उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत करना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
गायत्री माँ की उपासना, ही जीवन का सार है।
देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा, की यह मूलाधार है॥
यह जीवन का सार है॥
इसी साधना के सम्बल से, सिद्ध समर्थ हुआ यह देश।
ऋतम्भरा प्रज्ञा का पाया, था हमने वरदान विशेष॥
था हमने वरदान विशेष॥
अमृजमय जीवन हो जाता, इनमें इतना प्यार है॥
देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा, की यह मूलाधार है॥
धर्म, अर्थ या काम मोक्ष, कोई भी इनसे दूर नहीं।
इनके ही प्रताप से रहती, सुख-सुविधा भरपूर मही॥
सुख-सुविधा भरपूर मही॥
यह मानस की मणि-मुक्ता यह ही सुमनों का हार है॥
देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा, की यह मूलाधार है॥
गायत्री से विमुख हुआ जो, उसने खोया बुद्धि विवेक।
सत्य ज्ञान का मर्म यही है, शुचिता की पावन अभिषेक॥
शुचिता की पावन अभिषेक॥
मानवता के हित का केवल, गायत्री आधार है॥
देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा, की यह मूलाधार है॥
गायत्री माँ की उपासना, ही जीवन का सार है।
देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा, की यह मूलाधार है॥
यह जीवन का सार है॥