उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ—
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
कल कल्पसाधना के संबंध में आपको थोड़ी-सी जानकारी दी थी कि यह कल्प-साधना क्या है और आपको इसको अंतर्गत स्वयं में क्या परिवर्तन लाना है और यह कौन करेगा? कैसे सम्भव होगा? आप लोग सहयोग करेंगे, हम आपकी सहायता करेंगे। कल हमने आपसे कहा था कि आपको अपने भीतर के दृष्टिकोण को बदल लेना चाहिए। क्रिया भी इसमें सहायक है। इसके लिए हम आपसे अनुष्ठान करा रहे हैं, जप करा रहे हैं, ध्यान करा रहे हैं, भोजन के बारे में आहार की भी साधना करा रहे हैं। ये क्रियाएँ हैं; लेकिन इन क्रियाओं का मतलब सिर्फ यह है कि आप अपने भीतर वाले दृष्टिकोण, चिंतन, चरित्र, स्वभाव, रुचि और आकांक्षा को बदल दें। इन सारी क्रियाओं का मतलब अगर आपने यह लगा लिया हो कि इन क्रियाओं से जादूगरी होगी और आसमान से सिद्धियाँ टपकेंगी, तो आप इस ख्याल को निकाल दीजिए। करना आपको ही पड़ेगा। आपके किये बिना कोई रास्ता नहीं है। आप चुपचाप बैठ करके देवी के आशीर्वाद से, गायत्री माता के आशीर्वाद से या किसी चमत्कार से बदलना चाहते हैं और स्वयं कुछ करने से इनकार करते हैं, तो आप ख्याल रखिये, फिर आपको सफलता नहीं मिल सकती; एक महीने का समय भी आपको बेकार चला जाएगा। अच्छा है आप कायाकल्प को पहले अच्छी तरह समझ लें, तब कदम बढ़ाएँ।
कल हमने आपको यह बताया था कि किसी तरीके से महान लोगों ने अपने आपको बदल लिया। मनःस्थिति बदलने के बाद, परिस्थिति किस तरह बदल गई? कायाकल्प यही है। फिर कायाकल्प में करना क्या पड़ता है? इसके लिए एक उदाहरण मैं आपको सुनाऊँगा। यह उदाहरण महामना मालवीय जी का है। महामना मालवीय जी ने कायाकल्प किया था। कायाकल्प के बारे में उनका भी यही ख्याल था कि शरीर का कायाकल्प होगा। शरीर का कायाकल्प, हम कह चुके हैं कि सम्भव नहीं है; लेकिन मन का कायाकल्प करने के लिए कम-से प्रक्रिया वही इस्तेमाल करनी पड़ती है, जो शरीर के कायाकल्प के लिए कभी की जाती रही होगी या कभी सफल होती रही होगी। महामना मालवीय जी का कायाकल्प हुआ था। कैसे हुआ था जानते हैं? मथुरा जिले में कोसी नाम की एक जगह है। उसके पास मंदिर में एक महात्मा रहते थे। तपसी बाबा उनका नाम था। तपसी बाबा ने मालवीय जी से संपर्क स्थापित किया और कहा कि आपको हम कायाकल्प का देंगे, आपके बुढ़ापे को जवानी में बदल देंगे। वह प्रक्रिया जिस तरीके से इस्तेमाल की गई, आपके बहुत ध्यान देने लायक है। आपके मानसिक कायाकल्प में वह प्रक्रिया जरूर सहायक होगी। क्या हुआ था उनका? उनके तीन कर्म हुए थे। मालवीय जी को सबसे पहले पंचकर्म करने पड़े थे। पंचकर्म किसे कहते हैं? पंचकर्म कहते हैं—शरीर के संशोधन को इसमें स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन और वस्ति—यह पाँच क्रियाएँ होती हैं। पाँच कर्मों में एक आता है—टट्टियाँ जाना, दस्त करा देना। इसको ‘विरेचन’ कहते हैं। आमाशय में जो मैल भरा हुआ था, वह उल्टी करके निकाल देना—यह ‘वमन’ कहलाता है। आँतों में जो भी जहर भरा हुआ था, उन्होंने दस्त और उल्टी करके निकाल देना—यह ‘वमन’ कहलाता है। आँतों में जो भी जहर भरा हुआ था, उन्होंने दस्त और उल्टी कराकर निकाला। दो कर्म यह कराये। तीन और रह जाते हैं। एक में पसीना निकाला जाता है, जिसको संस्कृत में ‘स्वेदन’ कहते हैं। भाप दे करके पसीना निकाला गया। क्यों? इसलिए निकाला, क्योंकि उनके शरीर में जहाँ कही भी विषाणु भरे हुए होंगे या मल भरा होगा, उसको निकालने के लिए यह क्रिया की गई। इसमें बाद में उनको छीकें देने का कार्य किया गया। जुकाम के जो कीटाणु या मस्तिष्क में जो मल भरा हुआ था, उसको निकाला गया। इस तरीके से सारे मलों का संशोधन किया गया। इस तरीके से सारे मलों का संशोधन किया गया। कल्प का पहला अध्याय यह कर्म यही है। मैं यह मालवीय जी की बात कह रहा था। उन लोगों को भी, जिनको पूरा न सही अधूरा ही कायाकल्प करना है, तो पहले मलों का निष्कासन करना पड़ेगा। दूसरा, मालवीय जी को यह करना पड़ा कि चालीस दिन तक एक झोंपड़ी के भीतर कैद रहना पड़ा। उस एकांत कोठरी में चालीस दिन अकेले काटने पड़े। उसी में टट्टी जाने थे, नहाते भी उसी में ही थे, उसी में पूजा-पाठ करते थे, जो कुछ भी खाना खाते होंगे, वह भी बाबा ने वहीं भेजा। निकलना नहीं हो सकता था। टहलना भी उसी में होता था। इस तरीके से चालीस दिन उन्होंने काटे।
अध्याय नंबर दो। मैं आपको यह समझाने वाला हूँ कि इन तीनों क्रियाओं का क्या उद्देश्य है और ये तीनों क्रियाएँ मनःक्षेत्र का कायाकल्प करने के लिए किस किस तरीके से लागू हो सकती हैं? दो बातें हो गईं। एक तो हुआ उनका मल-संशोधन, दूसरा हुआ उनका एकांत सेवन। तीसरा एक और पक्ष वह यह था कि उनको विशेष पदार्थ खिलाये गये। क्या खिलाये गये? उनको ऐसे पदार्थ खिलाए गये। क्या खिलाये गये? उनको ऐसे पदार्थ खिलाए गये, जिससे उनको शरीर में नये कोषाणु बनें, नया जीवन आये। टॉनिक टाइप की कुछ ऐसी चीजें थीं, जिनको लकड़ी के एक खोखले में बंद करके रखते थे और जब सात दिन में वह बनकर तैयार हो जातीं, तो उनको पीसकर के उन्हें खिलाते थे, जिससे कायाकल्प में पुरानी खराबियाँ निकल जाएँ और नई अच्छाइयाँ शुरू हो जाएँ। बस, यही चालीस दिन तक चला। चालीस दिन बाद क्या कराया? क्या लाभ हुए? ज्यादा तो मुझे मालूम नहीं है; पर इतना तो मालवीय जी ने छापा था कि मेरी स्मरण शक्ति ठीक हो गयी है, मेरे सफेद बाल काले हो गये हैं। ऐसे कई लाभ उनको हुए थे और वह लाभ कब तक टिके, ऐसी बात में नहीं जानता; क्योंकि शारीरिक कायाकल्प कराने की बात मैंने आपसे कही भी नहीं है और हम ऐसा कुछ कराने की स्थिति में भी नहीं है; लेकिन मानसिक कायाकल्प में भी इन्हीं तीनों सिद्धांतों को बराबर लागू करना पड़ेगा। एक काम आपको यह करना पड़ेगा कि आपके भीतर जो भी संचित मल, आवरण और विक्षेप हैं, जो भी विषाणु भरे पड़े हैं, उनकी ओर गौर करना पड़ेगा और गौर ही नहीं, बल्कि निकालना भी पड़ेगा, जद्दोजहद करनी पड़ेगी, लड़ना पड़ेगा कि आपका पिछला जीवन कैसे कुसंस्कारों से भरा पड़ा हुआ है और उन कुसंस्कारों को दूर करने के लिए आपको क्या करना चाहिए और यह कैसे संभव है? प्रायश्चित्त प्रणाली हमारी यही है। इसमें यह बताया जाता है कि आदमी की आध्यात्मिक उन्नति में सबसे बड़ी रुकावट उसके पुराने किये हुए कर्मों के पाप हैं। पुराने दुष्कर्म पत्थर की तरह से रास्ते में खड़े हो जाते हैं और एक कदम भी आगे नहीं बढ़ने नहीं देते। बार-बार रोक देते हैं; क्योंकि उसका भविष्य बुरा होना है, उसको दंड मिलने हैं, इसलिए अच्छे काम भी नहीं करने देते और अच्छे कामों की ओर से मन उखाड़ देते हैं, मन हटा देते हैं। इसलिए पहला काम हर साधक को अपने आपकी धुलाई के रूप में करना पड़ता है, जैसे रँगने से पहले कपड़े की धुलाई करनी पड़ती है। धुलाई अगर नहीं होगी, तो कपड़े पर नया रंग चढ़ेगा नहीं। इसलिए पहला काम, कल्प-साधना के लिए यही करना पड़ता है, यह आप समझ लीजिए। आपके ऊपर दबाव डाला जाएगा और आपका उत्साह पैदा किया जाएगा कि आपके अंदर पिछला स्वभाव और पिछली गंदी आदतें, क्रिया-पद्धति जो भी रही है, उसे बदल दीजिए, छोड़ दीजिए, निकाल दीजिए। अगर बुरी आदतें आपको नहीं छोड़ती हों, तो उनके विरुद्ध लड़ना शुरू कर दीजिए, बगावत कीजिए, उनको अस्वीकार कर दीजिए। यह कायाकल्प का पहला काम है। यह काम आपको करना पड़ेगा। अगर आप नहीं करेंगे, तो कल्प-साधना, जिसके कि रंगीन सपने हमने आपको दिखाये हैं और ये बताया है कि आपको जीवन दिव्य-जीवन होकर रहेगा और आप शानदार आदमी होकर रहेंगे, तो पुराने ढर्रे वाले जीवन को ढोते रहेंगे। बताइये, फिर हम अकेले क्या कर पायेंगे? जप और अनुष्ठान कोई जादुई चमत्कार कैसे दिखा पायेंगे? नहीं, अध्यात्म जादू-चमत्कार जैसा नहीं है। अध्यात्म तो हम मानसिक पुरुषार्थ को कहते हैं, इसलिए मानसिक पुरुषार्थ तो आपको करना ही पड़ेगा। एक काम तो यह हुआ।
दूसरा काम एक और आपको यहाँ करना पड़ेगा। जिस तरह मालवीय जी को एक कोठरी में चालीस दिन तक एकांत सेवन करना पड़ा था, आपको भी यहाँ चालीस दिन तक नहीं, कम-से एक महीने तक एकांत सेवन करना चाहिए। आपको निवास करने के लिए हमने एक कोठरी खासतौर पर इसीलिए दी है कि आप यह यह मानकर चलें कि आप एकाकी हैं, अकेले हैं। इस दुनिया में अकेले ही आप आये थे और अकेले ही जाना है। चलना है तो भी आपको अकेले ही चलना है। इसको कुटी प्रवेश कहते हैं, गुफा प्रवेश कहते हैं। पहले के महात्मा गुफा में घुस जाते थे, कोठरियों में रहते थे, एकांत का सेवन करते थे; क्योंकि बाहर का जो जंजाल है, जिसमें सभी चक्रव्यूह की तरह फँसे हुए हैं, उससे दूर रह सकें, उसमें से पार हो सकें। अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए आपको एकांत चाहिए। एकांत नहीं मिलेगा, तो आप विचार तक नहीं कर पाएँगे कि आपको क्या करना है? पुरानी चीजों से छुटकारा पाना है, नई चीजों का सेवन करना है। इसके लिए एकांत बहुत आवश्यक है। यह एकांत सेवन जो महीने भर का है, वह आपके लिए बहुत आवश्यक है। आप जगह-जगह मत जाइए, घूमिए मत, टिकट रिजर्वेशन कराने मत जाइये। तीर्थयात्रा के बहाने यहाँ घूमिए मत, चक्कर मत काटिये, ऋषिकेश मत जाइए, ऋषिकेश के लिए तो जिंदगी पड़ी है। आपको एक महीने ऐसे नहीं करना चाहिए, बल्कि ऐसे रहिए जैसे माता के पेट में बच्चा रहता है। कल्पना कीजिए—आपकी कोठरी अथवा गायत्री नगर—शान्तिकुञ्ज जिसमें कि आप निवास करते हैं, इसको आप यह मानिये कि यह माताजी का गर्भ है और आप माताजी के गर्भ में पल रहे हैं, आपका नया जन्म हो रहा है; कायाकल्प करा रहे है अपना। आपको माताजी के पेट में चुपचाप रहना है, गड़बड़ी नहीं फैलानी है। भ्रूण को जो माता देती है, उसी से गुजारा करता है, माता जिस तरह रखती है, वैसे ही रहता है, आपको भी उसी तरह रहना चाहिए। आपको यह अनुभव करना चाहिए कि आप यहाँ शान्तिकुञ्ज में निवास करते हैं, गायत्री नगर में रहते हैं, यह क्या है? यह गुरुजी का बर्तन पकाने का अवा है। कुम्हार को आप जानते हैं? कुम्हार कच्चे बर्तन बनाता है, बनाने के बाद पकाता है। अवे में से खिलौने भी निकलते हैं, तो आप यह मान सकते हैं कि गुरुजी ने अवा लगाया हुआ है। कहाँ है अवा? इस कोठरी में जिसमें आप रहते हैं अथवा शान्तिकुञ्ज को आप अवा मानिये। इस अवे में आपको कैद कर दिया गया है; आपको पकाया जा रहा है। अगर आप एक महीने तक पकते रहेंगे; कोई गड़बड़ नहीं करेंगे, तो मजा आयेगा! आप गड़बड़ मत कीजिए; चित्त को इधर-उधर मत ले जाइये; घर वालों की याद मत कीजिए; बाहर वालों की समस्या पर ध्यान मत दीजिए; मन को इधर-उधर भागने मत दीजिए; शरीर को इधर-उधर भटकने मत दीजिए। आप ही बताएँ अगर कोई बच्चा माँ के पट में दंगल मचाये और कहे मम्मी मैं तो नौ महीने पेट में नहीं रह सकता, जरा आप छुट्टी दे दो, मैं बाजार में घूमकर आऊँगा, तो आप समझ सकते हैं, बच्चे का क्या हाल होगा और कुम्हार के बर्तन? बर्तन अगर चुपचाप न बैठे रहें, ये कहें दिन में बाजार में घूमा करेंगे, रात को अवे में आ जाया करेंगे, तो बर्तन पक जाएँगे? आप ही बताइये? नहीं, सब बिगड़ जाएगा। इसलिए आप बाहर की चिंताओं को भूल जाइये। न शरीर को बाहर घूमने दीजिए, न मन को बाहर भ्रमण करने दीजिए। तो क्या काम करें? बस, यही मैं बताने वाला हूँ, तीसरा वाला काम। तीसरा वाला काम भी अगर आप कर लेते हैं, तो समझिये कि आप कल्प-साधना का उद्देश्य पूरा हो गया और आप जिस लक्ष्य तक पहुँचने की इच्छा करते थे अथवा जिस लक्ष्य तक हम पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे, वह निश्चित रूप से सफल हो जाएगा।
मालवीय जी ने तीसरा जो काम किया था, उसका नाम था—टॉनिक-सेवन। आपको एक काम टॉनिक-सेवन का करना चाहिए। टॉनिक सेवन का क्या मतलब है? टॉनिक-सेवन का मतलब है कि जिन विचारों से जिन विचारों से विचारों का अभाव रहा हो, उन विचारों को फिर से सेवन करना शुरू कीजिए, टॉनिक की तरह। टॉनिक तो आपको मिला ही नहीं। आप तो कुपोषण के शिकार रहे हैं अथवा विकृत भोजन करते रहे हैं, इसलिए आपका सारा का सारे मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ा गया है। भविष्य में आपको ऐसी विचारधारा के साथ, ऐसे लोगों के साथ, ऐसी मति के साथ, ऐसी महान सत्ता के साथ अपने आपको संपर्क में लाना है, जोकि आपको महान बनाने में समर्थ है, जो आपको सहारा दे सकती है, ऊँचा उठा सकती है। तो आप उससे संपर्क मिलाइये। किससे? भगवान से। भगवान से आप इसी रूप में संपर्क मिलाने की कोशिश कीजिए और सबसे स्वयं को पीछे हटा लीजिए। थोड़े दिन के लिए आप यह मानकर चलिए कि आप और आपका भगवान दो ही हैं। भगवान किसे कहते हैं? भगवान सद्गुणों के, सत्प्रतीकों के, आदर्शों के एक समुच्चय का नाम है। एक भगवान तो वह है, जो कि सारे विश्व को सँभालता है, जिसको आप नियमन कह सकते हैं, नियंत्रण कह सकते हैं। एक भगवान वह है, जो विश्वव्यापी है। विश्वव्यापी भगवान के लिए तो आप उसके कायदे-कानून का पालन कीजिए और फायदा उठाइये। कायदा तोड़िए, पिटाई खाइये। विश्वव्यापी भगवान तो न्याय और नियमन के अलावा दूसरा काम करता भी नहीं है; लेकिन जो व्यक्तिगत सहायता कर सकता है, वह हमारा सुपर-कांशसनेस है, हमारा अन्तरात्मा है। अन्तरात्मा, परमात्मा उसी का नाम है। अन्तरात्मा को ही परमात्मा कहते हैं। अन्तरात्मा किसे कहते हैं? अन्तरात्मा कहते हैं—गुण, कर्म और स्वभाव को। इसी विशेषता का नाम परमात्मा है। इसी का ‘सुपर कांशसनेस’ कहते हैं। आप इसके साथ में अपना संबंध जोड़ लीजिये। अभी तक आपका संबंध कुसंस्कारों के साथ रहा है, घटिया लोगों के साथ रहा है। चारों ओर का वातावरण, गिरावट के अलावा और क्या नसीहत देगा। आपने जो स्वभाव सीखा है, वह सिवाय घिनौने जीवन के और क्या दे सकता है? पशुओं की जिंदगी हम जी रहे हैं और चारों तरफ पशुओं से घिरे हुए हैं। आप थोड़े दिनों के लिए इस दायरे से बाहर आ जाइये। बाहर आप आ करके ऐसे लोगों के साथ रिश्ता मिलाइये, जिनके कि समुदाय में जाकर के ऊँचा उठना संभव है। ऋषियों के साथ संबंध मिलाइए, संतों के साथ संबंध मिलाइए, देवताओं के साथ संबंध मिलाइए। यह समय बिलकुल आपके साथ ही है। आप देख नहीं रहे हैं, जिस कोठरी में आप यहाँ रहते हैं, उसमें चारों ओर संत छाया हुआ है, चारों ओर ऋषि छाया हुआ है, चारों ओर भगवान छाया हुआ है तथा आदर्श छाये हुए हैं, उदात्त दृष्टिकोण छाये हुए हैं, प्रेरणाएँ छायी हुई हैं और आपको ऊँचा उठाने के लिए जो दिशाधारा से आवश्यक है, वह भी छायी हुई हैं। आप इनके साथ संबंध मिला लीजिए, पीछे की तरफ मुड़कर मत देखिए। एक ही तरफ विचार कीजिए, महानता के साथ जुड़ जाइए; आप आदर्शों के साथ जुड़ जाइए। एक महीने तक आपको यही करना है और एक महीने को साधना में लगा लेना है, स्वाध्याय में लगा लेना है, चिंतन में लगा लेना है। आपको इस बीच में जप और अनुष्ठान करना है, योगाभ्यास करना है, आपको इस बीच में तप करना है और अपने आपको संशोधन करना है। ये आपको करना चाहिए।
फिर हम क्या अकेले कर लेंगे? नहीं, अकेले तो नहीं कर लेंगे, हम पीठ पर तो हैं, आप सहायता करेंगे, तो हम भी आपकी सहायता करेंगे। इम्तहान में पास तो बच्चे ही होते हैं; पढ़ना तो उन्हीं को पड़ता है; स्कूल तो वही जाते हैं; पर आप समझते हैं कि बच्चे स्कूल जाते हैं, तो क्या, अपने ही बलबूते पर पास हो जाते हैं? माता उनके खाने का इंतजाम करती है; पिता उनकी फीस का इंतजाम करता है; मास्टर उनको पढ़ाने में सहायता करता है; कई और की सहायता मिलती है, तब कहीं पास हो पाता है। आपके पढ़ने की मेहनत और पुरुषार्थ सफल हो जाएँ, इसलिए हम आपके लिए तीनों इंतजाम कर रहे हैं। माता आपको खुराक देने को तैयार है। हम आपको ऊँचा उठाने के लिए, जो पिता का कर्तव्य था, करने को तैयार हैं। गुरु का कार्य? गुरु चलो, हम न सही; पर हमारे जो गुरु हैं, वह भी इस वातावरण में हैं, जिसमें आप निवास करते हैं। गुरु के रूप में वह सत्ता, जिसके आधार पर हम शान्तिकुञ्ज बना हुआ है; जिसकी आज्ञा से यह कल्प-साधना के शिविर चलाये गये हैं, ऐसी कोई परम सत्ता आपको गुरु के तरीके से मार्गदर्शन करने को तैयार है।
गुरु विद्वान है। आप उसका फायदा उठाइए; आपकी वह सहायता करेंगे। हमको तो आप अभिभावक मान सकते हैं। हमारे पास कुछ पुण्य होगा, तप होगा, ज्ञान होगा, चरित्र होगा, तो आप यकीन रखिये कि हम आप पर न केवल दबाव ही डालेंगे, न केवल सिखायेंगे ही, बल्कि उसका एक हिस्सा भी देंगे। बाप भी अपने बच्चे को केवल शिक्षा ही थोड़े देता है, बल्कि सहायता भी देता है। हमारी शिक्षा भी आपको मिलने वाली है और सहायता भी मिलने वाली है। माताजी का आपको स्नेह भी मिलने वाला है; अनुदान भी मिलने वाला है। तीन तरफ से आपको मिलने वाला है। आप कितने भाग्यवान हैं कि आप यहाँ माता का स्नेह पा रहे हैं, पिता का अनुशासन और सहयोग प्राप्त कर रहे हैं आप ऐसे एक महान गुरु से, जो न केवल आपको, बल्कि आप जैसे लाखों आदमियों को, न केवल लाखों आदमियों, बल्कि सारे जमाने को और जमाने की प्रवृत्तियों को मार्गदर्शन करने में समर्थ हैं। आपको तीनों का सुख मिलता रहा है। आपके भाग्य की सराहना किये बिना हम रह नहीं सकते। आपके लिए कल्प की संभावनाएँ बिल्कुल निश्चित हैं। आपका भूतकाल जैसा था, वह यहाँ का यहीं रह जाए। आपका पुराना वाला केंचुल यहीं रह जाए और आप जब जाएँ, तो ऐसे नये आदमी बनकर जाएँ कि वाह-वाह हो। आप जिस पिंजड़े में रहे हैं, उस पिंजड़े की कीलें काटने का हमारा मन है। आप भी थोड़ा प्रयत्न कीजिए, थोड़ा हम करेंगे। पंखों को आप ट्रेण्ड कीजिए, ताकि जैसे ही पिंजड़े की कीलें कटें, आप इसमें से भागना शुरू कर दें। अगर आप पंखों को पैना नहीं करेंगे, तो हम कीलियाँ काट भी दें, तो भी आप वहीं बैठे रहेंगे। आप हमारे सहयोग का फायदा उठाइए; वातावरण का फायदा उठाइए; यहाँ की परिस्थितियों का फायदा उठाइए; यहाँ के मार्गदर्शन का फायदा उठाइए। जाइये और अपने भविष्य को शानदार बनाने के लिए कमर कसकर तैयार हो जाइए।
मालवीय जी के तीन कार्य थे, वह उन्हें शारीरिक स्वास्थ्य-संवर्द्धन के लिए कराये गऐ थे। मानसिक विधि से, भावात्मक विधि से, चिंतन विधि से आपको वही तीन काम आपको करने पड़ेंगे। संकल्प-संशोधन आपको करना ही चाहिए और करना ही पड़ेगा। इसी को प्रायश्चित कहते हैं। तपस्या भी इसी को कहते हैं और आपको एकांत सेवन करना ही पड़ेगा। आप गुफा में रहिए, अपने हृदय की गुफा में घुस जाइए; अंतर्मुखी रहिए; बाहर की बातों पर विचार मत कीजिए; केवल अपनी समस्या पर ही विचार कीजिए; अपने भविष्य के बारे में विचार कीजिए; अपने भूतकाल पर विश्वास कीजिए और भविष्य का निर्धारण करने के लिए वह काम कीजिए, जिसकी कि आपको जरूरत है। हमारे सहयोग को आप ग्रहण कीजिए, हजम कीजिए, चबा जाइए। हम आपको थाली में भोजन परोसकर देते हैं, आप खाइए इसको; इसे पचाइए। खाना आपका काम है, पचाना आपका काम है। भोजन ही तो हम दे पायेंगे, पचा थोड़े ही पायेंगे। पचाना तो आपको ही पड़ेगा, चबाना तो आपको ही पड़ेगा। चबाइए आप, थाली हम परोसते हैं। दोनों का सहयोग कितना शानदार है और आपका उज्ज्वल भविष्य करने में इस शिविर का कितना बड़ा योगदान है? आप यह देख पायेंगे और यह संभव है, जैसी कि हम आशा करते थे, आशा दिलाते थे। थोड़ा-सा आप उत्साह दिखाइए और थोड़ा-सा मनोबल बढ़ाइए फिर देखिये कि आपका यह कल्प-साधना का सत्र कितना शानदार और आपके भविष्य के निर्माण में कितना सहायक सिद्ध होता है?
॥ॐ शान्ति:॥