उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।
देवियो! भाइयो!!
बहुत पुराने समय की बात है, जब रावण सीताजी को चुराकर ले गया था और सबके सामने यह समस्या थी कि मुकाबला कैसे किया जाए? रावण से युद्ध कैसे किया जाए? बहुत सारे लोग थे, राजा-महाराजा भी थे, पर किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि रावण से लड़ने के लिए जाए, कौन अपनी जान गँवाए, कौन मुसीबत में फँसे? इसलिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। रामचन्द्रजी कहने लगे कि क्या कोई भी लड़ने हमारे साथ नहीं जाएगा? तो फिर क्या हुआ? देवताओं ने विचार किया और कहा कि भगवान के काम में हमको सहायता करनी चाहिए और सुग्रीव की सेना में, हनुमान की सेना में सम्मिलित होकर रावण से लड़ने के लिए चलना चाहिए। देवताओं ने बन्दर रूप बनाया, रीछ का रूप बनाया। कहाँ रावण और कहाँ बेचारे बन्दर, दोनों का कोई मुकाबला नहीं था, फिर भी वे लड़ने के लिए चल पड़े, क्यों? क्योंकि वे देवता थे। देवता न होते, अगर रीछ-बन्दर रहे होते तो पेड़ों पर फुदक रहे होते, फिर वे सीताजी को छुड़ाने के लिए रामराज्य की स्थापना के लिए, लंका को तहस-नहस करने के लिए भला इस तरह के कार्य कैसे कर सकते थे? लेकिन उन्होंने किया। आप लोगों को मैं रीछ और बन्दर के रूप में देवता मानता हूँ। आज फिर उसी ऐतिहासिक घटना की पुनरावृत्ति होने जा रही है। आप लोग पहले जन्म में देवता हैं। अकेले में जब कभी आपको शान्ति का समय मिले, एकान्त का समय मिले, तब आप अपने अन्दर झाँककर देखना कि आप रीछ-बन्दर हैं या देवता हैं। वास्तव में आप देवता हैं। देवताओं के सिवाय आड़े वक्त में कोई और काम नहीं आ सकता, देवता ही काम आते हैं। आप लोगों में से हर एक को मुझे यही कहना है कि आपको जब कभी अपने आप में मौका मिले तो कहना कि गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुजी ने कहा था कि हमारे भीतर देवता बैठा हुआ है, देवता विराजमान है। देवता जो काम किया करते हैं, वे जिस काम के लिए अपना जीवन लगाया करते हैं, जिसके लिए पुरुषार्थ किया करते हैं, वही पुरुषार्थ हमारे सुपुर्द किया गया है।
एक बात तो मुझे आपसे यही कहनी थी। दूसरी बात यह कहनी थी कि जब महाभारत हुआ था, तब अर्जुन यह कह रहा था कि हम तो पाँच पाण्डव हैं और कौरव सौ है और उनके पास विशाल सेना भी है, जबकि हमारे पास सेना भी नहीं है, थोड़े-से पाँच-पचास आदमी हैं। ऐसे में भला युद्ध कैसे हो सकता है? हम मारे जाएँगे। इसलिए वह इसलिए वह बार-बार मना कर रहा था और कह रहा था कि महाराज हमें लड़ाइए मत, इसमें हमको सफलता नहीं मिल सकती। आप हिसाब लगाइए कि इनसे लड़कर हम फतह कैसे पा सकेंगे? जीत कैसे सकेंगे? तब भगवान ने उससे कहा था कि देखो अर्जुन, इन सबको तो मैंने पहले से ही मारकर रखा है। और तुम्हारे लिए सिंहासन सजाकर रखा है। तुम पाँचों को सिंहासन पर बैठना पड़ेगा, राज्य करना पड़ेगा, ये तो सब मरे-मराए रखें हैं, तुम तो खाली तो खाली तीर-कमान चलाओगे। इसी तरह जो काम मेरा था सो मैंने करके रखा है। इस युग को बदलने के सम्बन्ध में जो महत्त्वपूर्ण कार्य करने हैं, उनके सम्बन्ध में आपको श्रेय तो भर लेना है। जीतना किससे है और हरना किससे है? न किसी से हारना है, न किसी से जीतना है। न किसी को मारना है और न कोई पुरुषार्थ करना है। आपको तो जो विजयी होने का श्रेय मिलना चाहिए और वही श्रेय आपको प्राप्त करना है। अर्जुन ने भी प्राप्त किया था। इससे पहले जब वह ज्यादा बहस करने लगा था कि मेरे बाल-बच्चे हैं, मेरा काम हर्ज हो जाएगा, फलाना हो जाएगा, मुझे टाइम नहीं है, तब कृष्ण भगवान झल्ला पड़े थे और उन्होंने एक हुक्म दिया-‘तस्मात् युद्धाय युजस्व’ लड़, दुनिया भर के बहाने मत बना, लड़ाई कर। भगवान् हमारा क्या होगा? यह पूछने पर श्रीकृष्ण ने कहा था कि तेरी जिम्मेदारी हम उठाते हैं, तू युद्ध कर।
साथियो ! आज गुरुपूर्णिमा का दिन है, आप में से हर एक आदमी की, देवता की जिम्मेदारी हम उठाते हैं। देवता जब रीछ-बन्दर बनकर चले आए थे तो पीछे उनके घर बीवी-बच्चे रह गए थे, कुटुम्ब रह गया था, उन सबको भगवान ने सँभाला था। आपके घर को सँभालने की, व्यापार को सँभालने की, खेती-बाड़ी को सँभालने की, हारी-बीमारी को सँभालने की जिम्मेदारी हमारी है और यह सब जिम्मेदारियाँ हम उठाते हैं। आप हमारा काम कीजिए हम आपका काम करेंगे। हम आपको यकीन दिलाते हैं, आप हमारा विश्वास कीजिए हम आपका काम जरूर करेंगे। पिता ने बच्चे का हर काम किया है। पिता से बच्चे ने जब जो माँगा है, दिया है। जब टॉफी दी है, झुनझुना माँगा तो झुनझुना दिया है। तुम तो छोटे बच्चे हो, इसलिए यही माँगते रहते हो। अब आगे से जो भी कहना हो बेटे लिखकर दे जाना। लिखना और कहना बराबर है और फिर हमारा जवाब सुनते जाना और नोट करके ले जाना कि गुरुजी ने यह वायदा किया है कि चौबीस पुरश्चरणों का जो पुण्य पहले कमाया था उसका और अब हमको तीन साल हो गए हैं, एकान्त मौन रहकर साधना की है, उसकी पुण्य-सम्पदा जो हमारे पास जमा है, उसमें आपका हिस्सा बराबर है। माँ के पेट में जब बच्चा आता है, तब कानूनन उसका हक बाप की जायदाद पर हो जाता है। इसी तरह हमारी कमाई पर आपका हक है। प्रार्थना मत कीजिए, निवेदन मत कीजिए, मनुहार मत कीजिए, वरदान मत माँगिए। आप अपना हक माँगिए, हम आपका काम करते हैं और आपको हक चुकाना पड़ेगा। आप बीमार रहते हैं तो हम आपकी बीमारी को अच्छा करेंगे। आप पैसे की तंगी में आ गए हैं तो हम उस तंगी को भी दूर करेंगे। आप लड़ाई-झगड़े में फँस गए हैं तो हम उसमें भी आपकी मदद करेंगे। आप पर मुसीबत आ गई है तो आपकी ढाल बनकर उस मुसीबत को रोकेंगे।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन का रथ चलाया था, आपका रथ हम चलाएँगे। काहे का रथ? आपके कारोबार का रथ, आपके व्यापार का रथ? आपके धन्धे का रथ, आपके शरीर का रथ, आपकी गृहस्थी का रथ-यह सब हम चलायेंगे, इसका हम वायदा करते हैं, लेकिन साथ-साथ आपसे यह निवेदन भी करते हैं कि आप हमारे रास्ते पर आइए, साथ-साथ चलिए। हमारे कन्धे से कन्धा मिलाइए। इसमें आपको कोई नुकसान नहीं होगा। आप यह यकीन रखिए हमने उन विरोधियों को मारकर रखा है और विजय की माला आपके लिए गूँथकर रखी है। पाँचों पाण्डवों के लिए विजय की मालाएँ बनी हुई रखी थीं। आपको पहनना है, आपको श्रेय भर लेना है। यह जो नवयुग का क्रम चल रहा है, उसमें जब आप भागीदार होंगे तो श्रेय आपको ही मिलेगा। आप पूछें-गुरुजी हमारे बीबी-बच्चों का क्या होगा? बेटे, उनकी जिम्मेदारी हमारी है। यदि वे बीमार रहते हैं तो हम उनकी बीमारियाँ दूर कर देंगे। व्यापार में नुकसान होता है तो तेरे उस नुकसान को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है। तेरे व्यापार में जो घाटा पड़ जाए तो तू हमसे वसूल ले जाना। लेकिन जब बच्चा बड़ा हो जाता है, तब कुछ बड़ी चीज दी जाती है जो छोटे बच्चे को नहीं दी जा सकती। अब आप जवान हो गए हैं। अब हम सबको काम-धन्धे से लगाएँगे और जो हमारे पास बाकी बचा है वह भी आप सबको बाँट देंगे। नहीं गुरुजी, जब आप जाएँगे तब अपनी कमाई भी अपने संग ले जाएँगे? बेटे, हम ऐसा नहीं करेंगे। हम आपको देकर जाएँगे। चाहे वह पुण्य की कमाई हो, चाहे वह सांसारिक कमाई हो, चाहे आध्यात्मिक कमाई हो। उस कमाई में तुम्हारा हिस्सा है।
साथियो ! हमने जीवन भर दिया है। बाप-दादों की दो हजार बीघे जमीन थी, वह हम दे आए और स्त्री के पास जेवर था, वह भी हम दान में दे आए। बच्चों की गुल्लक में पैसे थे वह भी हम दे आए। अब आपके पास कुछ और धन है? नहीं बेटे, धन के नाम पर एक कानी कौड़ी का लाखवाँ हिस्सा भी हमारे पास नहीं है। आपको तलाशी लेना हो या मरने के बाद पता लगाना हो कि गुरुजी के पास क्या मिला, तो मालूम पड़ेगा कि शान्तिकुञ्ज में एक ऋषि रहा करता था और यहाँ की रोटी खाया करता था। बेटे, धन के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन हाँ एक पूँजी है हमारे पास, यदि वह न होती तो हम इतनी बड़ी बात क्यों कहते? हमारे पास वह पूँजी है तप की, जिसको हम सामान्य क्लास का कहते हैं। जिससे हम आपकी मुसीबतों में, कठिनाइयों में सहायता कर सकते हैं। दूसरा वह जिसमें हम आपको संसार का नेता बनाना चाहते हैं। हमको भगवान ने नेता बनाकर भेजा है। चाणक्य को नेता बनाकर भेजा था। वह नालन्दा विश्वविद्यालय के डीन थे। अब्राहम लिंकन को, जार्ज वाशिंगटन को, गारफील्ड को नेता बनाकर भेजा था। विनोबा को नेता बनाकर भेजा था। हम भी आपमें से हर एक आदमी को नेता बनाना चाहते हैं, नेता बनाने की हमारी इच्छा है। आपकी इच्छाएँ क्या हैं, यह हमको मालूम हो या न हो तो आप लिखकर दे जाना। हमारा एक क्रम है। जब हम बैठते हैं तब देख लेते हैं। रात में हमारा क्रम पूजा-उपासना का रहता है। सबेरे से लेकर दोपहर तक हम अपना लेख लिखते हैं ताकि अखण्ड ज्योति बीस साल तक बराबर निकलती रहे। बीस साल के लिए लेख और जो पुस्तकें लिखनी हैं, वह हम सब लिखकर रख जाएँगे। जब यह युगसन्धि समाप्त होगी और सन् २००० आएगा, उस वक्त तक आप यह अनुभव करेंगे कि गुरुजी जो लिखकर गए थे, उनकी लेखनी में कोई फर्क नहीं आया, उनके अक्षरों में कोई फर्क नहीं आया। उनकी पुस्तकों में, पत्रिकाओं में कोई फर्क नहीं आया। मिशन में कोई फर्क नहीं आया है और न ही आएगा। दोपहर बाद तो अब हमने मिलना भी शुरू कर दिया है। पाँच-पच्चीस आदमी को ऊपर बुला भी लेते हैं। यह हमारा दोपहर से शाम तक का क्रम है। इस तरीके से कभी आएँगे तो जब किसी को बहुत जरूरी काम हो तो मिल लेना। सांसारिक कठिनाइयाँ हों तो माताजी से कहिएगा। कोई आध्यात्मिक बात हो या कुछ ऊँचा उठना हो तो हमारे पास आवें। हम आपके बड़े कदम उठाने में मदद करेंगे। हमने इस दुनिया में बड़े कदम उठाए हैं और बड़े कदम उठाने के लिए आपसे भी कहते हैं। दो बातें हो गई है आप ध्यान रखना।
एक और बात मैं अपने सबूत में आपके बताता हूँ जो विश्व के एक बहुत बड़े भविष्यवक्ता ने सैकड़ों वर्ष पूर्व कही थी। संसार में ऐसे भविष्यवक्ता तो बहुत-से हैं जो हाथ देखकर यह बताते हैं कि तेरा विवाह कब हो आएगा, पैसा कब आएगा, कब क्या हो जाएगा? इसी तरह जन्मपत्री बनाने वाले बहुत-से लोग हैं, किन्तु दुनिया में एक ऐसा व्यक्ति भी हुआ है, जिसने सारे संसार की राजनीति के बारे में लिखा है। जिसमें से आठ सौ भविष्यवाणियाँ सही हो चुकी हैं। एक हजार वर्ष पहले हुआ था, वह था—नोस्ट्राडेमस। उसने ऐसी भविष्यवाणियाँ की थीं, जो एको-एक सौ फीसदी सही हो जाती थीं। ब्रिटेन का तब नामोनिशान नहीं था, जब नोस्ट्राडेमस पैदा हुआ था। स्काटलैण्ड था, आयरलैण्ड था, इंग्लैण्ड था, पर ब्रिटेन नहीं था, लेकिन उसमें लिखा था कि ब्रिटेन बनेगा, इतने दिनों तक राज्य करेगा और सन् १८४२ में इसका सिराजा बिखर जाएगा और अब जितना भी उसका राज्यमण्डल है सब खत्म हो जाएगा। वह सब एक-एक अक्षर सही हुआ। यह तो नमूने के लिए बता रहा हूँ। उसकी ऐसी भविष्यवाणियाँ कवितामय पुस्तक में लिपिबद्ध हैं, जिसे फ्रान्स के राष्ट्रपति मितरॉ सिरहाने रखकर सोया करते हैं। उस कवितामय पुस्तक पर हजारों आदमियों ने टिप्पणियाँ की हैं। उसी में से एक आप अखण्ड-ज्योति अगले अंक में पढ़ेंगे, जो उसने हिन्दुस्तान के बारे में की है। उसकी भविष्यवाणी है कि हिन्दुस्तान का अध्यात्म और पाश्चात्य का तत्व-विज्ञान यह दोनों आपस में मिल जाएँगे, पाश्चात्य भौतिक विज्ञान और अध्यात्म मिल जाएँगे, रूस और हिन्दुस्तान मिल जाएँगे, चीन से अमेरिका की लड़ाई हो जाएगी, आदि-आदि बहुत-सी भविष्यवाणियाँ हैं। उन बहुत-सी भविष्यवाणियों में से आपके काम की एक ही है कि हिन्दुस्तान सारी दुनिया का नेतृत्व करेगा, जैसा कि आजकल अमेरिका कर रहा है। चाहे वह बम बनाए, चैलेंजर बनाए, स्टारवार की योजना बनाए, किन्तु बाद का नेतृत्व भारत करेगा। हिन्दुस्तान को सारी दुनिया का नेतृत्व करने के लिए बड़े कर्मठ व्यक्ति चाहिए, बड़े शक्तिशाली और क्षमता सम्पन्न व्यक्ति चाहिए, बड़े लड़ाकू योद्धा चाहिए, बड़े इंजीनियर चाहिए, बड़े-बड़े समर्थ आदमी चाहिए और वही मैं तलाश कर रहा हूँ। बेटे, तुममें योग्यता नहीं है तो तुम्हें योग्यता हम देंगे। तुम्हारी खेती-बाड़ी को ही नहीं सँभालूँगा, वरन् योग्यता भी दूँगा, ताकि तुम संसार का नेतृत्व कर सको।
नालन्दा विश्वविद्यालय के तरीके से हमने यहाँ नेता बनाने का एक विद्यालय बनाया है। नालन्दा विश्वविद्यालय में चाणक्य जहाँ पढ़ाता था, उसमें दस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे एक साथ। हमारी भी इच्छा है कि हम दस हजार विद्यार्थी एक साथ पढ़ाएँ, पर यहाँ इतने विद्यार्थियों के लिए जगह नहीं है। अभी यहाँ कल तक साढ़े अट्ठाइस सौ आदमी थे, आज चार हजार से अधिक व्यक्ति नहीं आ सकते, जबकि हमारा मन है कि जिस तरीके से चाणक्य दस हजार आदमियों को पढ़ाता था और पढ़ाकर के हिन्दुस्तान से लेकर सारे विश्व में अपने आदमी भेजता था। चन्द्रगुप्त को उसने चक्रवर्ती राजा बनाया था। हमारी भी इच्छा है कि ऐसे-ऐसे नेता बनाएँ, पर बना नहीं सकते, क्योंकि जगह हमारे पास कम है। ऐसे में पढ़ा नहीं सकते, तो फिर क्या योजना है? कुछ नई स्कीम है, जो आज गुरुपूर्णिमा के दिन कहना है और वह यह है कि प्रज्ञा विद्यालय तो चलेगा यहीं, क्योंकि केन्द्र तो यही है, लेकिन जगह-जगह प्रज्ञा पाठशालाओं की स्थापना हमें करनी है। इसके लिए आप सब जितने भी आदमी हैं, उनको एक काम सौंपते हैं। एक महीने की प्रज्ञा पाठशालाएँ तो यहीं होंगी, पर पन्द्रह दिन की पाठशाला क्षेत्रों में शक्तिपीठों पर चलेंगी। यहाँ बड़े साइज का प्रमाण-पत्र उत्तीर्ण होने पर दिया जाता है, पर वहाँ छोटे साइज का दिया जाएगा। परीक्षा ली जाएगी और वहाँ भी हम नेता बनाएँगे। आपको हम हिन्दुस्तान का ही नहीं, सारे विश्व का नेता बनाने वाले हैं। हिन्दुस्तान में हमने दस-दस गाँवों के खण्ड काटे हैं और उन्हें एक-एक व्यक्ति के सुपुर्द किया है और कहा कि आप अपने यहाँ प्रज्ञा पाठशालाएँ चलाएँ। पिछले साल आप लोगों ने हमारे कहने पर किसी ने यज्ञ किए, किसी ने शक्तिपीठ बनाए, किसी ने क्या किया, हजारों काम बताए और लोगों ने किए हैं। इस वर्ष अब आप सब लोग यह विचार लेकर जाएँ कि या तो हम प्रज्ञा पाठशाला चलवाएँगे। इस कार्य में कोई रुकावट नहीं आवेगी।
आज गुरुपूर्णिमा के दिन से आप लोग एक काम यह करना कि हमेशा यह अनुभव करना कि आप देवता हैं। रीछ-बन्दर का लिवास पहने बैठे हैं। कोई कुर्ता पहने बैठा है, कोई धोती पहने बैठा है, कोई चश्मा लगाए बैठा है, तो कोई कुछ किए बैठा है, पर आप हैं वास्तव में देवता, जो किसी खास काम के लिए, खास उद्देश्य के लिए, किसी खास निमन्त्रण पर आप काम करने के लिए आए हैं। यह हुई बात नम्बर एक। दो, जो आपको मुश्किल जान पड़ती है कि संसार में से बुराइयाँ कैसे दूर होंगी और अच्छाइयों की वृद्धि कैसे दूर होंगी और अच्छाइयों की वृद्धि कैसे होगी? इस सम्बन्ध में नोस्ट्राडेमस की राजनीतिक भविष्यवाणी तो हमने बता दी है और अब अपनी स्वयं की भविष्यवाणी बताते हैं कि हमने आपके बैरियों को दुश्मनों को मार दिया है। वे मरे हुए रखे हैं और आपके लिए श्रेय जीवित हैं, सौभाग्य जीवित है। आपके लिए मुकुट जीवित है, बड़प्पन जीवित है, आप उस बड़प्पन को उठा लेना। आज आपसे तीसरी बात यह कहनी थी कि नालन्दा विश्वविद्यालय बनाने का हमने संकल्प लिया था कि एक लाख कार्यकर्ता हम देश को, समाज को, विश्व को देंगे। इस काम में आप लोग हमारी मदद कीजिए, और पन्द्रह-पन्द्रह दिन के लिए अपने यहाँ प्रज्ञा पाठशाला चलाने के लिए कोशिश कीजिए। हम वहाँ पढ़ाने के लिए तो नहीं आएँगे, पर अपनी शक्ति देंगे, अपनी बुद्धि देंगे, अपनी भावना देंगे, अपना प्राण देंगे, अपना जीवट देंगे—सब चीज देंगे, इसलिए जब आदमी जाएगा तो कुछ का कुछ होकर जाएगा।
कितने काम हो गए, तीन—एक और काम कहता हूँ, उसे ध्यान से सुनना। हमने जो लड़ाई छेड़ी है वह दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध छेड़ी है और सत्प्रवृत्तियों के संवर्द्धन की छेड़ी है। रामराज्य की स्थापना की छेड़ी है और लंका-दमन की छेड़ी है। यह काम बहुत बड़ा है और इसमें कुछ मुसीबतें भी आएँगी, पर उन मुसीबतों को आप तक नहीं पहुँचने देंगे। उन मुसीबतों को अपने ऊपर लेते रहेंगे। राणा सांगा जो था, उसे जहाँ कहीं भी दीखता कि उसके साथियों पर गाज गिरी, उनके ऊपर की तलवार अपने शरीर पर झेल जाता था। उसने ढेरों आदमी इस तरह बचा दिए थे। जब उसके शरीर पर अस्सी घाव हो गए तब वह बेहोश हो गया और अपना काम बन्द कर दिया।
अस्सी घाव खाने तक तो कोई मुसीबत आपके ऊपर नहीं आवेगी। मुसीबत आएगी तो हमारे ऊपर आएगी। पहले भी आई थी। श्रीकृष्ण भगवान् के पास आई थी। रामचन्द्र जी पर भी मुसीबत आई थी। सीता हरण हो गया था। किसी का क्या हो गया? लेकिन हमारे ऊपर एक और तरह की मुसीबत आएगी, जिसकी जानकारी आपको देना चाहता हूँ। वह मुसीबत इस तरह की है जैसे कि कालनेमि ने पैदा की थी। कालनेमि रावण का कुटुम्बी था। स्कन्द पुराण में कथा आती है कि वह सबकी बुद्धि बिगाड़ देता था। छोटा भाई कुम्भकरण था। उसने योगाभ्यास किया, तप किया। वह चाहता था कि ६ महीने जगा करूँ और एक दिन सोया करूँ, लेकिन कालनेमि ने उसकी ऐसी बुद्धि बिगाड़ दी, भ्रष्ट कर दी कि कुम्भकरण यह माँगने लगा कि ६ महीने सोया करूँ और एक दिन जगा करूँ। अगर वह ६ महीने जगा होता तो रावण का ढेर हो गया होता। इसी तरह मारीच ने भी तप किया था। वह स्वर्ग चाहता था, पर कालनेमि ने उसकी ऐसी बुद्धि भ्रष्ट की और कहा कि तू यह मत, माँग कि मैं स्वर्ग जाऊँ, वरन् यह माँग कि सोने का हिरण बन जाऊँ। कारण ,, चमड़े वाले को तो मारता है एक आदमी, पर सोने वाले को मारेंगे सौ आदमी। बेचारा छिपा-छिपा बैठा रहता था अपने वेष को बनाए एक बार सोने का वेष बनाया, सो सीता जी के कहने पर रामचन्द्र जी ने उसे मार डाला।
कालनेमि की कथा सुना रहा हूँ—स्कन्द पुराण की आपको। पूतना के कोई बाल-बच्चे नहीं थे। कालनेमि ने उससे कहा कि तेरे बच्चा नहीं होता है तो तू जादू का मंत्र लेकर जा और श्रीकृष्ण को दूध पिला दे। तेरा दूध पीएगा तो अपनी माता को भूल जाएगा और तेरे पास रहने लगेगा। कालनेमि के बहकावे में आकर पूतना बेचारी गई कि मेरे बेटा नहीं होता तो बेटा ले जाऊँ और बेटा तो मिला नहीं, उल्टे थुक्के-फजीहत और हुई। सूर्पणखा से कालनेमि ने कहा—तू ब्याह करेगी? उसने कहा—हाँ। वह बोला—राक्षस तो काले-कलूटे होते हैं, माँस खाते हैं, शराब पीते हैं और गाली देंगे और मारेंगे भी। हम तुझे ऐसा दूल्हा बताते हैं कि उससे खूबसूरत तुझे दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। बस तेरे जाने भर की देर है, तू गई और ब्याह हुआ। दूल्हे का नाम राम है। उसके पिता के तीन ब्याह हुए थे राम के दो ब्याह करा देंगे। सीताजी भी बनी रहेंगी और तू भी बनी रहेगी और राजगद्दी पर बैठेगी। तू गोरी होगी और तेरे बच्चे भी गोरे होंगे। सूर्पणखा कालनेमि के बहकाने पर रामचन्द्र जी के पास गई और अपनी फजीहत कराकर लौटी। उसकी बुद्धी जो बिगाड़ दी थी कालनेमि ने। मन्थरा की भी बुद्धि जो बिगाड़ दी थी उसने। उससे कहा कि भरत के साथ तेरा ब्याह करा देंगे। ये जो कैकेयी है वह जाएगी मर और तू रानी बनेगी, राज्य करेगी। उसको समझा करके भरत के लिए राज्य माँग ले। मन्थरा ने कैकेयी को पट्टी पढ़ाकर अपना काम बनाना चाहा। इस तरह दुनिया भर की अंडम-बंडम करके उसने मंथरा ने कैकेयी को मिट्टी पलीद की।
कालनेमि की जो यह घटना है वह हमारे ऊपर भी लागू होती है। हमारे प्राणों से प्यारे बच्चे, हमारे हृदय के टुकड़ों को अलग करके, बहका करके इनको हमसे दूर करने की कोई कालनेमि कोशिश कर रहा है। तो गुरुजी आपका नुकसान हो जाएगा? नहीं, बेटा, हमारा क्या नुकसान हो जाएगा? अभी ये लड़के गा रहे थे—‘कोई साथ न दे तो अकेला चल।’ अकेले चल देंगे हम। अकेले वामन ने सारी जमीन नापी थी। अकेले परशुराम ने सारी पृथ्वी पर से इक्कीस बार भार उतारा था और अकेले हम भी कम नहीं हैं, लेकिन हमको अपने बच्चे प्यारे लगते हैं। बच्चों को कोई छीन न ले जाए, चुरा न ले जाए, अगर कोई घर में से बच्चों को उठा ले जाए तो माँ-बाप को दुःख होता है। हमें भी दुःख होता है जब कोई कालनेमि हमारे बच्चों को हमसे दूर कर देता है, बागी कर देता है। अपने ये जो बच्चे हैं, उनकी हमें फिकर है कि कोई कालनेमि उनकी बुद्धि को भ्रष्ट न कर दे। कालनेमि से हमारा नुकसान है। उसकी हमें फिकर रहती है और कोई फिकर नहीं। न मिशन की फिकर रहती है और न मरने की, न काम की। मिशन बढ़ रहा है और वह बढ़ेगा ही। काम भी हो रहा है। उसकी फिकर थोड़े ही है। काम तो बढ़ ही रहा है। गंगा में बाढ़ तो आएगी, रुकेगी नहीं। उसे कोई रोकने वाला नहीं है। मिशन के लिए हम नहीं कहते कि आप कोई सहायता कीजिए। कहते हैं तो इसलिए कि नफा होगा आपको। आप नेता हो जाएँगे। सरदार पटेल, नेहरू, जार्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन बन जाएँगे। नेता बनना जिनको पसन्द होवे आगे आएँ, कदम से कदम कन्धे से कन्धा मिलकर चलें। साथ नहीं चलेंगे तो योग्य आदमी कैसे बनेंगे?
आज और कुछ नहीं कहना है, केवल इतना ही कहना है कि जो हमारे बच्चे हैं, जिनको हमने पैदा किया है, पाला है, वे हमारी छाती से अलग न होने पावें। आप हमारी छाती से अलग हो जाएँगे तो हमें बहुत दुःख होगा, कष्ट होगा। किसी और बात से हमें दुःख नहीं होगा, पर जब ये छोटे-छोटे बच्चे जिनसे हमने बड़ी उम्मीदें लगाकर रखी हैं, वे अगर बागी होते दीखेंगे, विरोधी होते दीखेंगे तो हमें बेहद कष्ट होगा। कालनेमि से तो कहना ही क्या है वह तो भगवान ने ही बनाया है। अगर वह न होते तो लंका का सत्यानाश न होता। रावण सीताजी को नहीं चुराता, यह कालनेमि की माया ही थी अन्यथा किसकी हिम्मत थी जो रावण सहित लंका का सफाया करता। जहाँ कहीं भी कालनेमि गया वहीं हाहाकार पैदा किया। बस चौथी बात यही कहनी है कि हमारा कोई चोर, कोई बाबाजी इन्हें अपनी झोली में डालकर ले जाएगा तो हमको दुःख होगा कि हमारा प्यारा बच्चा हमसे दूर हो गया। कितना कष्ट होगा आप नहीं समझते? आपने तो नेतागिरी देखी। पार्टियों की फजीहत देखी है कि किस तरीके से फूट डाली जाती है और कैसे अलग किया जाता है? आपने तो यही किस्से देखे हैं, वे किस्से नहीं देखे हैं कि मिल-जुलकर कैसे रहते हैं? एक होकर कैसे रहते हैं?
चार बातें हो गईं बेटा, अच्छा ध्यान रखना। हमने एक बात तो यह कही है कि आप रीछ-वानर के रूप में देवता हैं। दूसरी यह कि तुम्हें श्रेय देने के लिए दुश्मनों को मारकर रख दिया है और तुम्हारे लिए राजसिंहासन बनाकर रख दिया है। तुम उसको ग्रहण करना। तीसरी बात यह कि तुम अपनी व्यक्तिगत कठिनाइयों के बारे में परेशान मत होना। तुम्हारी व्यक्तिगत कठिनाइयाँ कौन हल करेगा? हमारा पुण्य, हमारा तप करेगा। हमारा पुण्य जो पिछले समय से आया है, वह हर एक के काम आयेगा और किसी के काम नहीं आयेगा। हमारा काम रुकने वाला नहीं है, वह बढ़ाता ही जाएगा। बस आप तो अपने आपको कालनेमि से बचाए रखना। बहक जाएँगे तो हमें दुःख होगा कि हमारा कैसा प्यारा बच्चा था? कितने प्यार और मोहब्बत से इसको हमने पाला था और देखो आज यह कहाँ फिर रहा है? चोरों के यहाँ फिर रहा है, भिखारियों के यहाँ फिर रहा है। कहाँ-कहाँ धक्के खा रहा है। ऐसा आप लोग मत करना। यह चार बातें कहनी थीं आपसे। बसन्त पंचमी के बाद अब व्याख्यान दिया है। आज इतना ही बहुत है। इन्हीं बातों पर बार-बार विचार करना। आपके काम की देख−भाल हम करेंगे। आप देवता हैं, ध्यान रखना। आपको श्रेय लेना है, सिंहासन लेना है। आपको नेता बनना है और किसी झोली वाले बाबाजी से होशियार रहना है कि वह झोली में डालकर भाग खड़ा नहीं हो। बस आपसे विदा लेते हैं।
ॐ शान्ति।