उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
मित्रो! मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ।.....हम व्यक्ति के रुप में कब से खत्म हो गए। हम एक व्यक्ति हैं? नहीं हैं। हम कोई व्यक्ति नहीं हैं। हम एक सिद्धांत हैं, आदर्श हैं, हम एक दिशा हैं, हम एक प्रेरणा हैं।.....हमारे विचारों को लोगों को पढ़ने दीजिए। जो हमारे विचार पढ़ लेगा, वही हमारा शिष्य है। हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। - पूज्य गुरुदेव
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो!!
ये भारतभूमि देवभूमि है। देवताओं का निवास-स्थान है। यहाँ के निवास करने वाले तैंतीस करोड़ देव हैं। तैंतीस करोड़ देव कौन? प्राचीनकाल में भारतवर्ष की जनसंख्या तैंतीस करोड़ थी; आज तो पचास करोड़ है। जनसंख्या बहुत घनी हो गई है। प्राचीनकाल में इतनी घनी आबादी नहीं थी। थोड़े ही आदमी थे; लेकिन क्षेत्र बहुत बड़ा था, दायरा बहुत बड़ा था हमारा। जनसंख्या कम थी। तैंतीस करोड़ आदमी रहते थे यहाँ। इसीलिए हर मनुष्य को एक देवता की संज्ञा दी गई है। देवता कौन? देना जिसने सीखा। जिसने समाज से जो कुछ लिया—उससे असंख्य गुना करके लौटा दिया। जमीन कौन है? देव। किसान से जो कुछ भी वसूल करती है। अनाज के रूप में, उसे सैकड़ों गुना करके अनाज के ही रूप में वापस कर देती है। खाती कम है, खिलाती ज्यादा है। कौन? देव! गाय कौन है? देव। क्यों? घास खाती है थोड़ी-सी, कम पैसे की घास खाती है और ज्यादा पैसे का दूध देती है। हम क्या कहेंगे उसको? देव कहेंगे। देव कौन? जिसने अपने जीवन का लेखा-जोखा तैयार किया कि समाज से हमने क्या पाया? भगवान से हमने क्या पाया? और भगवान को हमने क्या दिया? और समाज को हमने क्या दिया? आज के लेखे-जोखे में हमारा बैलेन्स देने वालों के पक्ष में चला जाता है, तो हम ‘देव’ और हमारा बैलेन्स लेने वालों के पक्ष में चला जाता है, तो हम ‘लेव’ लेव का अर्थ? अथवा उसका नाम? उसका नाम ‘दैत्य’ है।
देव और दैत्य—दो थे प्राचीनकाल में और आज भी हैं। आकृति का फर्क और प्रकृति का फर्क। देवताओं और असुरों में फर्क आकृति का नहीं। प्रकृति का होता है। सारे-के मनुष्यों की शक्ल-सूरत जो होती है, वो एक तरह की होती है और एक ही तरह के आदमी होते हैं, चाहे कहीं भी आप चले जाइये। काला रंग एक, बढ़े हुए दाँत—दो, बढ़े हुए सींग—तीन। कहीं आपने ऐसे आदमी देखे हैं? हमने तो कभी नहीं देखे नहीं कि जिसके सींग होते हैं और जो आदमी को मार देता हो। रामलीला में देखे हैं कि राक्षसों के सींग होते हैं। रामलीला में देखे हैं कि राक्षसों के बड़े-बड़े दाँत होते हैं। मनुष्यों के तो देखे नहीं हैं कि बड़े-बड़े दाँत मुँह से बाहर निकल जाते हों। ऐसा हमने देखा नहीं है। और? सींगों वाला आदमी भी नहीं देखा। काले रंग के आदमी जरूर देखे हैं; पर काले रंग के आदमी बड़े शरीफ भी हमने देखे हैं। राज गोपालाचारी स्याह काले रंग के थे। गाँधी जी भी लगभग काले रंग के थे। अफ्रीका में निवास करने वाले सबके सब काले रंग के हैं और काला रंग कोई खराब होता है क्या? काला रंग राक्षसों की निशानी है? नहीं, काला रंग राक्षसों की निशानी नहीं है। केनिया के प्रेसीडेन्ट ने अपने देश के निवासियों को, केनिया के निवासियों का आह्वान करते हुए एक बार कहा था—हमारा काला रंग बहुत शानदार रंग है। हमको गोरों की नकल नहीं करनी चाहिए और गोरों से हीन नहीं होना चाहिए। ये तो ऐसे हैं, जैसे सफेद दाग आदमी के पड़ जाते हैं। सफेद—सूरज के आगे जैसे आँखें चौंधिया जाती हैं और जरा-सा भी दिखायी नहीं पड़ता। बाल सफेद हो जाते हैं। यूरोप वाले, अमेरिका वाले तो ऐसे ही हैं। सूरजमूखी लोग। ये कैसे वाहियात लोग हैं। हम काले वाले हैं। हम काले वाले बड़े शानदार लोग हैं और हमारे बालों में छल्ले पड़ते हैं। ये हमारी खूबसूरती तो दुनिया में अजीब है और अनोखी है। ऐसे बाल दुनिया में कहीं नहीं होते। तब हमको नकल करने की जरूरत क्या है कि हम ऐसे बाल रखाएँ और ऐसे बाल रखें। किराये के बाल लाएँ और चिपकाएँ। हम तो बहुत शानदार हैं। खराब होता है काला रंग? काला रंग खराब नहीं होता। गोरों और कालों का जो वर्गीकरण किया गया है, वो वास्तव में आलंकारिक रूप है। आकृति? आकृति का नहीं। आकृति तो हमने ऐसे ही खिलौने के रूप में बना दी है और अलंकार के रूप में बना दी है। काला रंग उसका है, जिसका समाज में काला मुँह हो गया। हमको शीशे में अपना मुँह देखना चाहिए कि हमारा मुँह काला तो नहीं? हम कलंकी तो नहीं हैं? कलंकी हैं, तो हम राक्षस हैं और हमारे दाँत बड़े-बड़े हैं। दाँत बड़े-बड़े से मतलब? दाँत बड़े-बड़े से मतलब ये है कि हम पेटू आदमी हैं और खाने वाले आदमी हैं। हमारे दाँत भेड़िये जैसे हैं, हमारे दाँत गिद्ध जैसे हैं, हमारे दाँत सियार जैसे हैं और हमारे दाँत बाघ जैसे हैं। हम किसी का भी पेट फाड़ के खा सकते हैं। हमारे अन्दर खाने का माद्दा और इकट्ठा करने का माद्दा भरा हुआ है, तो हम कौन कहलाएँगे? फिर हम राक्षस कहलाएँगे और हमारे सींग हैं तो? सींगों से हम नहीं मारते अब; पर ऐसी बहुत-सी चीजें हैं, जिनसे हम मार सकते हैं। सींग क्या मारेगा? बंदूक क्या मारेगी? बंदूकों के बिना, सींगों के बिना आदमी को तहस-नहस करते हैं। हम चाहें, तो आदमी को मटियामेट कर सकते हैं, बर्बाद कर सकते हैं। हम चाहें, तो किसी आदमी को शराब पिलाना सिखा सकते हैं; किसी आदमी को ऐय्याशी और बदमाशी सिखा सकते हैं और उसकी जिन्दगी को ऐसे बुरे तरीके से तबाह कर सकते हैं कि सींगवाला क्या करेगा। सींगवाला तो थोड़ा-सा जख्म कर देगा, बस। सींगवाले का जख्म तो हम जल्दी अच्छा कर लेंगे। डॉक्टर के पास जाएँगे और पट्टी बाँधकर के आयेंगे और मरहम लगवा के आयेंगे और पन्द्रह दिन में हमारा घाव अच्छा हो जाएगा। बंदूक का घाव जल्दी अच्छा हो जाता है; लेकिन इनसान के पास ऐसे-ऐसे सींग हैं कि वो चाहें, तो एक आदमी को नहीं सारे समाज को, हजारों आदमियों को तबाह कर सकता है। ये वो आदमी हैं, जिन्होंने तबाही लाना दुनिया में सीखा है। इनका नाम? इनका नाम है—‘दैत्य’ और ‘देव’ देव वो हैं, जिन्होंने खाया कम और सिखाया ज्यादा।
हिन्दुस्तान के लोग प्राचीनकाल में ‘देव’ थे। ब्राह्मणों को तो विशेष रूप से ‘भूदेव’ कहते थे और ‘भूसुर’ कहते थे। पृथ्वी पर निवास करने वाले देवता अर्थात् ‘भूदेव’। पृथ्वी पर निवास करने वाले देवता अर्थात् ‘भूसुर’। ये कौन थे? ये ब्राह्मण थे। ब्राह्मण देवता थे। ब्राह्मण देवता हैं? हाँ, देवता होते थे। देवता कौन? जिन्होंने मुट्ठी भर अनाज खाया; जिन्होंने फटे-पुराने कपड़े पहने; जिन्होंने लँगोटी पहनी; जिन्होंने पीपल के ऊपर गुजारा कर लिया—पीपल की फलियाँ पर गुजारा कर लिया और जिन्होंने जमीन पर पड़े हुए दानों पर गुजारा कर लिया। गुजारा उन्होंने अपना किफायतशारी से कर लिया; लेकिन उन्होंने अपनी हजारों-लाखों कीमत की दिमाग की शक्ति और अपना कीमती वाला श्रम और पसीना बिना कीमत के सारे समाज के ऊपर बिखेर दिया। इनको हम क्या कहेंगे? देवता कहेंगे। देवता कहना गलत है? देवता कहना सही है। देवता कहने में कोई गलती की बात नहीं है और देवता कहने में कोई हर्ज की बात नहीं है। मनुष्य जो थे—देवता थे। कब? प्राचीनकाल में। ब्राह्मण भी कह सकते थे, अच्छे आदमी भी कह सकते थे और शरीफ आदमी भी कह सकते थे। देवताओं की भूमि थी ये। दैत्यों की भूमि भी थी। कौन होते हैं देव? एक और होते हैं देव, जो हमने मंत्रों में स्थापित करके रखे हैं और जिनके फोटो छपवाकर रखे हैं। ये क्या हैं? देव। ये आपने देखे हैं? हमने नहीं देखे हैं। हमने तो एक बात देखी और देखकर के बड़ी गड़बड़ पैदा हो गई थी। फिर हमने विचार ही बदल दिया।
एक बार हमको कैलाश जाना पड़ा। कैलाश हम कई संत-महात्माओं के साथ चले गये। हम तो भाई! कैलाश के दर्शन करेंगे। शंकर के ऊपर हमारा बहुत विश्वास था कभी। कभी विश्वास था—कहता हूँ, इस समय नहीं है। शंकर के ऊपर बड़ा भारी विश्वास था। ये विश्वास था कि मैं कभी कैलाश पर्वत पर जाऊँगा और शंकरजी को देखकर के आऊँगा और पार्वतीजी को देखकर के आऊँगा तथा धन्य हो जाऊँगा। वहीं तो रहते हैं कैलाश पहाड़ पर और कहाँ रहते हैं? पहाड़ पर रहते हैं। मैं कई संत-महात्माओं के साथ चला गया। बड़ा कठिन रास्ता था। अभी भी बड़ा मुश्किल भरा रास्ता है। चीन के कब्जे में अब चला गया है, तिब्बतियों से छीन लिया। अब तो कैलाश पर हम नहीं जा सकते और हम मानसरोवर नहीं जा सकते। किसी जमाने में ऐसी दिक्कत नहीं थी, तो मैं भी चला गया। बाकी लोग तो बस एक दिन स्नान करने के बाद में, कैलाश पहाड़ का दर्शन करने के बाद में—बर्फ जमी हुई थी, बस उनके पैर उखड़ गये और दूसरे दिन वो रवाना हो गये। उन्होंने हमसे कहा—तुम भी चलो। हमने कहा—नहीं। उन्होंने कहा—क्यों? हमने कहा हम तो शंकरजी के दर्शन करने आए हैं और हम तो पार्वतीजी के दर्शन करने आए हैं। जब तक हमको शंकरजी के, पार्वतीजी के दर्शन नहीं हो जाएँगे, तब तक हम किस तरीके से जाएँगे? और क्यों जाएँगे? हम तो दर्शन करने आए हैं। तो क्या आप यहाँ रहेंगे? हम तो रहेंगे। हम तो दर्शन करेंगे। हम नहीं जाएँगे। चले गये वो लोग। मैं थोड़ा-सा सत्तू ले गया था और नमक ले गया था। सत्तू और नमक के सहारे मैं रहा। दो कंबल मेरे पास थे। बस, जब हो जाती रात, तो किसी खोह में जा बैठता, ठण्डक से अपनी रक्षा कर लेता। फिर सबेरा हो जाता, सूर्य की किरणें निकलतीं; फिर रवाना हो जाता। कैलाश के पहाड़ का मैंने पूरा चक्कर लगाया और मैंने पूरा चक्कर मानसरोवर का लगाया। कैलाश और मानसरोवर का पूरा चक्कर लगाने के पश्चात् फिर मेरा पूरा एक महीना व्यतीत हो गया और मुझे ऐसा मालूम पड़ा कि मेरे प्राण निकलने वाले हैं और अब मैं मर जाऊँगा। सारी-की जगहों पर मैंने तलाश किया। यहाँ तलाश किया, वहाँ तलाश किया कि शंकर भगवान से साक्षात्कार हो जाए, दर्शन हो जाए, तो मेरा उद्धार हो जाए। कहीं भी न हुआ। कहीं भी नामोनिशान नहीं मिला शंकर भगवान का और पार्वतीजी का। शंकर जी का और पार्वती जी का कहीं भी दर्शन नहीं मिला, तब चल दिया पहाड़ से। घर के लिए रवाना हो गया और मरते-मरते बचा। मेरी टाँगें ऐसी चलने लगीं मानो मैं यहाँ गिरा कि वहाँ गिरा। मुझे बार-बार चक्कर आते। वो तो सत्तू और नमक मेरे पास था। किसी तरह मरता-मरता, मरता-गिरता घर आ गया।
मुझे बहुत गुस्सा आया शंकर भगवान पर और मैं ये गुस्सा करने लगा कि कोई आप मिनिस्टर तो थे नहीं, जो आप ये कह देते कि हमारे पास ज्यादा काम है, पता नहीं है और फुर्सत नहीं है। आपके पास तो कोई काम भी नहीं है। आप तो ऐसे ही भाँग पीकर के फालतू पड़े रहते हैं। हमको शक्ल दिखा देते, तो क्या खराबी हो जाती? हम कोई शंका-समाधान करने गये थे आपसे? हम कोई माँगने गये थे? हम तो आपकी सूरत देखने गये थे और आप दिखा सकते थे, इसमें क्या हर्ज था आपका? आपने ये नहीं देखा कि हम कितनी मुसीबत उठाकर के आए और आपने शक्ल नहीं दिखायी, मिलने से इनकार कर दिया। हमको बहुत गुस्सा आया और वो गुस्सा ज्यों-का बना रहता, तो मित्रो! मैं नास्तिक हो जाता शायद। लेकिन, रामचरितमानस के ऊपर पहले भी मेरा बड़ा विश्वास था और अभी भी बड़ा विश्वास है। रामचरितमानस को जब पढ़ने लगा, तो मेरे दिल-दिमाग की सारी गड़बड़ दूर हो गयी और समाधान हो गया। तुलसीदासजी जब ‘रामचरितमानस’ लिखने लगे, तो उनके मन में ये ख्याल आया—हमको कितना बड़ा जहाज बनाना है कि जिसके ऊपर बिठाकर के असंख्य मनुष्यों को पार कराना है—उस नाव को जहाज को बनाने से पहले किसी ऐसे इष्टदेव की प्रार्थना और उपासना करनी चाहिए, जिसकी शक्ति हमको आए और जिससे काम हमारा पूरा हो जाए। वहाँ उनको ध्यान आया—सबसे बड़े देव कौन हैं? महादेव। नाम ही उनका महादेव है। महादेव—महा माने बड़ा और देव माने देवता अर्थात् सबसे बड़ा देवता—महादेव। महादेव की सिद्धि करनी चाहिए और महादेव की प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि हमारी नाव जो है, वो पार हो जाए और हमारा जहाज जो बन रहा है, वो बनकर तैयार हो जाए। रामचरितमानस जब वो लिखने लगे, तो एक श्लोक उन्होंने लिखा। कैसा मजेदार श्लोक है! उसके दूसरे चरण ने मेरे सारे-के भ्रम-जंजाल और गुस्से को समाप्त कर दिया और उसका समाधान कर दिया। पढ़ने लगा उस श्लोक को—
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वासरूपिणौ।
याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तस्थमीश्वरम्।।
कैसा मजेदार श्लोक है ये! सब कपाट खुल गये मेरे। अज्ञान का, भ्रम का सफाया कर दिया इस श्लोक ने। ‘‘भवानीशंकरौ वन्दे, भवानीशंकरौ वन्दे।’’ दोनों में भवानी शंकर की वंदना है। कैसे हैं भवानी-शंकर? फिर मैं तलाश करने लगा। भवानी कहाँ रहती है? और शंकर कहाँ रहते हैं? भवानी और शंकर का साँप कितना बड़ा है? और शंकर का बैल कितना बड़ा है? और साँप कैसे रंग के हैं, काले रंग के हैं कि पीले रंग के हैं? और सिर पर जो चन्द्रमा टँगा हुआ है, वह छोटा वाला है कि बड़ा वाला है। ये सवाल-जवाब पूछने लगे, तो चक्कर आ जाएगा पूछने वाले और बताने वाले को। फिर समाधान किस तरीके से होगा? समाधान मित्रो! फिर इस तरीके से होगा, गोस्वामी जी ने इस श्लोक में खोलकर के कहा—‘‘श्रद्धा विश्वासरूपिणौ’’ श्रद्धा जो है, वो भवानी है। और विश्वास? विश्वास जो है, वो शंकर है। श्रद्धा का नाम भवानी और विश्वास का नाम शंकर। श्रद्धा और विश्वास ही भवानी-शंकर हैं।
हमारी श्रद्धा और विश्वास कैसे गजब के हैं! मिट्टी के ढेले को हम गणेश बना देते हैं और वो सचमुच गणेश बन जाता है। रात अँधेरे में पड़ी हुई रस्सी हमारे लिए साँप बन जाती है और खौफनाक बन जाती है। हमारे हार्ट को फेल कर देती है और हमको मार डालती है। रात की झाड़ी—रात में जब हम जंगल में अकेले निकलते हैं, तो झाड़ी कैसी खौफनाक मालूम पड़ती है? ऐसी मालूम पड़ती है, जैसे कोई भूत बैठा हुआ हो। आहाहा! इस भूत के दाँत कितने बड़े हैं? ऐसे बड़े! आँखें कैसी चमकती हैं? ऐसे-ऐसे चमकती हैं! और वो झाड़ी हमको ऐसी मालूम पड़ती है कि जैसे हमको खा जायेगी और जिन्दा छोड़ने वाली नहीं है। हमारा हार्ट-फेल हो जाता है, झाड़ी को देखकर के। ये झाड़ी है या भूत है? झाड़ी बिल्कुल भूत है; क्योंकि हमारी श्रद्धा और विश्वास उसके ऊपर है। इसीलिए वो भूत है और वो जरूर भूत है और अब ये मार डालेगा, जिन्दा नहीं छोड़ने वाला है। भूत कौन-सा वाला? झाड़ी वाला। है वहाँ? नहीं है वहाँ। फिर वो कौन है? जो हमारा विश्वास है। आदमी का विश्वास कितना जबरदस्त है? आदमी का विश्वास कितना बड़ा है? न जाने क्या-से बना देता है? वो काली को इस बात के लिए मजबूर कर देता है कि उसको रोटी खानी ही चाहिए। रामकृष्ण परमहंस की काली रोटी खाती थी। किसकी? रामकृष्ण परमहंस की। वो याद है? वो कौन खाता था? काली। कानी नहीं, काली क्या खाएगी, वो तो पत्थर की बनी हुई है। पत्थर कोई खा सकता है रोटी? कौन खाता था? आदमी का विश्वास खाता था और मीरा के साथ नाचता कौन था? कृष्ण? कृष्ण नहीं, श्रीकृष्ण को मरे हुए तो पाँच हजार वर्ष हो गये। मरा हुआ आदमी क्या नाच सकता है? तो कौन नाचता है? उसका विश्वास नाचता था। विश्वास नाचता था और श्रद्धा नाचती थी। अगर हम अपनी श्रद्धा और विश्वास का विकास करने में समर्थ हो सकें, तो भवानी हमारे पास आयेंगी, विष्णु हमारे पास आयेंगे। सब देवता हमारे पास आयेंगे। शर्त केवल एक है कि हमारा अटूट और अगाध विश्वास हो। अगर हमारा अटूट और अगाध विश्वास नहीं है और हम ख्वाब देखते रहें कि हमारे पास शंकरजी आने वाले हैं और शिवरात्रि को आने वाले हैं और हनुमानजी पूर्णमासी को आने वाले हैं और लक्ष्मीजी दिवाली को आने वाली हैं और श्रीकृष्णजी जन्माष्टमी को आने वाले हैं और रामचन्द्रजी रामनवमी को आयेंगे कि नहीं? हमें मालूम नहीं, आयेंगे कि नहीं आयेंगे? हम इंतजार नहीं करते, लक्ष्मीजी कब आयेंगी, हमें नहीं मालूम।
मित्रो! देवताओं की मान्यता हमारे भारतवर्ष में कितनी बड़ी है? देवताओं के बिना हमारा काम ही नहीं चल सकता, देवताओं के बिना गुजारा ही नहीं हो सकता। चूल्हा बनाना हो और चक्की बनानी हो और हमको घर से बाहर जाना हो और हमको मुहूर्त देखना हो, तो हमको किससे पूछना पड़ेगा? देवता से। सामने वाला चन्द्रमा है कि नहीं और जोगिनी पीठ पीछे हैं कि नहीं? दिशाशूल हमारे आगे है, तो हम एक कदम आगे नहीं बढ़ सकते। देखिये न—पण्डितजी! अरे कहाँ जा रहा है? अरे महाराज जी! आपका वो चन्द्रमा पीछे पड़ गया और वो जोगिनी दिखायी पड़ रही है और वो दिशाशूल बैठा हुआ है बायें और वो काट खायेगा, दिशाशूल और वो चलने नहीं देगा। तू चलता कहाँ है? दर्शन कर जाता। दिशाशूल बैठा हुआ है, काट खायेगा। हाँ महाराजजी, अब नहीं जाऊँगा। जाना मत। वो दिशाशूल बैठा है, जोगिनी बैठी है। देवताओं के बिना हम एक टाँग नहीं बढ़ा सकते। देवताओं के बिना हम बच्चों की शादी नहीं कर सकते। अरे भाई! हमारी लड़की तो अठारह वर्ष की और छोकरा तो बड़ा अच्छा मिल गया, एम.ए. पास है। हाँ भाई, जल्दी निवृत्ति हो जाएँ तो अच्छा है। हम भी बीमार रहते हैं, टी.बी. हो गयी है और लड़की से निवृत्त हो जाएँ, तो अच्छा है लड़की से निवृत्त हो जाएँ, अरे बाबा। वो बैठा हुआ है। कौन बैठा हुआ है? देवता? क्या नाम है? बृहस्पति। बृहस्पति! हाय! हाय!! बृहस्पति बैठा हुआ है। ब्याह करेगा। तो मार डालेगा। तेरी बेटी को खा जायेगा, तेरे बेटे को खा जाएगा, तेरी औरत को खा जाएगा, तेरे मौसे को खा जाएगा, सबको खा जाएगा। बड़ा जबर्दस्त बृहस्पति बैठा है। तू ब्याह कैसे कर सकता है? बृहस्पति को ब्याह कर लूँ? बृहस्पति को ब्याह कर लेगा, तो बृहस्पति जिन्दा नहीं छोड़ेगा, सबको मार डालेगा। मार डालेगा सारे खानदान को। बृहस्पति बैठा हुआ है। देवताओं के बिना कोई काम कर सकते हैं? देवताओं के बिना हमारा कोई काम नहीं हो सकता। आप शादी नहीं कर सकते। हम चल नहीं सकते, फिर नहीं सकते। हम पेशाब नहीं कर सकते, टट्टी नहीं कर सकते, हम रोटी नहीं खा सकते। सब काम हमारा देवताओं के ऊपर टिका हुआ है। हम कौन हैं? ‘मिस मेयो’ की ‘स्लेब ऑफ द गॉड’ किताब के अनुसार हम हैं देवताओं के गुलाम। उसका हिन्दी में अनुवाद छपा है। बेटे! मैं फूट-फूटकर रोया। देवताओं के गुलाम। स्लेव ऑफ द गॉड! देवताओं के गुलाम! हम क्या हैं? हम कोई विचार नहीं कर सकते। हमारी सारी-की बातें इस बात के ऊपर टिकी हुई हैं कि हमारे इतिहास में व्यापार उन्हीं को करना है कि नहीं करना है। वो शनिश्चर बैठा हुआ है न! ढाई वर्ष का आ गया है। आप व्यापार करने जा रहे हैं? आप व्यापार मत करना, घाटा पड़ जाएगा। क्यों? वो शनिश्चर बैठा हुआ है। कहाँ बैठा हुआ है? वो कमरे में। कौन-से कमरे में? वो बैठा हुआ है कमरे की कोठरी के कोने में और जैसे ही व्यापार करेगा—तेरी तराजू को, तेरी डण्डी को, तेरे सब पलड़े को लेकर के भाग जाएगा। वो बैठा हुआ है शनिश्चर। हाय! व्यापार मत करना, नहीं, तो मार ही डालेगा शनिश्चर। जिन्दा नहीं छोड़ेगा शनिश्चर। आय-हाय! बड़ी जोर का शनिश्चर है। कहाँ बैठा हुआ है? करोड़ों मील दूर बैठा हुआ है। वो आता है पकड़ने के लिए। क्यों, मुन्नीलाल की दुकान कहाँ है? मालूम नहीं है, हमें नहीं मालूम। लाला मुन्नीलाल की दुकान कहाँ है? वो बैठी है—उधर की दुकान और वो शनिश्चर आकर के दुकान में खट् बैठ गया तराजू के नीचे और जैसे ही मुन्नीलाल ने तराजू तौली, खट् से वो शनिश्चर हावी हो गया। उसने कहा—तेरा सब नुकसान कर दूँगा मैं। शनिश्चर बैठा हुआ है न! व्यापार आप करेंगे? व्यापार आप मत करना। शनिश्चर बैठा हुआ है।
हमारी प्रत्येक विचारधारा के ऊपर, गतिविधियों के ऊपर देवता हावी हैं और देवता सवार हैं। हम अपने बच्चे की हजामत नहीं बना सकते। अगर आपके बच्चे के बाल बड़े हो गये हों—मुण्डन कराना हो, तो आप कहाँ कराएँगे? कुलदेवी पर कराएँगे। कुलदेवी कहाँ रहती हैं? कुलदेवी वहाँ रहती हैं जैसलमेर में। अच्छा, तो वहीं जाना पड़ेगा? हाँ-हाँ, कलकत्ते के मारवाड़ी हैं और मुण्डन कराने कहाँ जाएँगे? हम मुण्डन कराने जाएँगे जैसलमेर। कितना किराया लगेगा? अहा! किराये की बात क्या पूछते हैं? किसी आदमी पर ढाई सौ से कम खर्च नहीं होगा। अच्छा, तो कितने आदमी जाओगे? अरे! वो लड़का जाएगा, लड़के की माँ तो जाएगी ही, लड़के का बाप जाएगा और लड़के का भाई तो जाएगा ही। तो हजार रुपया तो किराये-भाड़े का हो गया। फिर वहाँ जयपुर होते हुए आयेंगे और वो हजामत किसको खिलाएँगे? देवी को खिलाएँगे? क्या खाएगी? हजामत खाएगी? हजामत नहीं खिलाओ, जलेबी खिला दो तो? जलेबी नहीं खाएगी, हजामत खाएगी और हजामत नहीं खिलायी, उसको बाल नहीं खिलाये, तो सबको मार डालेगी। किसको मार डालेगी, उसके ताऊ को मार डालेगी। सबको मार डालेगी। क्यों मार डालेगी? देवी का क्या बिगाड़ा है? अरे! तैंने हजामत क्यों नहीं खिलायी? अरे! हजामत नहीं खिलायी, तो बाबा! जलेबी खा ले। इमरती खा ले। नहीं, मैं तो बाल खाऊँगी। बड़ी जोर की देवी है।
ये देवियाँ, ये देवता किस कदर हमारे ऊपर हावी हो गए हैं, मैं क्या कह सकता हूँ आपसे? ये देवी-देवता इस कदर हावी हैं हमारे ऊपर कि इन देवी-देवताओं के बिना हम एक कदम नहीं चल सकते। किसी गाँव में आप चले जाइये, पीपल के पेड़ के नीचे तरह-तरह के रंग-बिरंगे निरे (बहुत-से) देवता बैठे हुए हैं। पत्थर का टुकड़ा कहीं से भी मिल जाए बस! वो देवी हो जाता है। हमारे यहाँ शीतला माई की जात होती है। मुसलमान भाई बहुत होशियार हैं। शीलता माता के लिए कहीं से पत्थर का टुकड़ा ले आते हैं और बस, लाल रंग का उसे पोता और उसको लिया, दो ईंटें रखीं, उस पर देवी को रख दिया। और फूल चढ़ा दिया और वो नीचे कपड़ा-सा बिछा दिया। बस, दो औरतें आयीं, पूड़ियाँ फेंकती जाएँगी, कचौड़ियाँ फेंकती जाएँगी, लड्डू फेंकती जाएँगी, पैसे फेंकती जाएँगी और वो वहाँ बैठा रहता है। देखा है वहाँ कोई नहीं है, सारी-की पूड़ियाँ समेट लाया और बस, बैठ के वो खा रहा है। कचौड़ियाँ—लड्डू खा रहा है। पैसे जेब में डाल लिये और सिगरेट पी रहा है। फिर आप देखिये शाम तक वह इतनी पूड़ी खा जाता है और घरवालों के लिए ले जाता है कि क्या कहें अपने घर वालों से वह चहक-चहक कर कहता है—देखो! मैं शीतला माई की जेब काट लाया और शीतला माई सोयी पड़ी रहीं। ये हिन्दू न जाने कहाँ जा रहे हैं! ये हिन्दू हैं कि जाहिल हैं? न जाने कौन है। देवी-देवताओं का क्या कहना! किसी भी मंदिर में आप चले जाइये। दो-एक देवी देवता से काम चलेगा? दो-एक देवी-देवता से कैसे मिट जाएगी भूख हमारी? हमारी नहीं भरेगी। आपने पूजा के लिए कोठरी रखी हुई है। उसमें आपने कितने देवी-देवता बना के रखे हैं। एक देवता? हाय! एक से कैसे बनेगा? बहुत-से आप रखिये। बहुत-से आप रखना। अच्छा, जहाँ पूजा की जगह है, वहाँ बहुत-से देवी-देवता रखना। ये फलानी देवी हैं, ये फलाने देवता हैं। ये महादेव, ये गणेश। ये गणेश, ये महेश। सब जितने भी देवी-देवता आपको मिल जाएँ, सब यहाँ जमा करके रखना। क्यों? न मालूम कब कौन-सा देवता किस काम आ जाए? आपमें से कोई वकील है, कोई डॉक्टर है, कोई इंजीनियर है, कोई प्रोफेसर है, न जाने किससे काम पड़ जाए? सब कबाड़खाना आप वहाँ जमा कर लेना और भगवान एक है। भगवान एक कैसे हो सकता है? भगवान तो बहुत सारे हैं। बहुत देवता जरूर हैं हमारे लिए, इनको हमको जमा करना पड़ेगा।
मित्रो! ये कैसा वाला अज्ञान? ये कैसा वाला अज्ञान, जिसने हमारी निष्ठाओं को, जिसने हमारी श्रद्धाओं को एक केन्द्र पर इकट्ठा करने की अपेक्षा असंख्य दिशाओं में बिखेर दिया और बिखेर देने के बाद में हम कैसे टुकड़े-टुकड़े हो गये! हमारी श्रद्धा एक पर नहीं है। हमारा ईमान किसी पर नहीं है और हमारा विश्वास किसी पर नहीं है। किसी एक की पूजा हम नहीं करते। जो आदमी सबकी पूजा करता है, वो आदमी किसी की पूजा नहीं करता। ‘सात मामाओं का भांजा भूखा मरता है।’ ये कहावत आपने सुनी है? नहीं सुनी है? आपको ये कहावत सुननी चाहिए कि एक था भांजा और उसके थे माता सात। तो वो पहले वाले बड़े मामा के यहाँ पहुँचा। अरे! अरे!! भांजे! तू खूब आ गया। तू तो बड़ा अच्छा लड़का है। तू कहाँ से आ गया? छोटे भाई के यहाँ से आ रहा है? हाँ तो ठीक है, पर तो खाना-पीना खा ही आया होगा? चल तो अच्छा रहा, बैठ जा और बता तेरे घर में सब कैसे हैं? अच्छा अच्छा तो तेरी छोटी मामी ने क्या खिलाया? छोटी मामी ने साहब, अच्छा खिला दिया। ठीक है। उसने सोचा—ये तो ऐसे ही टाल रहा हूँ, दूसरे मामा के यहाँ चलूँ। दूसरे मामा के यहाँ पहुँचा। कहाँ से आ रहा है? उनके यहाँ गया था अहा! ये तो अच्छा किया रे! अच्छा क्या-क्या खिलाया बता? बड़े मामा ने क्या खिलाया? बड़ी मामी ने क्या खिलाया? अजी, सब खिला दिया। चल अच्छा रहा। उसके पेट में कूद रहे थे चूहे। तीसरे के पास गया, चौथे के पास गया, पाँचवें के पास गया, छठवें के पास गया और सातवें के पास आया। पेट में कूद रहे थे चूहे। वो चल दिया। उसने सोचा—कितने मामा हैं? सात। और सात मामा न होते, एक मामा होता तब? तो पेट भर जाता। कहते—अरे भाई लड़के! तू रोटी खा करके आया? रोटी खा करके कहाँ से आया, सबेरे का वक्त है। अच्छा तो चल चाय पी। अरे भाई! अपनी मामी के पास जा। अरे! ये लड़का बहुत दिनों के बाद आया है। इसको पकौड़ी खिलाना, कचौड़ी खिलाना और देखो ऐसे करना, वैसे करना। एक मामा होता तब? एक मामा होता, तो काम बन जाता। अगर खाबिंद एक होता तब? तो हमारी टी.बी. की बीमारी में और मुसीबत के समय में आता, कहता—ये हमारी बीबी है और हमारी धर्मपत्नी है और अब आपके कितने खाबिंद हैं? सत्तर! अच्छा तो वो टी.बी. हो गई हमको। अरे देख! वो आते हैं न, क्या नाम है उनका? वो आते हैं न, सफेद पैंटवाले साहब। सफेद पैंट वाले साहब से कहना—वो अस्पताल भी चलाते हैं। हम तो जानते नहीं हैं, हम तो दुकानदार आदमी हैं। हमें तो भाई, मालूम नहीं है। अच्छा ठीक बात है। उसके पास चलेंगे। उसके पास चला गया और वो सब आये और उसने (वेश्या) हरेक से शिकायत की। हमको टी.बी. की शिकायत हो गयी है। अरे! हाँ-हाँ, देख वहाँ चला जा, टी.बी. वाला डॉक्टर बड़ा अच्छा आया है, वो तेरा इलाज कर देगा। वो जो आते हैं लाला गोविन्ददास, वो बड़े अच्छे हैं, वो बड़े मालदार हैं। उनसे कहना तो तेरा इलाज करा देंगे। ठीक बात है। किसी ने भी इलाज नहीं कराया और वो वेश्या ऐसी ही रह गयी। हम कौन लोग हैं? हम हैं वेश्या। असल में हम वेश्या हैं; क्योंकि हमने असंख्य देवी-देवताओं को पाल कर रखा है और हमारा ये ख्याल है—ये सब देवी-देवता अलग-अलग होते हैं, इसलिए इनसे भी बना कर रखो। पुलिसवाले से भी बनाकर रखो, हकीम से भी बनाकर रखो, डॉक्टर से भी बनाकर के रखो, पण्डित से भी बनाकर रखो, न जाने कब काम पड़ जाए?
ये देखना भाई! कैसी गड़बड़ हो गयी? तो इस तरीके से क्या है—हरेक से रिश्ता बनाकर के रखो। न जाने कौन किस काम जा जाए? देवता क्या बहुत सारे हैं? देवता मित्रो! बहुत सारे हैं नहीं। वो बहुत देवता नहीं हो सकते और बहुत सारे देवी-देवता दुनिया में रहे होते, तो दुनिया में मार-काट फैल जाती और दुनिया में गजब हो जाता और फौजदारी हो जाती और खून-खराबी हो जाती और कत्ल हो जाते और मुकदमेबाजी हो जाती। किनमें? देवताओं में? देवता एक ‘‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’’। एक ही ब्रह्म है और उसी को अनेक तरीके के नाम हमने दे दिये और पोस्टर बना दिये हैं। ये क्या हैं? कविता है। कविता है, हमने एक ही चीज को अनेक बना दिया है। कोई हमको पण्डितजी कहता है, कोई आचार्य जी कहता है, कोई स्वामी जी कहता है, कोई गुरुजी कहता है, कोई संपादकजी कहता है। कोई क्या कहता है, कोई क्या कहता है? असंख्य नाम हमारे हैं और फोटो बनाकर के रखे हैं। आप सामने वाला फोटो खींच लीजिए, हमारा नाक वाला हिस्सा आ जाएगा। पीठ वाला खींच लीजिए, हमारी पीठ आ जाएगी। और आप छत पर खड़े होकर खींच लीजिए, हमारा सिर आ जाएगा और आप झुककर के खींच लीजिए, हमारी टाँगें आ जाएँगी। आप अनेक फोटो हमारे खींच सकते हैं, अनेक शक्ल आप बना सकते हैं। भगवान की अनेक शक्ल, भगवान की अनेक सूरत और भगवान के अनेक नाम इसीलिए हैं मित्रो! उनके गुण, उनके स्वभाव, उनके कर्म, उनकी विशेषताओं का मूल्यांकन हमने किया है, इसीलिए अनेक नाम हमने रख दिये हैं। अनेक तरह के देवी-देवता हो सकते हैं? नहीं अनेक तरह के नहीं हो सकते। एक देवता हो सकता है और एक देवी हो सकती है। ‘‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’’ एक ही ब्रह्म है। एक ब्रह्म की मान्यता जब तक हमारे मन में स्थापित न होगी, तब तक मित्रो! हम एक नये अज्ञान में और एक नये जंजाल में उसी तरह भटकते रहेंगे, जैसे कि हमने अनेक पैगम्बर बना दिये, अनेक गुरु बना दिये, अनेक देवता बना दिये और न जाने कौन-कौन बना दिये? इस भ्रम और भ्रांति में से अपने समाज को निकालना पड़ेगा और इस भ्रम और भ्रांति में से जब तक हम समाज को निकालेंगे नहीं, तो मित्रो! हमारे ऊपर अंधाधुन्ध खर्च, अंधाधुन्ध पैसे का व्यय और हमारी निष्ठाओं का विकेन्द्रीकरण होता हुआ चला जाएगा और हम उस उद्देश्य को भूलते हुए चले जाएँगे, जिसके लिए हमने देवी-देवताओं की स्थापना की थी। देवी-देवताओं की स्थापना करने के पीछे हमारे ऋषि-मुनियों का एक बहुत शानदार मकसद था और बहुत ही शानदार एक उद्देश्य था। वो शानदार उद्देश्य और मकसद जब तक हमारी समझ में नहीं आयेगा, तब तक हम देव-पूजन, देवताओं की मान्यता, देवताओं के मंदिर और देवताओं की आस्था और देवताओं के सिद्धान्त के बारे में कुछ समझ ही न सकेंगे। था क्या? था ये कि भगवान की विशेष विभूतियों के सम्बन्ध में हमने एक चित्रण करना शुरू कर दिया और उसका एक स्वरूप शुरू कर दिया कि आदमी के जीवन की धाराएँ और आदमी के जीवन की दिशाएँ क्या होनी चाहिए और आदमी के विचार करने का क्रम और आदमी के चिंतन करने का स्वभाव क्या होना चाहिए?
असल में सारे-के जो आधार बनाया गया है, सारे-के अध्यात्म का जो कलेवर खड़ा किया गया है, जो भी पूजा-पाठ से लेकर के धर्मग्रन्थों तक की आस्थाएँ निश्चित की गयी हैं, उनका एक निर्दिष्ट लक्ष्य है। बिना लक्ष्य के नहीं हैं, ये सब चीजें। आप ऐसा समझते हों कि जिसके जी में आया, वो लिखकर रख गया भागवत् और जिसके जी में आया, वो लिख गया महाभारत और जिसके जी में आया, वो मंत्र हनुमानजी का बन गया और जिसके जी में आया इस तरह के खेल-खिलौने हरेक ने नहीं बनाये। इनके पीछे एक लक्ष्य है। मित्रो! लक्ष्य क्या है? लक्ष्य सिर्फ एक है। वो लक्ष्य ये है कि मनुष्य के विचार और मनुष्य के सोचने की शक्ति और मनुष्य के क्रियाकलाप इनको श्रेष्ठ और सुसंस्कृत बनाने के लिए इस जाल में आदमी को पकड़ लिया जाए और जकड़ लिया जाए। छुट्टल हाथी जंगल में होते हैं; उनको तरह-तरह के तरीकों से पकड़ के लाते हैं। एक बड़ा वाला घेरा बना देते हैं, उसमें वो कैद कर देते हैं। फिर दायरा छोटा करते हैं, फिर छोटा करते हैं। आदमी का मन बड़ा निकम्मा है और बड़ा पापी मन है। इस पापी और निकम्मे मन को श्रेष्ठ और परिष्कृत बनाने के लिए, सुयोग्य बनाने के लिए और चरित्रवान बनाने के लिए और आस्थावान बनाने के लिए हमने सारे-का विशालकाय कलेवर खड़ा किया है और इस कलेवर का एक लक्ष्य है और एक उद्देश्य है, एक दिशा है। हमको भ्रम और भ्रांति में भटकाना इसका लक्ष्य नहीं है। हम अनेक तरह के देवी-देवताओं में आपको भटका दें और अनेक तरह के मंत्र-तंत्र आपके लिए बनाकर खड़े कर दें और समय आपका खराब कराते हुए चले जाएँ—ये मतलब नहीं था उनका जैसा कि इस समय है। इन सबका मतलब सिर्फ एक है।
इन सारे-के क्रियाकलाप का मतलब एक है कि आदमी के विचार करने और सोचने का क्रम सही बना दिया जाए और काम करने का ढंग सही बना दिया जाए और उसके लिए अनेक चीजें बनाकर के दीं हमको। मैं आपको ये बताना चाहूँगा कि आखिर देवताओं का जो स्वरूप बनाया गया है उसका कारण क्या है? उसकी विधि क्या है? और उसका उद्देश्य क्या है? चलिये मैं एक देवता जिनको मैं सबसे ज्यादा प्यार करता हूँ। क्यों करता हूँ? उनके पीछे वो विचार जुड़ा हुआ नहीं है। कौन-सा? जो दूसरे देवी-देवताओं के पीछे जुड़ा होता है।
रामचन्द्रजी का इतिहास—अस्सी फीसदी बातें बहुत अच्छी मालूम पड़ती हैं और बहुत प्यारी मालूम पड़ती हैं; लेकिन बीस फीसदी बातें ऐसी हैं, जो हमारी समझ में ही नहीं आती हैं। अभी तक हमारी समझ में नहीं आया कि वो भगवान् थे, तो उन्होंने बालि को छिपकर क्यों मारा? अभी तक हमारे दिमाग की समझ में नहीं आया और अभी तक हमारी अक्ल ने मंजूर नहीं किया है कि रामचन्द्रजी का छिपकर के उस बालि को मारना, जबकि उस जमाने में लड़ाई का ये नियम था कि छिपकर के नहीं मारना चाहिए और आमने-सामने से लड़ाई लड़नी चाहिए। उन्होंने कायदे का और नैतिकता का नियम क्यों तोड़ा? वो तो भगवान थे। बालि को बुखार लगा सकते थे और बालि को टी.बी. कर सकते थे और उसको कैंसर का फोड़ा निकाल सकते थे। चाहे जो कर सकते थे। भगवान् के लिए क्या आफत थी? उन्होंने छिपकर के क्यों मारा? वो हमको नापसन्द है और रामचन्द्रजी से कभी मुलाकात हुई तो हम सबसे पहली बात ये बताएँगे कि आप तो मर्यादाओं की स्थापना करने के लिए आये थे, फिर आपने ये गलती क्यों कर डाली? आपकी देखा−देखी दूसरे लोग छिपकर के मारने लगेंगे, तो दुनिया में मुसीबत खड़ी हो जाएगी और मर्यादाएँ भंग हो जाएँगी। आपने ये गलती क्यों की? रामचन्द्रजी मिलेंगे, तो हम बता देंगे। शिकायत करेंगे जरूर, कभी मिले हमको तो। आपने ये क्यों किया? रामचन्द्रजी कभी हमको मिलेंगे, तो हम उनसे ये कहे बिना नहीं मानेंगे, कि आपको धोबी को दण्ड देना चाहिए था। भले आदमी हम तो अग्नि-परीक्षा लेकर के आये हैं। हमारी सीता तो बहुत अच्छी है और तू क्यों ये इल्जाम लगाता है? सीता बहुत खराब है और उनको निकाल दो। सीता को इल्जाम भी लगाता था, तो सजा धोबी को मिलनी चाहिए थी। धोबी को सजा देने की अपेक्षा रामचन्द्रजी न सीताजी को ही निकाल दिया। बेचारी को क्या-से कर डाला? कसूर किसने किया? धोबी ने। सजा सीताजी को हो गयी। रामचन्द्रजी मिलेंगे, तो हम शिकायत करेंगे और ये कहेंगे, आपने गैरमुनासिब काम किया और आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था। शाम्बूक नाम का शूद्र जप कर रहा था और तप कर रहा था, भजन कर रहा था, ध्यान कर रहा था और रामचन्द्रजी चले गये और उसका सिर काट डाला। उन्होंने कहा—तुम तो चमार हो, तुम तो शुद्र हो। ये तुमको नहीं करना चाहिए था, तुमने भजन क्यों करना शुरू कर दिया? रामचन्द्रजी कभी मिलेंगे हमको—हमारी मुलाकात होगी, तो रामचन्द्रजी से कहेंगे जरूर कि आपने ऐसा क्यों किया? श्रीकृष्ण जब कभी मिलेंगे और हमारी बातचीत उनसे होगी, तो हम पहली शिकायत ये करेंगे कि आप तो लोगों के लिए एक नियम और एक कायदा बनाने के लिए आये थे और लोगों की व्यवस्था बनाने के लिए आये थे, लोगों को रास्ता बताने के लिए आये थे और आपने ये कौन-सा रास्ता बताया? और जप आप चले आये, तो आपकी देखा-देखी लोगों ने वो ही रास्ता अख्तियार कर लिया और दुनिया में आपने मुसीबत पैदा कर दी। इससे तो आप न आते, तो अच्छा होता और आपने जन्म क्यों ले लिया? अवतार क्यों ले लिया? हमारी समझ में जरा भी आपका ये कहना नहीं आया। आपने ऐसा क्यों किया? और आपको क्या जरूरत पड़ गयी जो इतनी सारी स्त्रियाँ रखकर के इतनी सारी औलाद पैदा की? अपने मिशन वाला कोई जाता है लोगों के पास कि बच्चे कम पैदा करने चाहिए, तो वो कहते हैं—श्रीकृष्ण भगवान ने सोलह हजार एक साथ पैदा किये थे, हमारे तो छह ही बच्चे हैं। हम क्यों बंद करेंगे और हम तो ज्यादा बच्चे पैदा करेंगे। तो बेचारा सोचता है, ये क्या कर डाला श्रीकृष्ण ने? श्रीकृष्ण भगवान मिलेंगे, तो हम उनसे लड़ाई किये बिना नहीं मानेंगे और उनसे ये कहेंगे—खैर ये गलती अब हो गयी, सो हो गयी, दोबारा कभी जब अवतार लें, तो आप हमारी सलाह लेना और हम आपके सेक्रेटरी होंगे और फिर हम ऐसा नहीं करने देंगे। ऐसी क्या खुराफात करते थे आप? भगवान थे तो ये क्या मतलब कि ऐसी खुराफातें पैदा करें, जिससे लोगों को गलत रास्ते पर जाने का मौका मिल जाए।
मित्रो! हम ऐसा करेंगे; लेकिन एक देव ऐसा भी है, जिसके बारे में हमको कोई शिकायत नहीं है। वो कौन है? वो महादेव हैं। महादेव के बारे में हमको कोई शिकायत नहीं है। महादेव जी मिलेंगे, तो हम उनको बहुत प्यार करेंगे। उनकी जिन्दगी में हमने कोई ऐसी खुराफात नहीं देखी, जिससे हमको गुस्सा आये और नाराजगी हो। शंकर भगवान के बारे में जो चित्र और तस्वीर बना-बनाकर के हमारे सामने रखी गयी हैं, वो बड़ी मजेदार हैं और बड़ी शानदार हैं। हम उन तस्वीरों को सँभालकर के रखेंगे। कैसी-कैसी तस्वीरें! शानदार तस्वीरें! अलंकारों से भरी हुई, शिक्षाओं से भरी हुई, प्रेरणाओं से भरी हुई, दिशाओं से भरी हुई शंकर भगवान की तस्वीर। शंकर भगवान की तस्वीर जब हम देखते हैं, तो हमारा मन निहाल हो जाता है। हम उनके मस्तिष्क में से एक गंगा की धारा निकलते हुए देखते हैं। हमारे मस्तिष्क में गंगा की धारा निकलनी चाहिए। कैसी धारा? ज्ञान की धारा; जो कलुष मिटा दे; जिससे हमारा उद्धार हो जाए। हमारे मस्तिष्क में से वो किरणें फूटती हुई चली जाएँ उस जल की, जो तरावट देती है, शीतलता देता है। ऐसा ज्ञान अगर हमारे मस्तिष्क में से फव्वारा की तरह से फूटने लगे, तो हम कहेंगे शंकर भगवान सही हैं और शंकर भगवान के जो भक्त और शिष्य हैं, उनकी हम पूजा करने वाले हैं।
तो जो भगवान के मॉडल बनाकर के रखे गये हैं, वो इसीलिए बनाकर के रखे गये हैं कि उसमें हम अपने-आपको चिपकाएँ और चिपकाने के बाद में वैसे ही बनते चले जाएँ। सारे-के देवी-देवता, श्रीकृष्ण और रामचन्द्रजी इसीलिए हमारे सामने आये थे कि उनका मॉडल देखा जाए और उनको देखकर के लोग अपने-अपने चाल-चलन और अपनी दिशाओं को ठीक करना सीखें। टावर पर घड़ी लगी रहती है। प्रकाश-स्तम्भ समुद्रों में खड़े रहते हैं। इसीलिए खड़े रहते हैं कि जो नावें और जहाज समुद्र में होकर निकलते हैं, वो नाव और जहाज उस प्रकाश को देखकर के ये मालूम करें कि यहाँ कोई चट्टान तो नहीं है और समुद्र गहरा तो नहीं है, इसीलिए वो लगे रहते हैं और ये जो भगवान आते हैं, देवी-देवता जो आते हैं, इसीलिए आते हैं कि उनको देखकर के आदमी को ये मालूम पड़े कि किस तरह की जिन्दगी हमको जीनी चाहिए और कैसे हमको रहना चाहिए? शंकर भगवान का फोटो और चित्र इसीलिए बनाकर के रखा गया है कि हम उसको देखें और उसको समझने की कोशिश करें। शंकर भगवान के अनुरूप हमको अपने को ढालना चाहिए। अपने मस्तिष्क में से ज्ञान की गंगा का प्रवाह उसी तरीके से फैलाना चाहिए, जिससे हमारे मस्तिष्क में तरावट आ जाए और दूसरे लोग, जो कोई भी उसका चुल्लू भर पानी पिएँ, वो उसे पीकर धन्य हो जाएँ। ये ज्ञान की गंगा का स्वरूप है। पानी शंकर जी की खोपड़ी में से निकलता था कि नहीं निकलता था, हमें नहीं मालूम। आप हमसे बहस करेंगे, तो हम चुप हो जाएँगे। आप हमसे मत झगड़ा करना। पण्डितजी से पूछना कि पण्डितजी दिमाग में किसी के पानी निकलता हो, तो वो रात को सोयेगा कैसे? हमें नहीं मालूम सोयेगा कैसे? जब पानी निकलेगा, तो आप करवट ले के देखिये और हम आपको एक नल लगाये देते हैं, अच्छा? नल आपके सिर पर रख देते हैं। आपकी नाक में पानी भर जाएगा आपके कान में पानी भर जाएगा, आप जरा दो मिनट सोकर देखिये। बस वो जैसे ही फव्वारा पानी का निकलेगा सिर में से, आपका कम्बल भीग जाएगा और आपका गद्दा भीग जाएगा और चारपाई भीग जाएगी, कुर्ता भीग जाएगा; सब भीग जाएँगे और आप उठकर भाग जाएँगे—ये तो बड़ी मुश्किल आ गयी। पानी निकलता है? हमें नहीं मालूम निकलता है कि नहीं निकलता और हमसे आप पूछेंगे, तो हम सिवाय चुप होने के कुछ नहीं कहेंगे। शंकरजी के मस्तिष्क में से कितनी बड़ी गंगा निकलती थी और कितना पानी निकलता था और कितने किलोलीटर पानी निकलता था, हमको नहीं मालूम ये बात। हमसे मत करो बहस, हम नहीं बता सकते।
हम क्या बता सकते हैं? हम ये बता सकते हैं कि शंकरजी के सिर में से ज्ञान का जो फव्वारा निकलता था, वो ज्ञान की गंगा का था, पानी वाली गंगा का नहीं था। जो हमारे में से भी निकल सकता है और आपके में से भी निकल सकता है और आपके में से भी निकल सकता है हम निकालना चाहें तब। शंकरजी के सिर के ऊपर चन्द्रमा टँगा हुआ था। चन्द्रमा कौन-सा वाला? वो, जिसके ऊपर रशिया वालों के साथ राकेश शर्मा गया था, वो चन्द्रमा? वो चन्द्रमा बहुत बड़ा है और वो पृथ्वी का चौथाई या पाँचवाँ हिस्सा है। बहुत बड़ा है और बहुत भारी है। इतना भारी है कि किसी मनुष्य के सिर के ऊपर, किसी देवता के सिर के ऊपर टाँग दिया जाए, तो फिर देवता की अक्ल ठिकाने आ जाएगी और फिर वो तो गोल-मटोल है। चलो ये भी मान लेते हैं। हम इसको भी टाँग देंगे। वो तो गेंद के तरीके से है। गेंद को आप टाँगना चाहें, तो रस्सी से बाँधना पड़ेगा। शंकरजी को, तब बाँध सकता है, नहीं तो वो रहेगा ही नहीं, गिर पड़ेगा। चन्द्रमा शंकरजी के सिर पर है, हमको नहीं मालूम है कि नहीं और हमसे मत कीजिए बहस। हम नहीं बता सकते। हम ये बता सकते हैं कि चन्द्रमा शांति का प्रतीक, संतुलन का प्रतीक, अमरत्व का प्रतीक है। हमारे दिमाग में संतुलन कायम रहना चाहिए और हमारे में परिस्थितियों के बहाव सीधे भी आते हैं और उलटे भी आते हैं, गलत भी आते हैं। जिन्दगी के ताने-बाने सुख और दुःख से बने हुए हैं। हमको कभी खुशी का दिन आता है, कभी रंज का दिन आता है। कभी हमको नफा हो जाता है, कभी नुकसान होता है। ज्वार-भाटे हमारी जिन्दगी में आते रहते हैं; लेकिन ज्वार-भाटा के समय पर हम अपने दिमागी बैलेन्स को ठीक तरीके से कायम रख सकें, तो हम ये कह सकते हैं कि आपके सिर के ऊपर, दिमाग के ऊपर चन्द्रमा टँगा हुआ है। हाँ, वो टँगा हुआ है। अब? शर्त केवल ये है कि आपका संतुलन कायम रहता हो तब संतुलन जब कायम रहता हो, तब हम ये कह सकेंगे—आपके सिर के ऊपर चन्द्रमा टँगा हुआ है और? आपके सिर में, आपके गले में अगर वो ताकत है कि आप चीजों को—दुनिया में कितनी बुराइयाँ भरी पड़ी हैं और दुनिया में कितना जहर भरा पड़ा है; जहर को आप हजम करना चाहेंगे और पचाना चाहेंगे, तो आप मर जाएँगे और जहर को उगलना चाहेंगे तो सारी-की दुनिया जल जाएगी। दुनिया में बहुत-से जहर ऐसे हैं, जिनको आप न उगल सकते हैं, और न पेट में रख सकते हैं; उनको आपको गले में रखना चाहिए। दुनिया की जो बुराइयाँ हैं, हर चीज जो दुनिया की आपके विरुद्ध है, आप उनके विरुद्ध गतिशील मत होइये। हर बात कहने की नहीं है। गाली आपको आती है मुँह में से, गुस्सा आपको आता है, तो उसको रोकिए, संयमित कीजिए। गुस्से को आप नष्ट कीजिए और आपको किसी के प्रति घृणा के भाव आते हैं—घृणा के भावों को आप ऐसे ही कहने लगेंगे, तो आपकी पिटाई हो जाएगी और आपके सिर के बाल उखड़ जाएँगे।
इसीलिए आप जज्ब करना सीखिए, ढंग से बोलना सीखिए और अपने-आपको काबू में रखिये और अपने को कण्ट्रोल में रखिये। ये क्या चीज कह रहा हूँ मैं? ये वो चीज कह रहा हूँ—जो जहर गले में दबाया हुआ था शंकर जी ने। शंकरजी के गले में मुण्डों की माला पड़ी हुई हमको दिखायी पड़ती है। ये क्या है? ये मित्रो! शंकरजी कहाँ रहते हुए दिखायी पड़ते हैं? मरघट में। शंकरजी के शरीर पर क्या लगा हुआ दिखायी पड़ता है? मुर्दों की राख दिखायी पड़ती है। ये क्या है? ये है मृत्यु का देव। मृत्यु का देव कौन है? शंकर। मौत का कभी हमने ख्याल नहीं किया। मित्रो! जिन्दगी के बारे में विचार किया; पर मौत के बारे में कभी विचार नहीं किया। जन्म और मृत्यु हमारी जिन्दगी के दो शानदार पहिये हैं? जिन्दगी के बारे में भी हमको हर रोज विचार करना चाहिए और मौत के बारे में भी हमको हर रोज विचार करना चाहिए। हमको मरना तो होगा ही, मरना तो पड़ेगा ही और मरना तो चाहिए ही और मौत तो जिन्दगी है। कल परसों हमको मरना पड़ेगा, इस बात को अगर आदमी ने याद रखा होता, तो गुनाहों और पापों के गट्ठर, जो हमारे सिर पर जमा हो गये हैं, क्यों हो जाते? कल मरना है हमको। बाबा! परसों तो हमको मरना ही है। हमारी लाश और हमारी चिता इंतजार करती है। ये ख्वाब अगर हमको आया होता और हमने अपना घर कहाँ बनाया होता? मरघट में बनाया होता। हम कहाँ के रहने वाले हैं? मरघट के रहने वाले हैं और हम काम करते हैं तथा ड्रामा करते हैं दुनिया में। दुनिया में हम ड्रामा करने के लिए आये हैं। ड्रामा हमारा यहाँ होता है और हमारा घर वहाँ रखा हुआ है, पीपल के पेड़ के नीचे। वहाँ पर आप जाकर के अपने-आपको देखिये, आपकी शक्ल कैसी है और चेहरा कैसा है? इसके लिए मुर्दे की खोपड़ी को देखा कीजिए, जिसको आप हर बार क्रीम लगाते हैं, पाउडर लगाते हैं और जिसकी शक्ल आप बार-बार शीशे में देखते रहते हैं; उसका असली स्वरूप क्या है? जरा एक खोपड़ी को देखिये और आपके गले में, आपके हृदय में वो खोपड़ी भी रहनी चाहिए और आपके शरीर के ऊपर मुर्दे की राख भी रहनी चाहिए और आपको यह ध्यान रहना चाहिए कि हमारा असली निवास कहाँ है?
शंकर भगवान मौत के देव हैं। मौत के देव—जिनको हमने भुला दिया है। मित्रो! आध्यात्मिकता का एक महत्त्वपूर्ण पहलू ये है कि हम जिन्दगी किस तरीके से जिएँ? और एक महत्त्वपूर्ण हमारी जिन्दगी का ये है कि हम शानदार मौत कैसे मरें? हमारी शानदार मौत कैसे होनी चाहिए? और हमारी शानदार जिन्दगी कैसी होनी चाहिए? जिन्दगी खुशहाल कैसे हो और सफल कैसे हो? इन दोनों बातों का बैलेन्स अगर हमने मिलाया होता, तो शंकरजी की पूजा और उपासना के पश्चात् जो प्रेरणा हमको मिलनी चाहिए थी, वो मिल सकती है; पर हम क्या कर सकते हैं? हमने तो बेलपत्र ला-लाकर के चढ़ाये और चंदन से बेलपत्रों को रँगा और उसके ऊपर डाल दिया और सावन के महीने में तीन टाँग की तिपाई मँगायी और तीन घड़े टाँग दिये और बीच में उनके छेद कर दिये और पूरे-के सावन के महीने में शंकरजी के ऊपर पानी टपकता रहा। हमारी बात खत्म हो गयी और हमारा खेल खत्म हो गया। वो क्यों नहीं किया? कौन-सा? शंकरजी के भीतर जो शिक्षाएँ भरी पड़ी हैं और जो प्रेरणाएँ भरी हैं, वो क्यों नहीं सीखीं आपने? भूत और प्रेतों की सेना—भूत और प्रेतों की सेनाएँ बड़े आदमियों की नहीं, मालदार आदमी की नहीं, अमीरों की नहीं। भूत-प्रेतों की सेनाएँ हमको बनाकर के रखनी चाहिए थी।
जो पतित और पीड़ित—जो आपको पुकारते हैं, आपसे मदद के लिए हाहाकार में इंतजार करते हैं, आप वहाँ क्यों नहीं गये? आप उसके यहाँ क्यों जा पहुँचे, जिसके यहाँ आपके मिठाई की दावत खिलायी गयी थी और जिनके यहाँ रोशनी जल रही थी और जिसके यहाँ रेडियो बज रहा था और जहाँ सोफासेट पड़ा हुआ था। आप बार-बार उसके यहाँ चक्कर काटते-फिरते हैं और वो भूत और प्रेत वहाँ बैठा हुआ था, बेचारा बीमार पड़ा हुआ था, जो दुःखी पड़ा हुआ था, पिछड़ा हुआ पड़ा था, जाल में पड़ा हुआ था, आप उसके यहाँ क्यों नहीं गये? शंकर भगवान की निशानी और शंकर भगवान के चिन्ह हमको ये बताते हैं कि भूत और प्रेत हमारे मित्र होने चाहिए और हमारे दोस्त होने चाहिए और हमारे खानदान वाले होने चाहिए, हमारे कुटुम्बी होने चाहिए और प्यारे होने चाहिए। जो आदमी पीड़ित और पतित हैं—वो हमारे खानदान वाले हों। मित्रो! ये क्या कहलाएगा? ये आपके शंकरजी के चिन्ह और शंकरजी की निशानियाँ कहलाएँगी और शंकरजी की बात कहलाएँगी। शंकरजी की शिक्षाएँ क्या-क्या कहूँ आपसे? मैं कहाँ तक बताऊँ?
शंकरजी की महिमा ही मैं अगर गाता रहा, तो आप ये कह देंगे कि आप तो अपने ही देवता की बात कहते रहते हैं, हमारे देवता की बात तो कहते नहीं। अच्छा, चलिये मैं आपके देवता की बात कहता हूँ। आपका देवता कौन? बस वो जो नवरात्रि चल रही है न? सब जगह जाकर के देखिए आप! वहाँ क्या हो रहा है? चण्डी का पाठ हो रहा है? दुर्गा का पाठ हो रहा है—दुर्गा का पाठ। मित्रो! पण्डितों की इस वक्त पाँचों उँगलियाँ घी में होंगी। देवी का पाठ आधा यहाँ, आधा वहाँ। सबके यहाँ करेंगे और सबके यहाँ हवन करेंगे और सबके यहाँ पाठ करेंगे। उनकी पाँचों उँगली घी में रहती हैं। कब? जब ये देवी का पाठ होता है। ये दैवी कौन हैं? ये कहाँ से आ गयीं देवी? इस देवी की ‘स्कन्दपुराण’ में और ‘मार्कण्डेय पुराण’ में, देवी भागवत् में, जहाँ से भी ये लिया गया है। कौन-सा? ‘दुर्गा सप्तशती’ के जो अध्याय निकाले गये हैं—उसमें जो वर्णन आता है। किसका? जिसका हम पाठ करते हैं। देवी का हम पाठ करते हैं। चण्डीपाठ! सरस चण्डीपाठ! सरस चण्डीपाठ! जिसके आजकल धकाधक पाठ चल रहे हैं। ये आखिर हैं कौन! ये कहाँ से आ गयी? इसका आपको इतिहास और हिस्ट्री बताता हूँ कि ये आखिर हैं कौन चण्डी? एक बार ऐसा हुआ देवताओं और राक्षसों में बड़ी जोर की लड़ाई होने लगी। राक्षस थे जबरदस्त, उन्होंने देवताओं की पिटाई की और मार के भगा दिया। सारी-की गद्दी उन्होंने छीन ली और स्वर्ग के ऊपर हावी हो गये। कौन हावी हो गये? राक्षस और देवताओं का क्या हुआ? देवता भाग गये। देवता भागकर के यहाँ छिपे, वहाँ छिपे। आखिर में ब्रह्माजी के पास जा पहुँचे और ब्रह्माजी से प्रार्थना करने लगे—महाराज जी! हमारे ऊपर तो बड़ी मुसीबत आ गयी। क्या हो गया? राक्षसों ने हमको मारा। राक्षस क्यों मार सकते हैं? तुम तो देव हो। तुम्हारे पास तो वेदों का ज्ञान है। तुम तो ऋषि हो। तुम तो बड़े जबर्दस्त हो। तुम्हारे पास तो भगवान की शक्ति है। तुम क्यों हार गये? ब्रह्माजी ने उनकी हार के कारण को तलाश किया और ये पता लगाया कि आखिर क्यों हारे? आखिर थे तो ये देव। देव क्यों हारे? देवों के हारने की एक वजह है, दूसरी कोई वजह नहीं है। देव जब कभी हारेंगे तथा हम और आपकी जब कभी भी पिटाई होगी—उसकी एक वजह है, दूसरी कोई वजह नहीं है। क्या वजह है? हमारे भीतर संगठन करने का क्रम नहीं है। चोर-चोर इकट्ठे हो सकते हैं, ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ और पण्डित-पण्डित—ब्राह्मण, भैंसा, कुत्ता, हाथी—ये चारों हैं कुल के घाती। ब्राह्मण जब मिलेगा, तो देख लेना, कब मिलेगा? जब किसी लड़की-लड़के का ब्याह हो रहा होगा, एक पण्डित इधर बैठा होगा और एक पण्डित उधर बैठा होगा। जरा देखना कैसे कस-कस के लड़ाई होती है? मेढ़ाओं की लड़ाई देखी है आपने? जिन्दे मेढ़ों की लड़ाई न देखी हो, तो पण्डितों की लड़ाई देखना। जब ब्याह-शादी होती है, तो लड़की वाला पण्डित और लड़के वाला पण्डित, वो कोसता है, वो कोसता है; वो उसकी गलती बताता है, वो उसकी गलती बताता है। ऐसी-ऐसी चोंचें लड़ाते हैं, जैसे तीतर की चोंचें लड़ती हैं। तीतर की चोंचें लड़ती हैं आप देख लेना मजा, कहीं भी देख लेना। क्यों, क्यों होती है लड़ाई? लड़ाई होने की वजह? वजह ये है कि अच्छे आदमी कभी संगठित होकर नहीं बैठे। अच्छे आदमियों ने कभी नमाज मिल-जुल के नहीं पढ़ी। मुसलमानों में मुबारक ईद का दिन जब आता है, तो सारे-के मुसलमान इकट्ठे हो जाते हैं। देखा है आपने? हिन्दुओं को कभी आपने इकट्ठे होते हुए देखा है? तुम कौन हो? हम तो रामानंदी हैं। रामचन्द्रजी का मंदिर तो वहाँ है और हम वहाँ जाएँगे, रामचन्द्रजी को पूजेंगे। वो कौन हैं? वो भगवान् हैं। कौन? श्रीकृष्ण भगवान्! हम तो वहाँ जाएँगे और हम तो श्रीकृष्णजी को पूजेंगे। श्रीकृष्ण इष्ट है हमारा और कोई इष्ट नहीं है। अलग-अलग दो आदमी रहेंगे, तो जैसे धागे अलग बँटे हुए हैं, वो रस्सा कैसे बन सकता है?
हम कभी संगठित नहीं हुए। संगठित होते हैं, तो बस राक्षसी परिवार। उनका संगठन तैयार होता है और वो धावा बोल देता है देवताओं पर और हरा देता है। आफत-ही हम क्या कर सकते हैं? देवताओं में संगठित होना नहीं आया कभी। जो असंगठित रहा, उसकी पिटाई होती रही। ब्रह्माजी ने कहा—देखो बेवकूफों! इसकी दो वजह हैं, तीसरी कोई वजह नहीं हैं। हम आपको वो वजह बतायेंगे और संगठन की शक्ति को बताएँगे और जानकारी देंगे। तुम्हारी सब समस्याओं को हल कर देंगे। तो कीजिए। ब्रह्माजी ने सबको बिठाया और कहा—सब बैठो! और सब जहाँ के तहाँ बैठ गये। फिर कहा—हाथ जोड़ो! सबने हाथ जोड़ लिए। ब्रह्माजी ने क्या काम किया? अपना हाथ निकाला और सबमें से शक्ति खींची। सबमें से शक्ति खींचकर के उन्होंने एक गोला बनाया जादू का। जादू का गोला बनाया और उसमें मंत्र बोला तथा उसमें से चण्डी निकली। बड़ी जोर की चण्डी निकली! जीभ लपलपाती निकली! और उसकी कितनी भुजा! कितने हाथ! ओ माँ! महिषासुर को मार डाला और रक्तबीज को मार डाला और शुम्भ-निशुम्भ को मार डाला। सब मार-काटकर के उसने रख दिये और सबका सफाया कर दिया।
ये क्या हुआ? अलंकार हुआ। ये अलंकार है। लोगों की शक्ति निकल सकती है? हाँ, आप में से निकाल लूँ आपकी शक्ति, आप कहें तो। आप निकाल सकते हैं? कैसे निकाली ब्रह्माजी ने? निकालने का तरीका तो हमको मालूम नहीं है, आपके पास कोई तरीका हो तो बताइये? जेब काटने का तरीका सबको मालूम है। आप कहें, तो आपकी जेब काट लें। ये तो आपकी शक्ति की महिमा है और क्या है? आपका अहंकार क्या करता है? वो अहंकार ये करता है कि आदमी को संगठित नहीं होने देता। हर आदमी में संगठित होने की शक्ति है। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए गाँधीजी ने कहा—हमको एक शक्ति का उदय करना पड़ेगा। संघ-शक्ति का उदय गाँधीजी ने किया। पर्चियाँ डाल-डालकर डिब्बों में हमने ब्रिटिश हुकूमत को डरा दिया और गाँधीजी ने उस हुकूमत को भगा दिया। पर्चियाँ इसके बक्से में डालकर के, उसके बक्से में डालकर के अभी भी हम किसी भी हुकूमत को भगाकर के स्वतन्त्रता कायम कर सकते हैं। संगठन की शक्ति कितनी बड़ी हो सकती है? संगठन की शक्ति बड़ी जबर्दस्त हो सकती है। संगठन की शक्ति, जिसको हम संघ की शक्ति कहते हैं, कामयाब हो गई। संगठन की शक्ति, मेरी-आपकी शक्ति, मोहब्बत की शक्ति, एकता की शक्ति, सहकारिता की शक्ति—ये अगर हमने समझी होती तो मित्रो! स्वाधीनता को हमने बढ़ाया होता, हमने स्वतंत्रता के आंदोलन को बढ़ाया होता और हमने आपको निजी नहीं, समूह की महत्ता की बात को स्वीकार कराया होता और हमने आध्यात्मिक आन्दोलन चलाये होते, तो शायद आज स्थिति भिन्न होती। सारी सेना में और अध्यात्म में एक ही पद्धति है। चौका अगर बनाना है आपको, तो अलग चौका नहीं बना सकते। क्यों? क्योंकि आप एक समूह के अंग हैं। यहाँ सब कुछ सामूहिक ही हो सकता है। आपकी बीबी ने कहा कि नहीं, हम अपना खाना अलग पकाएँगे, अपना चौका अलग रखेंगे, तो क्या आप देश का इतना सारा समय खराब करेंगे? नहीं साहब! हमारी बीबी हमारी रोटी बना के खिलाएगी। नहीं, तुम्हारी बीबी तुम्हारी रोटी बना के नहीं खिलाएगी, सारे मोहल्ले की बना के खिलाएगी। तेरे मोहल्ले में कितनी औरतें रहती हैं? मेरे मोहल्ले में पचास औरतें रहती हैं और कितने आदमी रहते हैं? पचास आदमी रहते हैं और पच्चीस बाल-बच्चे रहते हैं। ठीक है, सवा सौ आदमी हुए। सवा सौ आदमी—सब आदमी-औरत काम करेंगे और कुछ औरतें खाना पकाएँगी। कुछ औरतों ने खाना पका दिया। सब आदमी-औरत आते हैं, मिल के रोटी खा जाते हैं। मजा आता है। हँसते हैं, बोलते हैं, प्यार की बातें करते हैं। नहीं साहब! हमारी औरत तो नहीं करेगी। अकेली चौका बनाएगी। भाड़ में जाएगी! एक तो सारी शक्ति को खराब करते हैं और एक आदमी ने क्या कर रखा है? इस एक आदमी की कीमत? उसकी कीमत ढाई सौ रुपया हो सकती है, पाँच सौ रुपया हो सकती है, छह सौ रुपया हो सकती है। इतने आदमियों ने फसल उगायी—एक आदमी के लिए रोटी बनाएगी? तीन सौ आदमियों के लिए नहीं बनाएगी।
ये क्या कह रहा थ मैं? मैं सहयोग की बात कर रहा था। समाज इसी पर टिका हुआ है। संघ-शक्ति इसका नाम है और आपको तो ये मालूम ही है कि जो छीनने वाले हैं और मार-काट करने वाले हैं, उनका नाम राक्षस है। चण्डी की शक्ति उसका नाम नहीं है। चण्डी की शक्ति वो है, आपका संघ। हम आपकी संघ की शक्ति इकट्ठे करेंगे। जो कुछ भी काम करना है—हम मिल-जुल कर करेंगे, अलग-अलग नहीं करेंगे। एक आदमी के लिए काम करेंगे। एक-एक आदमी से जुड़ने की शक्ति का नाम—‘चण्डी की शक्ति’ है। चण्डी की शक्ति है और देवी की शक्ति है। चण्डी की शक्ति हमको हमको जगा सकती है और हिला सकती है। मित्रो! हमको एक घटना याद आ जाती है कि जब रावण का मुकाबला करने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ, तो ऋषि इकट्ठे हुए हमारे-आपके जैसे। उन्होंने अपना-अपना खून इकट्ठा किया और घड़े में जमा कर दिया। घड़े में जमा करने के बाद मे गाड़ दिया जमीन में। राजा जनक जब हल चलाने के लिए आए और उसमें जो घड़ा गड़ा हुआ पड़ा था, उससे हल की नोंक लगी और टक्कर खायी। टक्कर खाने के बाद में वो घड़ा फूटा और घड़ा फूटने से एक बच्ची निकल पड़ी। जनक ने बच्ची का नाम सीता रखा था। सीता जब बड़ी हो गई; तो रामचन्द्रजी से ब्याह कर दिया। फिर सीताजी को लेकर के राम जब वन गए, तो सीताजी को रावण चुराकर के ले गया। राम ने रावण को मारा और सफाया कर दिया। सारी-की घटना क्या बताती है? घड़े में खून इकट्ठा करने पर बच्चा निकलता है? हमें नहीं मालूम है और हमको इस पर बात नहीं करनी। अगर आप शंका-समाधान चाहेंगे, तो हम नाराज होंगे। गुरुजी! ये बताइये खून घड़े में हम पैदा कर दें, तो हमारे बच्चा हो जाएगा? हट! बेवकूफ कहीं का! कहाँ त्याग की बात चल रही है, कहाँ संगठन की बात चल रही है और कहाँ तू पागलपन की बात ले आया। नहीं गुरुजी! बच्चा घड़े में से नहीं हो सकता, माँ के पेट में से होता है। घड़े में से होता है कि नहीं, हमें नहीं मालूम। नहीं गुरुजी! घड़े में नहीं होता। रामायण की कहानी झूठी है। रामायण की कहानी सही है, बिल्कुल सच है। इसमें झूठ नहीं है। झूठ नहीं है, तो घड़े में से बच्चा पैदा करके दिखा दीजिए? पहले तू खून निकाल, फिर हम अभी बच्चा पैदा करके दिखाते हैं। रामायण में तो यही कहानी है। रामायण झूठ नहीं कहती। रामायण बिल्कुल सही कहती है। कैसे कहती है सही? इसीलिए कहती है कि उसमें वो है ही नहीं! असल में से क्या है? ये अलंकार है। ये सारे-के अलंकार हैं और इन अलंकारों के पीछे शिक्षा भरी हुई पड़ी है और देवताओं में चरित्र भरा हुआ पड़ा है। इसमें क्या भरा हुआ है? हमको ये सिखाया गया है कि हर ऋषि अपना-अपना थोड़ा-सा रक्त एक जगह इकट्ठा कर लेगा, तो घड़े में से एक ऐसी ताकत और एक ऐसी फोर्स निकलकर के आयेगी, जो रावण जैसी महाशक्ति को भी बर्बाद कर सकती है और दुनिया में फैला हुआ पाप और अनाचार समाप्त कर सकती है। अगर हम और आप जैसे छोटे-छोटे आदमी भी अपना खून और अपना श्रम और अपना पसीना इकट्ठा कर लें, तो उसकी वजह से भी सारी दुनिया में तहलका मच सकता है।
ये क्या है? ये है मित्रो! चण्डी, जो अभाव, अशक्ति और अज्ञान इन तीनों राक्षसों को मारकर के मटियामेट कर सकती है। इन तीनों राक्षसों के नाम हैं—मधुकैटभ, शुम्भ-निशुम्भ और महिषासुर। ये तीन राक्षस थे, जिनको मटियामेट किया गया। उस चण्डी की पूजा पहले जमाने में भी होती थी और आज भी होती है। उस चण्डी की उपासना देवताओं ने उस जमाने में भी की थी और सम्भव है आप जैसे लोगों को और सारी जनता को और सारे भारतवासियों को चण्डी की फिर उपासना करनी पड़े और देवी की फिर उपासना करनी पड़े। चण्डी की और देवी की हम फिर उपासना नहीं करेंगे, संघ की शक्ति की उपासना नहीं करेंगे, तो हम पिछड़े हुए लोग और छिन्न-भिन्न हुए लोग कहलाएँगे और हमारे ऊपर मुसीबत आ जाएगी, हम नष्ट हो जाएँगे। वो कहानी आपको मालूम नहीं है कि वो थे चोर। कितने थे? दो थे। और आदमी कितने थे? वो थे चार। चोर ने कहा—चलो इन चारों को पकड़ेंगे; चारों की अक्ल ठीक करेंगे। उन्होंने कहा चारों से—चारों कौन थे? एक था ब्राह्मण, एक था बनिया, एक था ठाकुर और एक था शूद्र। उन्होंने चारों से पूछा—क्यों भाई! कौन-कौन लोग हैं? हम ब्राह्मण हैं। आहा-हा! तुम तो हमारे गुरुजी हो। और हम ठाकुर। अहा! हम और आप तो अपनी बिरादरी के हैं। और तू कौन है? मैं तो वो हूँ, बनिया हूँ। तो आपका और हमारा तो बराबर का वास्ता है। ये कौन हैं? ये तो वो हैं शूद्र। अच्छा! इसकी पिटाई करेंगे। पहल इसी से करेंगे। मार-मार के उसको ठीक कर दिया। तेरे पास जो पैसा है निकाल! वो तीन खड़े रहे, हमें क्या लेना-देना? शूद्र की पिटाई हो रही है, चलो ठीक है। इसको रस्सी से बाँध दो, ठाकुर साहब! चमार है बाँध दो। उस शुद्र को रस्सी से बाँध दिया। बाँधने के बाद में फिर क्या हुआ? फिर वो जो चोर थे, उन्होंने कहा—पण्डितजी! आप तो हमारे गुरु हैं और आप तो पण्डित हैं। बस, जो कुछ हमारे पास होगा, आपको दक्षिणा में दे देंगे और आपसे पूर्णमासी के दिन कथा कहलवाएँगे और ठाकुर से कहा—ठाकुर साहब! आप तो बिरादरीवाले आदमी हो हमारे-आपके तो हुक्का-पानी है। हम आपकी क्या पिटाई करेंगे? हम भी चोर हैं और आप भी चोर हैं। ये कौन हैं? ये बनिया है। ये बहुत मक्कर है। इसने बहुत पैसा बेईमानी का इकट्ठा किया है। इसकी तो ठाकुर साहब! पिटाई कर लेने दो। ब्राह्मण ने मुँह फेर लिया और ठाकुर ने भी मुँह फेर लिया। बनिये की पिटाई की उन्होंने। किसने? चोरों ने। चोरों ने सारा पैसा बनिये का छीन लिया और बनिये को पेड़ से रस्सी के सहारे बाँध दिया। अब रह गए ठाकुर और कौन रह गए? पण्डित! पण्डित से उन्होंने कहा—पण्डितजी! तुम तो हमारे गुरु हो और तुमसे तो कुछ कहेंगे नहीं। आप तो देवता और भगवान के बराबर हो। ये ठाकुर हैं और हम भी ठाकुर हैं। इससे हमें निपट लेने दो। इसको हम देख लेंगे।
जरा इसके और हमारे दो-दो हाथ हो जाने दो। तुम मत बोलना बीच में। हम नहीं बोलेंगे। पण्डितजी अलग बैठ गए। ठाकुर एक और वो चोर दो। ठाकुर की उन्होंने पिटाई की और बाँध दिया। उन्होंने कहा—पण्डितजी! अब आपका नम्बर है, पिटाई का।
मित्रो! अगर हमारी शक्ति अलग-अलग रहेगी, तो हम नष्ट होते हुए चले जाएँगे। संगठन की शक्ति के उदय का नाम-चण्डी की शक्ति है। चण्डी की शक्ति को आपने संगठन के रूप में लिया नहीं; जनता को आपने बताया नहीं और जनता को आपने समझाया नहीं। वो केवल पाठ करना! पाठ करना! और हवन करना! पाठ करना, हवन करना! ये शुरू कर दिया और क्या कहूँ आपसे? रामचन्द्रजी आए थे और जाने क्या-क्या सिखाने आए थे। हमने रामचन्द्रजी को भुला दिया और ‘हरे रामा, हरे कृष्णा’ को याद रखा। श्रीकृष्ण भगवान जाने क्या-क्या सिखाने आये थे और कर्म की शिक्षा देने आये थे, उन सब शिक्षाओं का आपने सफाया कर दिया और सब शिक्षाओं को भुला दिया और आपने कीर्तन गाना शुरू कर दिया जोर-जोर से—राधे कृष्णा, हरे कृष्णा। राधे कृष्णा, हरे कृष्णा। आपने बस वो कर लिया। आपको तो बस माला जपनी आती है और चिमटा बजाना आता है और आपको उपवास करना आता है और कुछ करना नहीं आता? और कुछ नहीं आता। उन शिक्षाओं को कैसे हम जीवन में धारण करें और उन प्रेरणाओं से हम ओत-प्रोत कैसे हो जाएँ और हमारा जीवन कैसे श्रेष्ठ और महान होता हुआ चला जाए—ये तो हम भूलते ही चले गए, हमारे हाथ कुछ लगा ही नहीं। हमारा अध्यात्म केवल पाखण्ड हो करके रह गया, ढोंग हो करके रह गया, अंधविश्वास होकर के रह गया। उसके अंदर जो जीवन था, उसके अन्दर जो प्रेरणाएँ थीं, जो शिक्षाएँ थीं, वो बस गँवा दीं हमने। हर देवता हमारा जो है, वह उसी तरह का है। गायत्री हमारी माँ। हमारी गायत्री माँ का हंस—नीर-क्षीर का विवेक करने वाला, जिसके ऊपर कोई दाग लगा हुआ नहीं है; स्वच्छ है जिसका जीवन। नीर-क्षीर का विवेक करने वाला और मोती चुगकर खाने वाला और चीजों को खाने से इनकार करने वाला। ‘‘के हंसा मोती चुगै, के लंघन मर जाए।’’ जिसकी कीर्ति इस बात की नहीं कि वो निरा हंस है। आपने हंस को देखा नहीं कि मन मचलने लगा—हंस की पूजा करेंगे। नीलकण्ठ को देखकर लगा नीलकण्ठ की पूजा करेंगे। इक्यासी व्रत रहें, पूर्णमासी का व्रत रहें, मोर की पूजा करके आएँ, साँप की पूजा करके आएँगे। साँप की पूजा, हँस की पूजा, मोर की पूजा, कबूतर की पूजा—ये सारी-की सीख लीं आपने और इसके पीछे क्या प्रेरणाएँ भरी पड़ी हैं? क्या शिक्षा मिलनी चाहिए, उसका ख्वाब भी नहीं आया होगा और आपने देखने की कोशिश भी नहीं की। गहराई में जाइये।
सारे-के देवता हमारे इसी तरह के बने हुए हैं। शंख-चक्र और पद्म ये क्या हैं? ये विष्णु भगवान के चार आधार हैं। एक हाथ में है चक्र—पहिया घूमना। पहिया घूमना-गतिशील। गतिशीलता—हमारे जीवन का चक्का घूमता ही रहना चाहिए और जिन्दगी का पहिया घूमता ही रहना चाहिए। जिन्दगी का पहिया जाम न हो जाए और जिन्दगी के चक्र की गति कम न हो जाए। सत्संगता हमारी कम न हो, दयाशीलता हमारी कम न हो इस बात का प्रतीक है यह चक्र। भगवान के हाथ में लगी हुई गदा—संघर्ष की गदा है और भावों की गदा है। हमको अपने आप से और अपने भीतर की बुराइयों से गदा लेकर के लड़ाई लड़नी चाहिए। ये क्या कह रहा था मैं? ये भगवान के हाथ की बात कह रहा था और शंख? शंख का अर्थ—नाद और घोषणा। संकल्प और निष्ठाएँ। ये शंख-चक्र हैं।
जो आयुध इनके ऊपर लगे हुए हैं, ये सारी-की उन्हीं की व्याख्या है। मित्रो! जो भगवान ने कहना चाहा था, ये उसी तरह की व्याख्या है। मित्रो! जो भगवान ने कहना चाहा था, ये उसी तरह की व्याख्या है। मैंने तो आपको ये व्याख्याएँ इसीलिए सुनाने की कोशिश की कि आप जहाँ कहीं भी जाएँ—समाज में जाना और लोगों से कहना—हिन्दू धर्म बहुदेववादी नहीं है। हिन्दू धर्म एकेश्वरवादी हैं। हमारा भगवान एक है। हमारा ईश्वर एक है। हमारा नियामक एक है। हमारी सत्ता एक है। असंख्य लोगों का ये मजहब नहीं है और असंख्य देवी-देवता नहीं हैं। असंख्य देवी-देवता रहेंगे, तो फिर दुनिया अराजकता फैल जाएगी। शंकरजी का सेवक देवी की पूजा करने लगा और देवी का चेला गणेशजी की उपासना करने लगा। और गणेशजी का भक्त संतोषी माता की पूजा करने लगा। संतोषी माता पिटाई करेगी उसकी। क्यों? गणेशजी के पास क्यों चला गया? तू तो हमारा चेला था। तूने हमको क्यों नहीं खिलाया? मित्रो! बड़ी भारी अराजकता फैल जाएगी इस तरह और फिर न जाने क्या-से होता चला जाएगा।
बहुदेववाद रूपी अज्ञान—जिससे हमारा समाज कितना गलित होता हुआ चला गया और अंधविश्वासों में फँसता हुआ चला गया; एकनिष्ठा से कुण्ठित होता हुआ चला गया और देवी-देवताओं के नाम पर असंख्य मंदिर, असंख्य कीर्तन और असंख्य पण्डा और असंख्य पुजारी, असंख्य तंत्र, असंख्य मंत्र और असंख्य कर्मकाण्डों में फँसता हुआ चला गया। इसका परिणाम क्या हुआ? इसका परिणाम ये हुआ कि हमारी निष्ठा, जो एक होनी चाहिए थी, अटूट और अडिग होनी चाहिए थी, वो हमारी निष्ठा खण्डित हो गई और हमारे हाथ में अब कुछ नहीं है। हमारे पास में विश्वास जरा भी नहीं है और हमारा कोई नहीं है। हमारा एक भगवान नहीं है। इसीलिए हम असंख्य दिशाओं में और टुकड़ों में बाँटते हुए चले जा रहे हैं; सम्प्रदायों में बँटते हुए चले जा रहे हैं। ये शैव हैं, ये शाक्त हैं, ये वैष्णव हैं, ये फलाना है, ये ढिकाना है। असंख्य नहीं हो सकते। हमको सिर्फ एक करना है और हमको माला एक-एक की जपनी है।
हमको उन आध्यात्मिकता के देवों के मूल सिद्धान्तों को समझ करके और लेकर के जाना है कि आदमी को दिव्य बनना चाहिए और आदमी को श्रेष्ठ बनना चाहिए। आदमी को देने वाला बनना चाहिए और आदमी को महान् बनना चाहिए। देवत्व अपने भीतर उदय करना चाहिए और उसी का पूजन करना चाहिए। बाहर वाले देवी-देवता से हम प्रेरणा लें ठीक। हम दिशाएँ लें—ठीक। हम प्रकाश लें—ठीक; पर उद्धार हमारा कौन करेगा? हमारा अन्दर वाला देव करेगा, जिसको हम कहते हैं—आत्मदेव। आत्मदेव सबसे बड़ा देव है। आप उसकी पूजा करना। पहाड़ वाले देवताओं से प्रार्थना करना। हमारा आत्मदेव सो गया है, इसको आप जगा दीजिए। हमारा आत्मदेव मर रहा है, इसको आप जाग्रत कर दीजिए और आत्मदेव का जिस दिन आपको वरदान मिलेगा, आशीर्वाद मिलेगा उसी दिन आप धन्य हो जाएँगे और आप निहाल हो जाएँगे, आप संत हो जाएँगे, आप महात्मा हो जाएँगे और आप तपस्वी हो जाएँगे और जो कुछ भी अध्यात्मवादी हो होना चाहिए, वो आप हो जाएँगे। ऐसा मेरा विश्वास है। आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥