उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
आज हमारा शिविर समाप्त हुआ। ये शिविर एक बहुत महत्त्वपूर्ण उद्देश्य के लिये लगे थे और वो उद्देश्य पूरा करके हम अपनी बात समाप्त करते हैं। इसमें एक आपका उद्देश्य था और एक हमारा उद्देश्य था। अधिकांश के मन में यह बात थी कि गुरुजी के पास जाएँगे, एक सप्ताह का समय मिलेगा, छुट्टी लेकर के चलेंगे, काम का हर्ज तो होगा; पर एक सप्ताह बैठ करके वहाँ बातें करेंगे, बहुत-सी समस्याओं का समाधान करेंगे, पूछताछ करेंगे, पूजा के सम्बन्ध में पूछेंगे, हारी-बीमारी के बारे में पूछेंगे, चिन्ता-दुःख के बारे में सहायता के लिये प्रार्थना करेंगे और अपने मन की बहुत-सी बातें कहेंगे यही किया न!
भजन करने के लिए, हवन करने के लिए तो बहुत आदमी वक्त पर आये। वक्त पर आने का मकसद ये था कि हम अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के बारे में चाहे भौतिक हों, चाहे आध्यात्मिक हों, उनके बारे में आपसे विचार-विमर्श करेंगे। मित्रो! आपकी बात तो हम समझ गये। हमने पूरी-पूरी कोशिश की आपके साथ बात करने की; पर इसमें एक भारी अड़चन है।
स्थूल-प्रक्रिया के आधार पर यह सम्भव नहीं था, कारण कि एक आदमी भी एक हजार आदमी से कैसे मिल सकता है ! कितना समय लगेगा! यह सम्भव नहीं है। स्थूल शरीर से बातचीत करना सम्भव नहीं है; लेकिन एक और तरीका है, जो हमारे लिये उससे भी ज्यादा कारगर है, उससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, वह है—सूक्ष्म विचार। आदमी, पैरों के सहारे तीन दिन पैदल चल सकता है; लेकिन प्राणी की शक्ति से हजारों मील चल सकता है। अभी हम यहाँ हैं, तो दूसरे ही पल हमारा मन कहीं अन्यत्र पहुँच सकता है और किसी आदमी को हम प्रभावित करके एक क्षण भर के अन्दर फिर यहाँ आ सकते हैं, बातें कर सकते हैं। मन की शक्तियाँ बड़ी असीम है। मन की शक्तियाँ, अंतरंग की शक्तियाँ असीम है। अंतरंग की शक्तियों से असीम व्यक्तियों के साथ में एक साथ बातचीत करना सम्भव है। यह शक्ति है—मौन की शक्ति। रोमाँरोला संसार के, फ्रांस के बड़े साहित्यकार थे। अल्बर्ट आइन्स्टीन दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक थे। साहित्य और विज्ञान का कैसे समन्वय हो? दोनों में बहुत मित्रता थी। दोनों ने यह निश्चय किया कि इस विषय के ऊपर वे खूब खुलकर बातचीत करेंगे, बहुत वार्ता करेंगे, वार्ता करने के लिये समय निकाला और तैयारी की। आइन्स्टीन रोमाँरोला के घर पर मिलने के लिए गए। बातें बहुत थीं, समस्याएँ बहुत थीं, असंख्य विचार थे। उनको साल भर में ही हल नहीं किया जा सकता था। दोनों बैठे। पैंतालीस मिनट बातचीत करने का समय मिल सका। दोनों चुप बैठे रहे। ठंड का मौसम था। बिजली की अँगीठी (हीटर) जला ली एक कमरे में और दोनों चुपचाप बैठे रहे, अँगीठी में हाथ सेंकते रहे। बस, पैंतालीस मिनट बीत गये। सेक्रेटरी आया, उसने घड़ी दिखाई, कहा—चलिये सर! आइन्स्टीन जाने के लिए उठ खड़े हुए। दोनों ने हाथ मिलाया। दरवाजे तक दोनों साथ-साथ आये। पत्रकारों ने पूछा—आप लोगों में क्या बातचीत हुई? उन्होंने कहा—पैंतालीस मिनट में हमने इतनी ज्यादा बातचीत की, जो कि पैंतालीस महीनों में भी सम्भव नहीं थी। जबान का हमने इस्तेमाल नहीं किया। हमने बिना जबान के ढेरों-की बातें कर लीं। बिना बातचीत के, जबान के भी बातचीत होना सम्भव है।
महर्षि रमण के आश्रम में मैं रहा हूँ बहुत समय तक। पाण्डिचेरी के अरविन्द घोष के आश्रम में भी रहा हूँ। अरविन्द जी भी बात नहीं करते थे। माताजी भी केवल दर्शन देने जाती थीं, ऊपर से सीढ़ियों में खड़े होकर। अरविन्द जी दर्शन भी नहीं देते थे। अरविन्द जी का दर्शन भी कठिन था। एक कमरा था, जिसमें वे अकेले रहते थे। कोई मिलने नहीं जा सकता था। केवल माताजी ही जाती थीं। माताजी सीढ़ियों पर खड़े होकर केवल पाँच मिनट तक दर्शन देती थीं; दर्शन देकर चली जाती थीं। कोई बात नहीं होती थी। बात माने बकवास।
आजकल मैं जिन महत्त्वपूर्ण कार्यों में लगा हुआ हूँ, उसमें बकवास के लिये मैंने प्रायः किसी को समय नहीं दिया, आगे भी नहीं दूँगा। बकवास करने के लिए आते हैं, तो मैं भगा देता हूँ। अपने मन के गुबार निकालने के लिए, न जाने क्या -क्या कहने के लिए, यहाँ की भूमिका, वहाँ की भूमिका सुनाने के लिए आते रहते हैं। बेटे! मैं बहुत व्यस्त आदमी हूँ, तू समझता नहीं! समय की बात समझ और मैं जो महान कार्य का उद्देश्य लेकर के चला हूँ, उसमें एक-एक सेकेण्ड किस तरीके से लगाता हूँ, उसको समझ। तू बकवास के लिए समय चाहता है! तेरे तरीके से मैं फालतू आदमी नहीं हूँ, बहुत व्यस्त आदमी हूँ। जबान की नोंक से बेसिर-पैर की बातें, बेतुकी बातें, बेसिलसिले की बातें, बेबुनियाद की बातें—ये सब बन्द कर दिया है। आपके मन में क्या था, मैंने पूरे तरीके से समझ लिया और निकाल दिया। समझकर के मैंने ये कोशिश की कि आपकी बातों का समाधान कर दूँ और जब आप जाएँगे यहाँ से, तो ये अनुभव करेंगे कि आपकी बातों का समाधान कर दिया गया। दो तरह की आपकी बातें थीं—एक तरह की थी आध्यात्मिक बात, जो हमारे और आपसे, दोनों से मेल खाती है। दूसरी बात ऐसी थी, जो आपके भौतिक जीवन से सम्बन्ध रखती थी, वह भी संगति खाती है; क्योंकि हम और आप एक साथ जुड़ गये हैं; जुड़ जाने की वजह से जहाँ आध्यात्मिक समस्याएँ भी हमारे और आपके साथ-साथ हैं, वहाँ आप की भौतिक समस्याओं के बारे में भी हमारी दिलचस्पी है। उससे कोई दिलचस्पी न हो, ऐसी कोई बात नहीं। आपको क्या कठिनाई है, क्या आवश्यकताएँ हैं, क्या महत्त्वाकांक्षाएँ हैं—मैंने तीनों का वर्गीकरण कर लिया है, तीनों को अलग-अलग से समझ लिया है।
कठिनाइयाँ—कठिनाइयाँ बेटे! उसे कहते हैं, जबकि आदमी मुसीबत में हो; मुसीबत में आदमी की सेवा करना आवश्यक है। आपने अस्पतालों में देखा होगा, रात के वक्त कोई मरीज यकायक बीमार हो जाए, डॉक्टर एक घण्टे पहले सोया हो तो भी इमरजेंसी में सिविल सर्जन को बुलाया जाएगा। वह फौरन आकर देखेगा। बारह घण्टे काम करता है और एक घण्टे भी नींद नहीं कर पाया है। यह क्या है? इमरजेंसी। साँप काट खाये किसी को, मौत सामने खड़ी है; किसी को बन्दूक की गोली लग गई है, आधा घण्टे में उस आदमी के प्राण निकल जाएँगे। डॉक्टर बारह घण्टे से लगातार ऑपरेशन में लगा हुआ हो, आधा घण्टा ही बेचारा सो पाया हो; लेकिन जब कॉल आता है कि साँप ने काट खाया है, तो वह फौरन उठेगा। उसका ये कर्तव्य है, ये फर्ज है कि एक दिन की अपनी नींद गँवा दे और जिस आदमी की जान के ऊपर बीत रही हो, उसकी मदद करे। आदमी का सोना जरूरी नहीं है, आदमी की जिन्दगी जरूरी है। हम वर्गीकरण करते हैं, आप की समस्त भौतिक समस्याओं का। आप में से जो आदमी मुसीबत में है, हम उनको प्रीयॉरिटी देते हैं। हमारा तप उनके लिये पहले नम्बर पर है; हमारी मदद उनके लिये पहली प्राथमिकता है और दूसरे? दूसरे हैं—जरूरतमन्द। जरूरतमंद किसे कहते हैं? जरूरतमंद उसे कहते हैं, जिसका किसी वजह से काम रुका हुआ हो। बेचारे की गाड़ी रुक गई है, गाड़ी चल नहीं सकती, कीचड़ में फँस गई है। फँस गई है, तो धक्के का इन्तजार है। कोई धक्का मार दे, तो उसकी गाड़ी, जो कीचड़ में फँस गई है, आगे निकल जाए। लम्बा सफर तय करना है, वह पूरा हो जाए। इन्हें कहते हैं जरूरतमन्द और तीसरी? तीसरी एक और चीज है; जिसका नाम है—तृष्णा। तृष्णाओं को भी हम जानते हैं; पर सबको हम समान महत्त्व नहीं देते। आप देते हों, तो दें। हमारे पास तप की जो सम्पत्ति है, किसको कितनी देनी चाहिए और क्यों देनी चाहिए—यह विवेक भी भगवान ने हमको दिया है। जो माँगे, उसी को दे दीजिये—यह विवेक नहीं, संकल्प है। ऐसा संकल्प शंकर भगवान करते हैं। जो कोई मनोकामना लेकर जाए, सबकी पूरी कर देते हैं। हम शंकर भगवान नहीं है, हम इनसान हैं। इनसान के साथ विवेक का अंश मिला हुआ है। तप हमको भगवान ने दिया है। हमको उदार हृदय भी दिया है। उदार हृदय के साथ-साथ में विवेक भी दिया है। विवेक के हिसाब से हम हर चीज का वर्गीकरण करते हैं और ये देखते हैं कि आप में से कौन आदमी मुसीबत में फँसा हुआ है? मुसीबत में कराह रहा है, किसकी आँखों में से आँसू आते हैं, कौन आदमी हैरान हो रहा है, उस आदमी को हम प्रीयॉरिटी देते हैं। आप कहें, चाहे न कहें; खुशामद करें, चाहे न करें; हाथ-पाँव जोड़ें, चाहे न जोड़ें; बेटे! उससे कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। न हमारे ऊपर असर पड़ता है हाथ-पाँव जोड़ने का, न भगवान पर असर पड़ता है हाथ-पाँव जोड़ने का। फूल-माला पहनाने का न हमारे ऊपर असर पड़ता है, न भगवान के ऊपर असर पड़ता है। हम देखते हैं कि आपकी जरूरत क्या है? आप जो बात कहने आये थे, मैं समझ गया और समझ करके वर्गीकरण कर लिया; वर्गीकरण करके अपने तप के हिसाब से आपकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, आपकी सहायता करने के लिए निश्चय किया है। आपकी हम गाड़ी के कब्जे हैं और हम निभायेंगे। क्यों निभायेंगे आप? इसका एक ही कारण है कि हमको संत व्यक्तित्व मिला है। संत व्यक्तित्व केवल तब तक कायम रहेगा, जब तक कि आदमी अपने चरित्र को कायम रखने में समर्थ हो और दूसरों के प्रति उदार व दयालु बना रहे। आदमी निष्ठुर जिस दिन हो जाएगा, उस दिन उसका संतपन खत्म हो जाएगा। जिस दिन आदमी दुष्ट हो जाएगा। दुश्चरित्र हो जाएगा, उस दिन उसकी संत-परम्परा नष्ट हो जाएगी; उस दिन उसका भजन चला जायेगा, पूजा चली जाएगी, उपासना चली जाएगी; उसका योगाभ्यास चला जाएगा, प्राणायाम मिट्टी में मिल जाएगा, उसको ध्यान से कोई फायदा नहीं होगा, जिस दिन यह चीजें उसने गँवा दी।
हमको बेटे! बड़ा प्यार है, किससे? अपने ब्राह्मणत्व से। अपने ब्राह्मणत्व की रक्षा करना चाहते हैं। हम अपने ब्राह्मणत्व को गँवाना नहीं चाहते। हम नहीं चाहते कि हमारी जिन्दगी भर की कमाई, जन्म-जन्मान्तरों की कमाई ऐसे ही गायब हो जाए। इसलिये हम इसकी रखवाली करने के लिए दो चीजों पर बहुत ध्यान देते हैं—एक तो ये देखते हैं कि हमसे ऐसी गलतियाँ न हों, जिसके लिए हमको आँखें नीची करनी पड़ें और शर्मिन्दा होना पड़े किसी के सामने। दूसरे, हम ये ध्यान रखते हैं कि कोई आदमी हम पर यह लांछन नहीं लगाए कि ये आदमी पत्थरदिल वाला था, कठोर था, दया नहीं थी। दूसरों की मुसीबतों को देखकर इसकी आँखों में आँसू नहीं आये या इसके मन में दर्द पैदा नहीं हुआ। ये लांछन हमारी जिन्दगी पर कोई नहीं लगा सकता। ठीक है, हमें कभी-कभी गुस्सा आ गया होगा आप पर, नाराज हो गये हों—यह सम्भव है। आजकल दिमाग चिड़चिड़ा जाता है, काम करने की वजह से थकान ज्यादा हो जाती है। थकान की वजह से दिमाग की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं, तो कभी-कभी गुस्सा भी हो जाते हैं हम। गुस्से की आदत तो हम पर बढ़ी चली जाती है—ये बुराई तो हो गई है; लेकिन और बुराई तो हम पैदा नहीं कर सकते, अपने ब्राह्मण-परम्परा की रक्षा करने के लिये। इसके लिए बस एक दबाव है हमारे ऊपर और कोई दबाव नहीं। आप हाथ-पाँव जोड़ते हैं कि नहीं? हमें क्या मतलब है इससे। जोड़ेंगे तो हम क्या करेंगे? वह तो इसलिये कि हमारी उदारता में कमी न आने पाये, इस कारण हम आपकी सहायता करते हैं। हमारे जीवन का यह संकल्प रहा है, व्रत रहा है कि किसी आदमी को अपने दरवाजे पर से कभी भी खाली नहीं जाने देंगे।
राजा कर्ण की जिन्दगी में आखिरी वक्त जबकि वे घायल पड़े हुए थे, श्रीकृष्ण भगवान आये एक संत के रूप में और कुछ माँगने लगे। उन्होंने कहा—कर्ण ! तेरे पास कुछ हो, तो दे दे। कर्ण सोचने लगे—मेरे दरवाजे पर से कोई आदमी अब तक खाली नहीं गया और ये अन्तिम समय कोई आया है, तो इसे लौटा कैसे दूँ? मेरी शरण बिगड़ती है। अन्तिम समय पर एक साधु आया हुआ है, उसको मना कैसे कर दूँ कि हमारे पास कुछ नहीं है और भगवान ने हमको कुछ भी नहीं दिया है। ये हमारे लिए बड़े दुःख की और बड़े शर्म की बात हो जायेगी, तो कर्ण ने अपने दाँत, सोने की पर्त लगी, उखाड़ करके उनके हाथ पर रख दिये। राजा कर्ण तो हम हैं नहीं। राजा कर्ण के बराबर सोना तो हमको नहीं है; पर हमारा दिल, हमारा हृदय कर्ण के बराबर है। अपने दिल और हृदय को हम कीमती समझते हैं, इसलिये उसकी रखवाली करने के लिये, अपना नाम और इज्जत बचाने के लिए आपकी सहायता करते हैं। कितनी सहायता करेंगे? ये नहीं कह सकते। आपका प्रारब्ध और हमारा पुण्य—दोनों का समन्वय होकर के जितना सम्भव होगा, उतनी मदद करेंगे। हमने ये कभी किसी से नहीं कहा कि हम आपकी मनोकामना पूरी कर सकते हैं। जो आदमी ये दावा करे कि हम मनोकामना पूरी कर देते हैं, आप समझना ये आदमी धूर्त हैं। क्यों? क्योंकि इनसान के हाथ में इतनी ताकत नहीं कि आदमी के कर्म और आदमी के प्रारब्ध को पूरी तरह से साफ कर सके। ये काम भगवान कर सकते हैं? मैं सोचता हूँ भगवान भी नहीं कर सकते; क्योंकि भगवान ने कर्म की व्यवस्था ऐसी बना दी कि वह अपने बाप की भी मुसीबत को दूर न कर सके।
भगवान रामचन्द्र जी के पिता दशरथ जी को शाप लगा था; उस शाप से बिलख-बिलख करके उनके प्राण छूटे। श्रीकृष्ण भगवान अपने भांजे को मौत से बचा न सके। श्रीकृष्ण भगवान ने पहले जन्म में बालि को तीर मारा था, उसका कर्म आकर के उनके पैर में लगा और पैर उनका फट गया। बहेलिया आकर के रोया—महाराज जी! गलती हो गई। उन्होंने कहा—गलती नहीं है। आप पहले जन्म में बालि थे और हम पहले जन्म में राम। हमने आपको छिप करके तीर मारा, उसका प्रारब्ध-भोग आज हमें इस रूप में मिला है। हमने जो गलती की, उसी का यह फल है। चाहे रामचन्द्र जी ही क्यों न हों, छिपकर के भी खराब काम करेंगे तो उनको भी, भगवान जी को भी छुट्टी नहीं मिल सकती। भगवान बड़े हैं; लेकिन कर्म भगवान से बड़ा है—ये आप ध्यान रखना। भगवान ने कर्म को बनाया। लेकिन कर्म की जंजीरों से अपने आपको बाँध लिया, जकड़ लिया। भगवान अपने लिए कर्म के बन्धनों को तोड़ डालेगा, उच्छृंखल हो जाएगा, उद्दंड हो जाएगा, नियम-व्यवस्था को बिगाड़ देगा; ‘अँधेर नगरी चौपट राजा’ पग-पग पर फैला देगा; जो हाथ जोड़ेगा, उसको चाहे जो दे देगा और जो गालियाँ देगा, उससे सब कुछ छीन लेगा—ऐसा अँधेर जिस दिन भगवान् फैलाएगा, उस दिन भगवान, भगवान कहलाने लायक नहीं रहेगा; उसकी शक्ति में घोर परिवर्तन हो जाएगा। जहाँ तक मैं समझता हूँ, कर्म भगवान से बड़ा है। मेरी मान्यता है, भगवान कर्म की मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर सकता। जिस दिन वह इसका उल्लंघन करेगा, उस दिन उसका नाम भगवान नहीं रहेगा, ‘अँधेर नगरी चौपट राजा’ की उक्ति को चरितार्थ करने वाला भ्रष्टाचारी आदमी कहलाएगा।
मैं ये तो दावा नहीं कर सकता कि आपके प्रारब्ध और आपके कर्मों को दूर कर सकता हूँ; लेकिन मैं ये दावा करता हूँ कि आपकी सहायता करूँगा, एक इनसान के नाते। इनसान का काम है, दूसरे इन्सान की वह मदद करे। डॉक्टर का काम है, बीमार की मदद करे। रोग से चिल्ला रहा है, घायल हो गया है, चाकू लग गया है, छुरा लग गया है, नींद नहीं आती। डॉक्टर का काम है, उसको नींद की गोली दे, मॉर्फिया का इन्जेक्शन लगा दे, सुला दे, ऑपरेशन करे, अच्छा करने की कोशिश करे जी जान से। यह न सोचे कि पता नहीं बचेगा कि मरेगा! उसकी उम्र खत्म हो गई है, तो वह मरेगा। उम्र बाकी है, तो जीयेगा। डॉक्टर का काम सिर्फ ये है कि मरीज की सेवा करे।
नहीं, डॉक्टर साहब ये वादा करिये कि आप अच्छा कर देंगे। नहीं, हम नहीं कर सकते। हमारी सामर्थ्य ही नहीं है। हम कैसे कर देंगे? डॉक्टर हैं हम।
हम आपकी मदद करेंगे, इलाज करेंगे; हम आपकी भौतिक सेवा करेंगे, सहायता करेंगे। नहीं साहब, हमको कहने का मौका नहीं मिला। कोई हर्ज नहीं बेटे! कहने का मौका नहीं मिला, तो इससे आपका समय बचा और हमारा बचा। मैं तो लोगों को कहने का मौका केवल इसलिए दिया करता हूँ कि उनका मन हलका हो जाए, बस और कोई मकसद नहीं है तो क्या आपको मालूम होता है कहने वालों का मन्तव्य? हाँ, पूरे तरीके से मालूम होता है कि आप क्या कहना चाहते हैं और जो आप कहना चाहते हैं, उसके हिसाब से हम समझते हैं। आपको शक हो कि आप जो कहने आये थे, उसे कह न सके। गुरु जी! हमने तो चिट्ठी नहीं लिखी, तो ला, मैं चिट्ठी लिख दूँ तेरे बदले और पढ़ ले—यही कहना चाहता था न। बेटे! मालूम है सब बातें। हम आपकी सेवा करेंगे, सहायता करेंगे, इतना निश्चित है। एक बात खत्म हो गई।
दूसरी बात आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में है। आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में आपकी कल्पना शायद ये रही हो कि आपकी आत्मिक प्रगति होनी चाहिए, भगवान की तरफ आपके कदम बढ़ने चाहिए। भगवान की तरफ कदम बढ़ाने के बारे में एक चीज तो मैंने बहुत पहले साफ कर दी थी और कह दिया था कि यदि आपके दिमाग में भगवान नाम के किसी व्यक्ति की कल्पना हो, तो कृपा करके छोड़ दीजिए। भगवान एक व्यक्ति है। व्यक्ति को कपड़ा पहनायेंगे, रोटी खिलायेंगे, खुशामद करेंगे, चावल चढ़ायेंगे, धूपबत्ती दिखायेंगे, आरती उतारेंगे, उनसे अपना काम बना लेंगे। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि यह मान्यता बालकों की है, समझदारों की नहीं। ये प्रौढ़ व्यक्तियों की मान्यता नहीं है। भगवान कोई व्यक्ति नहीं—ये ध्यान रखना। सपने में जो दिखाई पड़ता है, भगवान व्यक्ति नहीं है। आप ध्यान रखिए। निकाल दीजिए इस कल्पना को। ये बच्चों के बहकाने की चीज है। बड़े आदमियों की मान्यता की चीज नहीं। भगवान कोई व्यक्ति नहीं, भगवान एक शक्ति हैं। व्यक्ति की तो आप खुशामद कर सकते हैं, चापलूसी कर सकते हैं, रोटी खिला सकते हैं, कपड़े पहना सकते हैं। ये चीजें व्यक्तियों पर लागू होती हैं, शक्तियों पर नहीं। शक्तियों के अपने अलग कायदे-कानून हैं। भगवान को प्रसन्न करने के लिये, भगवान को अपने वश में करने के लिये, भगवान का अनुग्रह प्राप्त करने के लिये आपको व्यक्ति के तरीके से डील नहीं करना चाहिए। ये तो प्रारम्भिक ज्ञान-कर्म है, बचपन की शिक्षाएँ हैं। बच्चों को जिस तरीके से हम ‘क’ माने कबूतर, ‘ख’ माने खरगोश, ‘ग’ माने गधा सिखा देते हैं, उसी तरीके से आपको भगवान, व्यक्ति बनाकर के हमने समझा दिया है। भगवान व्यक्ति भी हो सकते हैं, अगर मनुष्य अपने महानता के लक्ष्य पर बढ़ता हुआ चला जाए, तो व्यक्ति रहते हुए भी मनुष्य भगवान बन सकता है—ये बात हमने बतायी आपको; पर इसमें केवल शिक्षण है। असल में भगवान व्यक्ति नहीं हैं, हमने आपको ये निवेदन किया है और कहा है—आप उनके प्रति व्यक्ति के तरीके से डीलिंग करना बन्द करें और शक्ति के तरीके से व्यवहार करना शुरू करें। शक्ति के तरीके से शुरू करेंगे, तो आप भगवान जैसे महान् बन सकते हैं। भगवान की गरिमा आपके जीवन में प्रवेश कर सकती है और भगवान की विशेषताएँ अगर आपके भीतर पैदा हो जाएँ, तो आप उसी तरीके से बन सकते हैं, जैसे कि भगवान हैं। लकड़ी आग में डाल दी जाती है, तो लकड़ी भी आग जैसी हो जाती है। आप भगवान में अपने आपको गिरा दें। आप लकड़ी से आग हो जाएँगे। आपके अन्दर वह सारी विशेषताएँ, जो आग के भीतर होती है, आ जाएँगी। भगवान के समीप आने का, सम्पर्क में आने के बावत ये कहा कि वास्तव में आपको आध्यात्मिक जीवन से कोई लगाव हो, वास्तव में ही आपको भगवान की कृपा के सम्बन्ध में कोई जानकारी हो, वास्तव में ही भगवान के साथ मिलने के लिए कोई शौक और इच्छा हो, तो आप कृपा करके वो काम करना जिसमें भगवान के साथ मिलन का सुयोग-संयोग बन सके। अपने आपको भगवान के साथ जोड़ देने की कोशिश करना। भगवान को अपने साथ जोड़ना मत, भगवान के साथ स्वयं जुड़ने की कोशिश करना। गंगा को नाले में मिलाना मत, नहीं तो गंगा जल भी नाला हो जाएगा। आपने गंगा जल को नाले में डालने की कोशिश की, तो गंगा जल अपनी महत्ता खो बैठेगा और नाला हो जाएगा। भगवान को हमारी मर्जी पर चलना चाहिए—ये हिमाकत अगर आपने की, तो आपकी इच्छा चाहे पूरी हो या न हो भगवान की हैसियत दो कौड़ी की हो जाएगी। हमारा कहना मानिये। क्या कहना मानें आपका? हमारी पड़ोसी से लड़ाई हो जाती है, आँख से वो अंधा हो जाये। अच्छा! आपके कहने से देवी जी, पड़ोसी को अंधा कर मुकदमा चला दिया है, इसलिये हे देवी! रात को इन्हें अन्धा कर दीजिये। आपका कहना माने देवी। आपका कहना जिस दिन मानेगी, उस दिन आप से भी गई-बीती, आप से भी घिनौनी, आपसे भी निकम्मी, आपसे भी नीच, आप से भी पाजी, आप से भी पापी हो जाएगी वो देवी। कौन-सी वाली? जिसको आप अपनी मर्जी पर चलाना चाहते हैं। तो मैंने ये कहा कि ये हिमाकत मत करना आइन्दा से। भगवान के साथ में ये मखौल मत कीजिए, भगवान के साथ में दिल्लगीबाजी मत कीजिए, देवी-देवताओं के साथ में ऐसी दिल्लगीबाजी मत कीजिए संतों के साथ में ऐसी दिल्लगीबाजी मत कीजिए कि आपकी मर्जी पर वे चलें। आपकी मर्जी पर हम चलें। आपका हम कहना मानें! आप हम पर हुक्म चलाने आये हैं! आप हमको नसीहत देने आये हैं! आप भगवान को नसीहत देना चाहते हैं! अपनी मर्जी पर चलाना चाहते हैं। खबरदार! आइन्दा ये हिमाकत की तो। ये हिमाकत बन्द करिये। ये कोई भक्ति नहीं है। ये क्या भक्ति है। हम जो चाहते हैं, हमारी मर्जी पूरी हो जाए। नहीं, आपकी कोई मर्जी नहीं, कोई भक्ति नहीं। भक्ति अगर हो, तो वहाँ से शुरू कीजिए, जहाँ अपनी मर्जी खत्म होती हो। अपनी मर्जी आप खत्म कीजिए। भगवान की मर्जी अपने ऊपर आने दीजिये। इससे कम में न भगवान की भक्ति शुरू हो सकती है, न आप भगवान के प्यारे बन सकते हैं, न भगवान के चमत्कार आप तक आ सकते हैं, न भगवान की सिद्धि का ख्वाब देख सकते हैं, न भगवान के द्वारा मिलने वाली शांति आप तक आ सकते हैं, न भगवान की सिद्धि का ख्वाब देख सकते हैं, न भगवान के द्वारा मिलने वाली शांति आप तक आ सकती है। भगवान कृपा करके आदमी को मुक्ति देते हैं, स्वर्ग देते हैं, सिद्धियाँ देते हैं, चमत्कार देते हैं; जो कुछ भी देते हैं, उसमें से एक के भी पाने के हकदार तब तक आप नहीं हो सकते, जब तक आप ये कोशिश न करें। गंगा जल को शराब की बोतल में डालिये मत। ये शराब हो जाएगी। नहीं, महाराज जी! गंगा जल तो गंगा जल रहेगा। नहीं बेटे! ये शराब हो जायेगी। शराब को डाल दें गंगा जल में। शराब को गंगा जल में बहा दें। नाले के पानी को गंगा जल में डाल दें; नाले का पानी गंगा जल हो जाएगा गंगा जल को नाले में डालेगा, तो ये नहीं हो सकता। अपनी मर्जी भगवान पर थोपेगा! अपनी महत्त्वाकांक्षाएँ, तृष्णाएँ, आवश्यकताएँ—इनको पूरा करने की कोशिश करायेगा भगवान से, तो तेरी मर्जी पूरी नहीं हो सकती।
मैंने आपसे ये कहा है कि ये आपकी चाबी है। चाबी को अगर आप गाँठ बाँध लें, तो आपकी आध्यात्मिक प्रगति आज से ही प्रारम्भ हो जाएगी। इतनी तेजी से आपकी आध्यात्मिक प्रगति होगी कि आप हजारों वर्ष तक जप करने के बाद भी जो प्रगति नहीं पा सकते, उसे अगले ही सेकेण्ड से प्राप्त करना शुरू करेंगे; पर जब यह सिद्धान्त समझ में आ जाए, तभी ऐसा सम्भव है। ये सिद्धान्त समझ में न आए तब आप चाहे जितने जप कर लो, चाहे जितने अनुष्ठान कर लो, चाहे जितने प्राणायाम करना, आपकी, राई की नोंक के बराबर भी आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो सकती। ठीक है, अपना मन बहलाने के लिये, समय काटने के लिये लाभ मिलता हो, तो मिले। अगर कोई आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षा आपकी रही हो और आप वास्तव में ही भगवान से जुड़ने की कोई इच्छा रखते हो, तो ये एक उत्तर आपको दे दिया आत्मिक उन्नति के सम्बन्ध में। आप अपने आपको भगवान के सुपुर्द कर दें और उनसे पूछे आपको क्या करना चाहिए? भगवान जो आपको आज्ञा दें, आपकी जीवात्मा आपको जो आज्ञा दे, उसी के हिसाब से चलें और करें। सुपरमैन आपके भीतर बैठा हुआ है; वही आपका भगवान है; वही आपका गुरु है। उसी को सद्गुरु कहते हैं। वह कभी-कभी पुकारता है, कभी-कभी सत्प्रेरणा देता है कि अच्छे मार्ग पर चलना चाहिए, ऊँचे कार्य करने चाहिए; पर उसकी आवाज को रोज ठुकराते रहते हैं, रोज किसी न किसी तरीके से कुचलते रहते हैं। उस भगवान की आवाज को सुनने की कोशिश कीजिए; उसको ग्रहण करने की कोशिश कीजिए और देखिए आपका गुरु, आपको कंधे पर बैठाकर के किस तरीके से बाहर ले जाता है; आपका भगवान किस तरीके से आपको ऊँचा उठाता है, उछाल देता है। बस, आपकी आध्यात्मिक उन्नति की बात खत्म। आपकी भौतिक उन्नति की बात खत्म। हम आपकी सहायता करेंगे और आप कोशिश करना, अपनी सहायता करने की, अपनी मुसीबतों को टक्कर मारने की। अपनी हिम्मत को बढ़ाना। हिम्मत अपनी नहीं बढ़ाएँगे, पुरुषार्थ अपना नहीं बढ़ाएँगे और उसी उम्मीद पर बैठे रहेंगे कि पराई सहायता से काम चल जाएगा, तो बेटे! चलेगा नहीं। बाहर वाले का खून जो लगा देते हैं किसी को, तब क्या होता है? वह खून केवल तीन दिन तक रहता है, चौथे दिन वह खत्म हो जाता है तो फिर महाराजजी! क्यों लगाते हैं खून? इसलिये लगाते हैं कि हमारा खून पैदा करने का सिस्टम कमजोर हो जाता है। कमजोर हो जाने से खून पैदा नहीं होता। बाहर वाला खून शरीर में जाने के पश्चात् में सिस्टम में थोड़ी सी ताकत आ जाती है, इसलिये खून पैदा करना शुरू कर देता है। बस, जब तक दो या तीन दिन में अपना शरीर अपना खून बनाना शुरू करे, तब तक बाहर का खून मदद करता है, फिर वह खत्म हो जाता है। शरीर अपने खून पर जिन्दा रहता है।
बाहर की मदद से आपके जीवन की कोई समस्या हल नहीं हो सकती तो क्या आप मदद नहीं करेंगे? बेटे! करेंगे जरूर। ये हमारा कर्तव्य है और हमारा फर्ज है। हमारे यहाँ आप मुफ्त में रोटी खायेंगे, तो आपकी जिन्दगी पार नहीं हो सकती। आप रोटी नहीं खिला देंगे? खिला देंगे बेटे! हम तुझे। आज खिला देंगे? आज भी खिला देंगे। कल खिला देंगे? कल भी खिला देंगे। महीने भर खिला देंगे? महीने भर भी खिला देंगे; पर तेरी जिन्दगी इससे नहीं कटेगी—ये ध्यान रखना। तेरी जिन्दगी कटेगी तब, जब अपने हाथ-पाँव की मशक्कत से रोटी कमाने लगेगा। तेरी जिन्दगी पराये दिये से नहीं कटेगी। गुरुजी! आप वरदान दीजिये, आशीर्वाद दीजिये। बेटे! हमारे से गुजारा हमेशा नहीं हो सकता। थोड़े दिन तो हो जाएगा। उसके बाद फिर वही समस्या शुरू होगी। इसलिए अपना पुरुषार्थ जगा, हिम्मत कर सहन-शक्ति पैदा कर और अपनी महत्वाकांक्षा कम कर। इन चार चीजों से तेरी समस्या का समाधान होगा। आप मदद करेंगे? बेशक हम करेंगे; लेकिन उसकी कुछ शर्तें हैं। नम्बर एक अपने भीतर से साहस जगा, उत्साह जगा। अपनी मुसीबतों को हटाने के लिये अपनी कलाइयों के बल पर, भुजाओं के बल पर हिम्मत करने के लिये पूरी-पूरी कोशिश कर, नम्बर दो और नम्बर तीन—नम्बर तीन बेटे! यह है कि उसको सहन कर, बर्दाश्त कर। सारी इच्छाएँ पूरी नहीं हो सकतीं। थोड़ा बर्दाश्त भी करना पड़ता है, ये भी हिम्मत ले के चल। गुरु जी, मेरे जीवन में कोई कठिनाई न आए। जरूर आयेगी। रामचन्द्र जी के जीवन में आई, हनुमान जी के जीवन में आई, लक्ष्मण जी के जीवन में आई, पाण्डवों के जीवन में आई। नहीं, गुरुजी! हमारा जीवन ऐसा बना दीजिए कि कोई कठिनाई न आये। नहीं बेटे! ऐसा नहीं हो सकता। कठिनाइयाँ तेरे पर जरूर आयेंगी। इसलिये तैयार रहें कि तुम्हारे जीवन में असफलताएँ आएँ, तुमको कठिनाइयाँ मिलें और उनको तुम बर्दाश्त कर सको बहादुरों के तरीके से। हर आदमी के जीवन में समता भी आती है, असमता भी आती है; कठिनाइयाँ भी आती हैं, असुविधाएँ भी आती हैं। नहीं, महाराज जी! कठिनाइयाँ हम जरा भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। तेरे को करनी पड़ेगी। गुरुजी! हम नहीं कर सकेंगे, हम तो सुविधा ही चाहते हैं। गायत्री माता नाराज हो गई हैं। पूजा में कोई कमी रह गई है, कठिनाई आ गई है। कठिनाई भी जीवन के लिये आवश्यक है। सुविधा भी आवश्यक है। हर आदमी की जिन्दगी में कठिनाई रहनी चाहिए। कठिनाई नहीं आयेगी, तो उसका पौरुष और पुरुषार्थ जीवन में खत्म हो जाएगा। एक और बात भी है। तूने जो ये जाल-जंजाल बुन रखा है, महत्त्वाकांक्षाओं का, उसे घटा, उसको गिरा। महत्त्वाकांक्षा गिराइए, ताकि चैन की नींद आ जाए। मुसीबतें सहन करने के लिये अपनी हिम्मत, ताकत पैदा कीजिए। भरपूर मेहनत कीजिये और हमारी सहायता की उम्मीद कीजिये, अपेक्षा कीजिए। आपकी व्यक्तिगत समस्याओं के इतने समाधान थे।
कुछ हमको भी कहना था। क्या कहना था? हमारे गुरु ने एक काम हमसे करा लिया और मजा आ गया। वे भी धन्य हो गये और हम भी धन्य हुए। हम चाहते थे, वह काम आप कर दें; आप भी धन्य हो जाएँ, हम भी धन्य हो जाएँ। क्या करा लिया? गुरु ने हम पर शक्तिपात किया। शक्तिपात करने का मतलब ये होता है कि उनने हमें एक ऐसी ताकत दी कि अब तक जो हमारा पुराना रवैया और ढर्रा चला आ रहा था, उसको हम बदल सकें। हमने अपना रवैया बदल दिया। जन्म-जन्मान्तरों से जो ढर्रा चला आ रहा था, उसको परिवर्तित कर लिया। उसने ऐसी ताकत दी, जैसी मछली को मिलती है। मछली टक्कर मारती है, पानी में और उलटी धारा में चलना शुरू कर देती है। यह क्या है? यह क्या है? शक्तिपात है। ये हमारे गुरु का वरदान है और ये हमारी हिम्मत है और ये हमारी बहादुरी है। इसे हमारे गुरु की कृपा भी कह सकते हैं। उन्होंने हमारे वर्तमान ढर्रे को पलट देने की ताकत दी और हमने पलट दिया। सामान्य लोग जिस तरह की जिन्दगी जिया करते थे, हमने वैसी जीने से इनकार कर दिया। दूसरे आदमी जिस तरह से विचार करते थे, हमने वैसा करने से अस्वीकार कर दिया। हमने अपने दिमाग से कहा—भाईसाहब! अब हम उस तरह के विचार नहीं करेंगे, जैसे कि सारी दुनिया वाले लोग कहते हैं। हमको अपने सिद्धान्तों के हिसाब से, आदर्शों के हिसाब से नये तरह की विचारधाराओं का गठन करना पड़ेगा। क्या विचार हमारे लिये उचित है? क्या विचार अनुचित हैं? क्या क्रिया हमारे लिये उचित है? क्या विचार अनुचित है? लोग क्या कहते हैं? लोगों की बातें हमने सुनना बन्द कर दिया। लोगों की बातें हम नहीं सुन सकते। लोगों के साथ में हम भलमनसाहत से पेश आएँगे। लोगों के साथ में हम बुरा व्यवहार न करेंगे। लोगों की हम सहायता करेंगे। लेकिन हम इस बात से बँधे हुए नहीं हैं कि लोगों की सलाह मानेंगे। लोगों की हम सलाह नहीं मानेंगे। बाप का कहना मानिये; कतई नहीं मानेंगे। प्रह्लाद ने बाप का कहना एकदम नहीं माना। माता जी का कहना मानिए। माता जी का कहना! माताजी को कहना हम बिल्कुल नहीं मानेंगे। भरत जी ने अपनी माँ का कहना मानने से बिल्कुल इनकार कर दिया था, जिसका वर्णन तुलसीदास ने निम्न प्रकार किया है—
जाके प्रिय न राम वैदेही,
तजिये ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम सनेही।
पिता तज्यो प्रह्लाद, विभीषण बन्धु, भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितनि, भये मुद मंगलकारी।
बेटा! शक्तिपात हमारा उस दिन हो गया और हमारा भाग्य उस दिन से खुला जिस दिन इन लोगों की बातों से इनकार कर दिया, कह दिया—भाईसाहब! हम आपके साथ भलमनसाहत का व्यवहार करेंगे बस। खबरदार! आपने सलाह देने की कोशिश की; सलाह मत दीजिए। आपकी सलाह कमीनों जैसी, दुष्टों जैसी, भ्रष्टों जैसी, पतितों जैसी, पाजियों जैसी है। हम आपकी सलाह नहीं मानेंगे। अपने भगवान की सलाह, अपने अन्तरात्मा की सलाह माने करके हम चलते चले आए। बस, ये हमारे सौभाग्य का उदय। चाबी लगा दी, फिर ये अपने आप चलने लगी। ये चाबी अगर आप लगाना स्वीकार करें, तो यहाँ आज का दिन हमारे और आपके सौभाग्य का दिन होगा। वसंत पंचमी हमारे सौभाग्य का दिन है। वसंत पंचमी ने हमारे जीवन में कायाकल्प कर दिया। वसंत पंचमी ने जानवर से इनसान बना दिया और इनसान से हमको भगवान बना दिया। बसंत पंचमी क्या चीज लाई थी? एक चीज लाई थी बस—हमको अपने आप को बदल डालने की हिम्मत! आप बदल डालने की हिम्मत इकट्ठी कर सकें, तो हमारा उद्देश्य पूरा हो जाए। क्या बदल दें? बेटे! बहुत-सी चीजें बदलने को हैं; पर मैं तो एक ही चीज बदलने के लिए कहता हूँ। क्या बदलने के लिए कहता हूँ। अपनी मालिकी खत्म कर दे और तू माली बन के चला जा और भी ज्यादा साफ करवाना चाहें, तो मैं चाहता हूँ कि आप अपने आपको इस तरीके से कायाकल्प करके जाएँ कि आपको घर वालों का पहचानना मुश्किल पड़ जाए। घर वालों में जाएँ तो सही और यों कहें आप कि हमारा तो कायाकल्प हो गया। गुरुजी ने हमारा कायाकल्प कर दिया। मुहल्ले वाले इकट्ठे हो जाएँगे, कहेंगे—देखना भाई! ये गया था, कायाकल्प होकर के आया है। बुड्ढा गया था, जवान होकर आया। गया तो था अट्ठासी वर्ष का और अठारह वर्ष का हो के आ गया। देखना भाई! इसकी शक्ल। सारा मुहल्ला तमाशा देखने आ जाएगा, कायाकल्प देखने इकट्ठा हो जाएगा। कायाकल्प किसे कहते हैं? कायाकल्प उसे कहते हैं जिसमें बुड्ढा जवान हो जाता है।
मैं ऐसा कायाकल्प करना चाहता हूँ कि आपकी तबियत बदल जाए और मन बदल जाए। कैसे बदल जाए मन? आप एक काम कर दें मेरा, तो मैं आपकी सारी जिम्मेदारियाँ उठाने को तैयार हूँ। सब जिम्मेदारियाँ, जो कुछ भी हैं। आप मेरी एक जिम्मेदारी उठा लें। क्या? जब आप यहाँ से जाएँ, तब आप अपनी मालिकी को यहीं छोड़ जाएँ। मालिक मत बनिए। सारे-का जो प्राण खाती है, वह ये मालिकी है। आपकी मालिकी प्राण खाती है। मैं ... मैं... मैं। बकरे मैं... मैं ... चिल्लाता रहता है। किसी दिन कसाई के यहाँ छुरा फिर गया, उस दिन सारी मैं ... मैं निकल जाएगी, मेरा..... मेरा..... मेरा..... निकल जाएगा। इसलिए क्या करना चाहिए? हमार मुनीम हो के चला जा और ये कहना अपने घर वालों से कि हम गुरुजी के नौकर हैं। हैं तो हम वही; लेकिन वहाँ जाकर के मर गए। गुरुजी ने मार करके गंगा जी में बहा दिया। पहला आदमी जो गया था, वो तो मर गया। अब गुरुजी का बेटा, गुरुजी का चेला, उसी खाल में आया है, जैसे शंकराचार्य किसी और के यहाँ, राजा के खाल में बंद हो गये थे, ऐसे ही हम भी आ गए हैं। गुरुजी के बेटे हैं, गुरुजी के चेले हैं। अब हमारे विचार करने का तरीका, हमारे सोचने का ढंग, बिल्कुल ऐसा है, जैसे गुरुजी के बेटे का, गुरुजी के चेले का होना चाहिए। फिर आप ऐसा व्यवहार करना, जैसा हमारा व्यवहार हो सकता है, हमारे बेटे का व्यवहार हो सकता है। हर एक के साथ शराफत का व्यवहार हो सकता है। हर एक के साथ शराफत का व्यवहार करना। आप अपनी शरीर से कहना—भाई साहब! वो जो पहले भरा था आपके अन्दर, कौन रहता था? चांडाल रहता था पहले। अब उसे तो गुरुजी ने मार डाला। अब आपके शरीर में हम कोई और आ गए हैं। हम भले आदमी के घर से आए हैं।
अब हम आपकी सेवा करेंगे। जुबान से कहना जो जीभ आपको गुमराह करती थी, वह चली गई। अब हम आपको सरस्वती की वाणी मानेंगे। खाने पीने के लिए पेट से कहना कि अब आपको भय करने की जरूरत नहीं। अब पेट में हम इतनी खुराक डालेंगे, जितनी कि आपको आवश्यकता है; एक रत्ती भी ज्यादा खुराक नहीं डालेंगे। जुबान से कहना—देखिए! अब आपको हमारी हुकूमत पर चलना होगा। जो चीजें शरीर के लिए आवश्यक हैं; दवा के रूप में आप खाइए, जायके के लिए नहीं खाएँगी। जायके वाला चांडाल मर गया और एक वैद्य-चिकित्सक इसके अन्दर आ गया है; यह वही चीजें खायेगा, जो आपके लिए आवश्यक हैं। इस प्रकार सारी-की दिनचर्या शरीर के अनुकूल हो। शरीर भी एक इनसान है। शरीर को भी छुट्टी चाहिए; शरीर को भी श्रम चाहिए; शरीर को भी सफाई चाहिए। उसको ऐसे मानकर चलना कि ये हमारा गेस्ट है, किराए का मकान है। शरीर आपसे कहेगा, भाईसाहब! वो चांडाल तो मर गया, इससे तो अच्छा हुआ। आप आ गए हैं; आइए, आप हमारे मित्र हैं। हम और आप अब मित्र हैं। आप हमारा ख्याल करेंगे, हम आपका ख्याल करेंगे।
अब हम आपको कोई कष्ट नहीं देंगे। पहले जो प्राणी था, उसको हमने शाप दिया था कि तू पचास वर्ष का होकर के मरेगा, रो-रो के मरेगा, बिलख-बिलख कर मरेगा। जितना तू हमको कष्ट दे रहा है, अभागे! तुझे हम भी कष्ट देकर के मारेंगे। शरीर उससे कहता था—तेरे हम प्राण लेंगे, दुःख दे-दे कर मारेंगे तुझे। अब वो चांडाल मर गया। संत अब उसके भीतर बैठ के आया है। हम आपको अब कष्ट नहीं देंगे। अब हम आपको लम्बी जिन्दगी देंगे। आप दीर्घजीवी होंगे। अब आपकी इन्द्रियों की शक्ति बढ़ेगी। अब आपकी आँखों की रोशनी कम नहीं होने देंगे; क्योंकि वह पहले जो था चाण्डाल, वह हमसे हमारी इन्द्रियों की शक्ति क्षय कराता था, हमारे ब्रह्मचर्य को नष्ट कराता था।
पचास साल के हो गए, सफेद बाल हो गए। अब ये कोई समय है क्या। ब्रह्मचर्य से रहेंगे, तो हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि आपकी उम्र को पच्चीस साल बढ़ा देंगे। आप जाना और अपना मन कड़ा करके रहना। आपका शरीर आपसे कहेगा—हमारा कायाकल्प हो गया, आपका भी कायाकल्प हो गया। शरीर के साथ-साथ इस मजे में जिन्दगी काटेंगे, जैसे राम और हनुमान ने काटी है, जैसे पाण्डवों में से अर्जुन ने और श्रीकृष्ण ने काटी। आपका अर्जुन और आपका कृष्ण। शरीर के हिसाब से आप बहुत खुश रहेंगे। सारी जिन्दगी भर, अगर आप मेरा कहना मान जाएँ तब। फिर आप ये कहना—हम मालिक नहीं हैं। ये शरीर गुरुजी का है, हम इसके नौकर हैं। इसलिए गुरुजी के शरीर को कष्ट नहीं दे सकते, क्योंकि हम केवल नौकर हैं। शरीर के तईं दिमाग के तईं, आप अपनी मालिकी बन्द कीजिए। दिमाग की सोच से विचार जाने दें और आप चौकीदार के तरीके से खड़े रहना जैसे सिनेमा का गेटकीपर खड़ा रहता है। टिकट है कि नहीं? टिकट तो नहीं है। फिर तो जाइए। अरे! घुस जाने दो। घुस जाने दें। मालिक को पता पड़ गया, तो नौकरी से निकाल देगा। नौकरी से निकलवा देगा। चुपचाप चला जा।
हिंसा के विचार, कामुकता के विचार—ये बिना टिकिट के विचार हैं। भाईसाहब टिकिट नहीं है आपके पास? तब ये हॉल आपके लिए नहीं है। ये असेम्बली हॉल है। टिकिट दिखाइए, तब हम आपको जाने देंगे। नहीं साहब! हम तो ऐसे ही चाकू लेके चलते हैं। तब तो असेम्बली हॉल में आप नहीं जा सकते। नहीं साहब! हम जाना चाहते हैं। नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।
कुविचारों को मस्तिष्क में जाने से आप मना कर दें, कहना—ये गुरुजी का मंदिर है। इसमें हर आदमी नहीं जा सकता। बिना नहाये, बिना हाथ-पैर धोए, इसमें प्रवेश वर्जित है। आप यहाँ से जाने के पश्चात् घर वालों से ये कहना कि शक्ल तो हमारी वही है; लेकिन पहले जो इसमें चाण्डाल रहता था, वो अब मर गया। अब इसके अन्दर देवता रहता है। अपनी धर्म-पत्नी से कहना—आप निश्चिन्त रहें। आपका सम्मान हमारे हाथ में सुरक्षित है। हम आपके प्रहरी हैं; हम आपके सेवक हैं; हम आपके सहायक हैं। आपके पिता ने हमारे हाथ में आपका हाथ थमाया था और ये कहा था कि हमारी लड़की की इज्जत, हमारी लड़की का सम्मान, हमारी लड़की का सुख आपके हाथ में है। चाण्डाल ने आपके स्वास्थ्य को कैसा खराब कर दिया। आप आई थीं, तो कमजोर थीं। हम जानते थे कि आप इस लायक नहीं हैं कि आपके बच्चे पैदा हों। हमने हर साल बच्चे पैदा किए और आपकी जान हमने निकाल ली। आप कमजोर हैं। कमर में दर्द होता है, सिर में दर्द होता है, पेट में दर्द होता है। सारी बीमारियों के लिए वो डाकू जिम्मेदार था, जो छुरे के तरीके से आप पर हमला करता था बराबर। हमले करता था, कहता था—बच्चे पैदा करेंगे। तू कहती रही—हम इस लायक नहीं हैं, हमारे शरीर में खून नहीं है। हमने कहा—हमको चाहिए बेटा। बेटा क्या करेंगे? दो-दो बेटियाँ पैदा कर लीं। आप मरिए, आप कटिए, आप बर्बाद होइए और हमारा वंश चलाने के लिए बेटा दीजिए। वो चाण्डाल, पिशाच, हत्यारा, कसाई, डाकू को मारा डाला गुरुजी ने। अब हम आपके सेवक हैं, आपके सहायक हैं। आप बच्चा पैदा करती हैं, तो ठीक है, नहीं तो कोई बात नहीं। आप के बाप ने अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह पूरी की और कन्यादान किया। कन्यादान का मतलब ये था कि जिस तरीके से बाप अपनी बेटी को दुलार देते हैं, प्यार देते हैं, आप भी हमारी जगह पर इस लड़की को दुलार देंगे, प्यार देंगे। हमने जिस तरीके से इस लड़की को नवें दर्जे तक पढ़ा दिया है, आप ज्यादा समर्थ हैं, हम पढ़े नहीं थे, तो भी हमने इसको नवें दर्जे तक पढ़ा दिया है। आप इसको अठारवें दर्जे तक पढ़ाना; क्योंकि आप अठारह दर्जे तक पढ़े हैं। पर जो चाण्डाल था, कुछ और ही विचारता रहा। यह सोचता रहा कि तब इसके पंख निकल आयेंगे, ये काट खायेगी, घर से निकल भागेगी, नौकरी कर लेगी, घर वालों का कहना नहीं मानेगी, घर वालों की गाली नहीं खायेगी, घर वालों के जूतों के तले नहीं रहेगी, किसी और से बात करना सीख जाएगी, घूँघट में नहीं रहेगी। इसलिए चाण्डाल ने आपको बहुत परेशान किया। अब वो चाण्डाल मर गया और एक संत इस शरीर में बैठ करके आया है। अब वह आपके साथ भलमनसाहत का व्यवहार करेगा। आप अपने कर्तव्यों को भूलती हों, तो भूल जाएँ भले ही हम अपने कर्तव्यों को जारी रखेंगे। गुरुजी ने कहा था कि अपने कर्तव्यों का एकांगी पालन किया जा सकता है। अब तक के तईं हम आपको एकांगी पालन करना सिखाते रहे। देवता को हम प्रणाम करते हैं, देवता को हम नमस्कार करते हैं, देवता को हम अक्षत चढ़ाते हैं, देवता के लिए हम वस्त्र चढ़ाते हैं। हम आपको सिखाते हैं कि एकांगी पालन किया जा सकता है। देवता ने कभी हमको नहीं कहा। सौ बार हमने रोज हाथ जोड़े, कभी हाथ उसने नहीं जोड़े। आपकी बात आपके जिम्मे, हमारी बात हमारे जिम्मे। हमने हमेशा मस्तक झुकाया; पर हमारे देवता ने कभी मस्तक नहीं झुकाया। हमने सीख लिया। आपकी मर्जी, जो कुछ भी आप करें। हम अपना कर्तव्य पालन करेंगे।
आपकी स्त्री क्या करती है, क्या नहीं करती—आपको यह देखने की जरूरत नहीं है। कोशिश कीजिए, समझाइए, सम्भव है आपका कहना मान जाए। जन्म-जन्मान्तरों के संस्कार न जाने आपके कैसे हैं? आप अपना फर्ज पूरा कीजिए, कर्तव्य पूरा कीजिए। अपना कर्तव्य पूरा करते चले जाएँगे, तो मैं ये कहता हूँ देखना आपके घर में चैन की गंगा-यमुना बहती है कि नहीं बहती। आपकी यही शिकायत है? हमारी औरत कहना नहीं मानती। आप बदलते जाइए अपने आपको, फिर मैं देखूँगा कि आपकी औरत बदलती है कि नहीं। आपकी औरत बदल जाएगी। आप मीठे वचन बोलना, सम्मान से भरे हुए शब्द बोलना, प्रेम से भरे हुए वचन बोलना। गलती करती है समझाना जरूर; लेकिन प्यार भरे हुए शब्दों में समझाना, हँसते हुए समझाना, मजाक में समझाना और अगर नहीं सुधर सकती, तो आप उसकी सहायता करना। आपको झाडू़-बर्तन करना अच्छा नहीं लगता? आइए, हम और आप दोनों लगायेंगे आज। आपको कपड़े धोना अच्छा नहीं लगता? आइए, हम साथ-साथ धोयेंगे। अच्छा, तुम साबुन लगाती जाओ, मैं धोकर के साफ करता हूँ। हमारी उपासनाएँ जमीन पर चलने वालों की होनी चाहिए, ख्वाब देखने वालों की नहीं। बैकुंठ में जाएँगे। हाँ-हाँ जरूर बैकुंठ में जाएँगे आप। आप मरेंगे और मरने के पन्द्रह मिनट बाद परलोक में चले जाएँगे। आपके ये जिन्दगी भर के संस्कार हैं, यही तो पन्द्रह मिनट बाद रहेंगे। पन्द्रह मिनट में क्या हो जाएगा? इस जन्म में तो आप नर्क की जिन्दगी जी रहे हैं। मरने के बाद स्वर्ग में जाएँगे आप! बिल्कुल नहीं। जैसे अब हैं, बिल्कुल आप की स्थिति यही रहेगी। कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। शरीर चला जाए, तो क्या हुआ? आपका ईमान तो वही है? संस्कार तो वही है?
तो ये कह रहा था मैं आपसे, स्वर्गलोक जाने की अपेक्षा अच्छा होता इसी जन्म में आप स्वर्ग बनाने की कोशिश करते। कैसे स्वर्ग बनेगा? हम और आप दो मिलकर के बना सकते हैं। हमारे यहाँ बन रहा है पार्क, दो आदमी बना रहे हैं। एक तो मिस्त्री काम करता है और एक मजदूर काम करता है। अकेले में एक बार मिस्त्री से कहा—तू ही बना ले। वाह! हम तो नहीं बना सकते। एक आदमी और दीजिए तो बनाएँगे, अकेले तो नहीं बना सकते। दो मिल करके बना सकते हैं। आप और हम दो मिल करके बना सकते हैं। आप और हम दो मिल करके आपकी बेहतरीन जिन्दगी बना सकते हैं, दोनों के सहयोग से। कैसे बन सकती है? एक ही तरीका है बेटे आप हमारे जिम्मे अपना अहं छोड़ दो, बस! सामान हम आपको सब दे देंगे। आपकी औरत को हम नहीं छूयेंगे। किसी चीज को नहीं छूयेंगे; लेकिन हर चीज को आप ये कह दीजिए कि वह हमारी नहीं है। बेटे! हम तुझे सिखायेंगे कि अच्छा इस्तेमाल कैसे हो सकता है? मालिकी की वजह से हर चीज का गलत इस्तेमाल करता है। शरीर का तू गलत इस्तेमाल करता है; दिमाग का तू गलत इस्तेमाल करता है; पैसे का तू गलत इस्तेमाल करता है; औरत का तू गलत इस्तेमाल करता है; बच्चों का तू गलत इस्तेमाल करता है। गलत इस्तेमाल करने से तू बाज आ। आपको हम कर देंगे दान तो हमारा छीन लेंगे। बेटे! हम क्या छीनेंगे! अपना था, तो हम दूसरे को दे आये। तेरे और छीन के ले जाएँगे। क्या करेंगे उसका? नहीं, महाराज जी! फिर हम आपको दान कर देंगे। नहीं, बेटे! तू हमको मत कर दान। दान से क्या मतलब है? दान से मतलब ये है कि हमारा कारिन्दा हो के काम कर, जैसे बताएँ, वैसे कर। अपनी रीति-नीति, गतिविधियाँ बदल दे। ये तेरी अक्ल जो है, बड़ी खराब है। इतनी खराब अक्ल है कि अगर इस अक्ल को बदल दिया जाए, तो जो जिन्दगी चली गई है, सो चली गई, बची हुई जिन्दगी जो कुछ भी शेष है तेरी, अगर अक्ल को भलेमानसों के तरीके से खर्च कर सके, तो परलोक का तो वायदा मैं नहीं कर सकता, मैं तो इसी जन्म का वायदा कर सकता हूँ; इसी जन्म में मैं तेरा कायाकल्प करके दिखा दूँगा। तेरे असहयोगी, तेरी निन्दा करने वाले, तेरी बुराई करने वाले तेरे चरणों को चूमते दिखाई पड़ेंगे। तेरे घर में कलह और शोर पड़ा हुआ है—ये अलग तरीके से जाते हुए दिखाई पड़ेंगे। तेरे जीवन पर पाप के और अनाचार के जो कलंक लगे हुए हैं, तेरे चेहरे पर जो खीझ—हर समय खीझा हुआ चेहरा, मैं कहता हूँ खीझ को छुड़ाकर मुसकान दे सकता हूँ। हर समय तेरे चेहरे पर गुलाब के फूल के तरीके से मुसकान खिलती हुई दिखाई पड़ सकती है। मैं चाहता था, आप कायाकल्प करके चले जाएँ। मैं चाहता था, आपका मन आपको जो जीवन, व्यक्तित्व, चारों ओर बन्धनों में जकड़ा हुआ है—लोभ, मोह, काम, क्रोध में उलझा हुआ है, उससे मुक्त हो। सबेरे जो आपको ध्यान कराता हूँ, उसको समाधि के अर्थ में कहता हूँ। वासना, तृष्णा, अहंता, लिप्सा—चार बन्धन हैं आदमियों के। इन्हीं ने जकड़ रखा है। मुक्ति पाने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता। मुक्ति काहे से मिलेगी? मुक्ति तो बेटे! मिली-मिलाई है। इन चारों को तू काट दे, मुक्ति मिल जाएगी, शीघ्र मिल जाएगी। मरने के बाद! मरने के बाद की मैं नहीं कहता हूँ अब। मरने के बाद न हुआ हो तो मरने के बाद बैकुण्ठ मिलेगा। न मिला तो! मरने के बाद बैकुंठ होता है और न हुआ तो! जैसे मुसलमान कहते हैं सात आसमान होते हैं और खुदावन्द करीम बैठा है। खुदावन्द करीम न मिला तो! तेरा जो स्वर्ग है, न मिला तो!
मैं कहता हूँ अपना वर्तमान जीवन, वर्तमान व्यक्तित्व क्या विकसित किया जा सकता है? हाँ हो सकता है। हमारे गुरु ने शक्तिपात के नाम पर यही शिक्षण हमको दिया था और इसी आधार पर अपने आपको बदल देने की हिम्मत के आधार पर अपना हेर-फेर करते चले आए और इसी शरीर में—इसी चमड़े के शरीर में जिसमें कि आप रहते हैं, उसी में, हम भी इसी चमड़े के शरीर में देवता के तरीके से रहते हैं, सन्त के तरीके से रहते हैं, ऋषि के तरीके से रहते हैं। और आप? भ्रष्ट के तरीके से रहते हैं, घिनौने के तरीके से रहते हैं, अशान्त के तरीके से रहते हैं। आइये बदल दें अपने आपको। आप अपने आप को बदल सकते हैं। आप अपने आपको बदल सकते हों, तो समझना चाहिए गुरुजी ने हमको कोई शक्ति दे दी, सामर्थ्य दे दी। अगर आपके भीतर बदलाव सम्भव न हुआ, तो समझना आप और हम—दो में से कोई एक निकम्मा जरूर था। दरवाजे का किवाड़ अगर आप न खोलेंगे, तो सूरज आप के कमरे में नहीं आ सकेगा। आप दरवाजे ने खोलेंगे, तो हवा आपके कमरे में न आ सकेगी। मैं चाहता था कि आप दरवाजा खोल देते, जैसा कि मैंने अपने गुरु के लिए खोल दिया। आप अपना दरवाजा खोल देते, जैसा कि विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस के लिए खोल दिया। मैं चाहता था कि आप अपना मन खोल देते शिवाजी के तरीके से; उन्होंने समर्थ गुरु रामदास को अपने जीवन में काम करने के लिए, प्रवेश करने के लिए मौका दे दिया। दीजिए न मौका उनको। आप मौका नहीं दे सकते? कृपा कीजिए। उनको मौका दीजिए। हम आपके भीतर प्रवेश कर सकें। कान तक मत सुनिए हमारी आवाज। कान से हम गुरुजी की आवाज सुनते हैं। कान पर लानत! कान सुनते-सुनते पक गए आपके। अखण्ड कीर्तन सुनते-सुनते, रामायण सुनते-सुनते, भागवत् सुनते-सुनते, कथा सुनते-सुनते। इनका कोई फायदा नहीं हुआ। कभी कोई फायदा नहीं हुआ। कभी कोई फायदा नहीं हो सकता। भीतर घुसने दीजिए। कान तक घुसने देंगे! कान तक मत घुसने दीजिए। उनको भीतर तक प्रवेश करने दीजिए। हमने अपने गुरु को भीतर तक प्रवेश करने दिया। नेहरू ने गाँधी को अपने जीवन में प्रवेश करने दिया, सेंट पाल ने ईसा को अपने जीवन में प्रवेश करने दिया। आप प्रवेश करने दीजिए। आप मौका दीजिए कि हम आपके अन्तःकरण में प्रवेश कर सकें; आपके जीवन की गतिविधियों को निर्धारण करने में आपकी मदद कर सकें, आपकी भौतिक महत्त्वाकांक्षाओं के स्थान पर आपकी आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षाएँ जगा सकें। आपकी भौतिक महत्त्वाकांक्षाएँ इस कदर बढ़ी-चढ़ी हैं कि आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए न आपके पास विचार बचता है, न आपके पास समय बचता है, न आपके पास मन बचता है, न आपके पास पैसा बचता है। कुछ नहीं बचता। ये आपकी सौ फीसदी क्षमताएँ खा जाती हैं। ये भौतिक महत्त्वाकांक्षाएँ हैं। मौका दीजिए। आप अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को कहें—बहिन जी! आप जरा-सा अपना मुँह उधर कर लीजिए। आप थोड़ा मौका दीजिए—सिद्धान्तों को मौका दीजिए, भगवान को मौका दीजिए। उनको घुसने दीजिए जीवन में। आप भगवान को घुसने के लिए एक सेकेण्ड का समय नहीं देना चाहते! आपके मन में तो एक रत्ती की नोंक की गुंजायश नहीं है। नहीं, हम भजन करते हैं। कहाँ करता है तू भजन? एक घण्टा भजन करता हूँ। अभागे! तू एक सेकेण्ड भी भजन नहीं करता।
भजन उसको कहते हैं जो सिद्धान्तों को जीवन में उतारने के लिए किया जाता है। जो भौतिक महत्त्वाकांक्षाओं के लिए किया जाता है। भजन, वह भजन नहीं है। पैसा कमाने के लिए, चोरी-चालाकी करने के लिए हजार तरीके हैं, जैसे—हम तिकड़में भिड़ाते हैं। तिकड़म है ये भी। चौबीस हजार जप कर रहा था। काहे के लिए कर रहा था, पहले ये बता। मेरी नौकरी में तरक्की हो जाए, इसलिए कर रहा था। बेटे! ये जितना देर का भजन है, वह और चाहे अपने हेड क्लर्क को खुशामद करने में लगा दे—दोनों एक ही हैं। इसका भगवान से कोई ताल्लुक नहीं है। भगवान के लिए ताल्लुक होता तब, जब अपने सिद्धान्तों के लिए, आदर्शों के लिए, जीवन में पवित्रता का समावेश करने के लिए, जीवन में सज्जनता का विकास करने के लिए भजन किया जाता। अगर उस उद्देश्य से करते तो, मैं भी मानता कि आपने भजन किया है। मेरा कहना है आपने अब तक एक सेकेण्ड भी भजन नहीं किया। अब कृपा करके भजन शुरू कीजिए सिद्धान्तों के लिए, आदर्शों के लिए, जीवन को महान बनाने के लिए, जीवन के अन्दर उत्कृष्ट तत्त्वों का समावेश करने के लिए आप भजन करना। आप देखेंगे आपके भजन में मस्ती आएगी, आपके भजन में खुशी आएगी।
आपके भजन में जो आपको ये शिकायत थी, मन नहीं लगता, आपका मन लगेगा। आप प्रत्येक क्रिया-कृत्य के बारे में हेर-फेर करें। खान-पान के सम्बन्ध में, टाइम-टेबल के सम्बन्ध में, रहन-सहन के सम्बन्ध में, महत्त्वाकांक्षाओं के सम्बन्ध में, बाहरी जीवन की स्कीमों के सम्बन्ध में, मालिकी और गुलामी के सम्बन्ध में आप निश्चय करके जाइए। अगर आपने इतनी हिम्मत पैदा कर ली, तो मैं समझूँगा ये शिविर सार्थक हो गया, आपका आना सार्थक हो गया और मेरा बुलाना सार्थक हो गया। मौका दीजिए, ताकि हम और आप मिलजुल कर मित्र के तरीके से निश्चिंत काम कर सकें। अब तक अगर आपका और हमारा गुरु-शिष्य का रिश्ता रहा हो, तो मैं चाहता हूँ अब उसको बदल दूँ। इसमें मुझे बड़ी गन्ध आती है, गुरु-शिष्य की परम्परा में गुरु-शिष्य की परम्परा भी होती थी; पर आज वो रही नहीं। हम और हमारे गुरु, वो गुरु और हम शिष्य हैं। गुरु को घमण्ड है कि हमको ऐसा शिष्य मिला और हमको घमण्ड है ऐसा गुरु मिला। न आपको हमारे ऊपर घमण्ड है, न हमको आपके ऊपर घमण्ड है। आपको हमसे शिकायत है। पहली बार भी गुरुजी हम आए थे और आपको चिट्ठी लिखकर दे गए थे और आपको तीन कामना बता गए थे। देखिए एक पूरी हो गई, दो नहीं हुई हैं। आप तो ध्यान नहीं देते, आप तो बहका देते हैं, आप तो झूठ बोलते हैं। आपको शिकायत है कि नहीं? आपको बराबर शिकायत है और हमको हजार गुनी शिकायत है। हमको तुझसे हजार गुनी शिकायत है। तैंने अपने समय का एक हिस्सा दिया? तैंने अपने मन का एक हिस्सा दिया? बहकाता है हमको! शाखा ठण्डी हो गई है और वहाँ कोई आता नहीं है.....। बेकार की बातें बकता है और उल्लू हमको बनाता है। तू करता है कि नहीं करता? ये बता! नहीं, महाराज जी, हम तो नहीं करते, तो शाखा वाले ठण्डे हो गए और शाखा वाले गरम हो गए। बेकार की जानकारी छोड़ता है, अपनी नहीं कहता।
मित्रो! हमको विश्वास है, हमारे गुरु ने हमको दिया है, किसी उद्देश्य विशेष के लिए दिया है। हम आपको देना चाहते हैं और उद्देश्य विशेष के लिए देना चाहते हैं, आपकी लक्जरी के लिए नहीं, आपकी तृष्णाओं की आग में अपना तप, भट्टी के तरीके से जलाने के लिए तैयार नहीं। नहीं, हमारी तृष्णाओं की आग में अपने तप की आहुति दीजिए। नहीं बेटे! हमको अच्छे काम के लिए देने दीजिए। दुनिया में अच्छाइयाँ हमको पुकारती हैं, सहिष्णुताएँ हमको पुकारती हैं, शालीनताएँ हमको पुकारती हैं। सहिष्णुता और शालीनता के लिए हमको अपने तप की आहुति देनी चाहिए। आप अपनी तृष्णाओं के लिए आहुति माँगते हैं हमारी। गलती मत कीजिए। ब्राह्मण का तप आप अपनी वासनाओं के लिए मत माँगिए, अच्छे उद्देश्य के लिए माँगिए। हम जी खोल के देंगे। हमारे गुरु ने जी खोल के हमको दिया है और हम आपको जी खोल के देने को तैयार हैं।
मित्रो! अन्धे और पंगे का हिसाब बना लीजिए। मित्र उसे कहते हैं, जैसे कि राम और हनुमान—दोनों मित्र थे। हनुमान ने राम को निहाल कर दिया, राम ने हनुमान को निहाल कर दिया। अर्जुन को कृष्ण ने निहाल कर दिया और कृष्ण को अर्जुन ने निहाल कर दिया। आइये, हम और आप मित्र के तरीके से चलें। अन्धे और पंगे के तरीके से चलें। अन्धा और पंगा......। हमारा गुरु पंगा है, चल नहीं सकता। क्यों नहीं चल सकता? उसने अपने आपको सीमाबद्ध कर दिया हैं। एक लेबोरेटरी—प्रयोगशाला में बैठा प्रयोग करता है। और हम! हम अन्धे हैं। हमारे पास ज्ञान नहीं है। उसका ज्ञान और हमारा बल—दोनों को मिलाकर के हम काम करते हैं। आइये, हम और आप मिलें, दो मित्रों के तरीके से काम करें। गुरु-शिष्य के तरीके से नहीं। गुरु-शिष्य की बातें बहुत बड़ी हैं, बहुत ऊँची हैं। पहले हम और आप मित्र बनना सीखें। मित्र बनना सीखें और मित्रता के जो आधार होते हैं—‘गिव एण्ड टेक’, औरत मर्द को दिया करती है और मर्द औरत को देता है—‘गिव एण्ड टेक’। आइए, हम और आप मिलें। ‘गिव एण्ड टेक’ के आधार पर हम मित्रता कायम करें। अभी तो हम आदान-प्रदान का रास्ता चलाएँ, बाद में समर्पण का रास्ता चलाएँगे। आइए, हम और आप मिलकर काम करें—दो प्राणों के तरीके से आप समाज को ऊँचा उठाने के लिए श्रम कीजिए, हम आपको ऊँचा उठाने के लिए श्रम करेंगे। हमने देश, धर्म और संस्कृति को ऊँचा उठाने के लिए श्रम किया है और हमारे गुरु ने हमारा व्यक्तित्व, हमारा ज्ञान, हमारी बुद्धि, हमारा प्रभाव, हमारी सम्प्रभुता बढ़ाने में हमारी मदद की। हमने गुरु का उद्देश्य पूरा करने के लिए मदद की है। बादलों ने जमीन को ठण्डा किया है। समुद्र ने बादलों को पूरा किया है। आइए, बरसिए जमीन पर। हम आपके पानी में कमी नहीं पड़ने देंगे। हम समुद्र के तरीके से आपको पानी फेकेंगे। आप अपने पानी को जमीन पर बरसाने की कोशिश कीजिए।
इन शब्दों के साथ में बात समाप्त करता हूँ। मैं चाहता हूँ आप यहाँ से खाली हाथ न जाएँ। जो मैंने आपके लिए जीवात्मा के भीतर कहने की कोशिश की है, उसको आप समझें, उसको आप मनन करें, चिंतन करें, विचार करें और अगर आपके लिए सम्भव हो सके, तो यहाँ से जाने के पश्चात् जीवन की नई गति और जीवन की नई गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिए अपने भीतर साहस और हिम्मत तैयार करें। इसी साहस का नाम है—प्राण; इसी का नाम है—संकल्प शक्ति; इसी का नाम है—हिम्मत; इसी का नाम है—बहादुरी; इसी का नाम है—अध्यात्म। हम ऊँचे सिद्धान्तों को अपने व्यावहारिक जीवन में क्रियान्वित करने के लिए साहस इकट्ठा कर सकें। तभी सही अर्थों में अध्यात्मवादी कहला सकेंगे। बस, हमारी बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥