उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
यह समय इस तरह का है जिसको सामान्य नहीं, असामान्य कहना चाहिए। यह युगसन्धि का समय है। युग बदल रहा है। युग बदलता है तो आप जानते हैं कि कुछ- न हेर- फेर अवश्य होता है। जब बच्चा पैदा होता है और पेट में से निकलकर बाहर आता है, तो कितनीपीड़ा होती है? पुराना युग जा रहा है और नया युग चला आ रहा है। ऐसे समय में दो काम होते हैं—एक निर्माण होता है और दूसरा बिगाड़ होता है। परिवर्तन की इस सन्धिवेला में बिगाड़ क्या होने वाले हैं? बिगाड़ वे होने वाले हैं जिनके बारे में बाइबिल में कहा गया है—‘‘सेवन टाइम आयेगा और दुनिया तबाह हो जाएगी।’’ जिसके बारे में इस्लाम धर्म के कुरान शरीफ में कहा गया है—‘‘चौदहवीं सदी आएगी और दुनिया तबाह हो जाएगी।’’ भविष्य पुराण में यह लिखा हुआ है—‘‘दुनिया उस मोड़ पर आयेगी जहाँ पूर्णतया तबाह होजाएगी।’’ यह तबाही का समय है। यह युग- परिवर्तन का समय है। संधिकाल का समय है।
संधिकाल में निर्माण और ध्वंस के कार्य साथ- साथ चलते हैं। इन दिनों भी एक ओर निर्माण हो रहा है, तो दूसरी ओर बिगाड़ हो रहा है। मकान बनाना होता है तो नींव खोदने वाले नींव खोदते जाते हैं और चिनाई करने वाले चिनाई करते जाते हैं। एक तरफ खोदने का कामशुरू होता है और दूसरी ओर उसको बनाने का भी काम शुरू हो जाता है। इन दिनों भी बनाने और बिगाड़ने के दो काम एक- साथ शुरू हो रहे हैं और इन शुरू हो रहे कामों के समय पर कोई एक बड़ी जरूरत पड़ती है। बच्चा पैदा होता है तो दाई की जरूरत पड़ती है—डॉक्टर की, नर्स की जरूरत पड़ती है। देख−भाल करने के लिये और लोगों की जरूरत पड़ती है। इसी तरह बदलते हुए समय में बहुत- सी देख−भाल करने की आवश्यकता है। बड़े बिगाड़ जो होने वाले हैं। आपको मालूम नहीं है कि ‘नेचर’ नाराज हो गई है। ‘नेचर’ के नाराज होने कीवजह से कहीं बाढ़ आती है, कहीं अतिवृष्टि होने लगती है, तो कहीं सूखा पड़ने लगता है। कहीं तूफान आ जाते हैं, कहीं भूकम्प आ जाते हैं। कहीं क्या होता है तो कहीं क्या? इस तरह से नेचर हमसे नाराज हो गयी है। वातावरण भी ऐसा हो गया है कि जो नई पीढ़ियाँ पैदाहोती हैं, नये बच्चे पैदा होते हैं, ऐसे कुसंस्कार जन्म से ही लेकर आते हैं कि न तो माँ का कहना मानते हैं, न बाप का कहना मानते हैं, न मास्टर का कहना मानते हैं। जरा- जरा उमर में न जाने क्या- क्या खुराफातें करना शुरू कर देते हैं। यह सब खराब वातावरण काप्रभाव है। इससे बचने के लिए वातावरण को परिशोधित करने के लिए हमने कुछ काम करना शुरू कर दिया है। कुछ तो काम हमने अपने जिम्मे लिए हैं और कुछ काम आपके जिम्मे किए हैं। हमने अपने जिम्मे क्या लिया है? हम एक उस तरह की तपश्चर्या कर रहे हैं, जिस तरह की भगीरथ ने की थी। भगीरथ ने तपस्या की तो क्या हुआ? गंगा स्वर्गलोक में रहती थीं। उनकी तपश्चर्या से जमीन पर आयीं। गंगा जब जमीन पर बहीं तो तमाम जगह हरियाली हो गयी, पेड़ पैदा हो गये, बगीचे पैदा हो गये, गेहूँ पैदा हो गये, इस तरहभगीरथ ने जिस तरीके से तप किया था, ठीक उसी तरीके से एक तप हम भी कर रहे हैं। एक और समय ऐसा था, जब दैत्यों ने देवताओं को मारकर भगा दिया था और देवता बेचारे मारे- मारे फिर रहे थे। दैत्यों ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। देवता ब्रह्माजी केपास पहुँचे। उन्होंने कहा—‘‘धरती पर महर्षि दधीचि नामक एक तपस्वी रहते हैं। उसकी बनावट ऐसी है कि यदि उसकी हड्डियाँ तुमको मिल जाएँ तो उन हड्डियों से इन्द्रवज्र बनाया जाए। उस इन्द्रवज्र से आपके लिए राक्षसों से मुकाबला करना तब सरल हो जाएगा।उन्होंने यही किया। दधीचि ने ऐसा विशेष तप किया था, जिससे उनकी अस्थियाँ इस लायक बन गयी थीं कि यदि वृत्तासुर जैसे राक्षस जिसने सारी दुनिया में तहलका मचा रखा था, पर उन अस्थियों से बने वज्र से प्रहार किया जाए तो उसका प्राणान्त हो जाए और सबउससे छुट्टी पाएँ। हम भी यही कह रहे हैं। आजकल हमारा कार्य है। पूरे दो वर्ष हो गये हैं। दो वर्ष से हम मौन रख रहे हैं। एकांत में रहते हैं। अपना कुछ काम करते हैं, भगवान का भजन करते हैं। इस तरह से हमारी तपश्चर्या और एकांत सेवन चल रहा है।
यह तो हमारे जिम्मे का काम है और आपके जिम्मे का क्या है? आपको भी कुछ करना चाहिए? आप नहीं करेंगे तब? रानी मक्खी शहद के छत्ते में बच्चे दिया करती है, लेकिन वह अकेले ही सब काम थोड़े ही कर लेती है? बाकी मक्खियाँ जाती हैं और जहाँ- तहाँ से फूलोंका रस इकट्ठा करके ले आती हैं। सेनापति होते हैं, लड़ाई लड़ा करते हैं पर सेनापति की वजह से ही अकेले युद्ध में विजय नहीं पायी जा सकती। लड़ने वाले तो सिपाही होते हैं। लंका पर चढ़ाई से पूर्व समुद्र पर पुल बनाया गया था। अकेले नल- नील ने वह थोड़े ही बनायाथा, वरन् उनके साथ कितने ही रीछ- वानर थे। महाभारत को अर्जुन ने लड़ा था। अकेले लड़ा था क्या? नहीं! अकेले नहीं लड़ा, उनके साथ बहुत सारे सहयोगी भी थे। गोवर्धन पहाड़ उठाया गया था। क्या भगवान कृष्ण ने अकेले ही उठाया लिया था? नहीं; अकेले नहीं उठायाथा, गोप- ग्वाल सबने अपनी- अपनी लाठी का सहयोग किया था। भगवान बुद्ध ने जो धर्म- प्रवर्तन चलाया था, सो अकेले ही चला लिया था क्या? नहीं! अकेले नहीं, बौद्ध- भिक्षु सबने मिलकर चलाया था। गाँधीजी ने सत्याग्रह किया था और स्वराज्य को यहाँ लाये थे।आजादी प्राप्त की थी, लेकिन क्या आजादी ऐसे ही प्राप्त हो गयी थी? नहीं; हजारों आदमी उसमें सहयोगी थे। इसी तरीके से हमारी तपश्चर्या चल रही है, क्या हमारे अकेले की चल रही है? नहीं! अकेले की नहीं। हमारे कुटुम्बियों को, हमारे भाइयों को, हमारे भतीजों को, हमारे बच्चों को, हमारे बड़े- बुजुर्गों, हमारे सभी उम्र के अनुयायी परिजनों को काम करना पड़ेगा। क्या काम करना पड़ेगा? यह हमारा पचहत्तरवाँ वर्ष है। हीरक जयन्ती वर्ष है। इस हीरक जयन्ती वर्ष में हमने अपने प्रत्येक कार्यकर्ता को कुछ काम सुपुर्द किये हैं। ये कामऐसे हैं जो अभी- अभी करने होंगे। क्या- क्या काम सुपुर्द किये हैं?
पहला काम तो हमने नालन्दा विश्वविद्यालय के तरीके से, तक्षशिला विश्वविद्यालय के तरीके से एक लाख धर्म प्रचारक बनाने का निश्चय किया है। यह काम सबसे बड़ा काम है, क्योंकि ये प्रचारक जो हैं और बिगाड़ने पर तुल जाते हैं तो दुनिया को तबाह कर देते हैं।नशेबाजी सिखा देते हैं, व्यभिचार सिखा देते हैं और न जाने कितनी बुरी बातें सिखा देते हैं। यदि अच्छी बातें सिखाने को तैयार हो जाते हैं तो वे अच्छी से अच्छी बातें भी सिखा देते हैं। अच्छी बातें सिखाना न आता हो, ऐसी बात नहीं है। अच्छी बातें सिखाने के लिए सारीदुनिया में एक लाख आदमियों की आवश्यकता है। इससे कम की जरूरत पड़ेगी? नहीं। कभी गाँधी जी ने कहा था—सौ आदमी मिल जाएँ, तो हमारा काम चल जाएगा। हमारा काम नहीं चलेगा, क्योंकि सात लाख गाँव तो हिन्दुस्तान में ही हैं। अब एक आदमी के हिस्से मेंसात गाँव तो देंगे ही, इसलिए एक लाख के बिना हमारा काम नहीं चलेगा। एक लाख आदमियों को शिक्षित करने का काम हमने प्रारम्भ किया है। इसके लिए जो भी हमारे मिलने वाले हैं, हमारे मित्र हैं, इसके लिए जो भी हमारे सहायक हैं, कुटुम्बी हैं, उन सबको एककाम यह करना चाहिए कि एक- एक आदमी अपने डिवीजन से यहाँ अध्यापकी ट्रेनिंग के लिए भेजने चाहिए। हम युगशिल्पी को एक महीने में पढ़ा देंगे और एक महीने में इस लायक बना देंगे कि संगीत के माध्यम से वे सारे क्षेत्र की जनता को नये युग का सन्देश देने मेंसमर्थ हो सकें।
आगे से हमारा प्रशिक्षण व्याख्यान प्रधान नहीं होगा, वरन् संगीत प्रधान होगा। गायन के विषय संगीत को लेकर हम चलेंगे। आप एक काम यह कीजिए कि एक आदमी अपने डिवीजन से ऐसा भेजिए जो कि मुस्तैद हो, जिसके पास समय भी हो, सेवाभावी भी हो औरसीखने में उसकी रुचि भी हो। कोई बूढ़ा- बीमार व्यक्ति भेज देंगे, तो वह क्या सीखेगा? न चला जाता है, न दिखाई देता है—ऐसे व्यक्ति का हम क्या करेंगे? मुस्तैद आदमी वहाँ से युग- शिल्पी शिविर में भेजने के लिए आप लोगों से प्रार्थना की है और आप लोगों से यहप्रार्थना भी की है कि जब वह आदमी यहाँ से सीख करके चला जाए, तो अपने यहाँ एक विद्यालय बनाइये। उस विद्यालय में क्या होगा? वह प्रचारक विद्यालय होगा। वह संगीत भी सिखायेगा और व्याख्यान देना भी सिखायेगा, यज्ञ करना भी सिखायेगा। जन्म- जयन्तियाँ भी मनाना सिखायेगा। वहाँ सारे क्षेत्र में वह एक जाग्रति लावेगा, युग का सन्देश लोगों को सुनाएगा। यह काम आप सब लोगों को मिलजुल कर करना है। पहला काम हमारा यही है कि नालन्दा विश्वविद्यालय, तक्षशिला विश्वविद्यालय के तरीके से एकलाख प्रचारक हम तैयार करें और इन प्रचारकों से हम प्रत्येक गाँव में इस तरह का वातावरण बनाएँ, जिससे हर आदमी को मालूम पड़े कि आज हमारे कर्तव्य क्या हैं? आज हमारी जिम्मेदारी क्या है? और आज हमको करना क्या चाहिए? इसके लिए आदमी को उठाकरके, झकझोर करके, चैतन्य करके तैयार कर दें। प्रज्ञा प्रशिक्षण विद्यालय के बारे में अखण्ड- ज्योति के संपादकीय लेखों में लिखा गया है और भी अनेक जगहों पर बताया गया है कि आपके गाँव में एक विद्यालय चलना चाहिए। उसमें संगीत की एक टीम होनीचाहिए। एक आदमी संगीत गा करके काम नहीं चला सकता। कई आदमी मिल जाएँ तो विचारों का विस्तार ठीक प्रकार से होता है, गाने का समा भी बन जाता है। यह हुआ पहला काम?
दूसरा काम? दूसरा काम हमने यह तय किया है कि एक लाख यज्ञ होने चाहिए। लाख? हाँ, लाख होने चाहिए। कैसे होंगे? किसी स्थान पर आप इस तरीके से यज्ञ कर सकते हैं कि अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, रविवार में से कोई ऐसा एक दिन तय कर लें, जिसमें आपसभी को सुगमता हो—सुविधा हो। उस दिन आप पाँच कुण्ड की वेदियाँ बना लें और हवन कर लें। हमने तो हवन को बेहद सुगम कर दिया है। बहुत खर्चीला है, बहुत पंडित आयेंगे, बहुत दक्षिणा लेंगे? नहीं, कोई दक्षिणा नहीं लेगा। आप सब मिल- जुलकर श्लोक बोलेंगे।मिल- जुल करके बाँसों का पण्डाल बना लेंगे। चमचम की पन्नी आती है, उससे उसकी शोभा- सज्जा करके वेदी बना देंगे। कुण्ड बनाने की भी जरूरत नहीं है। चौकोर वेदी बना लें, चौबीस अंगुल लम्बी और चौबीस अंगुल चौड़ी एवं तीन अंगुल ऊँची बना लें। इस वेदी केऊपर चौक पर करके सजा लें और हवन करें। हवन सामग्री आपके पास न हो तो आप गुड़ और घी दो चीजों की बेर के बराबर गोली बना लें और एक- एक गोली का हवन करते जाएँ। इसकी सुगन्ध से वातावरण सुगन्धित और पवित्र बन जाएगा, क्योंकि घी, गुड़, शक्करमें यह विशेष गुण है कि इसे लोगों की बीमारियों को दूर करने के लिए सबसे उपयुक्त वस्तु माना गया है। इसे हवन- सामग्री में भी मिला सकते हैं। अनाज! अनाज के लिए तो हमने पहले ही मना किया है कि गेहूँ नहीं जलाना चाहिए, तिल नहीं जलाने चाहिए और जौनहीं जलाने चाहिए। अनाज जलाने के हम सख्त खिलाफ रहे हैं और इन चीजों को जलाने की आपको कोई आवश्यकता भी नहीं है। जो चीजें मनुष्य के खाने की है उनका आप हवन करें। ऐसा हमने कभी नहीं कहा। हमारा यह हवन बहुत सरल और सुगम है।
इसके साथ ही जन्मदिन भी मनाने चाहिए। हमारे गायत्री परिवार के चौबीस लाख आदमी हैं। उन चौबीस लाख आदमियों में से एक- एक का एक- एक दिन, एक- एक व्यक्ति का जन्म- दिन मना लिया जाए तो चौबीस लाख यज्ञ हो सकते हैं और चौबीस आदमी पीछेएक यज्ञ कर लें तो? तो एक लाख यज्ञ हो जाते हैं। यज्ञों से हमारा मतलब यह नहीं है कि बड़ा भारी धूम- धड़ाका होगा और बड़ा भारी जुलूस निकलेगा और बड़ा भारी रैली होगी अथवा बड़ा सौ- सौ कुण्ड का, इक्यावन कुण्ड का या पच्चीस कुण्ड का यज्ञ होगा। इसकी तोहमने सख्त मनाही कर दी है, क्योंकि इस जमाने में बड़े यज्ञों का करना बड़ा खर्चीला है। बड़े यज्ञों में जितना सामान खर्च होता है और जिस तरीके से उसमें से लूटमार होती है और जिस तरीके से चन्दा इकट्ठा होता है, उसको लोग हजम कर जाते हैं। इसके हम बेहदखिलाफ हैं। कुछ लोग हमारे पास आये थे, उन्होंने कहा कि हम सौ कुण्ड का यज्ञ करेंगे। हमने कहा—नहीं, एकदम नहीं। एक हजार कुण्ड का यज्ञ करेंगे। हमने कहा—नहीं एकदम नहीं। हमने हर एक को मना कर दिया और कहा कि पाँच कुण्ड से ज्यादा का नहीं। हमाराकहना जो मानता है, हमारे कहने पर जो चलता है, उसके पाँच कुण्ड से ज्यादा का यज्ञ करने की बिल्कुल इजाजत नहीं, कोई जरूरत नहीं है। जो ऐसा नहीं करते उसके लिए हमारी कोई आज्ञा नहीं है, हमारी कोई सलाह नहीं है, कोई परामर्श नहीं और हमारा कोई सहयोगनहीं है। आपको पाँच कुण्ड की वेदियाँ बना करके, जिसकी की लागत दो, एक रुपये आती हो, उसमें आप बड़े मजे से हवन कर सकते हैं। इस प्रकार से हमारे एक लाख हवन इस साल में जरूर पूरे हो जाएँगे। यह संसार के इतिहास में एक अनोखी बात होगी कि एक लाखकुण्ड का हवन हुआ था। इसका एक तरीका यह भी हो सकता है कि हर जगह महीने में एक बार पाँच कुण्ड का हवन कर लिया करें और सबका जन्म- दिन मना लिया करें, जिसमें संगीत भी हो जाए, प्रवचन भी हो जाए, प्रज्ञा- पुराण की कथा भी हो जाए, बस! महीने भरमें एक सम्मेलन और पाँच कुण्ड का यज्ञ इतना काफी है।
इस तरीके से एक लाख यज्ञों की हमारी योजना है। गाड़ियाँ हमारे पास हैं। यहाँ से गाड़ियों में प्रचारक जत्थे भी भेजने हैं। गाड़ियों के प्रचारक जत्थे हम उन्हीं- उन्हीं जगहों में भेजेंगे, जहाँ- जहाँ बड़े आयोजनों की जरूरत समझी जाएगी। उसमें आपको केवल गाड़ी का पेट्रोलखर्च देना पड़ेगा और कोई खर्च नहीं देना पड़ेगा। हमारे कार्यकर्ता जाएँगे, उनको दक्षिणा देनी पड़ेगी? नहीं, बिलकुल नहीं! माइक—लाउडस्पीकर, यज्ञशाला—पाण्डाल, टेप आदि जितनी भी जरूरत की चीजें है, हर चीज हम यहाँ से भेजेंगे। पर अभी थोड़ी देर है। इस समयमें दंगे- फसाद ज्यादा हो रहे हैं, कहीं पंजाब में दंगे हो रहे हैं, कहीं हिन्दू- मुस्लिम दंगे हो रहे हैं, इसलिए अभी इसको स्थगित कर दिया है। जब दंगे शान्त हो जाएँगे तब कार्यक्रमों के लिए टोलियाँ अवश्य भेजेंगे। हिन्दुस्तान में शान्ति जल्दी आ जाएगी, उसके आने मेंबहुत देर नहीं है। दो कार्यक्रम समझ में आ गए न आपके? पहला काम तो यह कि आपको प्रज्ञा प्रशिक्षण आयोजन के लिए सबसे ज्यादा जोर देना है। अपने यहाँ झोला पुस्तकालय और संगीत विद्यालय चलाना है। बस, ये दो काम आप अपने यहाँ कर लेते हैं तोसमझना चाहिए कि सब काम ठीक हो गया।
इस साल के लिए जो आपके जिम्मे काम दिये गये हैं, उनमें से तीसरा काम है—वृक्षारोपण। हवन करना और वृक्षारोपण लगभग एक ही बात है। वातावरण में कितना मिल गया है जहर? हवा में, पानी में कितना जहर मिल गया है। हर जगह जहर ही जहर है। इस जहरका समाधान करने के लिए या तो यज्ञ ही काम देगा या काम देगा पेड़ों का लगाना। नहीं साहब हमारे पास तो जमीन नहीं है, खेत भी नहीं है, तो आप ऐसा कीजिए कि अपने घर में शाक- वाटिका लगा लीजिए। छोटे- छोटे तुलसी के पौधे लगा लीजिए। यहाँ हमारे शांतिकुंजमें आप आये होंगे तो आपने देखा होगा कि हमने जड़ी- बूटियों का कितना बड़ा उद्यान लगाया हुआ है और इस उद्यान में से कितने आदमी फायदा उठाते हैं? आप भी घरेलू जड़ी- बूटी पैदा करके लोगों को दे सकते हैं, इलाज कर सकते हैं। चिकित्सक बनकर लोगों कीबीमारियाँ भी दूर कर सकते हैं। साथ- साथ जब आगे आप लोगों को हवन करने पड़ेंगे तो उन पौधों से उनके पत्तों से हवन- सामग्री भी तैयार कर सकते हैं। यह बात हमने हर एक से कही है। इसलिए आपसे भी कह रहे हैं। एक पेड़ तो आप लगा ही सकते हैं। कहीं पर लगादीजिए। घर- आँगन में लगा लीजिए, सरकारी जमीन में लगा दीजिए अथवा पड़ोस में लगा दीजिए और कहिए भाईसाहब यह पेड़ तो हम लगा देते हैं पर यह आगे चलकर तुम्हारा हो जाएगा। वातावरण के परिशोधन के लिए हमने इस बार वृक्षारोपण पर जोर दिया है। यहहुआ काम नम्बर तीन।
चौथे नम्बर का काम यह है कि पहले जो शक्तिपीठें बनी थीं, वे तो बहुत बड़ी- बड़ी बनी थीं। उनमें तो लाखों रुपये खर्च हुए थे, लेकिन लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद भी जो काम होने चाहिए थे वे नहीं हुए। अब उनके स्थान पर आप ऐसा कर सकते हैं कि कहीं किराये कामकान ले लें, धर्मशालाएँ भी जगह- जगह खाली पड़ी रहती हैं, उनमें से आप दो कमरे माँग सकते हैं। किसी भले आदमी से कह दीजिए कि आप चार घण्टे के लिए यह स्थान दे दीजिए, इसमें हमको प्रौढ़- शिक्षा चलानी है, बाल- संस्कार शाला चलानी है और अपना प्रज्ञाप्रशिक्षण विद्यालय चलाना है। हमें तो चार घण्टे के लिए चाहिए, बाकी समय आप अपने काम में इसका इस्तेमाल कीजिए। जब आप काम पर जाएँगे तब हम अपने प्रशिक्षण इसमें चला लेंगे, ऐसा स्थान भी मिल सकता है। अगर ऐसे नहीं मिलता तो, आप कहीं एकटीन शेड या खपरैल, छप्पर डालकर ऐसी एक झोपड़ी बना लें, जिसमें कोई पच्चीस- तीस आदमी बैठ सकते हों।
शक्तिपीठों का हमने नया पैटर्न दिया है। ये शक्तिपीठें सौ रुपये में भी बन सकती हैं। इसमें आप गायत्री माता का एक फोटो लगा दें। उसी को सब प्रणाम कर लिया करें, वहीं बैठकर गायत्री मंत्र का उच्चारण कर लिया करें तो यह भी शक्तिपीठ हो जाएगी। सौ रुपये मूल्यमें भी शक्तिपीठ बन जाएगी। उसमें यह प्रशिक्षण—शिक्षण कार्य चलना चाहिए। शिक्षणक्रम चलेगा तो हमारी जीवात्मा प्रसन्न होगी, शक्तिपीठों को बनाने का हमारा उद्देश्य पूरा होगा। इससे देश के ऊँचा उठने में, आगे बढ़ने में तो सहायता मिलेगी ही, पर साथ हीव्यक्तित्व के विकास में सुगमता रहेगी। हम व्यक्ति में श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण करें, उन्हें आगे बढ़ाएँ तभी हमारा व्यक्ति- निर्माण और समाज- निर्माण का उद्देश्य पूरा हो सकेगा। हमारे शक्तिपीठ जनजाग्रति के केन्द्र बनें। ये चार काम हमने आपको बताएँ हैंऔर पाँचवाँ काम बता करके हम अपनी बात समाप्त करेंगे।
पाँचवाँ काम यह है कि जब भी आपको हरिद्वार आना हो तो आप शांतिकुंज जरूर आइए। शांतिकुंज में हम रहेंगे? हाँ, शांतिकुंज में हम बराबर बने रहेंगे। अभी जब तक युगसंधि का समय है, तब तक हम यहाँ बराबर बने रहेंगे। माताजी का प्राण और हमारा प्राण एवं यहाँकी तपश्चर्या की ऊर्जा, यह सारे वातावरण में भरी रहेगी। जब कभी आपको आना हो तो प्रसाद लेकर जरूर जाइये, यहाँ ठहरकर जरूर जाइये, इसे देखकर जरूर जाइये, शांतिकुंज में, ब्रह्मवर्चस् में कितने बड़े काम होते रहते हैं, ऐसे बड़े काम हो रहे हैं, जो संसार में कभीनहीं हुए होंगे। न कभी आपने ऐसे तीर्थ देखे होंगे, न कभी ऐसे कोई और स्थान देखे होंगे। इन स्थानों को देखने के लिए अपने कुटुम्बियों सहित आइए। शांतिकुंज बहुत ही उपयोगी जगह है। हम चाहते हैं कि ब्याह- शादियों में अनावश्यक खर्च होना बन्द हो जाए। हमचाहते हैं कि हिन्दुस्तान की गरीबी खत्म होनी चाहिए। गरीबी दूर करने के लिए आपकी आमदनी बढ़नी चाहिए। आमदनी बढ़ाने का एक तरीका यह भी है कि खर्च घटना चाहिए। खर्च हिन्दू समाज में सबसे ज्यादा ब्याह- शादियों में होता है। ब्याह- शादियों का खर्च आपकम कीजिए। वहाँ घर में आपके पड़ोसी और रिश्तेदार अगर आपको हैरान करते हों, तो अपने बच्चों की शादी आप यहाँ शांतिकुंज में सम्पन्न कराइए। आप अपनी बच्ची और वर एवं उसके माँ- बाप के साथ यहाँ आ जाएँ। गाड़ी का किराया- भाड़ा तो लगेगा आपका, लेकिन संस्कार सम्पन्न कराने का न आपको पैसा खर्च करना पड़ेगा, न ही किसी को दक्षिणा देनी पड़ेगी। सारी की सारी व्यवस्थाएँ यहाँ हर समय तैयार रहती हैं। आपको बच्चों का मुण्डन- संस्कार कराना हो, अन्नप्राशन संस्कार कराना हो, विद्यारम्भ संस्कार करानाहो, यज्ञोपवीत संस्कार कराना हो तो आप सहर्ष यहाँ के वातावरण में आकर सम्पन्न करा सकते हैं।
मित्रो! यह दिव्य वातावरण का क्षेत्र है। यहाँ शांतिकुंज में उच्चस्तर का माहौल मौजूद है। गंगा का तट, हिमालय की छाया और सप्तऋषियों की तपोभूमि है यह। यहाँ साधना से ओत- प्रोत वातावरण है। यहाँ अखण्ड दीपक स्थापित है और अखण्ड जप भी निरन्तर चलतारहता है। नित्य- नियमित रूप से नौ कुण्ड की यज्ञशाला में अग्निहोत्र होता है, यह बात अभी सभी लोग जानते ही हैं। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण यह स्थान ऐसा बन पड़ा है, जिसमें रहने वाला, साधना करने वाला व्यक्ति सहज ही उच्चस्तरीय प्राण- ऊर्जा से भरउठता है और उसे जीवनोत्कर्ष की भावभरी प्रेरणाएँ मिलती हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अपने स्तर का अनुपम स्थान है यह शांतिकुंज। सप्तऋषियों की तपोभूमि, सप्तधारा वाले क्षेत्र में गायत्री महातीर्थ का निर्माण किया गया है। इस संस्कारित भूमि में अभी भी गायत्रीके तत्त्वदृष्टा ऋषि विश्वामित्र की पुरातन संस्कार चेतना मौजूद है। शांतिकुंज में रहने वाले तथा बाहर से आने वाले आगन्तुक सभी बड़ी मात्रा में साधना करते हैं और आत्मबल प्राप्त करते हैं। आत्मबल को अन्य सभी बलों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाताहै। ओजस्, तेजस्, और वर्चस् उसकी विशेष उपलब्धियाँ हैं। यहाँ के वातावरण में रहने पर भाव संवेदना का उभार सहज ही होने लगता है। यह प्रत्यक्ष उपलब्धियाँ हैं और परोक्ष वे हैं, जिसमें हिमालय की सूक्ष्म शरीरधारी सत्ताओं और सप्तऋषियों के अनुदान बरसतेरहते हैं। जिस दैवी सत्ता ने महान परिवर्तन की रूपरेखा बनायी है, उसी ने इस भूमि का चयन और निर्धारण भी किया है। इस भूमि का पूजन और परिशोधन किया है। उसी दैवी- सत्ता ने यहाँ बैटरी चार्ज करने जैसी अतिरिक्त व्यवस्था भी बनायी है। जिसके प्रवाह से सभीको अनुप्राणित होने का अवसर मिलता है। जो इसके साथ भावनापूर्वक जुड़ जाते हैं, वे यहाँ के वातावरण में व्याप्त दिव्य प्राण- ऊर्जा से लाभान्वित होते हैं और थोड़े समय में ही बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। शांतिकुंज की शिक्षण व्यवस्था दैवी- कृपा से ऐसी है जिस पररामायण की यह चौपाई अक्षरशः लागू होती है, जिसमें कहा गया है कि—
गुरु गृह गये पढ़न रघुराई।
अलप काल विद्या सब आई।।
साथियो! यह गंगोत्री का वह क्षेत्र है—जहाँ से ज्ञान गंगा निकलती है। गोमुख से गंगा निकलती है। आप यह मानकर चलिए कि यह गोमुख है। कौन- सा? शांतिकुंज। यहाँ से चारों ओर को ज्ञान का प्रकाश फैला है। चारों ओर को गंगा की धाराएँ बही हैं और चारों ओरहरियाली फैली है। यहाँ से हमने चारों ओर को जेनरेटरों के तरीके से प्रकाश फैलाया है। यह प्रकाश का केन्द्र है, यह सामान्य नहीं, असामान्य है। आपने कई तीर्थ देखे होंगे, कई बार गंगा स्नान किये होंगे, कई मंदिर देखे होंगे, पर आपको शांतिकुंज में दुबारा आये बिना चैननहीं पड़ेगा और न पड़ना चाहिए। जो कोई भी आपके मिलने- जुलने वाले हों, मित्र हों, उनसे एक बार यह जरूर कहिए कि जब कभी हरिद्वार जाना हो तो आप शांतिकुंज हो करके जरूर आना। ब्रह्मवर्चस में क्या गतिविधियाँ चलती हैं? उन्हें देखकर के आना। यह देखकरआना कि जो आदमी कई हजार रुपया महीना कमाते थे, उन्होंने नौकरी को ठोकर मार दी और औसत भारतीय स्तर का कैसा ब्राह्मणोचित जीवनयापन कर रहे हैं? साधू- बाबाजी तो ऐसे होते हैं, जो कभी भीख माँग लेते हैं, कभी यह कहकर लेते हैं, कभी वह कहकर लेतेहैं पर वे बिना पढ़े- लिखे होते हैं; लेकिन हमारे यहाँ ग्रेजुएट हैं, नौकरियों वाले हैं। ऐसे होनहार बच्चे सब कुछ छोड़- छाड़ करके निष्ठापूर्वक बारह- बारह घण्टे काम करते हैं और भगवान का भजन भी करते हैं। आपको यहाँ हर समय, हर व्यक्ति मिशन के कार्य में व्यस्तदीखेगा। यहाँ कोई आदमी आपको हाथ पसारता हुआ या यह कहता हुआ नहीं पाया जाएगा कि हमको भीख दीजिए, हमको पैसा दीजिए, हमको दान दीजिए, हमको दक्षिणा दीजिए—इनका कोई जिक्र नहीं करेगा। वह आपकी सेवा करेगा। इसलिए यहाँ शान्तिकुंज में जबकभी भी आपका आने का मन हो या आप जब कभी हरिद्वार आएँ तो शान्तिकुंज देखना न भूलें।
जो कोई भी आपके मिलने वालों में से यहाँ आयें तो शान्तिकुंज देखना न भूलें। बस यही आपके लिए आज का सन्देश था।
एक बार फिर सुन लीजिए कि आपको क्या- क्या करना है? पहली बात यह कि आपको यहाँ के लिए एक आदमी, एक युगशिल्पी भेजना है, जो यहाँ से महीने भर में सीख करके जाए और वहाँ जाकर शिक्षण कार्य करे। वह आपके क्षेत्र का अध्यापक होगा—मास्टर होगा।फिर आपको हमें बुलाना नहीं पड़ेगा। आप उसी के द्वारा काम चला लेंगे। दूसरा काम आपको यह बताया है कि प्रज्ञा प्रशिक्षण विद्यालय हमारी एक लाख शाखाओं में चलने चाहिए। शाखाएँ तो बहुत हैं, हमारे प्रज्ञा संस्थान तो हैं, स्वाध्याय मण्डल तो बहुत हैं, शक्तिपीठेंतो बहुत हैं, पर इन सबमें प्रज्ञा प्रशिक्षण विद्यालय अवश्य चलने चाहिए। फिर आपसे यह कहा है कि आप अपने यहाँ पाँच कुण्ड का हवन कराने की व्यवस्था करें। प्रत्येक आदमी का जन्मदिन मनाएँ, गायत्री परिवार के प्रत्येक आदमी का जन्मदिन मनाना ही चाहिएऔर महीने भर में पाँच कुण्ड का हवन प्रत्येक शाखा में, प्रत्येक जगह, प्रत्येक स्थान पर होना ही चाहिए। इसके अतिरिक्त वहाँ जो संगीत मण्डलियाँ तैयार हुई हैं, उन्हें गाने का मौका मिलना चाहिए, बजाने का मौका मिलना चाहिए, कहने का मौका मिलना चाहिए।
मित्रो! एक बात मैंने और कही है और वह यह कि आपको पेड़ लगाना चाहिए। जितने अधिक से अधिक पेड़ आप लगा सकते हों जरूर लगाइये। अपने पुरखों के नाम पर पेड़ लगाइये और पुण्य कमाइए। इन पेड़ों को आप खेतों में लगाइये, आँगन में लगाइये, बेकार पड़ीजमीन में लगाइये, इसके अलावा हमने यह कहा था कि शांतिकुंज आपको निमंत्रण देता है। आप यहाँ आइए और यहाँ के वातावरण में विद्यमान प्राण- ऊर्जा से लाभ उठाइये। आप हमारा ब्रह्मवर्चस शोध- संस्थान देख करके जाइए कि यहाँ कितना बड़ा रिसर्च हो रहा है? आप यहाँ देखिये कि नौ कुण्ड का हवन किस तरीके से होता है? आप यहाँ देखिये कि सारे हिमालय का केन्द्रीभूत करके मन्दिर कैसे बनाया गया है? आप यहाँ देखिये कि गायत्री माता और अन्य देवी- देवताओं सम्बन्धी तथ्य किस प्रकार व्यक्त हैं और कैसे विद्यमानहैं? आप यहाँ आइए और देखिये कि सन्त किसे कहते हैं? ब्रह्मचारी किसे कहते हैं—जिन्होंने अपने घर को त्याग करके, हजारों रुपयों की नौकरी को ठोकर मारकर यहाँ दिन- रात काम करते हैं। आपसे यह निवेदन है कि इन सब बातों को आप यहाँ जरूर देखकर जाइये।आपसे यह आशा- अपेक्षा है कि आप ये हमारी चारों- पाँचों बातों को ध्यान रखेंगे। यदि आप इतना करेंगे तो हम आपको अपना मित्र समझेंगे, सहयोगी समझेंगे और यह समझेंगे कि हमारे कन्धे से कन्धा और पैरों से पैर मिलाकर चलने वाले हमारे भाई हैं, कुटुम्बी हैं।आपसे हमें ऐसी उम्मीद है और आपको यह करना ही चाहिए। आज की बात समाप्त।
ॐ शान्तिः