विषय-सूची
१. मनुष्य में देवत्व का उदय व धरती पर स्वर्ग का अवतरण १.१
१. मनुज देवता बने, बने यह धरती स्वर्ग समान १.१
२. देवत्व विकसित करें, कालनेमि न बनें १.४
३. अपने ब्राह्मण एवं सन्त को जिन्दा कीजिए १.८
४. भाव-संवेदना का विकास करना ही साधुता है १.१३
५. आत्मोन्नति के चार आधार १.१५
६. सूक्ष्मीकरण के बाद का ऐतिहासिक वसन्त १.१९
७. युगनिर्माण योजना और उसके भावी कार्यक्रम १.२३
८. युग-मनीषा जागे, तो क्रान्ति हो १.२५
९. युगशोधन हेतु मनीषा को आमंत्रण १.२९
१०. गुरुतत्व की गरिमा और महिमा १.३२
११. सुसंस्कारी बनाए, कैसी हो वह शिक्षा? १.३५
१२. संजीवनी विद्या बनाम जीवन जीने की कला १.३८
१३. देवात्मा हिमालय एवं ऋषि-परम्परा १.४१
१४. हिमालय का अज्ञातवास एवं हमारी तपश्चर्या १.४६
१५. नया इनसान बनायेंगे, नया जमाना लायेंगे १.५३
१६. वासन्ती हूक, उमंग और उल्लास यदि आ जाए जीवन में १.५६
२. देव-संस्कृति के दो आधार-- गायत्री और यज्ञ २.१
१. भारतीय संस्कृति का मूल-गायत्री महामंत्र २.१
२. गायत्री महामंत्र की सामर्थ्य २.५
३. गायत्री महामंत्र की महत्ता २.२३
४. गायत्री महाशक्ति की महान फलश्रुतियाँ २.२६
५. त्रिपदा गायत्री के तीन चरण २.३०
६. देव-संस्मृति का बीज मंत्र--गायत्री महामंत्र २.३४
७. गायत्री उपासना का स्वरूप २.४६
८. गायत्री उपासना की सफलता के आधारभूत तथ्य २.५८
९. ब्रह्मवर्चस कैसे जगाती है गायत्री? २.६१
१०. ब्रह्मतेजस के अभिवर्द्धन हेतु गायत्री उपासना २.६६
११. ऋतम्भरा-प्रज्ञा का अवतरण २.६९
१२. गायत्री की युगान्तरीय चेतना २.७३
१३. युग शक्ति का अवतरण २.७८
१४. गायत्री उपासना सफल एवं सार्थक कैसे बने? २.८१
१५. हमारी स्वयं की गायत्री उपासना कैसे फली? २.९६
१६. हमारी यज्ञीय परम्परा २.१००
१७. यज्ञों से सूक्ष्म वातावरण का संशोधन एवं जनमानस का परिष्कार २.१०३
१८. महायज्ञों का स्वरूप व उद्देश्य २.१०६
१९. भारतीय संस्कृति के प्रतीक--शिखा और सूत्र २.११०
२०. नवरात्रि साधना का तत्त्वदर्शन २.१२४
२१. हेमाद्रि संकल्प और उससे जुड़े अनुशासन २.१२७
२२. आत्मबल सम्पादन ही सर्वोपरि लक्ष्य हो २.१३३
२३. ओजस्वी, तेजस्वी एवं मनस्वी व्यक्तित्वों का निर्माण २.१३८
३. आध्यात्मिक कायाकअ के सूत्र और सिद्धान्त ३.१
१. आध्यात्मिक कायाकल्प के मूलभूत सिद्धान्त ३.१
२. कैसे हो आध्यात्मिक कायाकल्प? ३.५
३. अनुग्रह के लिए अन्तराल का सुविकसित होना आवश्यक ३.८
४. कायाकल्प का मर्म और दर्शन ३.१२
५. कल्प साधना और उसकी तात्विक विवेचना ३.१६
६. प्रायश्चित क्यों? कैसे? ३.२०
७. तीर्थयात्रा बनाम प्रायश्चित प्रक्रिया ३.२४
८. तीर्थसेवन का महत्त्व और प्रयोजन ३.२८
९. साधना में श्रद्धा की महत्ता और वातावरण की उपयोगिता ३.३१
१०. पारस को छूकर सोना बनने का तरीका ३.३५
११. जीवन-साधना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी ३.३९
१२. शक्तिपात एवं कुण्डलिनी जागरण का तत्त्वदर्शन ३.४३
१३. आत्मावलोकन का सरल उपाय-एकान्तवास ३.४८
१४. तपस्वी जीवन और उसके मूलभूत सिद्धान्त ३.५२
१५. तपकर कुंदन बनने की प्रक्रिया ३.५६
१६. दृष्टिकोण-परिवर्तन ही वास्तविक कायाकल्प ३.६०
१७. आध्यात्यिक सिद्धान्तों का आत्मसात करना ही जीवन का लक्ष्य हो ३.६४
१८. आन्तरिक अमीरी ही वास्तविक सम्पन्नता है ३.७५
४. साधना से सिद्धि ४.१
१. उपासना, साधना, आराधना का त्रिवेणी संगम ४.१
२. उपासना फलदायी कैसे बने? ४.५
३. उपासना की सफलता साधना पर निर्भर ४.८
४. विधा को समझें, विधि में न उलझें ४.१४
५. जप का ज्ञान और विज्ञान ४.२९
६. साधना से सिद्धि ४.४४
७. अनुदान की तीन शर्तें-तीन कसौटियाँ ४.४७
८. आध्यात्मिक जीवन में पात्रता की अनिवार्यता ४.५०
९. जाग्रत आत्माओं को हमारे अजस्र अनुदान ४.६१
१०. शक्ति-भण्डार के साथ जुड़ें ४.६८
११. भगवान के साथ साझेदारी घाटे का सौदा नहीं ४.७२
१२. श्रद्धा, सिद्धान्तों के प्रति हो ४.७५
१३. प्रज्ञायोग की साधना ४.७९
१४. पंचकोशों का अनावरण ४.८३
१५. ध्यानयोग का व्यावहारिक क्रिया पक्ष ४.८८
१६. भगवान शिव और उनका तत्त्वदर्शन ४.९२
१७. बहुदेववाद को समझें, भ्रम-जंजाल में न उलझें ४.९६
१८. आपत्तिकाल में मोहग्रस्त बने न रहें ४.१०८
५. महाकाल की पुकार अनसुनी न करें ५.१
१. युग-परिवर्तन की पूर्व वेला एवं सन्धिकाल ५.१
१. विषम परिस्थिति में नवयुग की तैयारी ५.६
२. आपत्तिकाल का अध्यात्म ५.११
३. अन्तर की हूक को ही अवतार कहते हैं ५.१६
४. आज के प्रज्ञावतार की, युग-देवता की अपील ५.१९
५. युगसन्धि की वेला व हमारे दायित्व ५.२५
६. युग-परिवर्तनकारी महाक्रान्ति में सहभागी बनें ५.२९
७. महाकाल की पुकार सुनें और जीवन को धन्य बनाएँ ५.३२
८. कैसे होगा समन्वय, विज्ञान और अध्यात्म का? ५.३६
९. यह चिनगारी-दावानल बनेगी ५.४३
१०. धर्मतंत्र की गरिमा एवं महत्ता ५.५१
११. परमार्थपरायण बनें-दैवी अनुग्रह पाएँ ५.५७
१२. वातावरण परिशोधन हेतु युगशिल्पियों का दायित्व ५.६३