उन दिनों कैसेट का प्रचलन खूब जोर-शोर से था। गीतों के व परम पूज्य गुरुदेव के प्रवचनों के कैसेट तैयार किये जा रहे थे। कैसेट के इनले कार्ड में परम पूज्य गुरुदेव का चित्र देने का निर्णय हुआ। जब वं० माताजी को एक नमूना दिखाया गया तो वं० माताजी ने कैसेट को उलट-पलट कर देखा और बोलीं, ‘‘बेटा! मुझे और गुरुजी को कभी अलग मत समझना।’’ फिर बोलीं, ‘‘बेटा, आने वाले समय में दुनिया अपनी समस्याओं का समाधान मेरे गीतों में और पूज्य गुरुजी के प्रवचनों में ढूँढ़ेगी।’’ - वं० माताजी
तुम्हें ईश्वर मिलेगा, यदि सरल मन हो तुम्हारा ही।
सहज संवेदना से, जो तरल मन हो तुम्हारा ही॥
भरा हो भाव तो भगवन् तुम्हें हर पल मिलेगा ही।
सहज आनंद से भरपूर अन्तस्तल मिलेगा ही॥
अखिल ब्रह्माण्ड में हर ओर वह बिखरा हुआ ही है।
उसी की क्रांति से कण-कण यहाँ बिखरा हुआ ही है॥
दिखेगा वह अगर मैला न दर्पण हो तुम्हारा ही।
सहज संवेदना से, जो तरल मन हो तुम्हारा ही॥
तुम्हें ईश्वर मिलेगा, यदि सरल मन हो तुम्हारा ही।
तुम्हें ईश्वर मिलेगा॥
हिमाच्छादित शिखर में नीर-निर्झर में वही तो है।
नदी की हर लहर में और सागर में वही तो है॥
वही है बादलों से झर रही जीवन-सुधा में भी।
वही है तरु-लताओं की असीमित सम्पदा में भी॥
तुरत वह आयेंगे सच्चा निमंत्रण हो तुम्हारा ही।
सहज संवेदना से, जो तरल मन हो तुम्हारा ही॥
तुम्हें ईश्वर मिलेगा, यदि सरल मन हो तुम्हारा ही।
तुम्हें ईश्वर मिलेगा॥
उसी से सूर्य आलोकित सदा होता ही रहता है।
वही उद्भव, उसी में विश्व लय होता ही रहता है॥
नियंत्रण है उसी का पूर्ण धरती की धुरी पर भी।
कि ऋतुएँ नाचती रहतीं उसी की बाँसुरी पर भी॥
दिखेगा वह स्वयं पर यदि नियंत्रण हो तुम्हारा ही।
सहज संवेदना से, जो तरल मन हो तुम्हारा ही॥
तुम्हें ईश्वर मिलेगा, यदि सरल मन हो तुम्हारा ही।
तुम्हें ईश्वर मिलेगा॥
हवा को ताप को हमने कभी देखा नहीं अब तक।
मगर उसकी हमें अनुभूति तो होती रही अब तक॥
न ईश्वर भी नयन का, और दर्शन का विषय ही है।
अरे भगवान तो अनुभूति का, मन का विषय ही है॥
न मन विचलित अनास्था से किसी क्षण हो तुम्हारा ही।
सहज संवेदना से, जो तरल मन हो तुम्हारा ही॥
तुम्हें ईश्वर मिलेगा, यदि सरल मन हो तुम्हारा ही।
सहज संवेदना से, जो तरल मन हो तुम्हारा ही॥
तुम्हें ईश्वर मिलेगा॥