उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
मनुष्य की सामान्य शक्ति सीमित है। प्रत्येक प्राणी को भगवान ने उतना ही सामान दिया है कि वह अपने जीवन का गुजारा कर लें। कीड़े-मकोड़ों को, पशुओं को, पक्षियों को इतना ही ज्ञान, साधन, शक्ति और इन्द्रियाँ मिली हैं, ताकि अपना पेट भर लें और वंशवृद्धि की इच्छा पूरी करने के लिए औलाद पैदा करता रहे, लेकिन अगर आपको कुछ इससे ज्यादा जानना हो या प्राप्त करना हो, तब आपको वहाँ जाना पड़ेगा, जहाँ शक्तियों के भण्डार भरे पड़े हैं, एक जगह ऐसी है, जहाँ बहुत शक्तियाँ भरी पड़ी हैं, जहाँ सम्पत्ति का कोई ठिकाना नहीं, जहाँ समृद्धि भरी पड़ी है। सारे विश्व का मालिक भगवान है, यह सब उसी का तो सामान है। यह उसके भण्डार का एक छोटा-सा हिस्सा है। आपको अगर सम्पत्तियों की जरूरत है, सफलताओं की जरूरत है, विभूतियों की जरूरत है, तो अपना पुरुषार्थ इस काम में खर्च कर दीजिए कि भगवान के साथ में रिश्ता बना सकें, उसके साथ में स्वयं को जोड़ने में समर्थ हो सकें। यही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। आप किसी मालदार आदमी के साथ में रिश्ता मिला लें, तो मजा आ जाए।
लालबहादुर शास्त्री का नाम सुना है आपने? लाल बहादुर शास्त्री बिल्कुल छोटे आदमी थे; लेकिन पण्डित नेहरू के साथ में उन्होंने गहरे सम्बन्ध बना लिये। उनकी वजह से एम.एल.ए. भी हो गये, उनकी वजह से यू.पी. के मिनिस्टर भी हो गये, उनकी वजह से सेण्ट्रल गवर्नमेण्ट के मिनिस्टर भी हो गये। फिर उनके मरने के पश्चात् उनके उत्तराधिकारी भी हो गये। बहुत शानदार आदमी थे—लालबहादुर शास्त्री। यह उनके अपने पुरुषार्थ का उतना फल नहीं था, जितना नेहरू जी के सहयोग का था। उन्होंने यह देख लिया था कि यह आदमी बड़ा उपयोगी है और इसकी सहायता करनी चाहिए। उसकी सहायता से उन्होंने भी लाभ उठाया। इसलिए उनकी भरपूर सहायता की पण्डित नेहरू ने। ठीक यही बात हर जगह लागू होती है।
एक सर्वशक्तिमान सत्ता है भगवान। उसके साथ अगर आप नाता जोड़ लें, तो आपकी मालदारी का कोई ठिकाना नहीं रहेगा। आप इतने सम्पन्न हो जाएँगे कि मैं कह नहीं सकता आपसे। आप बापा जलाराम के तरीके से सम्पन्न भी हो सकते हैं, आप सुदामा के तरीके से धनवान भी हो सकते हैं, सुग्रीव के तरीके से, मुसीबतों से बचकर खोया हुआ राजपाट पा सकते हैं, आपके यहाँ नरसी मेहता के तरीके से हुण्डी भी बरस सकती हैं। उसके यहाँ कोई कमी नहीं है। यहाँ जो आपको बुलाया गया है, उसका एक काम यह भी है आपसे कहा जाए, कि आप भगवान के साथ में अपना रिश्ता जोड़ लीजिए। आप पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं। उसका मतलब यह है कि आप इन उपायों के द्वारा अपना रिश्ता भगवान के साथ जोड़ लें। और भगवान के साथ रिश्ता जुड़ गया, तो मजा आ जाएगा।
एक गरीब घर की लड़की की किसी मालदार पति से शादी हो जाए, तब वह दूसरे दिन ही उसकी मालकिन हो जाती है, कब? जब उसने रिश्ता मिला लिया, तब। बस, मुझे भी यही कहना था। रिश्ता मिलाने में आप जो ख्याल करते हैं कि रिश्वत देनी पड़ती है, चापलूसी करनी पड़ती है वह ख्याल गलत है। रिश्वत देकर भगवान को अपना मित्र बना सकते हैं और उनका अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं—ऐसा मत सोचिये और यह मत विचार कीजिए कि जीभ की नोंक से कुछ मीठी बातें, कुछ चापलूसी भरी बातें सुनाने के बाद भगवान को आप अपना बना सकते हैं। आप भगवान की समझदारी पर यकीन कीजिए। भगवान आपकी जुबान को नहीं, आपकी नियत देखता है, दृष्टिकोण को देखता है, चरित्र को देखता है, चिन्तन को देखता है और आपकी भावनाओं को देखता है; अगर इस क्षेत्र में आप सूने हैं, तब आपके कर्मकाण्ड भी ज्यादा कारगर नहीं हो सकते। आपने देखा होगा, कितने पण्डित हैं जो कि विधि-विधान जानते हैं, कर्मकाण्ड जानते हैं, फिर भी खाली रहते हैं। आपने देखा है, कितने साधु-महात्मा हैं जो तरह-तरह के जप करते हैं, तिलक लगाते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, तीर्थयात्रा करते हैं, स्नान-पूजन करते हैं; लेकिन उनकी नीयत, भावना और उनका दृष्टिकोण ऊँचा नहीं हुआ तब, उनका व्यक्तित्व ऊँचा नहीं हुआ तब, अन्तःकरण ऊँचा नहीं हुआ तब; तब उनका लाल-पीले कपड़े पहन लेना और तरह-तरह के आडम्बर बना लेना, तरह-तरह के क्रिया-कलाप कर लेना, बिल्कुल बेकार चला जाता है। सामान्य नागरिक से भी गये-बीते स्तर की जिन्दगी जीते हैं। भगवान की कृपा प्राप्त करने का जो असली रहस्य है, उसको आपको जानना ही चाहिए। उसके लिए क्या करना होगा? आपको उसके साथ में जुड़ जाना होगा। जुड़ जाने को ही उपासना कहते हैं। किस तरीके से जुड़ें?
मैं आपको कुछ थोड़े-से उदाहरण बताऊँगा। आपने आग में लकड़ी को मिलते हुए देखा है? लकड़ी की क्या कीमत है! दो कौड़ी की लकड़ी अगर आग के साथ मिला दी जाए, तो थोड़ी-सी देर में लकड़ी गरम होने लगती है और फिर आग हो जाती है; फिर उसे आप छू भी नहीं सकते। जो गुण आपके हैं, भगवान के हैं, देवता के हैं, वही गुण परस्पर लकड़ी और अग्नि के भी हैं। बस, ठीक यही तरीका व्यक्ति को और जीवात्मा को परमात्मा के साथ मिलाने का है तो क्या करें, नजदीक आ जाएँ? वही मैं कर रहा हूँ। नजदीक आने का एक तरीका है, वह तरीका है—अपने आपको सौंप देना, अपने आपको होम देना, उसकी इच्छाओं पर चलना। लकड़ी अपने आपको होम देती है, सौंप देती है, आग उसको जलाती है, वह जलने को रजामन्द है। ऐसी स्थिति में तो वह उसी के साथ घुलेगी-मिलेगी। हमारी-आपकी नीयत वैसी हो, तो हम भगवान के साथ घुल-मिल जाएँगे, उनको अपने में नहीं मिला लेंगे। उनको अपनी मर्जी के मुताबिक़ नहीं चलाएँगे, बल्कि हम उनकी मर्जी के मुताबिक़ चलेंगे। इसी का नाम समर्पण है, इसी का नाम विलय है, इसी का नाम विसर्जन है, इसी का नाम शरणागति है। बहुत-से नाम इसके दिये गये हैं। उपासना का तत्त्व और ज्ञान इसी पर चढ़ा हुआ है कि आप भगवान के अनुयायी होते हैं कि नहीं, आप भगवान का अनुशासन मानते हैं कि नहीं, आप भगवान् की इच्छानुसार चलते हैं कि नहीं, आप भगवान के बताये हुए इशारे और संकेत पर अपने कदम बढ़ाते हैं कि नहीं? एक ही प्रश्न है, बस। आपका वो ख्याल ठीक नहीं है कि हम भगवान को अपनी मन-मर्जी पर चला सकते हैं। आप भगवान को क्यों मर्जी पर चलाएँगे? भगवान आपकी मर्जी पर क्यों चलने लगे? भगवान के भी कुछ नीति और नियम हैं, कुछ मर्यादा और कायदे हैं। आपकी खुशामद की वजह से, आपकी मनोकामना पूरी करने के लिए क्या भगवान अपनी नीति को छोड़े देंगे, नियम को छोड़ देंगे, मर्यादा को छोड़ देंगे, कायदे-कानून को छोड़ देंगे? क्या अपने आप पर पक्षपात का इल्जाम लगवाएँगे, पक्षपाती होने का कलंक लेंगे? नहीं, भगवान ऐसा कर नहीं पायेंगे। आपके मन में यह ख्याल हो कि मिन्नतों और खुशामदों से भगवान को अपने नजदीक ला सकते हैं, तो यह ख्याल छोड़ दीजिए। तो क्या करना पड़ेगा? यह करना पड़ेगा कि आप अपने आप को सौंप दीजिये, अपने आप को उनके हाथ की कठपुतली बना दीजिये और देखिये भगवान क्या-से काम करते हैं? पानी दूध में मिल जाता है और उसकी कीमत दूध के बराबर हो जाती है। एक छोटी-सी बूँद, नाचीज बूँद समुद्र में गिरती है और अपनी हस्ती को नेस्तनाबूद कर देती है; छोटी-सी बूँद भी समुद्र की कीमत की हो जाती है, इसकी हैसियत समुद्र के बराबर की हो जाती है। नाला नदी में शामिल हो जाता है; जबकि नाला दो कौड़ी का, गन्दा, कीचड़ से भरा हुआ होता है; लेकिन जब वह नदी में शामिल हो गया तब? तब नाले का पानी नदी की तरह पूजा जाता है। गंगा में गिरे हुए नाले भी गंगाजल कहलाते हैं। कैसे हो गया यह? ऐसा इसलिए हो गया कि उन्होंने अपने आप को समर्पित कर दिया। नदी, नाला आप जैसा हो जाता है और कहता गंगाजी, समुद्र से कि आप हमारे में मिल जाइए, हमारे साथ-साथ रहिए, तो ऐसा नहीं हो सकता। भगवान को आप अपने जैसा नहीं बना सकते तथा अपनी मर्जियाँ पूरी कराने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। आपको ही उनके पीछे चलना पड़ेगा।
पारस के बारे में सुना है आपने? पारस को छूते ही लोहा सोने का हो जाता है। लोहा बदल जाता है। लोहा वैसा ही बना रहे और पारस के कहे आप सोना बन जाइए, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। पारस सोना नहीं बन सकता। लोहे को बदलना पड़ेगा। चन्दन के पास उगे कुछ पौधे चन्दन की खुशबू लेते हैं और चन्दन बन जाते हैं। आप तो यह चाहते हैं कि चन्दन को हम जैसा बन जाना चाहिए। चन्दन आप जैसा नहीं बन सकता। छोटी झाड़ियों को चन्दन जैसा खुशबूदार बनना चाहिए। चन्दन बदबूदार झाड़ी नहीं बन सकता। आप भगवान पर दबाव मत डालिए। आप उनके साथ लिपट जाइए। आपने देखा होगा, बेल पेड़ के साथ में लिपट जाती है और पेड़ जितना ऊँचा है, उतनी ही ऊँची होती चली जाती है। अगर बेल अपनी मनमर्जी से फैलती, तो सिर्फ जमीन पर फैल सकती थी। इतना ऊँचा उठना सम्भव नहीं थी। ऊँची कैसे हो गई? क्योंकि वह उससे गुँथ गई, लिपट गई। आप भी भगवान में गुँथ जाइए, लिपट जाइए, फिर देखिये आपकी ऊँचाई बेल के बराबर होती है कि नहीं। भगवान बहुत ऊँचे हैं। आप उनके अनुशासन पर जरा चलिए ना, उनकी इच्छा के हिसाब से चलिए ना, फिर देखिए आप भगवान के बराबर के बनते हैं कि नहीं। आप भगवान के बराबर के बन जाएँगे। आपने बच्चों के हाथ में लगी हुई पतंग देखी होगी। उसके हाथ में पतंग का सिरा होता है और झटका देते रहते हैं। इससे पतंग उस आसमान पर जा पहुँचती है। पतंग अपनी डोरी को बच्चे के सुपुर्द न करे, तब? उड़ाने वाले के सुपुर्द न करे, तब? उसको जमीन पर पड़ा रहना पड़ेगा। अगर आप भी अपने जीवन की डोर और आधार भगवान के हाथ में नहीं छोड़े तब, उसकी मर्जी के अनुसार नहीं चलें तब, आप पतंग के तरीके से आसमान में उड़ने की इच्छाएँ मत कीजिए। आपने देखा होगा, दर्पण में जो चीज सामने आती है, दर्पण वैसा ही दिखाई पड़ने लगता है। आपके जीवन में चारों ओर से कल्मष छाया हुआ है। इसलिए आपका दर्पण, आपका मानसिक स्तर भी वैसा ही बन जाएगा; लेकिन अगर आप भगवान को सामने रखें, उसके नजदीक जाएँ, तो आप देखेंगे कि आपके जीवन में भगवान की छवि है और भगवान की आभा तथा भगवान की शक्ति उसी तरीके से बन जाती है, जैसा कि दर्पण के सामने खड़े आदमी की बन जाती है। आपने वंशी देखी होगी। वंशी अपने आपको पोली कर देती है, खाली कर देती है। पोली और खाली होने के बाद बजाने वाले से कहती है कि आप जो कहेंगे, वही मैं गाऊँगी। बस, बजाने वाला फूँक मारता जाता है, वह बजती जाती है। भगवान को फूँक मारने दीजिए और आप बजने के लिए तैयार हो जाइये।
कठपुतली आपने देखी होगी। कठपुतली के धागे बाजीगर के हाथ में लगे होते हैं। बाजीगर इशारा करता जाता है, कठपुतली नाचना शुरू कर देती है। दुनिया को दिखाई पड़ता है कि कठपुतली का नाच कितना शानदार हुआ; पर वास्तव में कठपुतली का नाच नहीं है, बाजीगर का है; बाजीगर का भी नहीं, धागों का; धागों का भी नहीं कठपुतली के समर्पण का है। कठपुतली ने अपने में हर तरीके से धागे बँधवाये और अपने को बाजीगर के हाथों में सौंप दिया। बस, यही आपको करना पड़ेगा। कठपुतली के तरीके से अगर बाजीगर के हाथ में आप जिन्दगी की नाव को सौंप सकते हों, अपने विचार और चिन्तन सौंप सकते हों और अपनी इच्छाएँ एवं आकांक्षाएँ सौंप सकते हों, फिर आप देखिए कैसा मजा आता है? आप सब उस जनरेटर से सम्बन्धित हो जाइए, जिसके साथ में जुड़ने पर ही बल्ब जलते हैं। पंखे भी तभी चलते हैं, जब वह बिजली से जुड़ जाते हैं। बिजली से बल्ब को नहीं जोड़ते हैं, तो उसकी कीमत क्या है? कुल ढाई रुपये, उसे रखे रहिए आप, कोई फायदा नहीं। आप हीटर नहीं हो सकते, आप कूलर नहीं हो सकते, आप बिजली के पंखे की हवा नहीं पा सकते। जब आप अनन्त शक्ति के साथ जुड़ेंगे, तो देखिये आप कितने कमाल करते हैं, इसलिए आदमी की सबसे ज्यादा समझदारी यह है कि वह अपने को भगवान के साथ में जोड़ ले, शक्तियों के साथ में अपना रिश्ता बना ले। यह कठिन है? बिल्कुल कठिन नहीं, बहुत सरल है। आपने देखा होगा नल टंकी के साथ में जुड़ जाता है। टंकी में तमाम पानी भरा पड़ा है। नल में क्या है? कुछ भी तो नहीं है; लेकिन टंकी में भरे पानी के साथ में उसने अपना रिश्ता बना लिया, तो जब तक टंकी में पानी भरा हुआ है, तब तक बराबर आपको पानी मिलता रहेगा। हमने भी भगवान के साथ में अपने आपको जोड़कर रखा है। भगवान की जो सम्पदा है, उसकी जो विभूतियाँ हैं, भक्त की अपनी होती जाती हैं। इसके लिए क्या करना पड़ेगा? सौंपना पड़ेगा अपने आपको। उनको बहला-फुसला सकते हैं, ऐसा मत सोचिए; कहना तो आपको ही मानना पड़ेगा। समर्पण आपको ही करना पड़ेगा, बीज आपको ही बोना पड़ेगा। आप बीज बोइए, फिर देखिए कैसी फसल आती है। मक्का का एक दाना बो देते हैं, तो उसमें से छह भुट्टे आते हैं। एक-एक भुट्टे में हजार-हजार दाने होते हैं। एक बीज के छह हजार दाने हो गये न। इसी तरह भगवान की खेती में अपने आपको बोइए न, मिलाइए न। जब तक आप बीज को बोयेंगे नहीं, पोटली में रखे बैठे रहेंगे और यह अपेक्षा करते रहेंगे कि जमीन हमारी फसल पैदा कर दे, तो ऐसा न कभी हुआ है और न हो सकता है। आपने सुना होगा भगवान हमेशा माँगते रहते हैं। पहले हाथ पसारते हैं, फिर कुछ देते हैं। अगर हाथ पर आप अपना कुछ रख नहीं सकते, तो फिर क्या पायेंगे आप! चावलों से उन्हें नहीं खरीद सकते आप, धूपबत्ती से नहीं खरीद सकते, आप आरती करके और कुछ छोटे-मोटे क्रिया-कलाप करके भगवान के अनुग्रह के अधिकारी नहीं हो पायेंगे। फिर क्या करना पड़ेगा? आपको अपना चिन्तन, चरित्र, दृष्टिकोण और भावना, लक्ष्य सब भगवान के साथ जोड़ देना पड़ेगा। अगर आप यह करने को तैयार हो जाएँगे, फिर देखिये क्या-क्या होता है, कितना मजा आता है? पहले भगवान की मर्जी तो पूरी कीजिए, फिर देखिए कुछ मिलता है कि नहीं आपको।
अभी मैंने सुदामा के बारे में बताया था कि सुदामा ने अपनी पोटली दे दी थी। पोटली देने के बाद में क्या भगवान ने कुछ नहीं दिया था? पहले तो भगवान माँगते हुए आते हैं। शबरी के पास भगवान माँगते हुए गयी—अरी! हम बहुत भूखे हैं, खाना खिलाओ। भगवान् उनके लिए क्या सोना-चाँदी लेकर गये थे? हीरा-मोती लेकर गये थे? कुछ नहीं। भगवान कहीं भी जाते हैं, तो मनुष्य की पात्रता को परखने के लिए जाते हैं, उसकी महानता को परखने के लिए जाते हैं, कि आपके पास जो है, हमारे सुपुर्द कीजिए। शबरी ने जूठे बेर ही सुपुर्द कर दिये। सुदामा के पास जो कुछ था, सुपुर्द कर दिया। गोपियों के भी पास गये थे। जाते थे, तो यही पूछते थे, लाइए कुछ दीजिए—छाछ, मक्खन, दही कुछ भी। कर्ण से भी माँगा, बलि से भी माँगा। हर जगह माँगते हैं। जब तक अपने को सौंपने के लिए आमादा नहीं होंगे, तब तक भगवान को अपना नहीं बना सकेंगे।
लैला-मजनूँ की कहानी आपने सुनी है न? एक मजनूँ था, लैला को प्यार करता था और वह चाहता था कि लैला की शादी उससे हो जाए? लेकिन लैला का बाप तैयार नहीं था। उसके बाप ने कहा—नहीं, हम भिखारी के साथ में क्यों शादी करें? लैला ने सोचा—वैसे तो मैं अपनी मर्जी से भी शादी कर लूँ, पर पहले देखूँ तो सही, ऐसा न हो कि वह मुझे अपने मतलब के लिए, अपनी खुदगर्जी के लिए ही शिकंजे में कसना चाहता हो। क्या वास्तव में वह मुझसे प्यार करता है? प्यार का मतलब होता है—देना। अगर प्यार का मतलब देनाा, आप नहीं समझते हैं, प्यार का मतलब आप यह समझते हैं कि भगवान की भक्ति करें और उनको कठपुतली के तरीके से चलाएँ तथा उचित एवं अनुचित जो कुछ भी फायदे हैं, उठा लें, तो आप भक्ति की परिभाषा बदल दें, इस भक्ति को भक्ति कहना बन्द कर दें। भक्ति कैसी होती है? जैसी मजनूँ की थी। मैं मजनूँ की बात कह रहा था न! एक बार लैला ने उसकी परीक्षा लेनी चाही और जानना चाहा कि मजनूँ कैसा है? पहले तो उसने ऐसा इन्तजाम कर दिया कि उसको कुछ पैसे मिल जाया करें, दुकानदारों से खाने को मिल जाया करे। फिर उसने सोचा—ऐसा तो नहीं, कि वह हरामखोर हो और फोकट का खा रहा हो। उन्होंने अपनी बाँदी से यह कहला भेजा कि लैला बहुत बीमार है, तो मजनूँ बड़ा दुःखी हुआ। बाँदी ने कहा—दुःखी होने से क्या फायदा, आप कुछ मदद कीजिए न उनकी। उसने कहा—लैला को हम बहुत प्यार करते हैं। प्यार करते हो तो कुछ दीजिए न। मजनूँ ने कहा—मैं क्या दूँ? बाँदी ने कहा—डॉक्टरों ने यह कहा है कि लैला की नसों में खून का एक प्याला चढ़ाया जाएगा, आप अपना खून देंगे क्या? जिससे कि लैला की जिन्दगी बचायी जा सके। मजनूँ फौरन तैयार हो गया। उसने, जो कटोरा बाँदी लेकर आयी थी, खून से लबालब भर दिया। बाँदी जब खून लेकर चली, तब उसने बाँदी से एक और बात कही—बाँदी जल्दी जाना, अभी कई कटोरे खून मेरे शरीर में है, वह मैं उसके सुपुर्द करूँगा, क्योंकि उससे मैं मुहब्बत करता हूँ और मुहब्बत का मतलब होता है—देना। बाँदी जब एक कटोरा खून लेकर के गयी, तो नकली मजनूँ जो थे, सब भगा दिए गये। लैला ने अपने बाप से कह दिया—जो मुझसे इतनी मुहब्बत करता है और जो मुहब्बत की कीमत को समझता है, उसके ही साथ मैं रहूँगी। लैला और मजनूँ की शादी हो गई।
आपकी भी शादी भगवान के साथ में हो सकती है; लेकिन करना क्या चाहिए? सिर्फ एक बात करनी चाहिए कि भगवान की मर्जी पर चलने के लिए आप आमादा हो जाइए। भगवान जो आपसे चाहते हैं, उसको कीजिए। आपका चाहना भी ठीक है; लेकिन जो आप चाहते हैं, उससे पहले बहुत कुछ दे दिया है भगवान ने। आपको इनसान की जिन्दगी दी है और ऐसी जिन्दगी दी है कि आप अपनी मनमर्जी पूरी कर सकते हैं। मनमर्जी के लिए कोई कमी नहीं है। आपके हाथ कितने बड़े हैं, आपकी जबान और आँखें कितनी शानदार हैं, इसमें आप संतोष कर सकते हैं। अपनी दैनिक जरूरतों की भगवान से अपेक्षा मत कीजिए। आप अपनी हविश, अपनी तमन्नाओं, इच्छाओं, महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भगवान को दुर्वचन कहेंगे। भगवान को मजबूर करेंगे कि कर्तव्य की बात छोड़कर वह पक्षपात करने लगे और कर्मफल की महत्ता को परित्याग कर दें। आप ऐसा मत कीजिए, उनको न्यायाधीश रहने दीजिए। भगवान को बेइज्जत मत कीजिए। आप अपनी मर्जी के लिए उनको पक्षपाती मत बनाइए। वैसे आप बनाना चाहेंगे, तो भी वह ऐसा नहीं करेंगे। इसलिए तरीका एक ही है—आप उस शक्ति के भण्डार के साथ में अपने-आपको मिला दीजिए, जोड़ लीजिए। आपको उनकी मर्जी पर चलना पड़ेगा। आप अपनी आकांक्षाएँ, इच्छाएँ खत्म कीजिए, उन्हीं के हो जाइए और उन्हीं के कहे पर चलिए।
राजा हरिश्चन्द्र बिके थे एक बार और भंगी उनको खरीद ले गया था। भगवान भी चौराहे पर बिकने के लिए खड़े थे। वह आवाज लगाते हैं कि हम बिकने को खड़े हैं, कोई हमको खरीद ले जाए; जो कोई खरीद ले जाएगा, हम उसी की सेवा करेंगे, सहायता करेंगे। आप चाहें, तो उनको खरीद सकते हैं। क्या कीमत है? अपने आपको उनके हाथों बेच दीजिए और उन्हें अपने हाथों खरीद लीजिए। स्त्री अपने हाथों अपने को पति को सौंप देती है, अपने को बेच देती है, लेकिन उसी कीमत पर पति को खरीद लेती है। बस, यही रिश्ता चलता है। यही भगवान् की मर्जी का रिश्ता है। आपको अपने जीवन में यह सब करना ही पड़ेगा और करना भी चाहिए। आप अपने घिनौने चिन्तन को बदल दीजिए, अपने छोटे दृष्टिकोण को परिवर्तित कर दीजिए, लोभ और लालच से बाज आइए और भगवान की सुन्दर दुनिया को ऊँचा बनाने के लिए, शानदार बनाने के लिए राजकुमार के तरीके से कमर बाँधकर खड़े हो जाइए। आप समर्पित हो जाइए, शरणागति में आइए, विराजिए, विसर्जन कीजिए, फिर देखिए आप क्या पाते हैं? आप त्याग नहीं करेंगे, बीज के तरीके से गलेंगे नहीं, तब तक कैसे पा सकते हैं? त्याग करने के लिए जप करना जरूरी तो है; पर काफी नहीं है। उपासना करना, धूपबत्ती जला देना, आरती उतार देना यह सब जरूरी है; पर काफी नहीं है। आपको कुछ ज्यादा करना होगा। ज्यादा करने लिए अपना कलेजा चौड़ा कीजिए और तैयारी कीजिए। आज मुझे यही निवेदन करना था आप लोगों से।
॥ॐ शान्ति:॥