आपकी नाराजगी है? नहीं, मुझे कोई नाराजगी नहीं है, मुझे बहुत प्रसन्नता है। ये कौन से मन्दिर, भिन्न-भिन्न देवियों के मंदिर गिर पड़ें तो आपको नाराजगी है? नहीं बेटे, मुझे बहुत खुशी है। मनसा देवी, जो आपकी मनसाओं को, आपकी इच्छाओं को बिना कीमत चुकाए देना चाहती हैं, केवल पंद्रह पैसे का प्रसाद खा लीजिए और हमारी मनसा पूरी कर दीजिए। बेटे हम आपकी ऐसी मनसा देवी से बहुत नाराज हैं।
मित्रो! क्या करना चाहिए? मैं यह कह रहा था कि आध्यात्मिकता के मौलिक आधारों का प्रतिपादन होना चाहिए, ताकि उससे हम वास्तविक फायदे उठा सके, जैसे कि हमारे पूर्वजों ने उठाए थे। हमारे पूर्वजों ने आध्यात्मिकता से हर क्षेत्र में शानदार फायदे उठाए थे। उनके व्यक्तित्व बहुत शानदार होने थे। मैं आपको एक वात बताता हूँ कि जिन चीजों को आप चाहते हैं, जिन सुविधाओं को आप चाहते हैं, जो संपदाएँ आप चाहते है, वे अच्छे व्यक्तित्व के पीछे-पीछे चलती हैं। रोशनी के पीछे छाया चलती है। आप रोशनी की तरफ मुँह करके चलिए छाया आपके पीछे चलेगी और आप छाया के पीछे चलिए, छाया की तरफ मुँह करके भागिए तो रोशनी भी हाथ से चली जाएगी और छाया भी पकड़ में नहीं आएगी। आप अपने व्यक्तित्व को ऊँचा उठाइए।
वास्तविक अध्यात्म फिर क्या है?
मित्रो! आध्यात्मिकता का उद्देश्य है, आदमी के व्यक्तित्व के ऊँचा उठा देना, चिंतन को सही कर देना, आदमी के दृष्टिकोण को परिष्कृत कर देना। अगर कोई आदमी यह कर सके तब? तब मैं कहूँगा कि जीवन में वास्तविक अध्यात्म आ गया। वास्तविक अध्यात्म के प्राप्त करने के बाद में आप वो चीजें पाएँगे जो आपको मिलनी चाहिए। माँगने पर भी मिलेंगी, बिना माँगे भी मिलेंगी। महापुरुषों के नाम सुने नहीं आपने? आप उन महापुरुषों की हिस्ट्री तलाश कीजिए, जनता ने जिनको निहाल कर दिया है। माँगने पर? माँगने पर नहीं, बिना माँगे निहाल कर दिया। कल मैं गाँधी जी का हवाला दे रहा था, बुद्ध का हवाला दे रहा था। जनता की बात कहूँ, हाँ जनता की बात कहूँगा और भगवान की बात? भगवान की बात भी कहूँगा, हरेक की बात कहूँगा। मैं कहूँगा कि अगर आपका व्यक्तित्व और आपका अंतर्मन सच्चे में, वास्तव में पात्र है, तो आपको तीनों ओर से सहायता मिलेगी। क्यों साहब, एक ओर से कि तीनों ओर से? आप एक ओर से माँगते हैं, पर मैं वायदा करता हूँ कि तीनों ओर से आपको सहायता मिलेगी और इतनी अधिक सहायता मिलेगी जिसको पाकर के आप निहाल हो जाएँगे।
ये देवी-देवता हमें क्या देंगे?
मित्रो! आप देवताओं से भी वो काम कराना चाहते हैं, जो देवता बेचारे नहीं कर सकते, जो उनके काबू में नहीं है, उनके पास भी नहीं है। क्या काबू में नहीं है? हनुमान जी से आप चाहते हैं कि हमारा ब्याह-शादी हो जाए और हमारे लड़के के बाल-बच्चे हो जाएँ। एक बार हनुमान जी से हमने पूछा कि क्यों साहब! ये आपका डिपार्टमेंट है कि जब किसी की ब्याह-शादी नहीं होती तो आप जाकर ब्याह-शादी कराते हैं। फिर हमने दूसरी बात पूछी कि किसी के बच्चा न हो तो उसको बच्चा पैदा कराने का महकमा भी आपके पास है। हनुमान जी ने जवाब दिया कि आचार्य जी! आपको तो समझ है, आप तो पढे-लिखे आदमी हैं और अच्छी तरह जानते हैं कि जिन कामों में हमारा कोई दखल नहीं है, कोई वश नहीं, उन्हें भला हम किस तरीके से कर सकते हैं? अगर ब्याह-शादी करने लायक हमारे अंदर शऊर होता तो हमारा भी ब्याह हो गया होता। हमारा ब्याह किसी ने नहीं कराया। नाई भी आए, पंडित भी आए। उन्होंने कहा, क्यों साहब आप हमारी लड़की के साथ शादी कर लीजिए। नहीं, हम ब्याह नहीं करते।
हनुमान जी ने कहा, "रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहाँ विश्राम ।" रामकाज में लगा रहता हूँ। न कोई खेती-बाड़ी है, न नौकरी है, न धंधा, न घर, न स्कूटर, कुछ भी नहीं हैं हमारे पास। अतः सब चले गए। एक ने भी ब्याह नहीं किया। गुरुजी! आपको तो मालूम ही है कि हमारा किसी ने ब्याह नहीं किया। हाँ हमको मालूम है कि आपका किसी ने ब्याह नहीं किया था। तो अब आप ही बताइए कि बिना ब्याह वालों को हम कैसे मदद कर सकते हैं? फिर हमने पूछा कि शादी-ब्याह नहीं हुआ तो बाल बच्चों की ही मदद कीजिए, क्योंकि ये कहता है कि हमारे तीन लड़कियाँ हैं, एक-दो लड़के और हो जाएँ तो अच्छा है। आप उनकी कुछ सहायता कीजिए। हनुमान जी ने कहा कि ये हमारा काम नहीं है, आप हमें बेकार क्यों तंग करते हैं? हम लड़के इनके पास कैसे भेज सकते हैं? जब हमारे ही लड़के नहीं हैं, तो हम इनकी कैसे मदद करें? अगर हम अपने लड़के पैदा कर लेते तो आपके भी कर देते। भगवान शिवजी के मास ट्राई करते हैं और कहते-महादेव जी! हमारा पक्का मकान बना दें। महादेव जी तो वहाँ रहते हैं मरघट में। इनके पास अगर मकान बनाने लायक पैसे होते, तो अपने लिए क्यों नहीं बनवा लिया होता। कपड़े तो पहनने को हैं नहीं, फिर मकान कैसे बनवाएँ।
अपनी योग्यता बढ़ाइए
मित्रो! बेसिलसिले की बातें, बेतुकी बातें को आप करते रहेंगे और पीछे शिकायतें करते रहेंगे कि हमारी मनोकामना पूरी नहीं हुई। मैं कल भी नाराज हो रहा था इसी बात पर। आपको निराशा तो होगी, पर इससे बाद में पूरे अध्यात्म विज्ञान पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। आदमी अध्यात्म विज्ञान के प्रति नफरत करते चले जाएँगे और इसके प्रति जनसाधारण में जो श्रद्धा थी, वो खत्म हो जाएगी। क्यों? क्योंकि आपकी मनोकामना पूरी नहीं को सकती। आपकी मनोकामना पूरी करने की दो शर्तें हैं। क्या दो शर्तें हैं? साथियों! भगवान ने, देवताओं ने, ऋषियों ने दुनिया में एक से एक बड़ी मनोकामनाएँ पूरी की हैं, पर उसकी दो शर्तें पूरी करनी पड़ी हैं। एक तो आदमी की योग्यता बढ़ी-चढ़ी होनी चाहिए। आपको क्या मिलता है? हम तो साहब प्राइमरी स्कूल के मास्टर है। तो आप कहाँ तक पढे हैं? हमने साहब मैट्रिक पास किया है और बी० टी० सी० पास की है। इसीलिए हमको २५० रुपए मिलते हैं। तो अब आप क्या चाहते हैं? हमको बड़ी नौकरी मिल जाए। अच्छा तो आप एक काम कर लीजिए। आप बी० ए० कर लीजिए, बी० एड० कर लीजिए। फिर हमारे पास आना तो हम कोशिश करेंगे, किसी से सिफारिश करेंगे और आपको नौकरी दिला देंगे। नहीं साहब, बी० ए० बी० एड० तो हम नहीं कर सकते, आप हमें ७५० रुपए की तनख्वाह दिला दीजिए। बेटे, हम कैसे दिला दें, जो कायदा-कानून नहीं है, नियम नहीं है, उसे कैसे करा देंगे?
मित्रो! आदमी के अपनी मनोकामना पूरी करानी हैं तो उसे अपनी योग्यता बढ़ानी पड़ेगी। आप अपनी योग्यता बढ़ाइए। आदमी की जितनी योग्यता होती है, उतनी ही उसकी तरक्की होती, पैसा मिलता है और मिलता है, मान-सम्मान। योग्यता आप बढ़ाते नहीं तो फिर किस तरह से आपकी सहायता करेंगे? दूसरी शर्त है-आप अपने में परिश्रम का माद्दा बढ़ाइए। आप में परिश्रम का माद्दा कम है। आपको जितना परिश्रम करना चाहिए, जिस स्तर का पुरुषार्थ करना चाहिए, उतना नहीं करते। मनोयोग और श्रम दोनों को मिलाकर परिश्रम की क्वालिटी बनती है। आप क्वालिटी क्यों नहीं बनाते? नहीं साहब, हम तो आठ घंटे काम करते हैं। आठ घंटे आपके ढ़ाई घंटे के बराबर हैं। आप आठ घंटे मनोयोग के साथ काम कीजिए तो वह दस घटे के बराबर हो जाएगा, अट्ठाइस घंटे के बराबर होगा।
मित्रो! 'इफीशिएन्सी' अर्थात दक्षता का भी ध्यान रखिए। नहीं साहब! हम तो उसे सीनिआरिटि' कहते हैं। बेटे, सीनिआरिटि ही नहीं काम करती, इफीशिएन्सी भी काम करती है। इफीशिएन्सी आप बढ़ाइए न, कुछ पुरुषार्थ बढ़ाइए न, फिर हम देखें कि कौन है जो आपका रास्ता रोकता है। देखेंगे कौन आदमी आपकी तरक्की को रोकता है। आपकी तरक्की को कोई रोकता हो, तो आप इस्तीफा दे देना और हमारे पास आ जाना। हमारे पास जो लोग काम करते है वे पूरे श्रम और मनोयोग से करते हैं। वे जिस काम को करते हैं, पूरे मन से करते हैं। हमको कहीं लगा दीजिए। क्या मिलता है आपको? ६५० रुपए मिलते हैं। अच्छा तो हम आपको ७५० रुपए दिलाएँगे और जगह दिला देंगे, परंतु आप तो परिश्रम की क्वालिटी नहीं बढ़ाते। अपनी योग्यता बढ़ाते नहीं हैं और मनोकामनाएँ लिए फिरते हैं।
मित्रो! ये मनोकामनाएँ अवैज्ञानिक हैं। अवैज्ञानिक बातें क्या निभेंगी कभी? अवैज्ञानिक बातें न कभी निभी थीं, न कभी निभेंगी। आप क्या कह रहे थे? मैं यह कह रहा था कि आपको जो सबसे श्रेष्ठ धंधा, व्यवसाय बताया है, वह अध्यात्म है। अध्यात्म का व्यवसाय इससे ज्यादा शानदार, इससे ज्यादा फायदेमंद, इससे ज्यादा कीर्ति दिलाने वाला अर्थात तीन तरह के फायदे दिलाने वाला धन्धा और कहीं नहीं है। व्यवसायों में सिर्फ एक तरह का फायदा होता है। क्या? पैसा मिल जाता है और कोई बहुत फायदे या धंधा? और कोई धंधा नहीं है। जिसको आप व्यवसाय कहते हैं, वह केवल एक ही फायदा कराता है। हम क्या कराते हैं? हम बेटे, ये धंधा जो पैसे वाला है, ये तो गौण है, बाहर वाला है। इसके अलावा हम तीन फायदे करा सकते हैं। उस अध्यात्म के बारे में बता रहे हैं, जिसको सिखाने के लिए हमने आपको यहाँ बुलाया है। जिसके लिए हम आपको अनुष्ठान कराते हैं। हमारे इस अध्यात्म को आप समझ लें तो मैं फिर आपकी गाड़ी आगे बढ़ाऊँ। आप क्या सिखाना चाहते हैं? आप समझिए तो सही। आप तो वहीं रहते है। कहीं? हमारी मनोकामनाएँ, भजन और माला। बेटे, ये तो गलत है।
पहले साधना तो हो
माला और मनोकामना का भी सिद्धांत है और सही होता है तो फिर मैं एक चीज और शामिल करना चाहूँगा। क्या चाहेंगे? माला-एक। माला से व्यक्तित्व का विकास। व्यक्तित्व के विकास के फलस्वरूप साधना दो। यों है बेटे इसका चक्र। आप समझ गए यह एक चक्र है। कौन सा? इसमें तीन चीजें शामिल हैं, साधना एक। साधना सफल है, सही है या गलत है, इससे व्यक्तित्व का विकास जुड़ा हुआ है। व्यक्तित्व के विकास के बाद में वो करना, जिसको हम ऋद्धियाँ कहते हैं, सिद्धियाँ कहते हैं, सफलता कहते हैं। नहीं साहब! भजन करने से सिद्धियाँ मिलनी चाहिए। नहीं बेटे, आप गलत बात कहते हैं। भजन करने से सिद्धियाँ नहीं मिल जातीं। नहीं साहब! हम को यही ख्याल करते हैं। आप गलत ख्याल करते हैं। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप इस गलत ख्याल को निकाल दें। नहीं साहब, हम तो नहीं निकाल सकते। जप करने से पैसा मिलता है। नहीं बेटे, जप करने से पैसा मिलता तो मंदिरों में-जो हिंदुस्तान में एक लाख से ऊपर मंदिर ऐसे हैं, जहाँ पुजारी-नौकर रहते है, वे मालामाल हो गए होते। आप एक लाख पुजारियों पर आयोग बिठा दीजिए। सर्वे कीजिए और रिपोर्ट मँगाइए इसकी। फिर देखिए क्या हाल है? इन पुजारियों में हर आदमी मामूली मजदूर को अपेक्षा, एल० डी० सी० क्लर्क की अपेक्षा, प्राइमरी स्कूल के मास्टर की अपेक्षा गई-बीती हैसियत में है।
मित्रो! जो व्यक्ति सारे दिन पल्लेदारी ढोते हैं और रिक्शा चलाते हैं, उनको एक तराजू में रखिए और पुजारी जी को एक तराजू में रखिए। देखिए साहब, क्या बात है? आप सिनेमा भी देखते हैं, सिगरेट भी पीते हैं, दिन में छह कप चाय भी पी जाते हैं। आप कौन हैं? आप रिक्शे वाले हैं और आप? पुजारी जी हैं। अरे सिनेमा देखते हैं? नहीं साहब सिनेमा हमारे भाग्य में कहाँ से आया? जाने का मन होता है? मन तो होता है, पर हम कैसे जा सकते हैं? आपकी ये बात वो बात सब तराजू में तौलते हैं, तो मालूम पड़ता है न रिक्शे वाला फायदे में है और न ये पुजारी जी। क्या बात है? आप समझते नहीं क्या? गलतफहमी को क्यों दबाए बैठे है। गलतफहमी को आप हटा दीजिए। मैं आपसे प्रार्थना करूँगा कि अगर आपके मन में यह गलतफहमी है कि भजन और माला के फलस्वरूप सिद्धि मिल जाएगी तो आप इसे निकाल दीजिए।
तो क्या करें? इसमें एक चीज आप और शामिल कर लें तो बात सही हो जाएगी। क्या शामिल कर ले? स्कूल में पढ़ाई करें और पढ़ाई के बाद नौकरी करें। नहीं साहब, पढ़ाई के साथ ही नौकरी मिल जाए तो अच्छा है। अच्छा बेटे तू स्कूल जाएगा? हाँ साहब, लेकिन पढ़ाई करनी पड़ेगी। गुरुजी! मुझे यह नहीं पता था। अच्छा तो अब हम बता देते हैं, कलम पकड़ और पी-एच० डी० हो जा। लेकिन एक कमी है। क्या? कलम पकड़ने के साथ साथ पढ़ाई भी करनी पड़ेगी। गुरुजी! हम तो यह जानते थे कि जिसके हाथ में कलम होती है, वही पी-एच० डी० हो जाता है। बेटे, कलम से पी-एच० डी० होती है, तेरी यह बात सही है, पर हमारी भी एक बात क्यों शामिल नहीं करता कि कलम के साथ-साथ में अध्ययन भी करना और लिखना भी चाहिए। थीसिस लिखने की कीमत होती है और होनी भी चाहिए।
मात्र क्रिया से परिणाम नहीं मिलता
गुरुजी! ये तो बड़ा झमेला पड़ गया। हाँ बेटे, झगड़ा तो था ही। तू क्या समझता था? हम तो यह समझते थे कि ये सब प्रारंभिक वस्तुएँ हैं और उनसे ही सफलता मिल जाती है। मसलन आपके हाथ में छेनी और हथौड़ी दे दें और कहें कि इस पत्थर के टुकड़े को ले जाइए और इसमें से आप एक मूर्ति बना दीजिए। मूर्ति कितने रुपए की होती है? बहुत कीमती होती है। हमने जयपुर से एक मूर्ति मँगाई है, वह तीन हजार रुपए में आई है। इसमें कितने रुपए का पत्थर लगा होगा? मैं सोचता हूँ कोई पचास रुपए का पत्थर होगा। आप पचास रुपए का पत्थर ले लीजिए और छेनी हथौड़ी ले जाइए, घिसने के लिए रेती ले जाइए और मूर्ति बनाकर लाइए। आपको तो पत्थर ही नहीं दिखाई पड़ा और ऊपर से छेनी और हथौड़ी भी तोड़ डाली और अपनी उँगली पर भी पट्टी बाँध रहे हैं। आपने तो बताया था कि हम मूर्ति बनाएँगे तो बया बन गई आपकी मूर्ति? कहाँ बनी गुरुजी! छेनी टूट गई, हथौड़ी टूट गई और देखिए हमारी उँगली में चोट भी लग गई। बेटे, मूर्ति कहाँ गई? उसका क्या हुआ? तीन हजार की मूर्ति तो मिली नहीं? मिलती भी कैसे, मूर्तिकला का जो अभ्यास है, वह अलग है।
मित्रो! यह क्या है? यह एक टेक्निक है। मूर्तिकला छेनी हथौड़े की सहायता से विकसित तो को जाती है, पर इसके पीछे अभ्यास होता है, तब कहीं मूर्ति बनाना आता है। तब आदमी हजार रुपए महीने कमाता है। इससे कम कमाए, इससे कम नहीं कमा सकता। चित्रकार चित्र बनाते हैं। कितने का बिका ये चित्र? बहुत दाम का बिका। हम 'अखण्ड ज्योति' के कवरपेज की डिजाइन बनवाते हैं। इसके लिए हमें पाँच सौ रुपए देने पड़ते हैं। चित्रकार दो दिन में बना देता है। गुरुजी! ये तो अच्छा धंधा है। एक दिन में एक चित्र बनाने के ढाई सौ रुपया रोज कमाता है। इससे महीने में कितना कमा लेगा और साल भर में कितना कमा लेगा? गुरुजी! मैं तो वही धंधा करूँगा, बेटे कर ले। इसके लिए क्या-क्या चीज चाहिए? कागज, ब्रुश, रंग। लीजिए बनाइए चित्र। किसके लिए बनाएँ? हमारी 'अखण्ड ज्योति' के लिए बनाइए। गुरुजी! आप तो पाँच सौ रुपए तो वैसे ही दे देंगे, देखिए चित्र बनाकर लाया हूँ। बेटे! ये तूने क्या बनाया? हमारा कागज भी बरबाद कर दिया और रंग भी खराब कर दिया और ऐसे ही लकीरें बना लाया। नहीं बेटे, लकीर नहीं बनानी चाहिए।
मित्रो! कागज काम तो आता है, पर यह भी ध्यान रखिए कि क्या चीज चाहिए? यहाँ एक और शब्द लगा हुआ है। 'पर' यह इसलिए लगा हुआ है कि चित्रकला का अभ्यास होना चाहिए, जो समयसाध्य और श्रमसाध्य है। नहीं साहब! हम तो इस झगड़े में नहीं पड़ेंगे। तो क्या करेंगे? हम यह करेंगे कि क्रिया के माध्यम से परिणाम पाना चाहेंगे। बेटे, यह तो संभव नहीं, असंभव बात है, जो आपने कल्पना बना रखी है। आप इस असंभव के पीछे भागेंगे तो आपको हैरानी के सिवाय, परेशानी के सिवाय, खीझने के सिवाय, निराशा के सिवाय और कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा। अब तक आप निराश हैं तो आगे भविष्य में अगर आपका यही सिद्धांत रहा, तो मैं आपको शाप देता हूँ कि भविष्य में आपको हमेशा निराशा ही हाथ लगेगी और कभी आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी।
साधना कोई शॉर्टकट नहीं
साहब! आप शाप क्यों देते हैं। इसलिए देते हैं कि आप उस सिद्धांत को समझते नहीं, जिस सिद्धांत पर चल करके आप वहाँ पहुँच सकते हैं। उस सिद्धांत को स्वीकार भी नहीं करते। बेटे, ये 'नेशनल हाईवे' है, राजमार्ग है। साधना कोई शॉर्टकट नहीं है। किसी भी क्षेत्र में कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं है। आप एम० ए० पास होने का शॉर्टकट बताइए। बेटे, हमें तो मालूम नहीं है। हमने तो जिनको देखा है, वे पढ़ते हैं और नंबर बाई नंबर, कक्षा दर कक्षा फीस देते हैं। अच्छा बम्बई जाने का शॉर्टकट बताइए? बम्बई जाने का शॉर्टकट यही है बेटे कि उधर से कोटा से होकर निकल जाए या भोपाल से होकर निकल जाए। कितना किराया लगता है? यही कोई लगता होगा सौ-डेढ़ सौ रुपए का टिकट। नहीं साहब! कोई शॉर्टकट रास्ता बताइए। जिससे कि इतना सफर भी न करना पड़े और पैसा भी खरच नहीं करना पड़े और मैं बम्बई भी पहुँच जाऊँ। नहीं बेटे, ऐसा कोई शॉर्टकट रास्ता नहीं।
मित्रो! आपने अध्यात्म माने शॉर्टकट समझ रखा है। आप चाहते हैं, ''हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा आवे।" बेटे तू क्या चाहता है कि बम्बई पहुँच जाऊँ। हाँ गुरुजी! ऐसा चमत्कार दिखाइए, जादू दिखाइए कि हम पाँच मिनट में बम्बई पहुँच जाएँ और पैसा भी न खरच करना पड़े। आँखें बंद करते ही बम्बई आ जाए। बताइए आपको ऐसा चमत्कार आता है। हाँ, हमको आता है। अच्छा तो आप कितनी देर में पहुँचा देंगे? तू कितनी देर में पहुँचना चाहता है। हम तो तुझे पाँच मिनट में पहुँचा देंगे बम्बई। अच्छा पाँच मिनट में, आप इतने बड़े योगी हैं? तू पहले खड़ा तो हो जा, फिर देख पहुँचता हैं कि नहीं पाँच मिनट में। अच्छा एक काम कर आँख पर एक पट्टी बाँध ले। अगर पट्टी नहीं तो आँख पर हाथ रख ले, ताकि रास्ते का सफर तुझे दिखाई न पड़े। और देख जब मैं कहूँ तब एक पैर उठाना, फिर दूसरा पैर उठाना। जब मैं कहूँ एक दो तीन आँख खोल, आ गया बम्बई। गुरुजी! मैं तो यहीं खड़ा हूँ। अरे देख यह लिखा हुआ है बम्बई। गुरुजी आप तो हमारे साथ मजाक करते हैं।
मित्रो! आप भी तो अध्यात्म के साथ क्या करते हैं? मजाक और मखौल करते हैं। कौन सी वाली? जो आप लिए फिरते हैं कि अमुक मंत्र का जप करेंगे और पैसा कमाएँगे। आप भगवान के साथ मखौल करते हैं, सिद्धान्तों, आदर्शों के साथ मखौल करते हैं और प्राचीनकाल की ऋषि परंपरा के साथ मखौल करते हैं। आपको किसने बताया था यह सब? साहब! एक बाबाजी ने बताया था। मारा नहीं उस बाबाजी को? नहीं साहब। अच्छा अबकी बार आए तो उसके कान पकड़ लेना और कहना कि गलत बात बता रहा है। मित्रो! क्या बताना चाहिए था? वह बताना चाहिए था, जिस शानदार अध्यात्म के लिए मैंने आपको बुलाया है। जिसके लिए मैं आपको अनुष्ठान कराना चाहता हूँ। जिसके लिए मैं चाहता हूँ कि आप उन सिद्धांतों के जानकार हो जाएँ। आप सिद्धांतों के जानकार हो जाएँगे तो फिर विधि बताने में मुझे देर नहीं लगेगी। विधि तो बहुत सरल है। जिस तरह आपरेशन करना बहुत सरल है। मोतियाबिंद का आपरेशन कितने मिनट लेता है? मुश्किल से एक मिनट लेता है। एक मिनट में डॉक्टर सुन्न करके खट झिल्ली काट करके अलग कर देता है। क्यों साहब! आप एक मिनट में आपरेशन करना सिखा देंगे? हाँ बेटे, हम सिखा देंगे। लेकिन पहले सात साल तक मेडिकल की पूरी पढ़ाई करने के साथ-साथ तुझे प्रेक्टिस भी करनी होगी। तब हम तुझे बताएँगे।
मित्रो! मैं आपको उस अध्यात्म को सिखाना चाहता हूँ, जिसे मेरे गुरु ने मुझे सिखाया और जिसे ऋषियों ने अपने शिष्यों को पढ़ाया। हम उसी शानदार सिद्धांत पर विश्वास करते हैं और आपको उसी शानदार अध्यात्म को अपनाने की प्रार्थना करते हैं। इसी के लिए हमने सब इंतजाम रचाया है। अगर आप सीख सकते हों, कर सकते हों, तो कर लें, सीख लें। फायदा उठा सकते हों तो फायदा उठा लें। जो अध्यात्म हम सिखाना चाहते हैं, जिसके लिए हमने आपको इस आध्यात्मिक शिविर में बुलाया है, वह कैसा अध्यात्म है? उसके तीन फायदे हैं। सिद्धियाँ कितनी होती हैं? यह आठ होती हैं, लेकिन ये अष्ट सिद्धियाँ और नौ ऋद्धियाँ मेरी समझ में नहीं आती। मेरी समक्ष में तो तीन सिद्धियाँ आती हैं और ये सुनिश्चित रूप से मिलती है। अष्ट सिद्धियों के बारे में तो मैं नहीं कह सकता कि इससे हवा में तैरना आ जाता है। हाँ गुरुजी! सिद्धियों से चमत्कार आते है। अष्ट सिद्धियाँ, नव निधियाँ होती हैं। अच्छा तो आपका मतलब हवा में तैरने से है।
अध्यात्म-एक नकद धर्म
मित्रो! आप जमीन पर चलिए, हवा में तैरना बंद कीजिए। देवलोक जाना बंद कीजिए। सिद्धियों का ख्वाब देखना बंद कीजिए। आप जमीन पर आइए और जमीन पर चलना शुरू कीजिए, ताकि वो अध्यात्म मिल सके जो कि हमारे लिए संभव है, स्वाभाविक है, जो कि हमको मिल सकता है, जिससे आप फायदा उठा सकते हैं। ऐसा अध्यात्म लेने में आपको हर्ज क्या है! हवाई उड़ान आपको क्या दे सकती है! आपको हवा ही मिलनी चाहिए, इससे आपको क्या फायदा! मरने के बाद हमको मुक्ति मिलनी चाहिए स्वर्ग मिलना चाहिए, मरने के बाद क्यों, यदि इसी जीवन में, इसी जन्म में और अभी स्वर्ग और मुक्ति मिल जाए तो क्या हर्ज है आपको! नहीं साहब! कोई हर्ज नहीं। तो फिर आप क्यों कहते हैं कि भगवान मरने के बाद मिले। अभी क्यों नहीं मिले? नहीं साहब! भगवान तो धर्मलोक में रहता है, बैकुंठ लोक में रहता है। चलिए हम आपको दूसरा फायदा करा दें और भगवान से आपको अभी मिला दें तो कोई हर्ज हैं आपको? साहब! वो तो और भी अच्छा है, आप वहीं क्यों नहीं करते?
मित्रो! आप नकद धर्म को ग्रहण कीजिए और उसकी कीमत चुकाइए। नकद धर्म कैसा होता है? जो ध्यान हम आपको सिखाना चाहते हैं, उसमें तीन सिद्धियाँ हैं। चौथी सिद्धि तो उसका ब्याज है। मूलधन वह होता है, जिसे बैंक में जमा कर देते हैं। ब्याज क्या होता है? बेटे, ब्याज वह धन होता है, जो आपके जमा पूँजी पर आठ-दस प्रतिशत के हिसाब से अतिरिक्त रूप में मिलता है। अपना रुपया हमारे बैंक में जमा कर जाइए, हम आपको और भी नफा दे देंगे। क्या नफा दे देंगे? हम आपको ब्याज दे देंगे। ब्याज हमारा रुपया नहीं! हाँ ब्याज आपका तो नहीं है, पर हम आपको दे देंगे। कौन सी वाली ब्याज है, जो आप चाहते हैं, वह मूलधन नहीं है, ध्यान रखें। अध्यात्म नकद धर्मं है, मूलधन है, ऋद्धि-सिद्धियाँ उसकी ब्याज हैं।
साथियो! जिस तरह का अध्यात्म हम आपको सिखाना चाहते है, उसके लिए हम आपको तरीके बताएँगे। उसकी साधना सिखाने का ही हमारा उद्देश्य है। उसके लिए ही आपको बुलाना पड़ता है। आप न सीखें, न समझें को फिर हम क्या कर सकते हैं! आप पर तो गलतफहमियाँ हावी होती जा रहीं हैं। इन गलतफहमियों को जब तक न निकालूँ, तब तक वास्तविकता आपको कैसे बताऊँ? आप पर तो यही गलतफहमियाँ हावी हो रही हैं कि मंत्र जपो, धन आएगा, आपको वहाँ बैठे ही मूलधन चाहिए। अगर आप ऐसे ही उलझे रहेंगे तो मैं आपको सच्चा अध्यात्म कैसे बताऊँगा? नहीं गुरुजी! आप ऐसा मंत्र बताइए जिससे पैसा मिल जाए, बेटा मिल जाए। चलो अभी बता देते है। क्या मंत्र? बस वही है जो बाबा बता गया था और आपसे मोटी दक्षिणा ले गया था। चलो हम भी वही बता देते हैं। क्या है? वही-"ह्लीं श्रीं क्लीं चामुण्डये बिच्चैः" बेटे, इससे तो बहुत रुपया आया होगा? हाँ गुरुजी! हमने जप किया था। अच्छा तो अभी और झक मार और 'चामुण्डये बिच्चैः' जपता रहा दुष्ट लूट का माल मारने के लिए खड़ा है और कहता है कि मंत्र का चमत्कार दिखाइए।
चमत्कारों की जन्मस्थली अपना आपा
मित्रो! मंत्रों के चमत्कार कहाँ से आते हैं? मंत्रों के चमत्कार आदमी के भीतर से आते हैं। पेड़ जो आपको बाहर खड़ा दिखाई पड़ता है, कहाँ से आता है? पेड़ पर फल, फूल, पत्ते कहाँ से आते हैं? अच्छा, पहले बताइए कि पत्ते कहाँ से आते हैं? पत्ते, साहब, हवा में से भागते हुए आ जाते हैं और डाली से चिपक जाते हैं। अच्छा फूल कहाँ से आते हैं? फूल रात में तारों से ऊपर से गिरते हैं और पेड़ पर चिपक जाते हैं और ये फल कहाँ से आते हैं? फल, गुरुजी! रात में बादल आते हैं तो बहुत से फल लाते हैं। अच्छा को फल क्या करते हैं? टप-टप टपक पड़ते हैं और पेड़ पकड़ लेते हैं। पेड़ उन सबको चिपका लेते हैं। बेटे, ये तेरा ख्याल गलत है कि फल बाहर से आते हैं। अच्छा, ये फूल भी बाहर से आते हैं और पत्ते भी बाहर से आते हैं? हाँ साहब। नहीं बेटे, तेरा यह ख्याल गलत है। तो गुरुजी! आप ही बताइए कि सही बात क्या है? बेटे, पेड़ की जड़े जमीन में होती हैं, जो दिखाई नहीं पड़तीं। ये जड़े जमीन से रस चूसती हैं और उसे चूसने के बाद खाने की तरह ऊपर तने में फेंक देती हैं, डालियों में फेंक देती है, पत्तों में फेंक देती हैं, फूलों में फेंक देती हैं और फलों में फेंक देती है। यह कहाँ से आता है? बाहर से नहीं भीतर मे आता है। बाहर से मतलब देवताओं से नहीं आता। आप समझते क्यों नहीं? इसी का नाम अध्यात्म है।
अध्यात्म किसे कहते हैं? 'साइंस आफ सोल' को अध्यात्म कहते हैं। सोल की साइंस में-आत्मा के विज्ञान में हर चीज भीतर से निकलती है। आप बाहर से ही माँगते हैं। देवताओं से माँगते हैं। मनुहार उपहार, अनुग्रह-उपहार यही आपकी मान्यता है। मनुहार करेंगे, उपहार पाएँगे, यही ख्याल है न आपका। अच्छा बताइए कि बादलों में पानी किसने पैदा किया? नहीं साहब, मनुहार करेंगे, उपहार पाएँगे, साष्टांग दंडवत करेंगे और उपहार पाएँगे, आशीर्वाद पाएँगे। आपको यह सब किसने कहा था? साहब! वो बाबा कह रहा था। पागल है बाबा।
मित्रो! क्या करना चाहिए? आपको वास्तविकता के नजदीक आना चाहिए। वास्तविकता के फायदे बताने के बाद मैं आपको आध्यात्मिकता के तरीके बताना चाहूँगा कि आपको क्या करना चाहिए? वास्तविकता के फायदे जानने के बाद यदि आपको काफी मालूम पड़ते हों, तो आप अध्यात्म के नजदीक आइए और अगर ये कम मालूम पड़ते हों तो आप न भी आएँ तो कोई हर्ज नहीं है। हमने तो इससे तीन फायदे उठाए है। पहला फायदा यह आता है कि हमारा भीतर वाला हिस्सा जिसको हम '' अंतःकरण' कहते हैं, इतना शुद्ध और पवित्र हो जाता है कि आदमी को हर समय एक वरदान मिलता रहता है, जिसको हम 'संतोष' कहते हैं।
अंदर की खुशी-एक दिव्य वरदान
मित्रो! खुशियों के तरीके दो है। एक खुशी बाहर से आती है-मसलन खाना। खाने के समय कोई जायकेदार चीज मिल जाए तो यह एक बाह्य खुशी है। साहब क्या खाकर आए? पेड़े खाकर आए, लड्डू खाकर आए, अच्छा ठीक और एक खुशी जो होती है कि आप सिनेमा देखकर आए। ये कौन सी खुशियाँ हैं? ये चीजें मिलने की वजह से खुशियाँ होती हैं। ये खुशियाँ होती तो हैं, पर थोड़ी देर के लिए ही ठहरती हैं, फिर गायब हो जाती हैं। सिनेमा देखकर आए-गायब, मिठाई खाकर आए गायब। थोड़ी देर में ही ये खारी खुशियाँ गायब हो जाती हैं। ये टिकाऊ नहीं होती। टिकाऊ चीज क्या होती है? जो चीज भीतर से निकलती है, उसका नाम है-'शांति'। शांति का ही दूसरा नाम संतोष है। शांति के बारे में जो आपने सुन रखा है, उस चैन को शांति नहीं कहते। कोई मुसीबत न आए हल्ला-गुल्ला न मचे, कोलाहल न हो, इसे शांति नहीं कहते। नहीं साहब! शांति उसे भी कहते हैं कि काली कमली लेकर चले जाएँगे और कहीं गुफा में रहेंगे, जहाँ कोई झंझट, घोटाला न हो कोई बोले-चाले नहीं। हर तरफ शांति हो। बेटे, ये मान्यता गलत है। यह शांति की परिभाषा नहीं है। शांति की प्राथमिक परिभाषा यह है कि आदमी को संतोष रहता है। संतोष किसको रहेगा? संतोष सिर्फ एक आदमी को रहेगा, जिसने अपने जीवन का क्रम ऐसा बना लिया है कि जिससे उसके अंदर अंतर्द्वन्द्व नहीं रहते।
अंतर्द्वन्द्व क्या है? अंतर्द्वन्द्व बेटे दो साँड़ों की लड़ाई की तरह है। दो साँड़ों की लड़ाई देखी है न आपने? हाँ गुरुजी! जब दो साँड़ लड़ते हैं तो खेत को, दुकान को बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। एक बार तो दो खोमचे वाले बैठे थे और दो साँड़ लड़ते हुए आ गए। फिर क्या हुआ? उन्होंने खोमचे वालों का सामान फैला दिया और मुसाफिरों को धक्के मारे। और क्या हुआ? और गुरुजी! उसने दीवार में टक्कर मारी और धकेल वाले को उछाल दिया। एक दिन हमने खेत में लड़ते हुए साँड़ देखे। वो क्या करते थे? गुरुजी! वे दोनों ऐसे लड़े कि बेचारी गेहूँ की फसल और धान की फसल को चौपट करके धर दिया। लड़ते-लड़ते वे सब चौपट कर गए।
मित्रो! साँड़ कहाँ होते हैं? साँड़ हमारे भीतर रहते है। साँड़ कौन होते हैं? एक तो वे जिन्हें अवांछनीयता कहते हैं, अनैतिकता कहते हैं। बेटे, हमारे भीतर एक नैतिक पक्ष है और एक अनैतिक पक्ष है। दोनों के भीतर कोहराम मचता रहता है। दोनों के बीच लड़ाई चलती रहती है। यह लड़ाई कभी बद नहीं होती। एक कहता है कि आप मान जाइए दूसरा कहता है कि आप मान जाइए। दोनों ही नहीं मानते। हमारे भीतर जो शैतान बैठा हुआ हैं, वो भी नहीं मानता और अंदर बैठे भगवान से कहते हैं कि आप ही चुप हो जाइए, तो वो भी नहीं मानता। दोनों के भीतर जो कोहराम मचता रहता है, अंतर्द्वन्द्व चलता रहता है, उसकी वजह से हमारे भीतर अशांति पैदा होती है। हर जगह अशांति, हर जगह नाराजगी, हर जगह असंतोष-हमारे भीतर छाया रहता है। आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांतिः।।