उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।
हैं विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन्॥
आकाश में तुम्हीं से, संव्याप्त नीलिमा की।
तुम ताप सूर्य के हो, तुम शीत चन्द्रमा की॥
फूलों में पल्लवों में, पुलकन तुम्हीं से भगवन्॥
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।
स्फूर्ति भोर की चिर, आकांक्षा तुम्हीं हो।
दिग्भ्रांत हर पथिक की, प्रेरक दिशा तुम्हीं हो॥
हैं प्राणतत्त्व तुमसे, जीवन तुम्हीं से भगवन्॥
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।
अनुदान से प्रफुल्लित, होते कृतज्ञ प्राणी।
आभास पर तुम्हारा, पाते न अज्ञ प्राणी॥
निर्मित प्रकृति तुम्हीं से, हर क्षण तुम्हीं से भगवन्॥
जीवन्त है जगत में, कण-कण तुम्हीं से भगवन्।
हैं विद्यमान जड़ और चेतन तुम्हीं से भगवन्॥